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Monday 7 November, 2011

कथांश : कैकुवाद.....

बंगाल का इक्तादार था -बुगरा खाँ . उसका पिता बलबन देश का राजा था जो अपने बड़े पुत्र मुहम्मद एवं उसके पुत्र कैखुसरव को काफी चाहता था . उस समय दिल्ली के कोतवाल पद पर था -फखरुद्दीन मुहम्मद.कैकुवाद बुगरा खाँ का पुत्र था.जो शरीर से सुन्दर था ही सुसभ्य एवं उदार भी था.


एक गांव के बाहर एक फकीर बाबा रहा करते थे . कैकुवाद के कहने पर उसके पिता बुगरा खाँ ने फकीर बाबा को जमीन दिलवा दी थी . हर सप्ताह एक बार अवश्य कैकुवाद फकीर बाबा से मिलने पहुँच जाता और उनके सत्संग मेँ काफी घण्टे रहता .


"कैकु,तू एक नेक इंसान बनेगा यदि मेरे सत्संग पर ध्यान देता रहा. कुछ शक्तियां तुझे फँसाने का कार्य करेंगी."


"बाबा!मेरे पिता को आप जानते हैँ . वे नई नई स्त्रियों के बीच व्यस्त रहते हैं . अपने दायित्वों को भूल जाते हैं . ऐसे मेँ मुझे ताज्जुब होता है कि मैँ उनका बेटा हूँ.."

"कैकू,तू एक हीरे के समान है लेकिन तेरे चारो जो धूल है वह तेरी चमक को मन्द कर देगी . सत्ता ने वैसे भी क्या दिया है आम इन्सान को ?मैं देख रहा हूँ तुझे सत्ता के गलियारे अपने मेँ घसीट कर तुम्हारे अस्तित्व को मिटाने का प्रयत्न करेंगे."

"बाबा,मैँ बस आपकी शरण मेँ रहना चाहता हूँ.मैँ वास्तविक खुशी चाहता हूँ न कि खुशी की वह चमक जो दुनिया को तो दिखायी दे लेकिन मुझे न दिखायी दे."

"कैकू,सुख दुख नाम की कोई चीज दुनिया मेँ नहीं है,यह सब तो ख्याली है."

"बाबा,मुझे खुशी है कि सुल्तान बाबा मुझे उत्तराधिकारी नहीं बनना चहते हैं हालांकि कोतवाल साहब मुझे उकसा रहे हैँ."

"तू खुद महसूस करता है कि सुल्तान के बाद तू सत्ता पा भी गया तो तेरे चारो ओर मड़राने वाले तेरे द्वारा भला नहीं होने देँगे.तुम जैसे सुसभ्य,उदार,शिक्षित सत्ता पा कर अच्छे नेतृत्व मेँ राज्य का भला कर सकते हैँ लेकिन सत्ता के नेतृत्व मेँ राज्य का भला कर सकते हैं लेकिन सत्ता के गलियारोँ के व्यक्तियों की आंखों के किरकिरी भी हो सकते हैं क्योंकि वो लोग बेईमान एवं मतलबी होते हैँ.."


"बाबा!सुल्तान बाबा की सलामती की दुआ क्यों नहीं करते हैँ आप?वे सलामत रहें.उनकी बागडोर राज्य के हित मेँ है."


"लेकिन तेरे बाबा कब तक चलेंगे?कुदरत के खेल को कौन मेट सकता है?सुल्तान काफी उम्र के हो चुके हैं फिर मौत तो जिन्दगी का एक सत्य है.वे कब तक जिन्दा रहेँगे ?उनके बाद कैखुसरब सत्ता संभालेगा.अभी तो सब ठीक है,सुल्तान के बाद क्या होगा?यह एक बड़ा सवाल है."


* * *


प्रात: काल का समय!

यमुना नदी मेँ सूरज की किरणें चमकने लगी थीँ.एक मछुआरे को एक व्यक्ति की चादर से लिपटी लाश मिल गयी .

"अरे,इसकी तो श्वांसे चल रही हैँ."


मछुआरे ने युवक से लिपटी चादर को हटा दिया .

"इसकी उम्र क्या होगी?तीस पैतीस से ज्यादा का न होगा लेकिन लकवा मारा लगता है.?"-एक युवती से मछुआरा बोला.

"इसको घर ले चलते हैं."


फिर उस युवक को दोनों अपने घर ले आये.


* * *


बलबन की मृत्यु के बाद कोतवाल फखरुद्दीन मुहम्मद ने षड़यन्त रच कर कैकुवाद को सुल्तान घोषित करवा दिया .कैखुसरब एवं उसके परिवार से वह नफरत करता था ,जिसे उसने डरा धमका कर मुल्तान भिजवा दिया था .इसके बाद सत्ता मेँ फखरुद्दीन के दमाद निजामुद्दीन का हस्तेक्षप एवं मनमानी बढ़ गयी . उसने अपने कुचक्र एवं महत्वाकांक्षा से ध्यान हटाने के लिए कैकुबाद की भावनाओं को जगा कर कैकुबाद को
बिलासिता में धकेल गद्दी पाने के प्रयत्न प्रारम्भ कर दिए . फखरुद्दीन ने उसे काफी समझाने का प्रयत्न किया . तुर्क सरदार निजामुद्दीन के विरोध मेँ आ खड़े हुए और कैकुबाद के पिता बुगरा खाँ को सूचित किया और कैकुबाद से मुलाकात करवायी . अपने पिता के कहने पर कैकुबाद ने निजामुद्दीन की हत्या करवा दी .निजामुद्दीन की हत्या के बाद सत्ता मेँ स्वच्छता एवं सुदृढता आ गयी लेकिन
........जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को सेना का सेनापति बनाने के कारण तुर्क सरदार कैकुबाद से असन्तुष्ट हो गये . गैरतुर्क सरदारों की हत्या की जाने लगी .


कैकुबाद रोगी हो लकवा का शिकार हो चुका था .


आगे चल कर जलालुद्दीन खिलजी की शक्ति का विकास हुआ .तुर्क सरदारों ने सुल्तान कैकुबाद को उसकी अस्वस्थता के कारण उसके स्थान पर उसके तीन वर्षीय पुत्र क्यूमर्स उर्फ शमसुद्दीन को सुल्तान घोषित कर दिया और जलालुद्दीन खिलजी के हत्या की योजना बना ली .जलालुद्दीन खिलजी अपने विद्रोहियों को दबाते हुए स्वयं सुल्तान शमसुद्दीन का संरक्षक बन गया .तीन माह बाद उसने सुल्तान शमसुद्दीन
की हत्या करवा कर कैकुबाद को एक चादर मेँ लिपेट कर यमुना मेँ डलवा दिया .


मछुआरे की कुटिया में लेटा लेटा कैकुबाद सोंच रहा था-

"मैं क्या था ,क्या हो गया ?फखरुद्दीन के कहने पर राज्य की सत्ता मेँ आ गया.राज्य की सत्ता संभालना तो दूर अपनी सत्ता तक न संभाल सका . अपने पर ही शासन न कर सका.."


फकीर बाबा की बातें उसे स्मरण हो आयीं -

"इन्सान औरों पर शासन करना चाहता है लेकिन आश्चर्य कि अपने पर शासन नहीं कर पाता."


धीरे धीरे मन्द चाल मेँ कैकुबाद कुटिया से बाहर आ गया . वह सोंचता जा रहा था -"मुझे अब शेष जीवन अज्ञातबास मेँ रह कर फकीर बाबा की शिक्षाओं के आधार पर जीना है."

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को सेना का सेनापति बनाना क्या कैकुबाद के लिए उचित था?और फिर गैरतुर्क सरदारों की हत्या पर कैकुबाद नियंत्रण क्यों न कर सका ?

Thursday 3 November, 2011

श्रीराम शर्मा जन्म शताब्दी महोत्सव : वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के लिए चिरस्मरणीय श्रीराम शर्मा जी

महापुरुष आते हैं और चले जाते हैं लेकिन निशानियां छोंड़ जाते हैँ . जो उनकी उपस्थिति मेँ उनकी शरण मेँ आ जाते हैं उनका उद्धार हो जाता है शेष तो भीड़ का ही हिस्सा बन कर रह जाते हैँ.इन दिनों गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य जी का जन्म शताब्दी महोत्सव है.श्रीराम शर्मा को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के लिए हमेसा याद किया जाएगा.

धर्म,दर्शन और विज्ञान तीन प्रबल विचार शक्तियां हैं ,किन्तु इनका अलगाव और आपसी टकराव मानव जीवन मेँ वरदानों की सृष्टि नहीं कर सकता . श्रीराम शर्मा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के लिए हमारे सदा प्रेरणा स्रोत रहेंगे.धर्म दर्शन व विज्ञान का मिश्रण कर उन्होने हमेँ जो रसानन्द दिया है उसके लिए हम सदा ऋणी रहेंगे.हम उनकी निशानियों से जुड़े रहेंगे लेकिन उनसे सम्वंधित संस्थानों के सगुण उपासना सम्बंधी कार्यक्रमों मेँ सम्मिलित होने का इच्छुक नहीं रहा हूँ. मैं तो प्राणायाम , स्वाध्याय .अध्ययन ,शास्त्रार्थ व मेडिटेशन पर विश्वास रखता हूँ .

शर्मा जी ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य कुछ और नहीं ,भटका हुआ देवता है.दरअसल मानव अभी अपने को ही नहीं पहचाना है .स्थूल मेँ जीता है.


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Wednesday 2 November, 2011

पीस पार्टी व मु. अय्यूब : कांग्रेस का विकल्प

इन दिनों अनेक राजनैतिक पार्टियों की बाढ़ सी आ गयी है जिनमे एक पार्टी पीस पार्टी का बढ़ता जनाधार देख कर लोग अचम्भे मेँ हैँ. 10फरवरी2008को स्थापित पीस पार्टी से आज की तारीख मेँ कोई बच्चा तक अन्जान नहीं है.पीस पार्टी गरीब आदमी की आवाज बनती जा रही है.पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अय्यूब के भाषण हमेँ भी प्रभावित करते रहे हैँ लेकिन जैसा कि ये नारा दिए हैँ कि एकता का राज चलेगा हिन्दू मुस्लिम साथ चलेगा ,पर कुछ शंकाएं हैँ.मैं पीस पार्टी के नेताओं के मोबाइल नम्बरों पर मैसेज भेजता रहा हूँ कि कैसे एकता का राज चलेगा?क्या आप जन देश व अन्य देशों के पुरातत्विक स्रोतों के सच को स्वीकार कर सकोगे?आप कटटर मुस्लिमों व कटटर गैरमुस्लिमों से कैसे निपटोगे?फिर देश के हित में कुछ कठोर निर्णय होने हैं जो कि वोटों की राजनीति से ऊपर उठे बिना सम्भव नहीं है.

