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Sunday 30 October, 2011

इल्तुतमिश : भारतीय कमजोरियों की नींव पर सल्तनत का सपना

नदी के किनारे कुछ बच्चे एक बच्चे को घेरे खड़े थे और उसकी मजाक बना रहे थे.बच्चों के बीच खड़ा बालक शरीर से सुन्दर एवं बलवान था लेकिन......?! सहमा सहमा सा वह खड़ा मन ही मन सोंच रहा था -"क्या यह अपने हैँ?"


वह बोल पड़ा -

"आपलोग हमसे क्यों जलते हो?मैं तो आप लोगों का भाई हूँ." सब बच्चे हंसने लगे,उनमेँ से एक बोला -"भाई है तो क्या?बाप तुझे होशियार एवं बुद्धिमान मानता है अब दिखा अपनी होशियारी और बुद्धिमानी.."

"अपनों के बीच कैसी होशियारी एवं बुद्धिमानी?अपनों के बीच तो प्रेम सौहार्द से रहना चाहिए."

"इल्तु!तेरी गलती इतनी है कि बाप हम भाइयों मेँ से तुझे सबसे ज्यादा चाहता है."


इल्तुतमिश खामोश ही रहा ,उसने मुस्कुराने की कोशिस की.

"इल्तु,तुझे बाप इतना क्यों चाहता है?"

"इसका जबाब खुद अपने से पूछो."


"हाssssssहाsssss!"फिर सब हँस पड़े.

"पागल है,क्या कुछ अपने से भी पूछा जाता है?"

" क्या आप मेँ से कोई नहीं जानता 'अपने से पूछने'का मतलब क्या है?"

"तुम जैसे पागल ही जानते होंगे."



इल्तु का पूरा नाम था -शम्सुद्दीन इल्तुतमिश.जो इल्बारी तुर्क वंश से सम्बंध रखता था.पिता का नाम था-इलाम खाँ,जो एक कबीले का प्रधान था.जब भी पंचायत होती , इल्तु अपने पिता के साथ चबूतरे पर बैठता था.कबीले की पंचायत भी इल्तु की होशियारी एवं बुद्धिमानी पर विश्वास करती थी.


"कुदरत भी किसी किसी को देती है छप्पर फाड़ कर देती है ."इल्तु का एक भाई बोला तो दूसरा भाई बोला -"इल्तु भाग्यशाली है.शरीर तो सुन्दर पाया ही दिमाग भी सुन्दर पाया और लोगों की मोहब्बत भी."


तीसरा बोला -"मेरे दिमाग मेँ एक हरकत सूझ रही है.इल्तु जिन्दगी भर गुलामी करेगा और हमारे आंखोँ की किरकरी भी नहीं बनेगा."

तब पहला भाई बोला -"हाँ,दिमाग में आया .इल्तु को क्यो न गुलामों के बाजार मेँ ले जा कर बेंच देँ."

इल्तु के सभी भाई इल्तु को पकड़ कर पशुशाला मेँ ले आये.


"आपसब क्या चाहते हो ?हम आपका क्या बिगाड़ते हैँ?"


"हम सब तुम्हें देख कर जलते हैं."


"हाजमा भी नहीं होता."


"हाsssहाssssहाssssss"सब ठहाके लगा हँस पड़े.


"अब हम सब तुझे गुलामों के बाजार मेँ बेँच देंगे."


"तू यदि कुछ भी हम लोगों के खिलाफ बोला तो खैर नहीं."


"आप सब मेरे भाई हो.हम नहीं चाहते आप सब परेशान रहे लेकिन मैं ऐसा क्या करता हूँ जिससे आप सबको परेशानी होती है?"


"परेशानी?!" फिर सबके सब ठहाके लगाने लगे.


"हम सब नहीं चाहते कि तू हम लोगों व बाप के साथ रहे."

इल्तु के भाईयों ने उसे एक व्यापारी के हाथ बेंच दिया.इसके बाद वह पुन: दो बार बेँचा गया . इल्तु के साहस नेतृत्व एवं संस्कारों से लोग काफी प्रभावित होते गये . बालक होते हुए भी वह बालकों के स्वागत से काफी ऊपर उठ कर बड़ों एवं बुजुर्गों की शोभा बनने लगा था.इसका मतलब यह नहीं कि वह अपनी उम्र के बालकों के बीच नहीं जाता था या नहीं रहता था.गुलाम होते हुए भी वह लोगों को आकर्षित करता रहता
था.


इल्तु एक चट्टान पर बैठा चट्टानों को काटती औरतों व लड़कियों को देख रहा था.


"इल्तु,क्यों गुमसुम से बैठे हो यहाँ?"-एक बालिका आकर बोली.


"तू फिर आ गयी यहाँ .मालिक से तेरी शिकायत करुंगा .कोई काम नहीं बकबास करने चली आती है ."


