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Sunday 28 November, 2010

GANDHI SHAHEED DIWAS:सभ्यता की पहचान महात्मा गांधी

                                   हमने लोगोँ को कहते सुना है कि मजबूरी का  नाम महात्मा गांधी लेकिन महात्मा गांधी का
             दर्शन,धर्म व अध्यात्म की ओर जाने का महान पथ है.वे आधुनिक दुनिया के श्रेष्ठ जेहादी हैँ.वे     मजबूरी कैसे हो सकते
             हैँ ?महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि अन्यायको सहना कायरता है.क्या हम कायर नहीँ ?आज के बातावरण से हम सन्तुष्ट
             भी नहीँ हैँ और खामोश भी हैँ.ऐसे मेँ हम पशुओँ कीजिन्दगी से भी ज्यादा गिरे हैँ.


                                   महात्मा गांधी वास्तव मेँ सभ्यता कीपहचान हैँ.हम अभी उस स्तर पर नहीँ हैँ किउन्हेँ या अन्यमहापुरुष या            धर्म      को समझ सकेँ?अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए जवरदस्ती,दबंगता,हिँसा,दूसरे की इच्छाओँ कोकुचलना,आदि पर उतर आना
            हमारी सभ्यता नहीँ है.उन धर्म ग्रन्थोँ व महापुरूषोँ को मैँ पूर्ण धार्मिक नहीँ मानता जो हिँसा के लि प्रेरणा   देतेहैँ.                                




                                  हम  शरीरोँ   का  सम्मान करेँ  कोई बात नहीँ लेकिन उनमेँ विराजमान आत्मा व उसके उत्साह का तो सम्मान करेँ.हम किसी के उत्साह को मारने के दोषी न बनेँ.





                               उदारता,मधुरता,सद्भावना,त्याग,आदि का दबाव चित्त पर होना ही व्यक्ति की महानता है.चित्त परआक्रोश,बदले का भाव,
 खिन्नता,हिँसा,जबरदस्ती,दबंगता,आदिव्यक्ति के विकार हैँजो कि व्यक्ति केसभ्यता की पहचान नहीँहो सकती.भारतीयमहाद्वीप के व्यकतियोँ
 के आचरणोँ को देख लगताहै कि अभी असभ्यता बाकी है.मीडिया के माध्यम सेअनेक घटनाएँ नजर मेँआती है कि ईमानदार स्पष्ट   कर्मचारियोँ,सूचनाधिकारियोँ,आदि पर कैसे व्यक्ति हावीहो जाता है.यहाँ तक कि हिँसा पर भी उतर आता
 है. यहाँ की अपेक्षा  पश्चिम के देश कानूनी व्यवस्था के अनुसारज्यादा चलते हैं.यहाँके लोग तो यातायात के नियमोँ तक का पालन नहीँ
 कर पाते.






                              बात को बात से न मानने वाले कैसे सभ्य हो सकते ?शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहनेवालोँ के सामनेशान्तिपूर्ण ढंग सेजबाब न देने वाले क्याअसभ्य नहीँ?जिस इन्सानके लिए अनुशासन हितजबरदस्ती या दबंगता कासहारा लेना पड़े तो
 समझो वह अभी पशुता वआदिम संस्कृति मेँहै,संस्कारित नहीँ.






     

                             " भय बिन होय न प्रीति"




                               भय के कारण अनुशासन या संस्कार एक प्रकारसे ढोंग व पाखण्ड है.भय व प्रीति अलग अलगभावना है.जरा,अपने
 अन्दर भय व प्रीति से  साक्षात्कारकीजिए.मेरा अनुभव तोयही कहता है कि प्रीति मेँ भय और खत्म हो जाता है






                ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
              
                A.B.V.I.COLLEGE,
             
                MEERANPUR KATRA,


                SHAHAJAHANPUR,U.P.