एक संकल्प : नारको परीक्षण की अनिवार्यता


मैं बचपन से ही कुछ ऐसे हालात जिया हूँ जब मुझे लगा है कि गवाह ,सबूत व जन बल का अपने पक्ष या विपक्ष मेँ होना काफी नहीं है .हर हालात मेँ नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग अनिवार्य होना चाहिए.पीस पार्टी जिसका समर्थन करती है


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Sunday 30 October, 2011

इल्तुतमिश : भारतीय कमजोरियों की नींव पर सल्तनत का सपना

नदी के किनारे कुछ बच्चे एक बच्चे को घेरे खड़े थे और उसकी मजाक बना रहे थे.बच्चों के बीच खड़ा बालक शरीर से सुन्दर एवं बलवान था लेकिन......?! सहमा सहमा सा वह खड़ा मन ही मन सोंच रहा था -"क्या यह अपने हैँ?"


वह बोल पड़ा -

"आपलोग हमसे क्यों जलते हो?मैं तो आप लोगों का भाई हूँ." सब बच्चे हंसने लगे,उनमेँ से एक बोला -"भाई है तो क्या?बाप तुझे होशियार एवं बुद्धिमान मानता है अब दिखा अपनी होशियारी और बुद्धिमानी.."

"अपनों के बीच कैसी होशियारी एवं बुद्धिमानी?अपनों के बीच तो प्रेम सौहार्द से रहना चाहिए."

"इल्तु!तेरी गलती इतनी है कि बाप हम भाइयों मेँ से तुझे सबसे ज्यादा चाहता है."


इल्तुतमिश खामोश ही रहा ,उसने मुस्कुराने की कोशिस की.

"इल्तु,तुझे बाप इतना क्यों चाहता है?"

"इसका जबाब खुद अपने से पूछो."


"हाssssssहाsssss!"फिर सब हँस पड़े.

"पागल है,क्या कुछ अपने से भी पूछा जाता है?"

" क्या आप मेँ से कोई नहीं जानता 'अपने से पूछने'का मतलब क्या है?"

"तुम जैसे पागल ही जानते होंगे."



इल्तु का पूरा नाम था -शम्सुद्दीन इल्तुतमिश.जो इल्बारी तुर्क वंश से सम्बंध रखता था.पिता का नाम था-इलाम खाँ,जो एक कबीले का प्रधान था.जब भी पंचायत होती , इल्तु अपने पिता के साथ चबूतरे पर बैठता था.कबीले की पंचायत भी इल्तु की होशियारी एवं बुद्धिमानी पर विश्वास करती थी.


"कुदरत भी किसी किसी को देती है छप्पर फाड़ कर देती है ."इल्तु का एक भाई बोला तो दूसरा भाई बोला -"इल्तु भाग्यशाली है.शरीर तो सुन्दर पाया ही दिमाग भी सुन्दर पाया और लोगों की मोहब्बत भी."


तीसरा बोला -"मेरे दिमाग मेँ एक हरकत सूझ रही है.इल्तु जिन्दगी भर गुलामी करेगा और हमारे आंखोँ की किरकरी भी नहीं बनेगा."

तब पहला भाई बोला -"हाँ,दिमाग में आया .इल्तु को क्यो न गुलामों के बाजार मेँ ले जा कर बेंच देँ."

इल्तु के सभी भाई इल्तु को पकड़ कर पशुशाला मेँ ले आये.


"आपसब क्या चाहते हो ?हम आपका क्या बिगाड़ते हैँ?"


"हम सब तुम्हें देख कर जलते हैं."


"हाजमा भी नहीं होता."


"हाsssहाssssहाssssss"सब ठहाके लगा हँस पड़े.


"अब हम सब तुझे गुलामों के बाजार मेँ बेँच देंगे."


"तू यदि कुछ भी हम लोगों के खिलाफ बोला तो खैर नहीं."


"आप सब मेरे भाई हो.हम नहीं चाहते आप सब परेशान रहे लेकिन मैं ऐसा क्या करता हूँ जिससे आप सबको परेशानी होती है?"


"परेशानी?!" फिर सबके सब ठहाके लगाने लगे.


"हम सब नहीं चाहते कि तू हम लोगों व बाप के साथ रहे."

इल्तु के भाईयों ने उसे एक व्यापारी के हाथ बेंच दिया.इसके बाद वह पुन: दो बार बेँचा गया . इल्तु के साहस नेतृत्व एवं संस्कारों से लोग काफी प्रभावित होते गये . बालक होते हुए भी वह बालकों के स्वागत से काफी ऊपर उठ कर बड़ों एवं बुजुर्गों की शोभा बनने लगा था.इसका मतलब यह नहीं कि वह अपनी उम्र के बालकों के बीच नहीं जाता था या नहीं रहता था.गुलाम होते हुए भी वह लोगों को आकर्षित करता रहता
था.


इल्तु एक चट्टान पर बैठा चट्टानों को काटती औरतों व लड़कियों को देख रहा था.


"इल्तु,क्यों गुमसुम से बैठे हो यहाँ?"-एक बालिका आकर बोली.


"तू फिर आ गयी यहाँ .मालिक से तेरी शिकायत करुंगा .कोई काम नहीं बकबास करने चली आती है ."


"इल्तु,तू वास्तव मेँ उल्टा है.हमेँ क्या गर्ज पड़ी तुझसे बकबास करने की और फिर तू खास है मालिक का.तू हमेँ अच्छा लगता है तो आ जाती हूँ."


"जा,अच्छा यहाँ से.जा पहाड़ काट जा कर."

घोड़े पर सवार हो एक युवक आ पहुँचा.

गजनी और हिरात के बीच गोर पहाड़ी क्षेत्र .जहाँ के सभी निवासी बौद्ध मतावलम्वी थे .जिसे जीतकर महमूद गजनवी ने जहाँ इस्लाम मजहब को बढ़ावा दिया .सन 1030ई0को महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद गजनवी राज्य कमजोर पड़ने लगा . अब गोर क्षेत्र मेँ तुर्कों का शंसबनी वंश सक्रिय हो चुका था,जो पूर्वी ईरान से आकर गोर क्षेत्र मेँ बस गये थे .जिनमेँ से ही एक योद्धा शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद
ने सन 1173-74ई0मेँ गजनी पर विजय पायी .उस वक्त गोर प्रदेश का शासक था गियासुद्दीन गोर जो शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद का भाई था.शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद ही आगे चल कर मुहम्मद गोरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ .उन दिनों दिल्ली और अजमेर का शासक चौहान वंशी पृथ्वीराज तृतीय उर्फ रायपिथौरा था . कन्नौज के गहड़वार शासक जयचंद्र की पुत्री संयोगिता से बलपूर्वक विवाह करके
उसने उससे घोर शत्रुता मोल ले ली थी .


इल्तु मन ही मन सोंच रहा था -


"भविष्य मुसलमानों का है.हिन्दू राज्य तो आपस मेँ ही लड़ कर अपनी शक्ति को कमजोर किए जा रहे हैँ.उनकी उन्नति के सभी स्रोत सूख चुके हैँ."


बालिका इल्तु से कुछ कह रही थी लेकिन इल्तु .....?!


"हिन्दू तो आपसी द्वेष भावना मेँ अपनी शक्तियां बर्बाद किये जा रहे हैँ.मैं इल्तुतमिश हिन्दूओं की कमजोरियों की नींव पर अपनी या अपनी अगली पीढ़ी के लिए सल्तनत खड़ी कर सकता हूँ और......"

"कहां खो जाते हो,इल्तु?देखो कौन आया है?"


इल्तुतमिश सोंच रहा था "बहुत सोंच चुका हूँ अब चलना है.,रुकना नहीँ.हिन्दुस्तान सो रहा है,मैं क्या इसका फायदा नहीं उठा सकता?"

"इल्तु!"

"चलते हैं." -फिर इल्तु उठ बैठा.


उठते उठते मन ही मन "सुना है गोर मेँ आपसी झगड़ों के कारण कुछ हिन्दुस्तानी भाग कर आये हैँ,जिन्होने इस्लाम भी कबूल कर लिया है.हिन्दुस्तान की कमजोरियों को जानने के लिए क्या उनका फायदा नहीं उठाया जा सकता ? "


सन 2002ई0 की 01 सितम्बर पाक अधिकृत कश्मीर मेँ एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर मेँ एक आतंकवादी सोंच रहा था -"इल्तु के कथन आज 800वर्ष के बाद भी सटीक हैँ."

Friday 28 October, 2011

31 अक्टूबर : पटेल जयंती

व्रिटिश शासन से मुक्ति को अनेक का योगदान चिरस्मरणीय है.जिनमें एक थे सरदार वल्लभ भाई पटेल.सन 1946 तक जिन नेताओं का आचरण प्रसंशनीय था वहीं उनमेँ से कुछ का चरित्र संदिग्ध हो गया जो कि लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन का चक्कर लगाने लगे थे.जिनमेँ पटेल व नेहरु भी शामिल हैं.प्रधानमंत्री बनने की लालसा मेँ ये दोनों नेता देश के विभाजन का समर्थन कर बैठे व गांधी को अलग थलग कर दिया जिनके
सहारे ये यहां तक पहुंचे थे.


सरस्वती कुमार,दादुपुर वाराणसी के अनुसार लार्ड क्लायू बंगाल का शासक बनना चाहता था जिसके लिये वहां के नवाब सिराजुदौला के सेनापति मीरजाफर को नवाब बनने का लालच दिया और प्लासी के मैदान मेँ मीरजाफर के सहयोग से अंग्रेज बंगाल का शासक बन गये उसी प्रकार लार्ड माउण्टबेटन ने नेहरु और पटेल से अलग अलग मिलकर दोनों को प्रधानमंत्री बनाने का लालच देकर गांधी जी से लड़ा दिया.इन दोनों ने
विभाजन को अपने लिए वरदान समझ कर सहमति दे दी.गांधी जी विभाजन राष्ट्र के लिए आत्मघाती समझते थे इसलिए राष्ट्रहित मेँ जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रक्खा लेकिन खुदगुर्ज नेहरु और पटेल गांधी के विरुद्ध अटल मुद्रा मेँ खड़े हो गये.