"इल्तु,तू वास्तव मेँ उल्टा है.हमेँ क्या गर्ज पड़ी तुझसे बकबास करने की और फिर तू खास है मालिक का.तू हमेँ अच्छा लगता है तो आ जाती हूँ."


"जा,अच्छा यहाँ से.जा पहाड़ काट जा कर."

घोड़े पर सवार हो एक युवक आ पहुँचा.

गजनी और हिरात के बीच गोर पहाड़ी क्षेत्र .जहाँ के सभी निवासी बौद्ध मतावलम्वी थे .जिसे जीतकर महमूद गजनवी ने जहाँ इस्लाम मजहब को बढ़ावा दिया .सन 1030ई0को महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद गजनवी राज्य कमजोर पड़ने लगा . अब गोर क्षेत्र मेँ तुर्कों का शंसबनी वंश सक्रिय हो चुका था,जो पूर्वी ईरान से आकर गोर क्षेत्र मेँ बस गये थे .जिनमेँ से ही एक योद्धा शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद
ने सन 1173-74ई0मेँ गजनी पर विजय पायी .उस वक्त गोर प्रदेश का शासक था गियासुद्दीन गोर जो शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद का भाई था.शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद ही आगे चल कर मुहम्मद गोरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ .उन दिनों दिल्ली और अजमेर का शासक चौहान वंशी पृथ्वीराज तृतीय उर्फ रायपिथौरा था . कन्नौज के गहड़वार शासक जयचंद्र की पुत्री संयोगिता से बलपूर्वक विवाह करके
उसने उससे घोर शत्रुता मोल ले ली थी .


इल्तु मन ही मन सोंच रहा था -


"भविष्य मुसलमानों का है.हिन्दू राज्य तो आपस मेँ ही लड़ कर अपनी शक्ति को कमजोर किए जा रहे हैँ.उनकी उन्नति के सभी स्रोत सूख चुके हैँ."


बालिका इल्तु से कुछ कह रही थी लेकिन इल्तु .....?!


"हिन्दू तो आपसी द्वेष भावना मेँ अपनी शक्तियां बर्बाद किये जा रहे हैँ.मैं इल्तुतमिश हिन्दूओं की कमजोरियों की नींव पर अपनी या अपनी अगली पीढ़ी के लिए सल्तनत खड़ी कर सकता हूँ और......"

"कहां खो जाते हो,इल्तु?देखो कौन आया है?"


इल्तुतमिश सोंच रहा था "बहुत सोंच चुका हूँ अब चलना है.,रुकना नहीँ.हिन्दुस्तान सो रहा है,मैं क्या इसका फायदा नहीं उठा सकता?"

"इल्तु!"

"चलते हैं." -फिर इल्तु उठ बैठा.


उठते उठते मन ही मन "सुना है गोर मेँ आपसी झगड़ों के कारण कुछ हिन्दुस्तानी भाग कर आये हैँ,जिन्होने इस्लाम भी कबूल कर लिया है.हिन्दुस्तान की कमजोरियों को जानने के लिए क्या उनका फायदा नहीं उठाया जा सकता ? "


सन 2002ई0 की 01 सितम्बर पाक अधिकृत कश्मीर मेँ एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर मेँ एक आतंकवादी सोंच रहा था -"इल्तु के कथन आज 800वर्ष के बाद भी सटीक हैँ."

Friday 28 October, 2011

31 अक्टूबर : पटेल जयंती

व्रिटिश शासन से मुक्ति को अनेक का योगदान चिरस्मरणीय है.जिनमें एक थे सरदार वल्लभ भाई पटेल.सन 1946 तक जिन नेताओं का आचरण प्रसंशनीय था वहीं उनमेँ से कुछ का चरित्र संदिग्ध हो गया जो कि लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन का चक्कर लगाने लगे थे.जिनमेँ पटेल व नेहरु भी शामिल हैं.प्रधानमंत्री बनने की लालसा मेँ ये दोनों नेता देश के विभाजन का समर्थन कर बैठे व गांधी को अलग थलग कर दिया जिनके
सहारे ये यहां तक पहुंचे थे.


सरस्वती कुमार,दादुपुर वाराणसी के अनुसार लार्ड क्लायू बंगाल का शासक बनना चाहता था जिसके लिये वहां के नवाब सिराजुदौला के सेनापति मीरजाफर को नवाब बनने का लालच दिया और प्लासी के मैदान मेँ मीरजाफर के सहयोग से अंग्रेज बंगाल का शासक बन गये उसी प्रकार लार्ड माउण्टबेटन ने नेहरु और पटेल से अलग अलग मिलकर दोनों को प्रधानमंत्री बनाने का लालच देकर गांधी जी से लड़ा दिया.इन दोनों ने
विभाजन को अपने लिए वरदान समझ कर सहमति दे दी.गांधी जी विभाजन राष्ट्र के लिए आत्मघाती समझते थे इसलिए राष्ट्रहित मेँ जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रक्खा लेकिन खुदगुर्ज नेहरु और पटेल गांधी के विरुद्ध अटल मुद्रा मेँ खड़े हो गये.

