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Friday 28 October, 2011

31 अक्टूबर : पटेल जयंती

व्रिटिश शासन से मुक्ति को अनेक का योगदान चिरस्मरणीय है.जिनमें एक थे सरदार वल्लभ भाई पटेल.सन 1946 तक जिन नेताओं का आचरण प्रसंशनीय था वहीं उनमेँ से कुछ का चरित्र संदिग्ध हो गया जो कि लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन का चक्कर लगाने लगे थे.जिनमेँ पटेल व नेहरु भी शामिल हैं.प्रधानमंत्री बनने की लालसा मेँ ये दोनों नेता देश के विभाजन का समर्थन कर बैठे व गांधी को अलग थलग कर दिया जिनके
सहारे ये यहां तक पहुंचे थे.


सरस्वती कुमार,दादुपुर वाराणसी के अनुसार लार्ड क्लायू बंगाल का शासक बनना चाहता था जिसके लिये वहां के नवाब सिराजुदौला के सेनापति मीरजाफर को नवाब बनने का लालच दिया और प्लासी के मैदान मेँ मीरजाफर के सहयोग से अंग्रेज बंगाल का शासक बन गये उसी प्रकार लार्ड माउण्टबेटन ने नेहरु और पटेल से अलग अलग मिलकर दोनों को प्रधानमंत्री बनाने का लालच देकर गांधी जी से लड़ा दिया.इन दोनों ने
विभाजन को अपने लिए वरदान समझ कर सहमति दे दी.गांधी जी विभाजन राष्ट्र के लिए आत्मघाती समझते थे इसलिए राष्ट्रहित मेँ जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रक्खा लेकिन खुदगुर्ज नेहरु और पटेल गांधी के विरुद्ध अटल मुद्रा मेँ खड़े हो गये.

मौ.अबुल कलाम आजाद अपनी पुस्तक 'इंडिया विन्स फ्रीडम'मेँ लिखते हैं कि मेरे सहायक तथा उम्मीद केवल गांधी जी रह गये थे.इस समय गांधी जी पटना मेँ रहे थे.वह 31 मार्च 1947 को दिल्ली मेँ आये.मैँ तुरन्त मिलने गया.उनका पहला वाक्य था कि भारत विभाजन एक धमकी बन गया है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा जवाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैँ.
पृष्ठ 228पर आजाद लिखते हैं कि नेहरु और सरदार पटेल ने विभाजन स्वीकार करके गांधी जी को मर्माहत कर दिया.विभाजन की ट्रैजिडी से देश को बचाने के लिए गांधी जी ने जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री पद देने का प्रस्ताव रखा तब दोनों गांधी से बगावत करने लगे और प्रचार करना शुरु कर दिया कि गांधी मुसलमानों के पक्षधर हो गये हैँ.इन दोनों ने माउण्टबेटन को विश्वास दिलाया था कि विभाजन के बाद
किसी भी प्रकार का दंगा फसाद नहीँ होगा लेकिन जब लाहौर मेँ हिन्दू और सिक्ख और पंजाब मेँ मुसलमान गाजर मूली की भांति काटे जाने लगे तब गांधी ने हिंसा रोकने के लिये आमरण अनशनकर दिया.अनशन से पंजाब दिल्ली और लाहौर मेँ भी शान्ति की बहाली हो गयी तब 20जनवरी 1948को हिन्दू आतंकवादियों ने गांधी को बम का निशाना बनाया.गांधी जी बाल बाल बच गये.लेकिन उन्हीं लोगों ने 30जनवरी1948को सायं पाच बज कर
सत्रह मिनट पर गांधी की हत्या कर दी.मौ.अबुल कलाम आजाद ने इसके लिए नेहरु व पटेल को ही दोषी माना.


लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर अपनी पुस्तक 'आधी रात को आजादी'मेँ लिखते हैं कि नेहरु और पटेल तथा भारत की प्रतिक्रियावादी शक्तियां गांधी के विरूध अंदर ही अंदर कुछ और सोचने लगे थे....20जनवरी1948को जब गांधी पर बम फेंक मारने की कोशिस की गयी तो पकड़े गये व्यक्ति ने सही सही बयान मेँ सब कुछ बता दिया था.नाथू राम एवं गोपाल गोडसे,करकरे,बगड़े,परचुरे आप्टे,आदि का नाम व पता बयान कर दिया
था.54पृष्ठों के बयान पर ज्यों ही कार्यवाही जोर पकड़ने वाली थी कि पूरी फाईल आई.जी.द्वारा मंगा ली गयी.आई जी डी जे संजीव उस समय दिल्ली पुलिसचीफ थे उन्होने फोन करके मेहरा को आश्चर्य मेँ डाल दिया था कि मदन लाल के मामले की चिन्ता आप न करें यह मामला मैं देख लूंगा.लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर के ही अनुसार असल मेँ अपराधियों के तार शासन प्रशासन से जुड़ चुके थे.(पृष्ठ 309)

कल जब एक स्थान से पटेल जयन्ती कार्यक्रम मेँ शामिल होने के लिए जब मेरे पास निमंत्रण पत्र आया तो मैं उपरोक्त विचारों पर चिन्तन करने लगा.मेरा मन इस मामले मेँ पटेल व नेहरु के प्रति आक्रोशित रहता है.जब मैं मीरजाफर जैसो गद्दारों को सम्मान नहीं दे सकता तो पटेल व नेहरु को क्यों?और उन जैसे व काले अंग्रेजो को क्योँ?लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन व अब सोनिया टीम का चक्कर काटने वाले
उन नेताओं को सम्मान दिया जाए जो देश की असलियत या हिन्दूओं या सच्चे सेक्यूलरवादियों का दर्द नहीं समझना चाहते व देश की सम्पत्ति विदेश ले जाने वालों का समर्थन करते है.मेरी इच्छा नहीं होती कि मै पटेल व नेहरु के सम्मान मेँ आयोजित होने वाले किसी कार्यक्रम मेँ शामिल होऊँ...?


मैं जिस कालेज में टीचिँग करता हूँ उस कालेज में सिर्फ गांधी व नेहरु की ही जयन्ती बनायी जाती है.अनेक को यह आपत्ति है कि अन्य महापुरुषों की जयंती क्यों नहीँ ?


पटेल व सुभाष सम्बंध!


किसी विद्वान के अनुसार सरदार पटेल नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इसलिए चिढ़ते थे क्योंकि उनके भाई विठ्ठलभाई ने अपनी सम्पति सुभाष को दे दी थी.

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