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Wednesday 4 January, 2012

नक्सली कहानी : ठाकुर बनाम क्षत्रिय

झारखण्ड का एक गांव -कुरमाढेर नवीराम.नक्सलियों के खिलाफ शासन ने अपना वज्र आपरेशन तेज कर रखा था .इस गांव मेँ लगभग एक दर्जन भर नक्सली आकर छिप गये थे.जिन्हें गांव के दबंग ठाकुर जयेन्द्र सिंह ने अपने यहां आश्रय दे रखा था.गांव मेँ ही एक युवक रहता था -हरेन्द्र वाल्मीकि.जिसके पास मकान नाम से कुछ छप्पर पड़े थे तथा एक कमरा मिट्टी का बना रखा था ,जिसकी दीवारेँ व छत मिट्टी की बनी थी.घर
उसकी पत्नी व एक तीन वर्षीय लड़की थी.वह अपना जीवन अपनी ही जगह मेँ खड़े पीपल वृक्ष के नीचे पड़ी झोपड़ी मेँ एक साधक के रुप मेँ बिताता था .जहां वाल्मीकि समाज के नर नारी पूजा पाठ करने आते रहते थे.


जब हरेन्द्र वाल्मीकि को पता चला कि ठाकुर जयेन्द्र सिँह ने अपने यहां नक्सली छिपा रखे हैँ तो -

"भाई ये आज के ठाकुर हैँ .कायर तो विल्कुल नहीँ हैँ.इनका उद्धेश्य है जीवन मेँ धर्म व सच्चाई के सामने सीना तान कर चलना.ये अधर्म व झूठ के सामने विल्कुल नहीँ झुकते,ठाकुर हैँ न ?मैने जब आज के व ऋग्वैदिक कालीन क्षत्रियोँ मेँ अंतर व्यक्त करते हुए जब भी समाज मेँ ताल ठोँक कर अपने को क्षत्रिय कहा है तो साला कौन इनमेँ व वामनोँ से मेरे समर्थन मेँ आया ? हाँ ,ये जन हमारे विरोध मेँ अपना
झण्डा व डण्डा लिए जरुर खड़े मिले हैँ . "


आज से पांच वर्ष पूर्व की घटना है .हरेन्द्र वाल्मीकि का एक भाई था -शीतेन्द्र वाल्मीकि . वह अपनी आंखों के सामने एक गरीब व दलित बालिका पर अत्याचार होते कैसे देख सकता था ?कुछ दबंग ठाकुर लड़कोँ ने उस बालिका के साथ दुष्कर्म किया ही था,अब उसकी चांद गंजी व चेहरा काला कर उसे एक गधे पर बैठा कर गांव भर मेँ घुमा रहे थे और उसकी गंजे सिर पर जूते चप्पल मार रहे थे.शीतेन्द्र वाल्मीकि को न रहा
गया और दबंगोँ का विरोध कर बैठा.वह बालिका तो भाग कर गांव से बाहर आ गयी थी लेकिन दबंगों ने शीतेन्द्र वाल्मीकि की हत्या कर दी थी.

अब हरेन्द्र वाल्मीकि ,हरेन्द्र वाल्मीकि ठाकुर जयेन्द्र सिँह की बैठक के सामने जा पहुँचा .ठाकुरोँ के बीच एक मात्र क्षत्रिय साहस के खड़ा प्रतिकार कर रहा था.


वह बोलता -वह क्षत्रिय नहीँ जो समाज व मानवता की रक्षा के लिए साहस के साथ न खड़ा हो सके .आप लोग ठाकुर होकर भी अपने हित के लिए अपराधियोँ को गले लगाते रहे हो व अन्य को कष्ट देते रहे हो .नक्सलियोँ को आश्रय क्योँ ?


* * *
हरेन्द्र वाल्मीकि ने अनेक अधिकारियोँ को स्थिति से अवगत करा दिया था .सैन्य टुकड़ियां गांव आ पहुँची थीँ.गांव के दबंग ठाकुरोँ से बच भागी वह बालिका अब जवान हो चुकी थी जो अब एक न्यूज चैनल मेँ रिपोर्टर बन गांव मेँ आयी हुई थी.वह अर्थात स्तम्भी जाटव हरेन्द्र वाल्मीकि व कुछ नेताओँ के साथ गांव मेँ घूम घूम लोगोँ को समझा रही थी कि तुम लोग अपने अन्दर क्षत्रियत्व को जगाओ,क्योँ न
तुम किसी जाति से हो.शूद्रता अर्थात तम से भला नहीँ होने वाला. उसका जीवन निरर्थक है जिसके जीवन मेँ ऐसा कोई लक्ष्य नहीँ जिसके लिए वह मर सके .ज्ञान ,साहस व संसाधन के बिना हमारा जीवन क्या जीवन?अपने नजरिये व आचरण को महापुरुषोँ के दर्शन के आधार पर रखना चाहिए न कि भेड़ की चाल या फिर सिर्फ अपनी ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ के आधार पर.सिर्फ महापुरुषों को ताख मेँ रख अगरवत्ती,फूल,आदि चढ़ाने व
अपना सिर झुकाने से काम न चलने वाला.इससे तो तुम्हारी स्वयं की शक्ति कमजोर पड़ी है व 'स्व' पर भरोसा कम 'पर' पे ज्यादा हुआ है .कायरता का जीवन जीना क्योँ ? या अज्ञानता वश अपनी ही धुन मेँ जीना क्योँ ?


* * *


ग्रामीणोँ के सहयोग से सैन्य कार्यवाही मेँ नक्सली व नक्सलियोँ और अपराधियों को सहयोग देने वाले ठाकुर जयेन्द्र सिंह की हत्या कर दी गयी.जिसके विरोध मेँ देश की ठाकुर जाति सड़क पर उतर पड़ी और जाटवोँ व वाल्मीकियोँ से उनका संघर्ष आरम्भ हो गया.हरेन्द्र वाल्मीकि को मीडिया के सामने कहना पड़ा - बड़े होने का मतलब माया ,मोह ,लोभ,काम या अहंकार मेँ आकर अपनी मनमानी करना नहीँ है.हमेँ
धैर्य,साहस व अपने विवेक को बनाये रखना है .हमेँ द्वेषभावना मेँ आकर कोई कदम नहीँ उठाना है .हम तो द्रोह अर्थात अधर्म की खिलाफत के पक्षधर रहे हैँ . स्तम्भी जाटव के नक्सली होने के सवाल पर हरेन्द्र वाल्मीकि ने कहा कि स्तम्भी जाटव ' नक्सली वैचारिक टैंक ' की सदस्य बनी है जो नक्सली हिँसा के खिलाफ है .