मौ.अबुल कलाम आजाद अपनी पुस्तक 'इंडिया विन्स फ्रीडम'मेँ लिखते हैं कि मेरे सहायक तथा उम्मीद केवल गांधी जी रह गये थे.इस समय गांधी जी पटना मेँ रहे थे.वह 31 मार्च 1947 को दिल्ली मेँ आये.मैँ तुरन्त मिलने गया.उनका पहला वाक्य था कि भारत विभाजन एक धमकी बन गया है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा जवाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैँ.
पृष्ठ 228पर आजाद लिखते हैं कि नेहरु और सरदार पटेल ने विभाजन स्वीकार करके गांधी जी को मर्माहत कर दिया.विभाजन की ट्रैजिडी से देश को बचाने के लिए गांधी जी ने जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री पद देने का प्रस्ताव रखा तब दोनों गांधी से बगावत करने लगे और प्रचार करना शुरु कर दिया कि गांधी मुसलमानों के पक्षधर हो गये हैँ.इन दोनों ने माउण्टबेटन को विश्वास दिलाया था कि विभाजन के बाद
किसी भी प्रकार का दंगा फसाद नहीँ होगा लेकिन जब लाहौर मेँ हिन्दू और सिक्ख और पंजाब मेँ मुसलमान गाजर मूली की भांति काटे जाने लगे तब गांधी ने हिंसा रोकने के लिये आमरण अनशनकर दिया.अनशन से पंजाब दिल्ली और लाहौर मेँ भी शान्ति की बहाली हो गयी तब 20जनवरी 1948को हिन्दू आतंकवादियों ने गांधी को बम का निशाना बनाया.गांधी जी बाल बाल बच गये.लेकिन उन्हीं लोगों ने 30जनवरी1948को सायं पाच बज कर
सत्रह मिनट पर गांधी की हत्या कर दी.मौ.अबुल कलाम आजाद ने इसके लिए नेहरु व पटेल को ही दोषी माना.


लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर अपनी पुस्तक 'आधी रात को आजादी'मेँ लिखते हैं कि नेहरु और पटेल तथा भारत की प्रतिक्रियावादी शक्तियां गांधी के विरूध अंदर ही अंदर कुछ और सोचने लगे थे....20जनवरी1948को जब गांधी पर बम फेंक मारने की कोशिस की गयी तो पकड़े गये व्यक्ति ने सही सही बयान मेँ सब कुछ बता दिया था.नाथू राम एवं गोपाल गोडसे,करकरे,बगड़े,परचुरे आप्टे,आदि का नाम व पता बयान कर दिया
था.54पृष्ठों के बयान पर ज्यों ही कार्यवाही जोर पकड़ने वाली थी कि पूरी फाईल आई.जी.द्वारा मंगा ली गयी.आई जी डी जे संजीव उस समय दिल्ली पुलिसचीफ थे उन्होने फोन करके मेहरा को आश्चर्य मेँ डाल दिया था कि मदन लाल के मामले की चिन्ता आप न करें यह मामला मैं देख लूंगा.लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर के ही अनुसार असल मेँ अपराधियों के तार शासन प्रशासन से जुड़ चुके थे.(पृष्ठ 309)

कल जब एक स्थान से पटेल जयन्ती कार्यक्रम मेँ शामिल होने के लिए जब मेरे पास निमंत्रण पत्र आया तो मैं उपरोक्त विचारों पर चिन्तन करने लगा.मेरा मन इस मामले मेँ पटेल व नेहरु के प्रति आक्रोशित रहता है.जब मैं मीरजाफर जैसो गद्दारों को सम्मान नहीं दे सकता तो पटेल व नेहरु को क्यों?और उन जैसे व काले अंग्रेजो को क्योँ?लार्ड माउण्टबेटन व लेडी बेटन व अब सोनिया टीम का चक्कर काटने वाले
उन नेताओं को सम्मान दिया जाए जो देश की असलियत या हिन्दूओं या सच्चे सेक्यूलरवादियों का दर्द नहीं समझना चाहते व देश की सम्पत्ति विदेश ले जाने वालों का समर्थन करते है.मेरी इच्छा नहीं होती कि मै पटेल व नेहरु के सम्मान मेँ आयोजित होने वाले किसी कार्यक्रम मेँ शामिल होऊँ...?


मैं जिस कालेज में टीचिँग करता हूँ उस कालेज में सिर्फ गांधी व नेहरु की ही जयन्ती बनायी जाती है.अनेक को यह आपत्ति है कि अन्य महापुरुषों की जयंती क्यों नहीँ ?