मौ.अबुल कलाम आजाद अपनी पुस्तक 'इंडिया विन्स फ्रीडम'मेँ लिखते हैं कि मेरे सहायक तथा उम्मीद केवल गांधी जी रह गये थे.इस समय गांधी जी पटना मेँ रहे थे.वह 31 मार्च 1947 को दिल्ली मेँ आये.मैँ तुरन्त मिलने गया.उनका पहला वाक्य था कि भारत विभाजन एक धमकी बन गया है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा जवाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैँ.
पृष्ठ 228पर आजाद लिखते हैं कि नेहरु और सरदार पटेल ने विभाजन स्वीकार करके गांधी जी को मर्माहत कर दिया.विभाजन की ट्रैजिडी से देश को बचाने के लिए गांधी जी ने जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री पद देने का प्रस्ताव रखा तब दोनों गांधी से बगावत करने लगे और प्रचार करना शुरु कर दिया कि गांधी मुसलमानों के पक्षधर हो गये हैँ.इन दोनों ने माउण्टबेटन को विश्वास दिलाया था कि विभाजन के बाद
किसी भी प्रकार का दंगा फसाद नहीँ होगा लेकिन जब लाहौर मेँ हिन्दू और सिक्ख और पंजाब मेँ मुसलमान गाजर मूली की भांति काटे जाने लगे तब गांधी ने हिंसा रोकने के लिये आमरण अनशनकर दिया.अनशन से पंजाब दिल्ली और लाहौर मेँ भी शान्ति की बहाली हो गयी तब 20जनवरी 1948को हिन्दू आतंकवादियों ने गांधी को बम का निशाना बनाया.गांधी जी बाल बाल बच गये.लेकिन उन्हीं लोगों ने 30जनवरी1948को सायं पाच बज कर
सत्रह मिनट पर गांधी की हत्या कर दी.मौ.अबुल कलाम आजाद ने इसके लिए नेहरु व पटेल को ही दोषी माना.


लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर अपनी पुस्तक 'आधी रात को आजादी'मेँ लिखते हैं कि नेहरु और पटेल तथा भारत की प्रतिक्रियावादी शक्तियां गांधी के विरूध अंदर ही अंदर कुछ और सोचने लगे थे....20जनवरी1948को जब गांधी पर बम फेंक मारने की कोशिस की गयी तो पकड़े गये व्यक्ति ने सही सही बयान मेँ सब कुछ बता दिया था.नाथू राम एवं गोपाल गोडसे,करकरे,बगड़े,परचुरे आप्टे,आदि का नाम व पता बयान कर दिया
था.54पृष्ठों के बयान पर ज्यों ही कार्यवाही जोर पकड़ने वाली थी कि पूरी फाईल आई.जी.द्वारा मंगा ली गयी.आई जी डी जे संजीव उस समय दिल्ली पुलिसचीफ थे उन्होने फोन करके मेहरा को आश्चर्य मेँ डाल दिया था कि मदन लाल के मामले की चिन्ता आप न करें यह मामला मैं देख लूंगा.लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर के ही अनुसार असल मेँ अपराधियों के तार शासन प्रशासन से जुड़ चुके थे.(पृष्ठ 309)

कल जब एक स्थान से पटेल जयन्ती कार्यक्रम मेँ शामिल होने के लिए जब मेरे पास निमंत्रण पत्र आया तो मैं उपरोक्त विचारों पर चिन्तन करने लगा.मेरा मन इस मामले मेँ पटेल व नेहरु के प्रति आक्रोशित रहता है.जब मैं मीरजाफर जैसो गद्दारों को सम्मान नहीं दे सकता तो पटेल व नेहरु को क्यों?और उन जैसे व काले अंग्रेजो को क्योँ?लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन व अब सोनिया टीम का चक्कर काटने वाले
उन नेताओं को सम्मान दिया जाए जो देश की असलियत या हिन्दूओं या सच्चे सेक्यूलरवादियों का दर्द नहीं समझना चाहते व देश की सम्पत्ति विदेश ले जाने वालों का समर्थन करते है.मेरी इच्छा नहीं होती कि मै पटेल व नेहरु के सम्मान मेँ आयोजित होने वाले किसी कार्यक्रम मेँ शामिल होऊँ...?


मैं जिस कालेज में टीचिँग करता हूँ उस कालेज में सिर्फ गांधी व नेहरु की ही जयन्ती बनायी जाती है.अनेक को यह आपत्ति है कि अन्य महापुरुषों की जयंती क्यों नहीँ ?


पटेल व सुभाष सम्बंध!


किसी विद्वान के अनुसार सरदार पटेल नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इसलिए चिढ़ते थे क्योंकि उनके भाई विठ्ठलभाई ने अपनी सम्पति सुभाष को दे दी थी.

Saturday 22 October, 2011

वोट देने से पहले के सवाल !

मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के अध्यक्ष श्यामाचरण वर्मा ने मतदाता जाग्रति के दौरान ददियूरी (बण्डा)शाहजहांपुर उप्र मेँ स्थित सुनासिर तीर्थ पर एक विचार गोष्ठी मेँ बताया कि प्रजातंत्र मेँ हमारा वोट एक हथियार से कम नहीं है.उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा के अनुसार युवा अपनी शक्ति को पहचान कर मतदाता जागरुकता अभियान मेँ अपनी भागीदारी सुनिश्चित
करेँ.जनता जागे तो देश जागे.किसी ने कहा है कि अंग्रेजों आदि विदेशी आक्रमणकारियों से शायद इस देश का इतना नुकसान नहीं हुआ जितना कि हमारे अपनों से या नेताओं से.अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड करने वाले विदेशी नहीं थे..?विदेशियों ने यहां आना शुरु किया इससे पूर्व ही अखण्ड भारत टूट टूट कर विखर चुका था.आज भी काला धन व सामाजिक राजनैतिक भ्रष्टाचार की जड़ मेँ कौन बैठा है?


हम सरकारी गैरसरकारी व्यवस्थाओं की आलोचना तो करते हैं लेकिन प्रजातंत्र मेँ हम अर्थात प्रजा ही जिम्मेदार है.कोषाध्यक्ष सुजाता देवी शास्त्री ने बताया कि हम सामूहिक जीवन हेतु अपने कर्तव्यों को भूल चुके हैँ.जाति,मजहब.आदि से प्रभावित होकर हम जिन नेताओं को चुनते आये हैं वही हमारे गांव,नगर,जनपद,प्रदेश व देश के कुप्रबंधन व भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार रहे हैं.


समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने बताया कि दरअसल हम न प्रकृति के है न ब्रह्म के हैँ वरन निजभौतिक स्वार्थ के लिए जीवन जीने के बीच अपने नेताओं को चुनते आये हैं.यदि आप मेँ थोड़ा सभी ईमान,धर्म,आध्यात्मिकता,इंसानित,आदि बची है तो वोट देने से पहले नेताओं से पूछो-


(1)अन्ना जिस गांव मेँ पैदा होते है उस गांव शराब,बीड़ी,सिगरेट,तम्बाकू,आदि बिकना बंद हो जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ......?!

(2)अन्ना जिस गांव में पैदा होते हैं उस गांव मेँ गरीबी व भुखमरी खत्म हो जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ....?!

(3)अन्ना के गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर के बच्चे....??


(4)अन्ना के गांव निवासी अपने गांव मेँ अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ.....?!

(5)अन्ना के गांव मेँ पर्यावरण प्रदूषण,गंदगी,खाद्यमिलावट,आदि की समस्याएं नजर नहीं आतीं लेकिन ऐ नेताओं ....?!


(6)अन्ना के गांव मेँ क्षेत्र की समस्याओं के हल के लिए सभी जन व नेता एक साथ नजर आते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ.......?!

(7)अन्ना के गांव मेँ शराबी शराब पीना छोंड़ देते है या छुड़वादी जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव व शहर मेँ......?!


(8)अन्ना के गांव मेँ अनाज, दूध,सब्जी,आदि सम्बंधी समस्याओं से पब्लिक को जूझना नहीं पड़ता लेकिन ऐ नेताओं ......?!


इस अवसर पर मुख्य अतिथि रोशन लाल गंगवार ने वताया कि इन नेताओं की असलियत समझ कर अपने वोट का इस्तेमाल जाति,मजहब,निजस्वाथं,आदि की भावना से ऊपर उठ कर करें.प्रजातंत्र मेँ प्रजा मालिक होती है ये नेता या जन प्रतिनिधि हमारे मालिक या राजा नहीं है वरन जनसेवक है.सत्ता परिवर्तन से नहीं व्यवस्था परिवर्तन से देश का विकास सम्भव है.अहिंसा व सत्य पर चल हिन्दू मुस्लिम एकता के बल पर देश
अखण्ड भारत,दक्षेस व विश्व सरकार का भी सपना देखा जा सकता है व उसके लिए योजना बनायी जा सकती है.

सचिव,
मानवता हिताय सेवा समिति , उ प्र

Wednesday 14 September, 2011

पाकिस्तान मेँ भी शुरु हुई अन्नागिरी

अन्ना आन्दोलन से अब लोग प्रेरणा लेने लगे हैँ.पाकिस्तान मेँ भी एक बुजुर्ग व्यवसायी ने सख्त कानून बनाने की मांग को लेकर सोमवार को आमरण अनशन शुरु कर दिया.राजधानी इस्लामाबाद के रहने वाले 68 वर्षीय रजा जहांगीर अख्तर ने बाजार मेँ ही अपने समर्थकों के साथ भ्रष्टाचार विरोधी अनशन शुरु कर दिया.वह पाकिस्तान मेँ भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए संसद से एक सख्त कानून पारित करने की मांग कर रहे हैँ.उन्होने पाकिस्तान को कल्याणकारी राज्य मेँ तब्दील करने का प्रावधान लाने की मांग करते हुए दक्षिण एशिया मेँ तेजी से बढ़ते सैन्यीकरण पर भी ध्यान आकर्षित करने की बात की.


मानवीय सभ्यता मेँ अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र है.दक्षिण एशिया के देशों की बुद्धिजीवी जनता को अन्ना आन्दोलन से प्रेरणा लेकर विभिन्न मुद्दों को लेकर आन्दोलित होना होगा.सत्तावादी व पूंजीवादी दक्षिण एशिया की जनता का भला करने से रहे.

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Monday 12 September, 2011

सपा का क्रान्तिरथ और समाजवाद व क्रान्ति!