Saturday 27 November, 2010

Michelle Obama:Giving Thanks and Giving Back

--- रवि, 28/11/10 को, Akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com> ने लिखा:

> द्वारा: Akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com>
> विषय: Giving Thanks and Giving Back
> To: akvashokbindu@yahoo.in
> दिनांक: रविवार, 28 नवंबर, 2010, 6:49 AM
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> Good afternoon,

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> Thanksgiving is a great opportunity to come together with
> family and friends to give thanks for all the blessings in
> our lives.  It's also an important time to be thankful
> for our men and women in uniform and their families who risk
> everything so that we can be safe and free.  And we must
> also remember those in our community who are in need of our
> help and support -- especially during these tough economic
> times.  

>
>  

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> In our family, we have a tradition:  Every year on the day
> before Thanksgiving, we take some time as a family to help
> out people in our community who are in need.  Today,
> we're handing out turkeys, stuffing, pumpkin pies and
> all the Thanksgiving fixings with our friends and family at
> Martha's Table, a local non-profit organization.

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>  

>
> This Thanksgiving, I encourage all Americans to find a way
> to give back -- and maybe even start a family tradition of
> your own.  Whether you volunteer at a local soup kitchen,
> visit the elderly at a nursing home or reach out to a
> neighbor or friend who comes from a military family, there
> are plenty of ways to get involved in your community. 

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>
> If you're not sure how to get started, visit Serve.gov
> [http://www.serve.gov/] . 

>
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>
> [http://www.serve.gov/]

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> President Obama and I wish you and your family a very happy
> and safe Thanksgiving.

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> Sincerely,

>
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>
> Michelle Obama

>
> First Lady of the United States

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> [http://www.whitehouse.gov?utm_source=email87&utm_medium=footer&utm_campaign=service]
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> This email was sent to akvashokbindu@gmail.com.

>
> Unsubscribe akvashokbindu@gmail.com
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> The White House • 1600 Pennsylvania Ave NW •
> Washington, DC 20500 • 202-456-1111

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Sunday 14 November, 2010

14 नवम्बर : बाल दिवस


" घर से मंदिर है बहुत दूर, चलो यूं कर लेँ

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए"
-मशहूर शायर निदा फाजली के ये शब्द अपने अन्दर जीवन की फिलासफी छिपाए हुए हैँ.वास्तव मेँ भगवान का रुप है बालक,ऐसा मैने एक साल से ढाई साल के बीच महसूस किया है.यह अवस्था एक स्वतन्त्र जीवन है.मनुष्य का अपना क्या है?कुछ भी तो नहीँ,वह परतन्त्र है अपनी सोँच के ढंग के कारण.मर्यादाओँ,रीति रिवाजोँ,भौतिक एन्द्रिक लालसाओँ ,कूपमण्डूकता,भ्रम,आदि मेँ जीवन की स्वतन्त्रता खो गयी है.वर्तमान
मेँ जीना ही जीवन है,बिना किसी दबाव के सहज भाव से वर्तमान मेँ जीना ही स्वतन्त्रता है.अरविन्द घोष ने कहा है कि 'आत्मा ही स्वतन्त्रता है .'शिशु अपनी आत्मा के करीब होता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे सांसारिकता मेँ प्रवेश करता जाता और अपनी आत्मा से दूर होता जाता है.इसलिए मैँ कहता रहा हूँ कि शिक्षा के जगत मेँ भारी क्रान्ति की आवश्यकता है.भौतिकवादियोँ व धन लोलुपुओँ का
शिक्षा जगत मेँ प्रवेश घातक है.

