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Friday 2 September, 2011

नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

हरिकृष्ण कायस्थ केशव कन्नौजिया के साथ एक पेँड़ पर बैठा मचान पर बातचीत कर रहा.ये जहां थे वह जंगली इलाका था.कुछ शस्त्रधारी युवक युवतियां इधर उधर गस्त कर रहे थे.

एक झोपड़ी के अन्दर एक किशोरी कुछ युवतियों के साथ बैठी थी.जिससे एक युवती बोली-"....तो तुम ही फरजाना हो.वर्मा से लेकर बांग्ला देश तक और बांग्ला देश से यहां तक तुम्हारे साथ जो जो हुआ उससे ज्ञात हो गया होगा कि ये समाज कैसा है?हम लोगों की मानों तो हम नक्सलियों के साथ आ जाओ."

"समाज चाहे कितना भी बुरा हो जाए लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समाज मेँ अच्छे लोग रह ही नहीं गये."

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: go@blooger.com
Sent: Thu, 01 Sep 2011 19:56 PDT
Subject: नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी मीडिया के सामने बोल रहे थे कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.अहिंसा से बढ़कर कोई अन्य शस्त्र नहीं है.


जंगल के बीच कुछ झोपड़ियां पड़ी हुई थीँ.जिनमेँ से एक झोपड़ी मेँ कुछ सशस्त्रधारी युवक युवतियां लेपटाप पर समाचार देख रहे थे.जहां केशव कन्नौजिया भी उपस्थित था.


इधर मैं मीरानपुर कटरा मेँ कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा भावी अहिंसक नक्सली आन्दोलन की संभावनाओं पर बातचीत कर रहा था.इन दिनों अन्ना आन्दोलन महानगरों व कस्बों से निकल कर गांवों मेँ भी पहुँच चुका था.मैं लगभग पन्द्रह वर्ष से अन्ना हजारे नाम से परिचित ही नहीं वरन प्रभावित था.

फरबरी सन 2011ई से टीम अन्ना की नई दिल्ली मेँ सक्रियता ने हमें उत्साहित कर दिया.मेरे अन्दर बैठी भावी क्रान्ति की रणनीति,जिन पर मैने स्वलिखित उपन्यासों मेँ भी जिक्र किया है;टीम अन्ना के माध्यम से पूर्ण होने की उम्मीद करने लगा था.मैं भी एक अच्छे हेतु के लिए ही दुनिया मेँ आया था.बचपन से ही मैं आम आदमी की भीड़ से अलग थलग हो महापुरुषों, बुद्दिजीवियोँ,आदि की पंक्ति में खड़े होनेको
लालायित होने लगा था लेकिन अपने को इसके लिए तैयार न कर सका.मेरी प्राईमरी एजुकेशन एक सन्त(बीसलपुर मेँ बड़े स्थल के सामने सड़क पर कुमार फर्नीचर के सामने गली मेँ मन्दिर के समीप) के द्वारा
व श्री हरिपाल सिंह,ठाकुर पूरनलाल गंगवार व टीकाराम गंगवार के द्वारा प्रारम्भ हुई.मेरे साथ सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन बस अपनी अन्तरात्मा की आवाज के आधार पर चलने के लिए संकल्प का अभाव था.अब अन्ना आन्दोलन हमेँ उद्वेलित कर रहा था.आखिर व्यवस्थाओं व हालातों से असन्तुष्ट व्यक्ति आन्दोलनों से प्रभावित क्यों न हो?मेरे अन्तर्जगत में खामोश पड़े आन्दोलन के एक हिस्से का अवतार था यह
अन्ना आन्दोलन,असन्तोष की आंधी.


मैं कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा इण्टरनेट पर प्रकाशित स्वरचित नक्सली कहानी 'न शान्ति न क्रान्ति' को पढ़वा रहा था.

केशव कन्नौजिया असन्तोष को झेलते झेलते नक्सली हो चुका था.वह झोपड़ी के अन्दर बैठा जब मोदी के इस कथन को सुना कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.

"केशव....."-एक युवती बोली.


केशव कन्नौजिया के आंखे नम हो चुकी थीँ.वह उठ कर झोपड़ी से बाहर आ गया.