प्राचीन काल से ही जागरण यात्राएं होती रही हैं.अपने,मानव व समाज के उद्धार के लिए प्रति पल जेहाद की आवश्यकता होती है.जिसके लिए प्रयत्न जारी रहना चाहिए लेकिन अब की यात्राएं सम्पूर्ण मानव व समाज के उत्थान को न लेकर वरन अपने गुट,जाति दल,आदि के लिए सिर्फ.लेकिन क्रान्ति .........क्रान्तिरथ......क्रान्ति का मतलब क्या है?क्रान्तिरथ का मतलब क्या है?सम्पूर्ण मानव जाति के लिए क्या क्रान्ति या क्रान्ति रथ....?या सिर्फ अपने या एक गुटविशेष के हित सत्ता भोग के लिए...?अच्छा है कि अखिलेश यादव क्रान्तिरथ ले कर निकल पड़े हैँ.वे 'समाज जोड़ो जाति तोड़ो' व 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के लिए काश आन्दोलन करेँ.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>
Date: मंगलवार, 13 सितंबर, 2011 2:27:33 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: सपा का क्रान्तिरथ और समाजवाद व क्रान्ति!

दक्षिण पंथी व वाम पंथी विचार धारा का सह सम अस्तित्व का मैं पक्षधर रहा हूँ व लोहिया के विचारों से प्रभावित रहा हूँ. उप्र मेँ विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्य की बसपा सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनजागरण और सत्ता परिवर्तन के लिए सपा मुख्यालय से क्रान्तिरथ यात्रा पर निकल पड़े हैं.पार्टी सूत्रों के अनुसार 14सितम्बर1987को विपक्षी नेता मुलायम सिह ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ क्रान्ति रथ यात्रा निकाल कर प्रदेश मेँ कुशासन व भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था और वंचितों पिछड़ों तथा अल्पसंख्यकों मेँ विश्वास जगाया था.


यह सब क्योँ?सिर्फ सत्ता परिवर्तन या फिर व्यवस्था परिवर्तन?जनजाग्रति के लिए तो हर वक्त हलचल चाहिए न कि सिर्फ सत्ता परिवर्तन के तक सिर्फ.और जब अपना शासन आ जाए तो फिर विपक्ष मेँ रह कर जिन मुद्दों को लेकर विरोध किया जा रहा था,उनका हम समर्थक न बन जाएं.हमने तो यही देखा है कि सत्ता चाहे किसी की हो,ईमानदारी व हक के लिए किसी आम आदमी की नहीं सुनी जाती.विधायक मंत्री आदि सब धन,बाहु, जन,आदि के सामने समर्पण किये रहते हैँ.आम आदमी न्याय से दूर रहजाए

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Sunday 11 September, 2011

विकीलीक्स(wikileaks):विपक्षी बयान पर पागल जूलियन असांज?!

किसी की अभिव्यक्ति को अपने पक्ष या विपक्ष मेँ लेना खतरनाक है.वैचारिक जगत दो ही पक्ष हैं- सत्य व असत्य.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>
Date: रविवार, 11 सितंबर, 2011 11:48:02 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: विकीलीक्स(wikileaks):विपक्षी बयान पर पागल जूलियन असांज?!

विकीलीक्स कब किसकी सच्चाई उगल दे,इसका कुछ पता नहीँ.नेता,मंत्री,शासक, प्रशासक,आदि सब इसके द्वारा अपनी सच्चाई जानने के बाद बौखला जाते है.सच्चाई को पचा पाने की दम बैसे भी कितनों को होती है?विकीलिक्स की ओर से आए दिन किए जा रहे खुलासा पर उत्तर प्रदेश की मायावती ने जमकर पलटवार किया है.मायावती ने जमकर पलटवार किया है.मायावती ने विकीलिक्स के तमाम खुलासों को बेबुनियाद और तथ्यहीन करार देते हुए इसके मालिक जूलियन असांज को पागल करार दिया.मायावती का कहना है कि विकीलीक्स का मालिक पागल हो गया है या फिर वह विरोधी पार्टियों के हाथों खेलकर उनकी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहा है.


फिल्मों मेँ एक सच्चाई होती है. नेता, अफसर, आदि सबके सब गुण्डों,माफियाओं,आदि के समर्थन मेँ खड़े पाये जाते है.सबके सब धर्म,कानून,आदि के विरोध मेँ खड़े मेँ पाये जाते हैँ .इतना नैतिक पतन हो गया है कि सच्चाई पर चलने वाले को पागल,सनकी,आदि कह कर समाज मेँ उसे उपेक्षित व अन्दर अन्दर उसके खिलाफ साजिशें रची जाती हैँ.सच्चाई के लिए जीने वाले को पहला विरोध अपने परिवार से ही झेलना पड़ता है.धन्य!शासन प्रशासन!अन्नाजय!

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Saturday 10 September, 2011

बरेली मण्डल मेँ सकलैन मियां के घायल होने के बाद सड़कों पर आक्रोश!

अन्ना आन्दोलन के बाद अब फिर बरेली मण्डल के कस्बोँ शहरों व जनपदों मेँ सड़कों पर भीड़ निकल पड़ी है.अब सड़क पर आक्रोश दिखाने का कारण उसके गुरु व समाजसेवी सकलैन मियां का घायल होना है.शुक्रवार की शाम उर्स मेँ बसपा विधायक की कार से बदायूं जिले में बरेली शहर प्रेमनगर स्थित शराफत मियां की दरगाह के सज्जादानशीं हजरत सकलैन मियां घायल हो गये थे.कुछ मुरीद धरने पर भी बैठ चुके हैँ.विदेशी मुरीद भी हेलीकाप्टर से आना प्रारम्भ हो चुके हैँ.इधर बदायूं मेँ लाखों मुरीदों के दबाव के चलते बसपा विधायक मुस्लिम खां समेत चार लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हो गया है.ककराला व अलापुर मेँ अब भी हजारों मुरीदों ने धरना व प्रदर्शन कर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.इधर तथाकथित अपराधी बसपा विधायक मुस्लिम खां के चेहतोँ का कहना है कि सकलैन मियां पर क्या जानबूझ कर गाड़ी चढ़ायी गयी थी ?अन्जाने हुई घटना पर माफ करना क्या धर्म नहीं है?मो. साब ने तो अपने पर कूड़े फेंकने वाली औरत पर दया ही दिखायी थी..?इधर गैरमुस्लिम कट्टरपंथियों मेँ दूसरी ही प्रतिक्रिया है.मायावती सरकार के पक्षी या विपक्षी अलग अलग बयान दे रहे है.

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Friday 9 September, 2011

9/11 बरसी और आतंकवाद!

इस समय मीडिया मेँ 9/11 बरसी के चर्चे हैं .आतंकवाद पर समाचार व लेख सामने आरहेहैं.आतंकवाद खिलाफ लड़ाई मेँ दृढ़इच्छा कमी है.देश व देश के बाहर कोई भी शासक आतंकवाद को खत्म करने को प्रथम व सर्वोच्च वरीयता देना नहीं चाहता.आतंकवादी सरगना लादेन की मृत्यु से पूर्व के तीस मिनट की अमेरीकी शैली पर कम से कम भारत को तो सीख लेनी ही चाहिए हालांकि अभी अमेरीका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में लोगो की निगाहेँ संदिग्ध है.देशनागरिकों के सम्मान व सुरक्षा को हरहालत मेँ संवैधानिक कोशिशें होती रहनी चाहिए.आफसोस की बात हैं अभी जल्द दिल्ली हाईकोर्ट के सामने हुए बम विस्फोट में पीड़ित परिजनों को कांग्रेस मंत्रियों,नेताओं के विरोध में आखिर नारेबाजी क्यों करनी पड़ी ?इन नेताओं को अपनी कार्यशैली व सोंच का अध्ययन कर बदलाव की आवश्यकता है.देश के चलाने वाले कायर नेताओं की संख्या बहुतायत मेँ हैं . जब क्षत्रियों का ही क्षत्रियत्व सोया हुआ है तो अन्य नागरिकों व नेताओं का क्या कहेँ?जो क्षत्रियत्व (जातिभेद से ऊपर उठकर परोपकार व समाज देश,आदि की निष्पक्ष सेवा भावना) आज समाज,देश के हित मेँ उठता भी है,उसे अलोकतान्त्रिक ढंग से कुचल दे.

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Monday 5 September, 2011

नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल

 नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल
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लालगढ़ के एक कालेज मेँ सैनिकों ने कल ही छात्रों पर लाठियां चलायीं थीँ जो कि सैनिकों से कालेज खाली करने की मांग कर रही थीँ.
कालीदेवी के सामने एक बालक आदिवासी वेशभूषा मेँ मेडिटेशन पर बैठा था.खून से लथपथ चार छात्राएं मंदिर मेँ आकर गिर पड़ीँ.वह बालक उठ बैठा.उसके आंखों मेँ आक्रोश चमक रहा था.अपना धनुष तरकश उठा कर वह मंदिर से बाहर आ गया.सैनिक आदिवासियों को खदेड़ रहे थे.एक विछिप्त वृद्धा बोली-"बेटा!यह नेता पुलिस मिलेट्री कोई हमारी नहीं है और फिर कब जीतेंगे हम उनकी शक्ति के सामने?"
"दादा की याद है?कह कर क्या गये थे?हम शासन प्रशासन के सामने जीत नहीं सकते तो क्या,हम वहाँ जा कर एकता का प्रदर्शन तो कर सकते हैँ."
फिर वह बालक अपना धनुष तरकश संभालते हुए आगे बढ़ गया.
इधर मैं बीसलपुर से शाहजहांपुर ट्रेन से जा रहा था.निगोही स्टेशन पर कुछ मुस्लिम युवक एक सिपाही के साथ ट्रेन में आ चढ़े.वे गांधी की आलोचना कर रहे थे.मुझे बिना बोले रहा न गया.मैं बोल दिया-"....चाहेँ व्यक्ति किसी मत या पन्थ का हो यदि वह वास्तव मेँ धार्मिक व आध्यात्मिक है तो वह करुणा ज्ञान अन्वेषण मानवकल्याण अहंकारशून्यता आदि से जुड़ जाता है.मोहम्मद साब को आप मानते हैं मैं भी
मानता हूँ.जब वह उन पर कूड़ा डालने वाली औरत बीमार पड़ जाती है तो वे उसका हालचाल लेने पहुंच जाते हैं.यदि मोहम्मद साब की जगह हम होते तो ....?!जरा अपने से तुलना कीजिए,गांधी को छोंड़ों आप लोग अभी मोहम्मद साब तक को नहीं समझ पाये हैं.दरासल हम आप सब इन महापुरुषों के हैं ही नहीँ. आप सब अभी जिस स्तर पर जा कर बात कर रहे थे वह स्तर व्यक्तिगत स्वार्थों मतभेदों कूपमंडूकताओं उन्माद तनाव आदि से
भरा होता न कि दया करुणा समर्पण त्याग से.गलत तो गलत है चाहेँ ...."सिपाही बोला-"वरुण गांधी को ही लो मैं नहीं कहता कि वरुण गांधी भड़काऊ भाषण के कारण दोषी नहीं हैँ?इसके लिए पहले से ही उपस्थित परिस्थितियाँ या कारण भी दोषी हैः उसकी बात शासन प्रशासन क्यों नहीं करता?कारणों को सजा क्यों नहीं?सिर्फ वरुण गांधी दोषी क्यों?" मैं बोला-"लालगढ़ मेँ जो हो रहा है क्या हो रहा है?वैसा ही कि कोई
सरकारी महकमों शासन प्रशासन आदि की मनमानी अन्याय शोषण से परेशान होकर झूंझला जाये और ऊपर से शासन प्रशासन भी उस पर हावी हो जाये न कि उसके लिए न्याय व सहानुभूति का वातावरण बनायें और वास्तविक दोषियों को सजा देँ."