जय प्रकाश भारती कहते हैँ - " प्रकृति अपना जीर्ण भाव छोँड़ कर बालक के रुप मेँ पुन: पुन:नवीन होती है. काल के जरा जीर्ण और जड़ बाड़े से मुक्ति पाने का रहस्यमय प्रयोग बालक ही है.उसके माध्यम से नित नूतन अमृत झरना झर रहा है.बालक के भीतर अनन्त सम्भावनाओँ के बीज हैँ.विश्व मेँ ऐसा कुछ भी नहीँ है,जो बीज रुप मेँ बालक के भीतर न हो.समाज मेँ बदलाव की शुरुआत बालक से ही हो सकती है.मानव विकास और
प्रगति की गीता पहला अध्याय शिशु और बालक के बिना नहीँ लिखा जा सकता."
दुनिया का श्रेष्ठतम कार्य व कर्त्तव्य अध्यापक का है.अध्यापक समाज व बालक के बीच का आदर्श द्वार है.अध्यापक समाज का मस्तिष्क है.जैसा अध्यापक होगा वैसा समाज का भविष्य होगा.ओशो कहते हैँ -"शिक्षा मेँ क्रान्ति आवश्यक है." लेकिन कैसे?कुछ वर्षोँ से शिक्षा जगत व बालकोँ के साथ जो होना शुरु हुआ है,वह सब उचित ही नहीँ है.जिसके लिए हर हालत मेँ दोषी अध्यापक ही है.वह ही ज्ञान के प्रति
ईमानदार नहीँ रह गया है.उसकी भी सोँच आम आदमी से भी गिरी हुई हो सकती है.
बाल प्रेमियोँ व शिक्षकोँ को ओशो की 'शिक्षा मेँ प्रयोग' ,'शिक्षा मेँ क्रांति ',आदि व पी. के. आर्य की पुस्तक 'बच्चोँ की प्रतिभा कैसे निखारे' पुस्तकेँ व बाल मनोविज्ञान सम्बन्धी पुस्तकोँ का अध्ययन करना चाहिए तथा कोरे निज स्वार्थ मेँ ही न जी कर परिवार व समाज के प्रति समर्पण के प्रदर्शन के साथ जीना चाहिए.आज का अध्यापक अब भी यह मानने को तैयार है -"भय बिन होय न प्रीति " . मेरा
मानसिक अनुभव यह कहता है कि भय व प्रीति का अपना अपना पृथक पृथक अस्तित्व है.जहाँ भय है वहाँ प्रीति नहीँ व जहाँ प्रीति है वहाँ भय नहीँ.अनुशासन के नाम पर बालकोँ मानसिक व शारीरिक दण्ड व कष्ट देना अमानवीय है.वैदिक दर्शन मेँ हर समस्या निदान है ,इसका भी.प्रवेश प्रक्रिया अति सशक्त होना आवश्यक है .शिक्षण संस्थाओँ मेँ छात्रोँ की भीड़ व आर्थिक आय की लालसा ने शिँक्षा का स्तर गिराया है.
आज डायबिटिज दिवस भी है.मैँ कहना चाहूंगा कि बच्चे भी बहुतायत मेँ डायबिटीज का शिकार हैँ और 70 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे अस्वस्थ हैँ.क्या माता पिता बनने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए?अपने शरीर को स्वस्थ रखने व सन्तुलित आहार देने मेँ असमर्थ हैँ ,ऐसे मेँ ऊपर से .....गर्भाधान संस्कार का ही स्वरुप बदल गया है.भैतिक भोगवाद का प्रभाव माता पिता के माध्यम से भी बच्चोँ पर पड़ रहा है. आज के
ही दिन सन 1889ई0मेँ जवाहर लाल नेहरु का जन्म हुआ था. जिन्होने अपना जन्मदिन बाल दिवस के रूप मेँ मनाना निश्चित किया.

नेहरू का मूल्यांकन करते हुए माइकल ब्रेचर ने लिखा है "नेहरु एक मनुष्य के रुप मेँ और राजनीतिज्ञ के रुप मेँ महापुरूष है.यदि महानता घटनाओँ के दिशा निर्देशन से मापी जाती है,अथवा लहरोँ के सिरोँ से ऊपर उठने मेँ है जनता के मार्ग दर्शन मेँ है और प्रगति के लिए उत्प्रेरक बनने मेँ है तो निश्चित ही नेहरु उस महानता के अधिकारी हैँ"
लेकिन....
कश्मीर मुद्दे पर अब भी नेहरु की आलोचना सुनने को मिल जाती है.

<http://www.slydoe163.blogspot.com/>

Saturday 13 November, 2010

माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ.प्र. : सेवा या राजनीति....?!

