Powered By Blogger

Thursday 8 March, 2012

08मार्च ,महिला दिवस : तो फिर क्योँ प्रतिवर्ष 5लाख बालिकाएं मार दी जाती हैँ

होली के अवसर पर मानवता के प्रेम,उदारता ,सेवा,विवेक,ज्ञान,आदि रंगों से सरावोर होते हुए आज महिला दिवस पर कुछ विचार
दे रहा हूँ . भारतीय नारीसमाज का यथार्थ भौतिक भोगवाद का शिकार हो चुका है. यहाँ वह धार्मिक उत्सवोँ ,धर्मस्थलोँ, आदि मेँ संख्या से पुरुषोँ की अपेक्षा ज्यादा नजर आती हैँ लेकिन उनके भी व्यवहारिक जीवन नजरिये मेँ धर्म, अध्यात्म व ज्ञान गायब होता है .

किसी ने भा+रत से अभिप्राय बताया है-प्रकाश मेँ रत.आइंस्टीन ने कहा है कि हमेँ हर वस्तु प्रकाशवान दिखाई देती है . हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश हैँ और पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ . ब्रह्मांश अलिंगी होता है,प्रकृतिअंश ही स्त्री या पुरुष है.


यदि ईश्वरीय प्रकाश कण -कण मेँ है तो हमारे प्रकृतिअंश अर्थात हमारे शरीर मेँ भी वह है .जो ब्रह्मांश ही है .जिसको जाने बिना हमारा धर्म या अध्यात्म पाखण्ड है .ये सब क्योँ ? आज महिला दिवस पर ऐसी बातेँ क्योँ ? ऐसा इसलिए क्योँकि हम अपने को जाने , अपने को जान लेने के बाद चाहेँ स्त्री हो या पुरुष हम सभी समस्याओँ से मुक्त हो जाएंगे . सिर्फ सशक्त कानून, सभी शास्त्रोँ के
ज्ञान,धर्मस्थलोँ के सम्मान, भौतिक संसाधन , आदि से मानव का कल्याण नहीँ होने वाला .

नारी हो या पुरुष उसे ज्ञानी,उदार,सेवक,अहंकार शून्य,साहसी,धैर्यवान,परोपकारी,चरित्रवान,आदि होना आवश्यक है.


नारी की समस्या क्या है ?नारी तो हर समस्या का समाधान है तो ऐसे मेँ फिर नारी की क्या समस्या?यदि समस्याएं हैँ तो इसके लिए नारी ही दोषी है.वह प्रथम शिक्षिका है माँ के रुप मेँ.


एक भारतीय महिला की एक झलक :


* * * * *

हमारी नजर मेँ एक अविवाहित महिला है .मेरे संज्ञान मेँ है कि जब वह शादी होकर अपने मायके से अपने ससुराल पहुँची तो उसे अपने ससुराल पक्ष से उपेक्षा व तिस्कार का ही सामना करना पड़ा लेकिन उसने धैर्य,शान्ति ,विवेक,उदारता, प्रेम,सम्वाद शैली,सेवा,चतुरई,आदि के सहयोग से काम लिया.जब उसके मायके वालोँ को मालूम चला कि उसकी ससुराल के लोग दुष्ट हैँ तो वे उग्र हो हस्तक्षेप करने के लिए
तैयार हो गये लेकिन उस महिला ने रोक लिया और कहा कि मैँ ही काफी हूँ .


" दो साल से तू उनकी दुष्टता बर्दाश्त कर रही है ." "भैया जी,मैँ बर्दाश्त नहीँ कर रही हुँ .मैँ........."


"पवन!खामोश क्योँ हो गयी तू .?"

"मैँ औरत जाति से हूँ ,मेरे सर जी मुझे मेरी निजता का रास्ता बता चुके है .मैँ जानती हूँ कि मेरे अन्दर क्या क्या है.मैँ औरत नहीँ यदि मैँ अपने ससुरालियोँ को न बदल न सकूँ ."

फिर ....?!


फिर पवन ने आगामी दो साल मेँ अपनी ससुरालियोँ के व्यवहार मेँ चेंजिंग कर दी.

अस्सी प्रतिशत से ऊपर दहेज प्रकरण झूठे .


* * * * * *

मानव सत्ता के दो भाग हैँ -पुरुष व स्त्री .दोनोँ का समअस्तित्व (श्रीअर्द्धनारीश्वरशक्ति) ही मानव सत्ता को जगत मेँ सम्मानित रख सकता है.पुरुषोँ की तरह स्त्रियोँ को भी स्वयं को जानना जरूरी है . स्त्री हो या पुरुष,हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश हैँ पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश .हम सिर्फ प्रकृतिअंश से ही स्त्री या पुरुष हैं.अपने को पहचाने से हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी.

एक सर्वेक्षण के अनुसार दाम्पत्य जीवन को बनाने व बिगाड़ने का दायित्व स्त्री का ही है .मेरा मानना है कि अस्सी प्रतिशत से ज्यादा दहेज प्रकरण झूठे होते हैँ .