इधर-उस धनुर्धारी बालक के चेहरे पर अब भी आक्रोश स्पष्ट था.वह कह रहा था कि मेरे सरजी कहते हैं कि यदि सिर्फ उपदेश व भाषण ही सिर्फ महत्वपूर्ण होते तो न जाने कब की यह धरती स्वर्ग बन चुकी होती?यह धरती कर्मभूमि है कर्मभूमि.शब्दों के जाल...."जंगल के बीच कुटिया मेँ उस बालक व अधेड़ सन्यासी के अतिरिक्त कुर्ताधारी एक नेता भी उपस्थित था.
अधेड़ सन्यासी बोला-"सेक्यूलर फोर्स के आन्दोलन में आपके सर जी भी तो शामिल थे?क्या मिला उस आन्दोलन से?""तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने या यहाँ कुटिया में जाप करते रहने से क्या होगा?मैं भी जानता हूँ कि अन्तिम निदान धर्म व अध्यात्म ही है.ऋषियों मुनियों नबियों के दर्शन मेँ हर समस्या का निदान है,यह मैं भी जानता हूँ.""बेटा!"-युवा नेता बोला."हाँ." "धैर्य से काम लो . दो की लड़ाई में तीसरा लाभ
उठाता रहा है.हम आदिवासियों के आन्दोलन का नक्सलीकरण हो रहा है.""हमेँ समर्थन चाहिए ही .अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता .हमें भी समूह चाहिए .नेताओं अफसरों कर्मचारियों से विश्वास उठ ही चुका है .कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,व्यक्तिगत स्वार्थ,भौतिक भोगवाद,सांस्कृतिक आक्रमण,तुष्टिकरण नीति,आदि,के बीच हम किससे उम्मीद रखेँ?" "बेटा,तुम जिस रास्ते पर हो वह रास्ता देश को गृहयुद्ध की ओर ले जाने
वाला है." "हूँ!और नेता अफसर कर्मचारी विधायक एमपी आदि सब जो कर रहे हैँ वह देश को जिस रास्ते पर ले...... ."बेटा,समझता हूँ तुम्हारा दर्द!तुम तो होशियार हो.भावावेश में आ कर कोई कदम नहीं उठाना चाहिए." बालक सिर उठा श्रीकृष्ण की तश्वीर को देख कर गहरी गहरी साँस लेने लगा .
"होशियार तो आप नेतागण हो? जोचोर,अपराधियों,बदमाशों, साम्प्रदायिकों,जातिवादियों, पूंजीपतियों,माफियाओं,आदि के समर्थन में खड़े पाये जाते हैँ?...और आप लोगों का सेक्यूलरवाद?हिन्दुओं के पक्ष में जा कोई जो करे वह साम्प्रदायिक है और जो गैरहिन्दुओं के पक्ष मेँ जा कर हो क्यों न भविष्य मेँ वह देश के लिए घातक हो,साम्प्रदायिक नहीं है?विदेशियों को देश में आश्रय देने वालों पर अंगुली
उठाते हो और जो देश के अन्दर देश व संवैधानिक धरोहरें हैं,उनके खिलाफ खड़े है जो उनको वोटों के स्वार्थ में आगे बढ़ने का अवसर दे रहे हो?मस्जिदों,आदि के नीचे दबे पुरातात्विक सच को आप नेताओं को सच कहने की हिम्मत नहीं है?नेता जी सुभाष चन्द्र वोस व शास्त्री की मृत्यु सम्बन्धी,नेहरु बेटन सम्बन्धों सम्बन्धी,अमेरीका मेँ ओशो को थेलियम देने सम्बंधी,आदि पर आप नेता कोई प्रश्न उठाने की
हिम्मत नहीं रखते?आप नेताओं ने क्या कभी सोंचा कि भावी इतिहास में क्या हमारी गिनती देशभक्तों व नायकों मेँ होगी? "पुन:-"जय श्रीकृष्ण!धर्म के पथ पर कोई अपना नहीं होता.मैं आप लोगों की नहीं सुनने वाला. मेरे पास भी बुद्धि व विवेक है.मुझे आप लोगों से नहीं,महापुरुषों व ग्रंथों से सीख लेनी है.मेरे सरजी भी कहते थे कि समाज क्या चाहता है- यह मत देखो?यह देखो महापुरुषों व ग्रंथों मेँ क्या
है?जय कुरुआन जय कुरुशान! "कुटिया मेँ एक ओर एक कलैंडर में सूर्य,दूज चन्द्रमा व तारा का चित्र बना था और लिखा था-ओ3म आमीन!जिस पर निगाह डालते हुए बालक कुटिया से बाहर आ गया.एक ओर से कुछ सशस्त्र युवतियों के बीच से एक बालिका दौड़ती हुई बालक के पास आयी-"लाल महतो,तेरे वो विचार क्या मर गये?तू तो बड़ा हो कर अफसर बनना चाहता था लेकिन बागी बन बैठा.""बर्दाश्त करते करते बहुत हो गया.बचपन
सेहीघर,स्कूल,फिर समाज मेँ लोगों कीमनमानी,कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,आदि को सहता रहा लेकिन अब नहीं.रोज मर मर कर जीने से अच्छा है,एक बार मर ना.."
@अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'




Friday 2 September, 2011

नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

हरिकृष्ण कायस्थ केशव कन्नौजिया के साथ एक पेँड़ पर बैठा मचान पर बातचीत कर रहा.ये जहां थे वह जंगली इलाका था.कुछ शस्त्रधारी युवक युवतियां इधर उधर गस्त कर रहे थे.

एक झोपड़ी के अन्दर एक किशोरी कुछ युवतियों के साथ बैठी थी.जिससे एक युवती बोली-"....तो तुम ही फरजाना हो.वर्मा से लेकर बांग्ला देश तक और बांग्ला देश से यहां तक तुम्हारे साथ जो जो हुआ उससे ज्ञात हो गया होगा कि ये समाज कैसा है?हम लोगों की मानों तो हम नक्सलियों के साथ आ जाओ."

"समाज चाहे कितना भी बुरा हो जाए लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समाज मेँ अच्छे लोग रह ही नहीं गये."

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: go@blooger.com
Sent: Thu, 01 Sep 2011 19:56 PDT
Subject: नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी मीडिया के सामने बोल रहे थे कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.अहिंसा से बढ़कर कोई अन्य शस्त्र नहीं है.


जंगल के बीच कुछ झोपड़ियां पड़ी हुई थीँ.जिनमेँ से एक झोपड़ी मेँ कुछ सशस्त्रधारी युवक युवतियां लेपटाप पर समाचार देख रहे थे.जहां केशव कन्नौजिया भी उपस्थित था.


इधर मैं मीरानपुर कटरा मेँ कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा भावी अहिंसक नक्सली आन्दोलन की संभावनाओं पर बातचीत कर रहा था.इन दिनों अन्ना आन्दोलन महानगरों व कस्बों से निकल कर गांवों मेँ भी पहुँच चुका था.मैं लगभग पन्द्रह वर्ष से अन्ना हजारे नाम से परिचित ही नहीं वरन प्रभावित था.

फरबरी सन 2011ई से टीम अन्ना की नई दिल्ली मेँ सक्रियता ने हमें उत्साहित कर दिया.मेरे अन्दर बैठी भावी क्रान्ति की रणनीति,जिन पर मैने स्वलिखित उपन्यासों मेँ भी जिक्र किया है;टीम अन्ना के माध्यम से पूर्ण होने की उम्मीद करने लगा था.मैं भी एक अच्छे हेतु के लिए ही दुनिया मेँ आया था.बचपन से ही मैं आम आदमी की भीड़ से अलग थलग हो महापुरुषों, बुद्दिजीवियोँ,आदि की पंक्ति में खड़े होनेको
लालायित होने लगा था लेकिन अपने को इसके लिए तैयार न कर सका.मेरी प्राईमरी एजुकेशन एक सन्त(बीसलपुर मेँ बड़े स्थल के सामने सड़क पर कुमार फर्नीचर के सामने गली मेँ मन्दिर के समीप) के द्वारा
व श्री हरिपाल सिंह,ठाकुर पूरनलाल गंगवार व टीकाराम गंगवार के द्वारा प्रारम्भ हुई.मेरे साथ सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन बस अपनी अन्तरात्मा की आवाज के आधार पर चलने के लिए संकल्प का अभाव था.अब अन्ना आन्दोलन हमेँ उद्वेलित कर रहा था.आखिर व्यवस्थाओं व हालातों से असन्तुष्ट व्यक्ति आन्दोलनों से प्रभावित क्यों न हो?मेरे अन्तर्जगत में खामोश पड़े आन्दोलन के एक हिस्से का अवतार था यह
अन्ना आन्दोलन,असन्तोष की आंधी.


मैं कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा इण्टरनेट पर प्रकाशित स्वरचित नक्सली कहानी 'न शान्ति न क्रान्ति' को पढ़वा रहा था.

केशव कन्नौजिया असन्तोष को झेलते झेलते नक्सली हो चुका था.वह झोपड़ी के अन्दर बैठा जब मोदी के इस कथन को सुना कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.

"केशव....."-एक युवती बोली.


केशव कन्नौजिया के आंखे नम हो चुकी थीँ.वह उठ कर झोपड़ी से बाहर आ गया.