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 13 Nov 2010 19:14 IST
Subject: माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ.प्र. : सेवा या राजनीति....?!

दिन बुधवार,नवम्बर2010ई0 को स्नातक निर्वाचन खण्ड का चुनाव था.मैँ अपना वोट माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र के अधिकृत प्रत्याशी संजय कुमार मिश्र को देकर 11.00AM को तिलहर पहुँच गया.'मर्म युग'मासिक पत्रिका के सम्पादक ओम प्रकाश गुप्ता के साथ तिलहर के अन्दर अनेक व्यक्तियोँ से मिलने पहुँचा.इस क्षेत्र मेँ कुछ वित्तविहीन शिक्षकोँ के लिए आज का दिन क्रान्ति दिवस से कम न था.एक
ओर योग गुरु स्वामी रामदेव से मुलाकात व दूसरी ओर स्नातक निर्वाचन खण्ड का चुनाव ! अभी तक हम सभी इस चुनाव मेँ भाजपा प्रत्याशी नेपाल सिँह को वोट देते आये थे. आज यह पहला अवसर था जब हम अपने ग्रुप अर्थात वित्तविहीन शिँक्षकोँ मेँ से एक शिक्षक को अपना वोट दे रहे थे.अभी तक हम,माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षकोँ के हित की बात करने वाला कौन था ? अब हमारे सामने अपनी बात कहने के लिए एक मंच है-"
माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र . "


लेकिन......

पीलीभीत ,बरेली,बण्डा,मीरानपुर कटरा , तिलहर , आदि क्षेत्र मेँ अनेक वित्तविहीन शिक्षकोँ व सम्बन्धित सम्बन्धियोँ से बातचीत कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अभी तो माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र के पदाधिकारियोँ प्रति ही लोग सन्तुष्ट नहीँ हैँ. " दाऊ के घर रहना है तो दाऊ की सहना " - वाली कहावत है.बेरोजगारी की मार! इन वित्तविहीन कालेजोँ मेँ हम मजबूरन पढ़ा रहे हैँ.अभी
हमको तो तीन चार साल ही पढ़ाते हुए हैँ,लोगोँ ने अपनी जिन्दगी बिता दी,उन्हेँ तक विश्वास नहीँ कि कब क्या हो जाए ? विद्यालय पर हावी कुछ व्यक्ति कुछ भी कर सकते हैँ.जिसमेँ यह'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा क्या कर सकती है ? ' कुछ दिन पूर्व पंचायत के चुनाव थे.इन्हीँ कुछ व्यक्तियोँ मेँ से कुछ चुनाव मेँ उम्मीदवार थे,उनकी क्या नीति है अपने स्कूलोँ के प्रति ? विद्यालय को एड की
प्रक्रिया के दौरान किनको किनको चयनित किया जाता है?जिसकी प्रतिक्रिया पंचायत चुनाव मेँ तक देखने को मिल रही थी.अब फिर इस चुनाव मेँ....!?
एक का कहना था कि अरे भाई , हम तो दूध मेँ मक्खी के समान हैँ.हम स्वयं चाहते हैँ कि माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र की जी जान से मदद करेँ लेकिन कैसे? किस आधार पर?

एक शिक्षक का कहना था कि हमेँ तो यहाँ सभी वित्तविहीन शिक्षकोँ के हक की लड़ाई नहीँ लगती,मात्र राजनीति लगती है.
हर वित्तविहीन शिक्षक के हक की बात करना चाहते हैँ क्या यह लोग ?