"बीजेपी नक्सलियों के विरोध मेँ रहेगी ही.मुसलमानों को आतंकवाद का विरोध करना चाहिए.मुसलमान वोट जब ज्यादा होगा तो वे चाहेँ जो करवा लेँ .मुस्लिम जेहादी पाक,कश्मीर, हिमाचल,यूपी,बिहार,बांग्लादेश,आदि को मिला कर मुगलस्तान का सपना देखते है.यदि अपनी इस ऊर्जा को अखण्ड भारत व सार्क संघ की संभावनाओं की ओर मोड़ दिया जाए तो ...."

"अरमान!तुम तो 'सर जी' की भाषा बोलने लगे हो.देखो केशव आ रहा है."


तब दोनों युवक खामोश हो गये.

* * *

आज 31 अगस्त सन 2011ई0!


सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेताया कि दस साल रुक जाईए लोग आपको सबक सिखायेंगे.तीन दिन पहले आप इसके गवाह रहे हैँ.आगे आन्दोलन व विरोध प्रदर्शन इससे भी बड़ा होगा.


गोधरा कांड के बाद गुजरात कांड में दोनों वर्ग के कट्टरपंथियों को मौत के घाट से उतारने वाला व असफल 'सेक्यूलर फोर्स'आन्दोलन को चलाने वालों की टीम मेँ शामिल विदुर राज गोडसे के बाद अब सफेद होने लगे थे.


"शायद हम लोग गलत रास्ते पर ही थे?सबसे बड़ा शस्त्र है- अहिंसा."

अरमान की उम्र लगभग सोलह वर्ष की तो रही ही होगी .गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में हुए गुजरात कांड
के दौरान शिवानी के साथ रांची में आ जाना पड़ा . जहां वह अहिंसक नक्सली आन्दोलन के हितैषी आलोक वम्मा के सहयोग से रह कर पढ़ाई कर रहा था . हालांकि सन 2008 ई0 से लापता थे.एक न्यूज चैनल का तो कहना था कि नक्सलियों ने उसकी हत्या करवा दी थी.

रांची मेँ एक मीटिंग मेँ विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य,चरित्र वम्मा,आदि सहित कुछ नक्सली नेता उपस्थित थे.ये नक्सली नेता नक्सली आन्दोलन को अहिंसक बनाने से सहमत नहीं थे.


विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य, चरित्र वम्मा यह कहते हुए मीटिंग कक्ष से बाहर हो गये कि आप लोग अपने आन्दोलन को अहिंसक नहीं बना सकते तो कोई बात न लेकिन वक्त तुमको खामोश कर देगा.


एक नक्सली बोला-"हम आपके विचारों का सम्मान करते हैं लेकिन......"

"लेकिन - वेकिन क्या....अपने मन का अध्ययन करो,आप सब कुण्ठित होचुके हो.आप लोगों का मन आक्रोश से भर...."चरित्र वम्मा बोला.

एक नक्सली बोला-"सारी!".


दूसरा नक्सली बोला-"आप लोग नक्सली आन्दोलन के समर्थक हैं,अहिंसक ही सही.नहीं तो.....".


"आप लोग ईमानदारी से तर्क करें तो अन्ना के अहिंसक आन्दोलन के समर्थन में अवश्य हिंसा का त्याग कर देंगे."
-बिन्दुराज कौटिल्य बोला.

"आप लोगों ने क्या हिंसा नहीं की?"-एक नक्सली बोला.

"अब की बात करो."

इधर जंगल मेँ एक पेँड़ के मचान पर केशव कन्नौजिया हरिकृष्ण कायस्थ के साथ बैठा बातचीत कर रहा था.

"मुरी में कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ता देव पाल यादव व उसके तेरह वर्षीय पुत्र मर्म यादव के खिलाफ जनता की कार्यवाही तेज होती जा रही है."


जाहद के साथ बांग्ला देश से आयी फरजाना विभिन्न परिस्थितियों से गुजरने के बाद किशोरा वस्था मेँ वह मुरी शहर आ पहुंची.जहाँ वह मर्म यादव के बाबा राजेन्द्र यादव के सम्पर्क मेँ आ गयी थी.राजेन्द्र यादव उसे अपने मकान पर ले आये जहां वह घरेलू कामों को निपटाने लगी.
उसका पढाई मेँ ललक यादव सहयोग करने लगा जो कि मर्म यादव का भाई था.


मर्म यादव अपनी उम्र के लड़कों से दूने तन का था .जो लड़कियों के नियति ठीक नहीं रखता था.फरजाना प्रति भी नेक दिल न था.

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