"बीजेपी नक्सलियों के विरोध मेँ रहेगी ही.मुसलमानों को आतंकवाद का विरोध करना चाहिए.मुसलमान वोट जब ज्यादा होगा तो वे चाहेँ जो करवा लेँ .मुस्लिम जेहादी पाक,कश्मीर, हिमाचल,यूपी,बिहार,बांग्लादेश,आदि को मिला कर मुगलस्तान का सपना देखते है.यदि अपनी इस ऊर्जा को अखण्ड भारत व सार्क संघ की संभावनाओं की ओर मोड़ दिया जाए तो ...."

"अरमान!तुम तो 'सर जी' की भाषा बोलने लगे हो.देखो केशव आ रहा है."


तब दोनों युवक खामोश हो गये.

* * *

आज 31 अगस्त सन 2011ई0!


सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेताया कि दस साल रुक जाईए लोग आपको सबक सिखायेंगे.तीन दिन पहले आप इसके गवाह रहे हैँ.आगे आन्दोलन व विरोध प्रदर्शन इससे भी बड़ा होगा.


गोधरा कांड के बाद गुजरात कांड में दोनों वर्ग के कट्टरपंथियों को मौत के घाट से उतारने वाला व असफल 'सेक्यूलर फोर्स'आन्दोलन को चलाने वालों की टीम मेँ शामिल विदुर राज गोडसे के बाद अब सफेद होने लगे थे.


"शायद हम लोग गलत रास्ते पर ही थे?सबसे बड़ा शस्त्र है- अहिंसा."

अरमान की उम्र लगभग सोलह वर्ष की तो रही ही होगी .गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में हुए गुजरात कांड
के दौरान शिवानी के साथ रांची में आ जाना पड़ा . जहां वह अहिंसक नक्सली आन्दोलन के हितैषी आलोक वम्मा के सहयोग से रह कर पढ़ाई कर रहा था . हालांकि सन 2008 ई0 से लापता थे.एक न्यूज चैनल का तो कहना था कि नक्सलियों ने उसकी हत्या करवा दी थी.

रांची मेँ एक मीटिंग मेँ विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य,चरित्र वम्मा,आदि सहित कुछ नक्सली नेता उपस्थित थे.ये नक्सली नेता नक्सली आन्दोलन को अहिंसक बनाने से सहमत नहीं थे.


विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य, चरित्र वम्मा यह कहते हुए मीटिंग कक्ष से बाहर हो गये कि आप लोग अपने आन्दोलन को अहिंसक नहीं बना सकते तो कोई बात न लेकिन वक्त तुमको खामोश कर देगा.


एक नक्सली बोला-"हम आपके विचारों का सम्मान करते हैं लेकिन......"

"लेकिन - वेकिन क्या....अपने मन का अध्ययन करो,आप सब कुण्ठित होचुके हो.आप लोगों का मन आक्रोश से भर...."चरित्र वम्मा बोला.

एक नक्सली बोला-"सारी!".


दूसरा नक्सली बोला-"आप लोग नक्सली आन्दोलन के समर्थक हैं,अहिंसक ही सही.नहीं तो.....".


"आप लोग ईमानदारी से तर्क करें तो अन्ना के अहिंसक आन्दोलन के समर्थन में अवश्य हिंसा का त्याग कर देंगे."
-बिन्दुराज कौटिल्य बोला.

"आप लोगों ने क्या हिंसा नहीं की?"-एक नक्सली बोला.

"अब की बात करो."

इधर जंगल मेँ एक पेँड़ के मचान पर केशव कन्नौजिया हरिकृष्ण कायस्थ के साथ बैठा बातचीत कर रहा था.

"मुरी में कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ता देव पाल यादव व उसके तेरह वर्षीय पुत्र मर्म यादव के खिलाफ जनता की कार्यवाही तेज होती जा रही है."


जाहद के साथ बांग्ला देश से आयी फरजाना विभिन्न परिस्थितियों से गुजरने के बाद किशोरा वस्था मेँ वह मुरी शहर आ पहुंची.जहाँ वह मर्म यादव के बाबा राजेन्द्र यादव के सम्पर्क मेँ आ गयी थी.राजेन्द्र यादव उसे अपने मकान पर ले आये जहां वह घरेलू कामों को निपटाने लगी.
उसका पढाई मेँ ललक यादव सहयोग करने लगा जो कि मर्म यादव का भाई था.


मर्म यादव अपनी उम्र के लड़कों से दूने तन का था .जो लड़कियों के नियति ठीक नहीं रखता था.फरजाना प्रति भी नेक दिल न था.

Monday 8 August, 2011

नक्सली कथांश : कब खत्म नक्सल

हरिकृष्ण कायस्थ आगे बढ़ा लेकिन कोई भी सहयोग के साथ सच्चाई को रखने वाला नहीं मिला.कुछ मुस्लिम युवक ही सिर्फ सहयोग में थे.पूर्व विधायक यदुधन राज यादव ने सिर्फ इतना किया था कि कालेज कमेटी के सदस्यों से मिले थे लेकिन वह हरिकृष्ण कायस्थ व उनके सहयोगियों को सन्तुष्ट नहीं कर सके.ऐसा ही जिला कार्यालय पर शिक्षा अधिकारियों के द्वारा हुआ.सब के सब शिक्षा माफियाओं के समर्थन में खड़े.

केशव कन्नौजिया के पथ को क्या स्वीकार करना पड़ेगा?
क्या टेँढ़ी अंगुली से घी निकालना गलत है?इसके बिना चारा क्या?मेरे साथ यह अच्छाई है कि मैं मरने के लिए भी तैयार हूँ ऐसे में मैँ क्या नहीं कर सकता?ऐ श्वेतवसन अपराधियों में कितने मरने के लिए तैयार है?ऐसे में हम संघर्ष कर दुनिया को मैसैज तो दे ही सकते हैं.और फिर जब धर्मशास्त्र ही हिंसा से भरे हैं तो फिर मैं कुरुशान(गीता) के आधार पर क्यों नहीं आगे बढ़ सकता?गीता आज भी प्रासांगिक है. चन्द्रसेन क्या अपराधी था?यदि अपराधी था भी तो उसे अपराधी बनाने वालों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा गया?फिर एक ओर जेल में ही हत्याएं?
आखिर नक्सलवाद क्यों न पनपे?आदिकाल से अब तक कब खत्म हुआ नक्सलवाद.....?

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नक्सली कहानी : हिन्दू तो स्वार्थी

अब लोगों को शिकायत है कि हरिकृष्ण कायस्थ तो मुस्लिम लड़कों को लिए घूमता रहता है.ग्रामीण क्षेत्र मेँ एक कालेज - बुध इला इण्टर कालेज ,ग्राम नवीरामकुनबी.यह कालेज उप्र के शाहजहांपुर जिला के कटरी क्षेत्र में स्थित था.इस क्षेत्र मेँ बंदूक उठा उठा वे लोग आते रहे जो शोषण व अन्याय के शिकार होते रहे और शासन प्रशासन भी जिसकी मदद न कर सका.आखिर श्वेतवसन अपराधियों पर कब रोक लग सकी?यह कटरी क्षेत्र नकल माफियाओं के लिए काफी चर्चित रहा है.यदुधन राज यादव जब विधायक बने तो उन्होंने नकल माफियाओं पर नकेल कस दी और नकल न होने दी लेकिन वे दुवारा अभी तक विधायक नहीं हुए.अनेक कालेज के सर्बेसर्बा धड़क धीर सिंह यादव विधायक होने लगे.बुध इला इंटर कालेज के जूनियर कक्षाओं हेतु चार अध्यापकों की नियुक्ति थी.जिनमें से एक अध्यापक थे-हरिकृष्ण कायस्थ.जूनियर कक्षाओं हेतु जब एड आयी तो इन अध्यापकों को छोंड़ कर अन्य अध्यापकों को इस प्रक्रिया मेँ शामिल कर लिया गया.चारों अध्यापकों में बेचैनी हुई लेकिन आगे कौन बढ़ा?हरिकृष्ण कायस्थ अकेला ही चल दिया.हिन्दू तो कोई उसके सहयोग में न आया कुछ मुस्लिम युवक जरुर उसके सहयोग मेँ आ गये थे...

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नक्सली कहानी:शिक्षा जगत के दंश

युवक हरिकृष्ण कायस्थ सारी रात जागता रहा था.

"किसी ने कहा है कि यदि मरने व मारने पर उतारु हो जाया जाये तो लक्ष्य पाया जा सकता है.समाज को एक मैसेज तो भेजा ही जा सकता है."

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <varunjoshi2010@gmail.com>
Date: बुधवार, 3 अगस्त, 2011 8:32:04 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <spntodaynews@gmail.com>
Date: शुक्रवार, 29 जुलाई, 2011 10:07:42 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <go@blogger.com>
Date: मंगलवार, 19 अक्‍तूबर, 2010 8:04:46 अपराह्न GMT+0530
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 19 Oct 2010 18:47 IST
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

<ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>

मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.


अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.

लेकिन-


वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.

मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.


फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.


"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."


जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.


सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.


लेकिन...


जिसकी लाठी उसकी भैस!...चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?


दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!


एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .


केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?


केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.


अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.


" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."



जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.


"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

नक्सली कहानी:शिक्षा जगत के दंश

युवक हरिकृष्ण कायस्थ सारी रात जागता रहा था.

"किसी ने कहा है कि यदि मरने व मारने पर उतारु हो जाया जाये तो लक्ष्य पाया जा सकता है.समाज को एक मैसेज तो भेजा ही जा सकता है."

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <varunjoshi2010@gmail.com>
Date: बुधवार, 3 अगस्त, 2011 8:32:04 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <spntodaynews@gmail.com>
Date: शुक्रवार, 29 जुलाई, 2011 10:07:42 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <go@blogger.com>
Date: मंगलवार, 19 अक्‍तूबर, 2010 8:04:46 अपराह्न GMT+0530
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 19 Oct 2010 18:47 IST
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

<ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>

मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.


अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.

लेकिन-


वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.

मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.


फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.


"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."


जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.


सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.


लेकिन...


जिसकी लाठी उसकी भैस!...चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?


दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!


एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .


केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?


केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.


अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.


" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."



जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.


"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

Saturday 6 August, 2011

यति के साथ

आज से लगभग आठ करोड़ वर्ष पूर्व जब पृथुमहि पर वर्तमान मेँ उपस्थित हिमालय के स्थान पर सागर था.
सनडेक्सरन निवासी एक तीननेत्री अपने अण्डाकार यान से एक यति मानव के साथ पृथुमही की यात्रा पर था.
यह वह काल था जिसे जीवनशास्त्रियों,मानवशास्त्रियों,पुरातत्वविदों,आदि ने इस काल को अभिनूतन काल कहा है.