" स्वयं आप के उम्मीदवार क्या हैँ?खुले आम अपने कालेज मेँ गाली देते फिरते हैँ.बस,वे राजनीति करते फिरते हैँ.यदि दम है आप की महासभा मेँ तो बोर्ड परीक्षा का बहिष्कार क्योँ नहीँ करते?पूरी की पूरी यूपी सरकार हिल जाए.भला सिर्फ उन्हीँ का होना है ,जो इसके पदाधिकारी हैँ या जो इनकी हाँ हजूरी करते हैँ. एड के मौके पर अनेक वित्तविहीन शिक्षक दूध मेँ से मक्खी की तरह निकाल दिए जाएंगे.देख
तो रहे हो पड़ोस मेँ....स्वयं न्याय कर नहीँ सकते,सरकार से उम्मीदेँ रखते हो.यदि न्याय की बात है तो विद्यालय कमेटी व उन प्रधानाचार्योँ पर आप क्या दबाव डलवाएँगे जो एड की प्रकिया मेँ वास्तव मेँ हकदार को शामिल करेँ. "-एक वित्तविहीन शिक्षक के एक सम्बन्धी का कहना था.

एक वित्तपोषित शिक्षक कहते हैँ कि पुराने किले को ध्वस्त करना ऐसे आसन नहीँ है.


<www.slydoe163.blogspot.com>

Friday 12 November, 2010

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' के नाम बराक ओबामा का पत्र!

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 12 Nov 2010 17:19 IST
Subject: अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' के नाम बराक ओबामा का पत्र!

 

Good morning,


Each fall, Americans take time to honor the brave men and women in uniform who put themselves in harm's way to protect our nation and the ideals on which it was founded.  


Today, I met with service members in Yongsan Garrison in South Korea, and I told them that honoring their service isn't just about the memorial services we attend on Veterans Day or Memorial Day -- it's about how we treat our Veterans every day of the year. 
 
[http://www.whitehouse.gov/blog/2010/11/11/president-obama-americas-veterans-we-remember?utm_source=email84&utm_medium=image&utm_campaign=veterans]


Our men and women in uniform and their families have sacrificed so much, and all Americans owe them a debt of gratitude for their service.  It is our moral obligation to care for our service members, Veterans and military families as they have cared for us. 


As Commander in Chief, this is a commitment I take very seriously.  That's why my Administration is building a 21st-century Department of Veterans Affairs (VA) to ensure that our Veterans have every opportunity to live happy, productive and healthy lives once they step out of uniform:


* Through the Post-9/11 GI Bill, we are helping nearly 400,000 Veterans and family members pursue higher education.
* We have dramatically increased funding for Veterans health care across the board and are directing unprecedented resources to treat the wounds of today's wars -- traumatic brain injury and post-traumatic stress disorder.
* The VA is working to streamline the claims process by creating a single electronic record that our troops and Veterans can keep for life and hiring thousands of claims processors to finally break the back of the backlog of claims.
* Today, there are 18 percent fewer homeless Veterans on our streets than there were when I took office, and we won't rest until all our Veterans have a place to call home.


I encourage all Americans to take time to thank the Veterans, service members and military families in your lives and recognize their extraordinary service to our country.


To all of our men and women in uniform, our Veterans and our military families: We honor your service, we are grateful for your sacrifice, and we will not let you down.


Sincerely,


President Barack Obama


P.S. You can learn more about how you can support our Veterans, military families and active duty service members here:
 
http://www.serve.gov/vets.asp [http://www.serve.gov/vets.asp]


 

 


 
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Monday 1 November, 2010

31अक्टूबर : सरदार पटेल जयन्ती

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 31 Oct 2010 16:47 IST
Subject: 31अक्टूबर : सरदार पटेल जयन्ती

आज देश के अनेक स्थानोँ पर सांस्कृतिक कार्यक्रमोँ का आयोजन किया गया.आज के ही दिन सन1889ई0को सीतापुर नगर क्षेत्र स्थित तामसेन गंज स्थित मुरली निवास मेँ आचार्य नरेन्द्र देव का जन्म हुआ था.आज के ही दिन 18752 ई0 को सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था.आज के ही दिन सन1984ई0मेँ इन्द्रिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकोँ ने हत्या कर दी.

