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Friday, 29 July 2011

देशभक्ति की परिभाषा पर पुनर्विचार हो !

देश का दुश्मन दुश्मन है,चाहेँ वह विदेशी हो या स्वदेशी . देश के दुश्मनों के साथ मनमानी क्योँ ?विदेशी दुश्मन को गोली लेकिन स्वदेशी दुश्मन को गोली पर कभी वह हमारा रिश्तेदार कभी अपनी बिरादरी का कभी अपने मजहब का नजर आता है.और मिट जाता है अपना धर्म व सत.ईमान पर पक्का होने का मतलब तब क्या रह जाता है?सम्पूर्ण मनुष्य जाति व देश के लिए न सोंच एक विशेष जाति पंथ के लिए सोंचना व जीना
मनुष्य का ईमान नहीं हो सकता ,हाँ ! किसी मजहबी का ईमान हो सकता. अफगान मेँ तालिबान से लड़ रहे सैनिकोँ को अमेरिका कुरुशान(गीता)का पाठ सिखा सकता है लेकिन हम नहीँ सीख सकते.देश के दुश्मनों के साथ दोहरा मापदण्ड क्योँ?जाति सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर 'धर्म का पथ' अर्थात 'जेहाद की राह' को समझो . काफिर वह है जो सत्य से मुकरे.जो व्यक्ति काफिर के काफिर आदतों का समर्थन करता है,मेरी दृष्टि मेँ वह
भी काफिर है.सीख लेना चाहेँ तो हम फिल्मों से सीख ले सकते हैँ,जिसमेँ भ्रष्ट नेता मंत्री पुलिस अफसर आदि के खिलाफ मरते दम तक नायक अभियान छेंड़े रखता है.एक फिल्म मेँ डायलाग है -'कानून का कोई अपना भाई नहीँ होता.' गीता मेँ कृष्ण क्या कहते हैँ?भूल गये क्या?धर्म के रास्ते पर न कोई अपना न कोई पराया होता है.हम क्या देशभक्त नहीँ हैँ?यदि नहीँ तो क्या हमेँ सरकारी सुविधाएं मिलना चाहिए?देश
के दुश्मनों के खिलाफ अभियान क्यों नहीँ?हम क्योँ जाति सम्प्रदाय मेँ बंट कर रह जाते हैँ?भ्रष्टाचार व काला धन पर आवाज उठाने वालों पर लाठियां गोलियां व कानूनी अड़चने लगाने वालों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीँ?

गौरवशाली भारत का अस्तित्व क्यों मिटा?सिर्फ हमारे व पूर्वजों के नजरिया के कारण.जो अंग्रेजों की हाँहजूरी करते रहे अंग्रेज चले गये तो वही देश संभालने लगे.बच्चों को टीवी सिनेमा मोबाइल आदि रुपी झुनझुना पकड़ा दिये गये .

देशभक्ति की परिभाषा पर पुनर्विचार होना चाहिए.विभिन्न पदों पर नियुक्ति व प्रत्याशी चयन के लिए नारको परीक्षण आदि व विधि साक्षरता अनिवार्य किया जाना चाहिए .अफसोस कि लोग संविधान की एबीसी तक नहीं जानते,उन्हेँ संविधान की शपथ दिलवायी जाती है.

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