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Monday 5 September, 2011

नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल

 नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल
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लालगढ़ के एक कालेज मेँ सैनिकों ने कल ही छात्रों पर लाठियां चलायीं थीँ जो कि सैनिकों से कालेज खाली करने की मांग कर रही थीँ.
कालीदेवी के सामने एक बालक आदिवासी वेशभूषा मेँ मेडिटेशन पर बैठा था.खून से लथपथ चार छात्राएं मंदिर मेँ आकर गिर पड़ीँ.वह बालक उठ बैठा.उसके आंखों मेँ आक्रोश चमक रहा था.अपना धनुष तरकश उठा कर वह मंदिर से बाहर आ गया.सैनिक आदिवासियों को खदेड़ रहे थे.एक विछिप्त वृद्धा बोली-"बेटा!यह नेता पुलिस मिलेट्री कोई हमारी नहीं है और फिर कब जीतेंगे हम उनकी शक्ति के सामने?"
"दादा की याद है?कह कर क्या गये थे?हम शासन प्रशासन के सामने जीत नहीं सकते तो क्या,हम वहाँ जा कर एकता का प्रदर्शन तो कर सकते हैँ."
फिर वह बालक अपना धनुष तरकश संभालते हुए आगे बढ़ गया.
इधर मैं बीसलपुर से शाहजहांपुर ट्रेन से जा रहा था.निगोही स्टेशन पर कुछ मुस्लिम युवक एक सिपाही के साथ ट्रेन में आ चढ़े.वे गांधी की आलोचना कर रहे थे.मुझे बिना बोले रहा न गया.मैं बोल दिया-"....चाहेँ व्यक्ति किसी मत या पन्थ का हो यदि वह वास्तव मेँ धार्मिक व आध्यात्मिक है तो वह करुणा ज्ञान अन्वेषण मानवकल्याण अहंकारशून्यता आदि से जुड़ जाता है.मोहम्मद साब को आप मानते हैं मैं भी
मानता हूँ.जब वह उन पर कूड़ा डालने वाली औरत बीमार पड़ जाती है तो वे उसका हालचाल लेने पहुंच जाते हैं.यदि मोहम्मद साब की जगह हम होते तो ....?!जरा अपने से तुलना कीजिए,गांधी को छोंड़ों आप लोग अभी मोहम्मद साब तक को नहीं समझ पाये हैं.दरासल हम आप सब इन महापुरुषों के हैं ही नहीँ. आप सब अभी जिस स्तर पर जा कर बात कर रहे थे वह स्तर व्यक्तिगत स्वार्थों मतभेदों कूपमंडूकताओं उन्माद तनाव आदि से
भरा होता न कि दया करुणा समर्पण त्याग से.गलत तो गलत है चाहेँ ...."सिपाही बोला-"वरुण गांधी को ही लो मैं नहीं कहता कि वरुण गांधी भड़काऊ भाषण के कारण दोषी नहीं हैँ?इसके लिए पहले से ही उपस्थित परिस्थितियाँ या कारण भी दोषी हैः उसकी बात शासन प्रशासन क्यों नहीं करता?कारणों को सजा क्यों नहीं?सिर्फ वरुण गांधी दोषी क्यों?" मैं बोला-"लालगढ़ मेँ जो हो रहा है क्या हो रहा है?वैसा ही कि कोई
सरकारी महकमों शासन प्रशासन आदि की मनमानी अन्याय शोषण से परेशान होकर झूंझला जाये और ऊपर से शासन प्रशासन भी उस पर हावी हो जाये न कि उसके लिए न्याय व सहानुभूति का वातावरण बनायें और वास्तविक दोषियों को सजा देँ."