पटेल व सुभाष सम्बंध!


किसी विद्वान के अनुसार सरदार पटेल नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इसलिए चिढ़ते थे क्योंकि उनके भाई विठ्ठलभाई ने अपनी सम्पति सुभाष को दे दी थी.

Saturday 22 October, 2011

वोट देने से पहले के सवाल !

मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के अध्यक्ष श्यामाचरण वर्मा ने मतदाता जाग्रति के दौरान ददियूरी (बण्डा)शाहजहांपुर उप्र मेँ स्थित सुनासिर तीर्थ पर एक विचार गोष्ठी मेँ बताया कि प्रजातंत्र मेँ हमारा वोट एक हथियार से कम नहीं है.उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा के अनुसार युवा अपनी शक्ति को पहचान कर मतदाता जागरुकता अभियान मेँ अपनी भागीदारी सुनिश्चित
करेँ.जनता जागे तो देश जागे.किसी ने कहा है कि अंग्रेजों आदि विदेशी आक्रमणकारियों से शायद इस देश का इतना नुकसान नहीं हुआ जितना कि हमारे अपनों से या नेताओं से.अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड करने वाले विदेशी नहीं थे..?विदेशियों ने यहां आना शुरु किया इससे पूर्व ही अखण्ड भारत टूट टूट कर विखर चुका था.आज भी काला धन व सामाजिक राजनैतिक भ्रष्टाचार की जड़ मेँ कौन बैठा है?


हम सरकारी गैरसरकारी व्यवस्थाओं की आलोचना तो करते हैं लेकिन प्रजातंत्र मेँ हम अर्थात प्रजा ही जिम्मेदार है.कोषाध्यक्ष सुजाता देवी शास्त्री ने बताया कि हम सामूहिक जीवन हेतु अपने कर्तव्यों को भूल चुके हैँ.जाति,मजहब.आदि से प्रभावित होकर हम जिन नेताओं को चुनते आये हैं वही हमारे गांव,नगर,जनपद,प्रदेश व देश के कुप्रबंधन व भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार रहे हैं.


समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने बताया कि दरअसल हम न प्रकृति के है न ब्रह्म के हैँ वरन निजभौतिक स्वार्थ के लिए जीवन जीने के बीच अपने नेताओं को चुनते आये हैं.यदि आप मेँ थोड़ा सभी ईमान,धर्म,आध्यात्मिकता,इंसानित,आदि बची है तो वोट देने से पहले नेताओं से पूछो-


(1)अन्ना जिस गांव मेँ पैदा होते है उस गांव शराब,बीड़ी,सिगरेट,तम्बाकू,आदि बिकना बंद हो जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ......?!

(2)अन्ना जिस गांव में पैदा होते हैं उस गांव मेँ गरीबी व भुखमरी खत्म हो जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ....?!

(3)अन्ना के गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर के बच्चे....??


(4)अन्ना के गांव निवासी अपने गांव मेँ अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ.....?!

(5)अन्ना के गांव मेँ पर्यावरण प्रदूषण,गंदगी,खाद्यमिलावट,आदि की समस्याएं नजर नहीं आतीं लेकिन ऐ नेताओं ....?!


(6)अन्ना के गांव मेँ क्षेत्र की समस्याओं के हल के लिए सभी जन व नेता एक साथ नजर आते हैं लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव या शहर मेँ.......?!

(7)अन्ना के गांव मेँ शराबी शराब पीना छोंड़ देते है या छुड़वादी जाती है लेकिन ऐ नेताओं तुम्हारे गांव व शहर मेँ......?!


(8)अन्ना के गांव मेँ अनाज, दूध,सब्जी,आदि सम्बंधी समस्याओं से पब्लिक को जूझना नहीं पड़ता लेकिन ऐ नेताओं ......?!


इस अवसर पर मुख्य अतिथि रोशन लाल गंगवार ने वताया कि इन नेताओं की असलियत समझ कर अपने वोट का इस्तेमाल जाति,मजहब,निजस्वाथं,आदि की भावना से ऊपर उठ कर करें.प्रजातंत्र मेँ प्रजा मालिक होती है ये नेता या जन प्रतिनिधि हमारे मालिक या राजा नहीं है वरन जनसेवक है.सत्ता परिवर्तन से नहीं व्यवस्था परिवर्तन से देश का विकास सम्भव है.अहिंसा व सत्य पर चल हिन्दू मुस्लिम एकता के बल पर देश
अखण्ड भारत,दक्षेस व विश्व सरकार का भी सपना देखा जा सकता है व उसके लिए योजना बनायी जा सकती है.

सचिव,
मानवता हिताय सेवा समिति , उ प्र