"आदम व हबबा के उत्त्पत्ति का स्थान हालांकि सउदी अरब या भूमध्यसागरीय प्रदेश था लेकिन ज्ञानी मानव का विस्तार का कारण तुम यति मानव होगे.सांतवें मनु के पूर्वज यति ही होंगे. "

यति खामोश थाय.

"आज यहाँ सागर है.भविष्य में यहां पर पर्वत होगा.इसका मूलस्थान ब्रहमदेश नाम से जाना जाएगा.जहाँ सूक्ष्म अनन्त शक्ति अंश विराजमान होकर मानव सभ्यता को पल्लवित व विकसित करने के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी.विभिन्न आत्माओं में बंट कर ब्रह्म यहीं बास करेगा.धरती के अन्य प्राणी स्थूल,भाव,सूक्ष्म,मनस भाग शरीर से मुक्त हो आत्मा मेँ प्रवेश कर यहीं से नियन्त्रित हों और धरती पर जन्म लेने वाली पूर्वजाग्रत आत्मा के मदद के लिए यहीं से सहायता को आत्माएं पहुंचेंगी.यति का शरीर धारण कर यहां आत्माएं स्थूल,भाव,सूक्ष्म व मनस मुक्त रहोगे "

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Friday 5 August, 2011

जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक

कांग्रेस के जनविरोधी लोकपाल के विरोध में रुकुम सिंह,विपिन गंगवार,रेहान बेग,अरुण कुमार,खुशीराम वर्मा ,राजेन्द्र प्रसाद ,सुजाता देवी शास्त्री, आदि ने अपने विचार रखे.कार्यक्रम का संचालन राजेन्द्र प्रसाद शर्मा व अध्यक्षता श्यामाचरन वर्मा ने की.

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------Original message------
From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: <akvashokbindu@yahoo.in>,<freelance@oneindia.co.in>
Date: शुक्रवार, 5 अगस्त, 2011 9:19:43 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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------Original message------
From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "firozhindustan2010@gmail.com" <firozhindustan2010@gmail.com>,"shbkhartimes@gmail.com" <shbkhartimes@gmail.com>,"aajbareilly@gmail.com" <aajbareilly@gmail.com>,"speakoutedit@timesgrup.com" <speakoutedit@timesgrup.com>,"mudda@jagran.com" <mudda@jagran.com>
Date: शुक्रवार, 5 अगस्त, 2011 9:16:36 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

(मीरानपुर कटरा)प्रजातन्त्र मेँ प्रजा का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप आवश्यक है और उसे विश्वास मेँ लिए बिना सरकारों के कार्य प्रजा का गला घोटने वाले हैँ.लोकपाल विधेयक पर जनता के अरमानों का गला घोट कर केन्द्र सरकार ने अपने प्रजातन्त्र विरोधी चरित्र को उजागर किया है.

केन्द्र सरकार द्वारा पेश किए गये लोकपाल विधेयक का विरोध करते हुए मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'ने बताया कि जनहित व देशहित से बढ़ कर कोई हित नहीं हो सकता.कांग्रेस के लोकपाल विधेयक ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस आम आदमी से हट कर कुछ मुट्ठी भर लोगों का हित चाहती है.जो सन 1947ई0 तक अंग्रेजों की हाँहजूरी करते रहे ,वे व उनके वंशज क्या कांग्रेस में बिल्कुल नहीं हैँ? सन 1947ई0 से लार्ड माउण्टबेटन की कृपा से कांग्रेस के चरित्र की उल्टी गिनती प्रारम्भ हो चुकी थी व गांधी कांग्रेस को भंग करना चाहते थे वो तो यहां की जनता कूपमंडूक है जो कि वह कांग्रेस की असलियत को जानना ही नहीं चाहती या जान कर भी निजस्वार्थ में कांग्रेस को वोट देती आयी है....अब "जिसका अन्ना को समर्थन नहीं उसको वोट नहीं" पर चलना होगा.

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Monday 1 August, 2011

कांवरियों कहां है - धर्म?

हम बचपन से धार्मिक होने की कोशिस कर रहे हैं लेकिन अभी तक धार्मिक हो नहीं पाये है . हमेँ तजुब्ब होता है धार्मिकों की पूरी की पूरी भीड़ देख कर,इतने लोग धार्मिक?लेकिन तब भी देश मेँ भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन?इन दिनों कांवरियों की अच्छी खासी भीड़ सड़कों पर नजर आ जाती है.हमेँ ताज्जुब है कि ये कांवरिये धार्मिक हैं?हमेँ कोई भी धार्मिक नजर नहीं आया है . जरुर मेरी दृष्टि मेँ खोट है?ऐसा हो नहीं सकता कि एक भी धार्मिक न हो?

"धृति क्षमादमास्तेयमशौचममिन्द्रिय निग्रह

धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम. "


न जाने क्यों हम अभी तक महापुरुषों व ग्रन्थों से सीख लेते रहे लेकिन अभी तक धार्मिक नहीं हो पाये.और ये चलते फिरते धार्मिक किसी महापुरुष व किसी ग्रन्थ पर शोध दृष्टि नहीं रखते,जिसे सहयोग की जरुरत हो उसे सहयोग नहीं दे सकते,निर्जीव के लिए सजीव का अस्तित्व ही समाप्त कर देते हैं.... ऐसा हम नहीं कर सकते . तो हम काहे को धार्मिक?मै धर्मस्थलों इन पंथों से हट निर्गुण पंथ पर !
शेष फिर .......


अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

विविध कला प्रकोष्ठ

आदर्श बाल विद्यालय इ. कालेज,

मी. पु. कटरा,

शाहजहाँपुर, उ.प्र.

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Saturday 30 July, 2011

यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक':एक संक्षिप्त परिचय

दक्षिणी भारत,प्राचीन सुमेर,मिश्र और भूमध्य सागर देशों की मौलिक सांस्कृतिक समानता के अध्ययन क्षेत्र मेँ यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक' का नाम चिरस्मरणीय रहेगा.
इनका जन्म कौसानी (अल्मोड़ा) के निकट ग्राम धौलरा मेँ 02अक्टूबर1915ई को हुआ था.

युनेस्को द्वारा कुमाऊंनी शब्दकोष के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए कोष निर्माण अनुबन्ध के लिए एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के मुख्यालय बैंकाक का आमंत्रण .

कोष निर्माण के लिए युनेस्को को साझेदारी का अनुबन्ध और वित्तीय सहायता.

बैंकाक की यात्रा के दौरान "थाइलैण्ड की अयोध्या" शीर्षक 12 लेखों के ग्रन्थ का प्रणयन.


मार्च1989को 75वर्ष पूरे होने पर 02अक्टूबर सन 1990 को नैनीताल के बुद्धिजीवियोँ द्वारा अभिनन्दन तथा उनके ग्रन्थ "पुरस्कृत विज्ञान कथा साहित्य" का लोकार्पण .

सन 1990ई0 तक इनके द्वारा 34 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं.जिनमेँ -विज्ञान कथा साहित्य ,15 उपन्यास, 07 कथा संग्रह ,08 हिन्दी विज्ञान साहित्य, 05 संस्कृति और इतिहास .

यह कुमाऊं संस्कृति परिषद ,नैनीताल के अध्यक्ष भी रहे.उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'द्रविण और विश्व मानवता'ग्रन्थ पर संस्कृति पुरस्कार से सम्मानि किया गया.

इण्डोकैस्पियन(आदि द्रविड़)संस्कृति पर यरुशलेम अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी सम्मेलन मेँ मार्च अप्रैल 1985ई0 में मध्यपूर्व,मिश्र व रोम की यात्रा.

प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर मेँ जनवरी 1975 मेँ 'कुमाऊंनी और अन्तर्राष्ट्रीय रोमनी (जिप्सी) भाषा'की समानता पर पढ़ा गया निबन्ध.

कांग्रेसी दंश : कांग्रेस का काला पृष्ठ

सन 1946ई के अन्त के साथ कांग्रेस के चरित्र की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी थी.भारत के कुछ बिकने वालों के सहयोग से इस देश पर विदेशी मंसूबे फलते फूलते रहे हैँ . देश की वर्तमान कंडीशन के लिए दोषी कौन?दादूपुर,वाराणसी के सरस्वती कुमार के अनुसार इसके लिए जिम्मेदार है -"बेटन नेहरु पैक्ट यानी वशीकरण अभियान ". पहला कांग्रेसी दंश था-गांधी के न चाहने के बाबजूद देश का विभाजन . इसके बाद तो कांग्रेस से दंशना प्रारम्भ कर दिया था.जो अभी तक अंग्रेजों की हाँ हजूरी करते थे वे अब कांग्रेस पार्टी का टिकिट लेकर एमपी विधायक थे.और पब्लिक भी मूर्ख?इन्हें ही जिताते आयी.प्रजातन्त्र मेँ प्रजा को ही दोषी मानता हूँ.जो नेता दोषी हैं आखिर उन्हे चुनती तो पब्लिक है? कांग्रेस अनेक मौकों पर प्रजातन्त्र के खिलाफ नजर आयी है. वर्तमान मेँ भ्रष्टाचार व लोकपाल पर कांग्रेस का नजरिया सब जान गये है लेकिन धन्य भारत की पब्लिक...?कांग्रेस की सीटेँ क्या अगले चुनाव मेँ शून्य हो जायेंगी?लोकपाल पर पब्लिक की सहमति को अनसुना कर अन्ना को एक पत्र मेँ पागल तक कह डाला . जीतने के लिए कांग्रेस को वोट चाहिए?अन्ना के मुट्ठी मेँ कितने वोट....?


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Friday 29 July, 2011

पाकिस्तान से हिना रब्बानी खार...

पाक एक ओर भारत से बात कर रहा है वहीं दूसरी ओर वह भारतीयों पर गोली व बम दाग रहा होता है.इस समय पाकिस्तान की पहली महिला विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के चर्चे मीडिया मेँ हैँ ही इण्टरनेट पर भी हैँहिना की खूबसूरती के भी काफी चर्चे हैँ.वास्तव मेँ पाक एशिया मेँ शान्ति चाहता है तो उसे भारत के दर्द को समझना होगा.आतंक के खिलाफ जाति मजहब से ऊपर उठ कर अभियान चलाना होगा.कट्टरपंथियों के अरमानों को ठंडा करना होगा.पाक अफगान उत्तरभारत बांग्लादेश आदि को मिला कर मुगलस्तान की वकालत करने वालों को कठोर जबाब दे कर यदि हिंद महादीप के देशों का संघ बना कर एक संघीय सरकार,मुद्रा व सेना की वकालत का माहौल बनाना चाहिए.पड़ोसियों का ख्याल यदि पड़ोसी न रखेँ तो यह क्षेत्र के लिए ठीक नहीं.