इधर-उस धनुर्धारी बालक के चेहरे पर अब भी आक्रोश स्पष्ट था.वह कह रहा था कि मेरे सरजी कहते हैं कि यदि सिर्फ उपदेश व भाषण ही सिर्फ महत्वपूर्ण होते तो न जाने कब की यह धरती स्वर्ग बन चुकी होती?यह धरती कर्मभूमि है कर्मभूमि.शब्दों के जाल...."जंगल के बीच कुटिया मेँ उस बालक व अधेड़ सन्यासी के अतिरिक्त कुर्ताधारी एक नेता भी उपस्थित था.
अधेड़ सन्यासी बोला-"सेक्यूलर फोर्स के आन्दोलन में आपके सर जी भी तो शामिल थे?क्या मिला उस आन्दोलन से?""तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने या यहाँ कुटिया में जाप करते रहने से क्या होगा?मैं भी जानता हूँ कि अन्तिम निदान धर्म व अध्यात्म ही है.ऋषियों मुनियों नबियों के दर्शन मेँ हर समस्या का निदान है,यह मैं भी जानता हूँ.""बेटा!"-युवा नेता बोला."हाँ." "धैर्य से काम लो . दो की लड़ाई में तीसरा लाभ
उठाता रहा है.हम आदिवासियों के आन्दोलन का नक्सलीकरण हो रहा है.""हमेँ समर्थन चाहिए ही .अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता .हमें भी समूह चाहिए .नेताओं अफसरों कर्मचारियों से विश्वास उठ ही चुका है .कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,व्यक्तिगत स्वार्थ,भौतिक भोगवाद,सांस्कृतिक आक्रमण,तुष्टिकरण नीति,आदि,के बीच हम किससे उम्मीद रखेँ?" "बेटा,तुम जिस रास्ते पर हो वह रास्ता देश को गृहयुद्ध की ओर ले जाने
वाला है." "हूँ!और नेता अफसर कर्मचारी विधायक एमपी आदि सब जो कर रहे हैँ वह देश को जिस रास्ते पर ले...... ."बेटा,समझता हूँ तुम्हारा दर्द!तुम तो होशियार हो.भावावेश में आ कर कोई कदम नहीं उठाना चाहिए." बालक सिर उठा श्रीकृष्ण की तश्वीर को देख कर गहरी गहरी साँस लेने लगा .
"होशियार तो आप नेतागण हो? जोचोर,अपराधियों,बदमाशों, साम्प्रदायिकों,जातिवादियों, पूंजीपतियों,माफियाओं,आदि के समर्थन में खड़े पाये जाते हैँ?...और आप लोगों का सेक्यूलरवाद?हिन्दुओं के पक्ष में जा कोई जो करे वह साम्प्रदायिक है और जो गैरहिन्दुओं के पक्ष मेँ जा कर हो क्यों न भविष्य मेँ वह देश के लिए घातक हो,साम्प्रदायिक नहीं है?विदेशियों को देश में आश्रय देने वालों पर अंगुली
उठाते हो और जो देश के अन्दर देश व संवैधानिक धरोहरें हैं,उनके खिलाफ खड़े है जो उनको वोटों के स्वार्थ में आगे बढ़ने का अवसर दे रहे हो?मस्जिदों,आदि के नीचे दबे पुरातात्विक सच को आप नेताओं को सच कहने की हिम्मत नहीं है?नेता जी सुभाष चन्द्र वोस व शास्त्री की मृत्यु सम्बन्धी,नेहरु बेटन सम्बन्धों सम्बन्धी,अमेरीका मेँ ओशो को थेलियम देने सम्बंधी,आदि पर आप नेता कोई प्रश्न उठाने की
हिम्मत नहीं रखते?आप नेताओं ने क्या कभी सोंचा कि भावी इतिहास में क्या हमारी गिनती देशभक्तों व नायकों मेँ होगी? "पुन:-"जय श्रीकृष्ण!धर्म के पथ पर कोई अपना नहीं होता.मैं आप लोगों की नहीं सुनने वाला. मेरे पास भी बुद्धि व विवेक है.मुझे आप लोगों से नहीं,महापुरुषों व ग्रंथों से सीख लेनी है.मेरे सरजी भी कहते थे कि समाज क्या चाहता है- यह मत देखो?यह देखो महापुरुषों व ग्रंथों मेँ क्या
है?जय कुरुआन जय कुरुशान! "कुटिया मेँ एक ओर एक कलैंडर में सूर्य,दूज चन्द्रमा व तारा का चित्र बना था और लिखा था-ओ3म आमीन!जिस पर निगाह डालते हुए बालक कुटिया से बाहर आ गया.एक ओर से कुछ सशस्त्र युवतियों के बीच से एक बालिका दौड़ती हुई बालक के पास आयी-"लाल महतो,तेरे वो विचार क्या मर गये?तू तो बड़ा हो कर अफसर बनना चाहता था लेकिन बागी बन बैठा.""बर्दाश्त करते करते बहुत हो गया.बचपन
सेहीघर,स्कूल,फिर समाज मेँ लोगों कीमनमानी,कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,आदि को सहता रहा लेकिन अब नहीं.रोज मर मर कर जीने से अच्छा है,एक बार मर ना.."
@अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'




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