बड़ा ओछा हिन्दुस्तान!हिना की सुन्दरता से क्या लेना देना ?लेकिन खूब चर्चा उसके सुन्दरता की.भाई ये आध्यात्मिक व धार्मिक देश है.यहाँ शारीरिक सुन्दरता से मतलब.

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पाकिस्तान से हिना रब्बानी खार...

पाक एक ओर भारत से बात कर रहा है वहीं दूसरी ओर वह भारतीयों पर गोली व बम दाग रहा होता है.इस समय पाकिस्तान की पहली महिला विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के चर्चे मीडिया मेँ हैँ ही इण्टरनेट पर भी हैँहिना की खूबसूरती के भी काफी चर्चे हैँ.वास्तव मेँ पाक एशिया मेँ शान्ति चाहता है तो उसे भारत के दर्द को समझना होगा.आतंक के खिलाफ जाति मजहब से ऊपर उठ कर अभियान चलाना होगा.कट्टरपंथियों के अरमानों को ठंडा करना होगा.पाक अफगान उत्तरभारत बांग्लादेश आदि को मिला कर मुगलस्तान की वकालत करने वालों को कठोर जबाब दे कर यदि हिंद महादीप के देशों का संघ बना कर एक संघीय सरकार,मुद्रा व सेना की वकालत का माहौल बनाना चाहिए.पड़ोसियों का ख्याल यदि पड़ोसी न रखेँ तो यह क्षेत्र के लिए ठीक नहीं.


बड़ा ओछा हिन्दुस्तान!हिना की सुन्दरता से क्या लेना देना ?लेकिन खूब चर्चा उसके सुन्दरता की.भाई ये आध्यात्मिक व धार्मिक देश है.यहाँ शारीरिक सुन्दरता से मतलब .

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देशभक्ति की परिभाषा पर पुनर्विचार हो !

देश का दुश्मन दुश्मन है,चाहेँ वह विदेशी हो या स्वदेशी . देश के दुश्मनों के साथ मनमानी क्योँ ?विदेशी दुश्मन को गोली लेकिन स्वदेशी दुश्मन को गोली पर कभी वह हमारा रिश्तेदार कभी अपनी बिरादरी का कभी अपने मजहब का नजर आता है.और मिट जाता है अपना धर्म व सत.ईमान पर पक्का होने का मतलब तब क्या रह जाता है?सम्पूर्ण मनुष्य जाति व देश के लिए न सोंच एक विशेष जाति पंथ के लिए सोंचना व जीना
मनुष्य का ईमान नहीं हो सकता ,हाँ ! किसी मजहबी का ईमान हो सकता. अफगान मेँ तालिबान से लड़ रहे सैनिकोँ को अमेरिका कुरुशान(गीता)का पाठ सिखा सकता है लेकिन हम नहीँ सीख सकते.देश के दुश्मनों के साथ दोहरा मापदण्ड क्योँ?जाति सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर 'धर्म का पथ' अर्थात 'जेहाद की राह' को समझो . काफिर वह है जो सत्य से मुकरे.जो व्यक्ति काफिर के काफिर आदतों का समर्थन करता है,मेरी दृष्टि मेँ वह
भी काफिर है.सीख लेना चाहेँ तो हम फिल्मों से सीख ले सकते हैँ,जिसमेँ भ्रष्ट नेता मंत्री पुलिस अफसर आदि के खिलाफ मरते दम तक नायक अभियान छेंड़े रखता है.एक फिल्म मेँ डायलाग है -'कानून का कोई अपना भाई नहीँ होता.' गीता मेँ कृष्ण क्या कहते हैँ?भूल गये क्या?धर्म के रास्ते पर न कोई अपना न कोई पराया होता है.हम क्या देशभक्त नहीँ हैँ?यदि नहीँ तो क्या हमेँ सरकारी सुविधाएं मिलना चाहिए?देश
के दुश्मनों के खिलाफ अभियान क्यों नहीँ?हम क्योँ जाति सम्प्रदाय मेँ बंट कर रह जाते हैँ?भ्रष्टाचार व काला धन पर आवाज उठाने वालों पर लाठियां गोलियां व कानूनी अड़चने लगाने वालों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीँ?

गौरवशाली भारत का अस्तित्व क्यों मिटा?सिर्फ हमारे व पूर्वजों के नजरिया के कारण.जो अंग्रेजों की हाँहजूरी करते रहे अंग्रेज चले गये तो वही देश संभालने लगे.बच्चों को टीवी सिनेमा मोबाइल आदि रुपी झुनझुना पकड़ा दिये गये .

देशभक्ति की परिभाषा पर पुनर्विचार होना चाहिए.विभिन्न पदों पर नियुक्ति व प्रत्याशी चयन के लिए नारको परीक्षण आदि व विधि साक्षरता अनिवार्य किया जाना चाहिए .अफसोस कि लोग संविधान की एबीसी तक नहीं जानते,उन्हेँ संविधान की शपथ दिलवायी जाती है.

Thursday 28 July, 2011

गांधी को क्या नेहरु ने मरवाया : सिर्फ एक कल्पना

गांधी की हत्या ने पूरे देश मेँ खलवली मचा दी.पब्लिक विवश हो कर सिर्फ मुट्ठियां बांध कर खींच कर रह गयी.देशभक्त जनता नेहरु व जिन्ना का पीछे चल पड़ी जनता के बीच दब कर रह गयी थी.दिल्ली मेँ जनता का सैलाब उमड़ पड़ा था.
"बेचारे महात्मा को नेहरु ने सत्ता के लोभ मेँ आकर मरवा ही दिया."-भीड़ मेँ एक ओर से आवाज आयी तो एक युवक बौखला उठा-"कौन बोला?कौन बोला?साला अब क्यों नहीं बोलता?"एक मुस्लिम वृद्ध एक अधेड़ तिलकधारी देखकर बोला -"मैने बोला है , मैने बोला है." मुस्लिम वृद्ध को पकड़ कर झकझोरते हुए-"यें..., नेहरु ने मारा गांधी को...?"


रायसेन मध्यप्रदेश से एक बालक अकेले ही दिल्ली आया हुआ था.जिसको देख कर कभी गांधी बोले थे-"दुनिया मेँ यही बालक है मेरे टक्कर का."इधर-मौ.अबुल कलाम आजाद एक कमरे में बैठे लिखने मेँ व्यस्त थे.गांधी का अन्तिम संस्कार हुए दो दिन गुजर चुके हैं लेकिन-सत्तावादी गांधी की मौत पर सिर्फ घड़ियाली आंसू बहा रहे हैँ.मेरे द्वारा लिखी जाने वाली पुस्तक 'India Wins Freedom'जब प्रकाशित होकर जनता के बीच जायेगी तो शायद देश जिन्ना,पटेल व नेहरु की असलियत समझ सके?और नेहरु व अब के बाद की कांग्रेस को ...


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गजवा ए हिंद की भारत मेँ चुनौती

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "spntodaynews@gmail.com" <spntodaynews@gmail.com>
Date: गुरुवार, 28 जुलाई, 2011 8:37:15 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: गजवा ए हिंद की भारत मेँ चुनौती

भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान देने वाले जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज मुहम्मद सईद ने अब जम्मू कश्मीर के जरिये भारत मेँ घुसने का एलान किया है.आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के संस्थापक सईद ने कहा कि हम कश्मीर के रास्ते भारत मेँ घुस कर गजवा ए हिंद छेंड़ेंगे.उसका दावा है कि भारत व इजरायल ने गुप्त समझौता किया है. इधर भारत मेँ परसों से ही इण्टरनेट पर कमेण्टस आ रहे हैँ.एक ने लिखा है कि तुम भारत आओ तुमसे निपट लिया जायेगा लेकिन कांग्रेसियों से कैसे निपटा जाये ?मैं इतिहास का अध्ययन करता रहा हूँ मुझे तो भारतीय ही दोषी नजर आये हैं.देश के अन्दर की कमजोरी का फायदा विदेशी शक्तियाँ उठाती रही हैं.
कभी तुर्क तो कभी मुगल तो कभी अंग्रेज तो कभी पाकिस्तान तो कभी आतंकवाद हमारे लिए दोषी नजर आता रहा है.लेकिन अपने परिवार ,जाति ,पंथ राज्य ,देश,समाज के ठेकेदारों व अपनी सोंच की ओर न देखा.
हम अपने लिए औरअधिकतम अपने परिवार के लिए जीते आये है.समाज व देश के लिए हमारा कोई लक्ष्य नहीं रहा है . दुनियां में जो भी कौमेँ आगे बढ़ी है,उन कौम के लोगों नेअपनी कौम के लिए भी त्याग किए हैँ.सईद तुम भारत आओ,लेकिन भारतीयों का दिल जीतने.

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Tuesday 26 July, 2011

'छोटे शहर का बड़ा रंगमंच' का विमोचन : 25जुलाई 2011ई0

शाहजहांपुर की नाट्य संस्थाओं व रंगकर्मियों के योगदान पर साहित्यकार 'सुशील मानव' की पुस्तक 'छोटे शहर का बड़ा रंगमंच' का विमोचन किया गया.


रविवार को गांधी भवन मेँ हुए कार्यक्रम मेँ पालिकाध्यक्ष तनवीर खाँ व स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी बसंत लाल खन्ना ने पुस्तक का विमोचन किया.

इस अवसर पर साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी लेखक इंजी.राजेश कुमार शमीम आजाद कृष्ण कुमार श्रीवास्तव आदि सहित कला व साहित्य जगत से जुड़े तमाम लोग मौजूद थे.


शहीदों की नगरी नाम से पुकारा जाने वाला रुहेलखण्ड का प्रसिद्ध नगर शाहजहांपुर आज अनेक क्षेत्रों मेँ चर्चित है.इस पुस्तक के विमोचन के साथ यहाँ के रंगमंच मेँ एक नया अध्याय जुड़ गया है.रंगमंच से ही अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले अनेक कलाकार यहां से निकल कर दुनिया मेँ शाहजहांपुर का नाम रोशन कर रहे हैँ.

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