मैँ बच्चोँ को बताता रहता हूँ कि समाज ,देश व विश्व किनका जन्मदिवस या पुण्य दिवस मनाता है?हमारे दादा- परदादाओँ को दुनिया क्योँ नहीँ याद करती?हमेँ भी क्या दुनिया याद करेगी?हम जिस रास्ते पर हैँ,वह रास्ता क्या ऐसा है कि दुनिया हमेँ याद करेगी ? चलोँ कोई बात नहीँ,दुनिया हमेँ याद करे या न करे लेकिन क्या हम अपने लिए भी जीते हैँ?क्या मनुष्य अपने जीवन मेँ सन्तुष्ट भी हैँ.आप के जीने का
आधार भी क्या है?आर्ट आफ लिविंग क्या है ?जैसे तैसे डिग्रियां इकट्ठी कर लीँ,आय के उपक्रम मेँ लग गये ,फिर शादी और बच्चे...! 90 प्रतिशत डिग्री होल्डर भी कहाँ पर ठहरते हैँ? मन,वचन व कर्म से एक न होने के कारण व्यक्ति पूर्ण कब ?


बारदोली आन्दोलन मेँ जान डालने वाले व देश को अनेक विभाजनोँ से बचाने वाले सरदार पटेल एक कुशल प्रशासक थे.साम्प्रदायिकता की आग को देखते हुए उन्हेँ मजबूरी वश देश का विभाजन स्वीकार करना पड़ा .उन्होँने कहा था कि यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार न करती तो एक पाकिस्तान के स्थान पर कई पाकिस्तान बनते.दूसरी और सत्तावादियोँ के बीच व देश के साम्प्रदायिक वातावरण मेँ गांधी अकेले पड़
गये थे.गांधी के रोल को देख लार्ड माउण्टबेटेन को कहना पड़ा-"वप मैन वाउण्डरी फोर्स ."


<www.akvashokbindu@blogspot.com>

Friday 29 October, 2010

प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 30 Oct 2010 08:19 IST
Subject: प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

हम कल्पना नहीँ कर सकते हैँ कि प्रेम के बिना कैसा होगा जीवन?बेशक नामुमकिन.जैसे,मकड़ी खुद अपना जाल बुनती है.क्या वह उस जाल को छोँड़ सकती है?नहीँ.जिस तरह जाल के बगैर मकड़ी का होना नामुमकिन है,उसी तरह मानव जीवन भी प्रेम के बिना असंभव है.प्रेम के बिना उसका अस्तित्व नहीँ हो सकता.जैसे मकड़ी अपने थूक से अपना जाल बुनती है,वैसे ही हम प्रेम से अपनी दुनिया बुनते हैँ और फिर अपनी ही दुनिया
के बीच फंसे रहते हैँ.


कैसे जगाएं अंतस का प्रेम?


पूर्णता के तीन स्तर हैँ-मन,कर्म और वाणी की पूर्णता.यह पूर्णता प्रेम से ही सम्भव है.प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ही होता है. इस आत्मिक प्रेम को हम मन,कर्म और वाणी की पूर्णता से जागा सकते हैँ.मन से कुत्सित विचारोँ को त्याग देँ,जनहित के लिए सोँचे, अपने कर्म को महत्व देँ और वाणी को संयमित रखेँ,तो हम ध्यान का सहारा ले सकते हैँ. फिर प्रेम के आगे पीड़ा छोटी पड़ जाती है.


प्रेम मेँ पीड़ाएं छोटी:


प्रेम मेँ अपार शक्ति होती है.इस शक्ति को जिसने जान लिया ,वह पूर्णता को पा लेता है.प्रेम की संवेदना को जो ऊपर उठाने मेँ कामयाब हो जाता है,उसे भौतिक पीड़ाएं नहीँ सतातीँ .

Wednesday 27 October, 2010

नागेश पाण्डेय:बाल साहित्य जगत के नक्षत्र

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 28 Oct 2010 08:10 IST
Subject: नागेश पाण्डेय:बाल साहित्य जगत के नक्षत्र

शाहजहांपुर,बाल साहित्य जगत के नक्षत्र डा.नागेश पाण्डेय 'संजय'की नई पुस्तक अपलम चपलम का विमोचन उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर मेँ प्रख्यात उड़ीसा साहित्यकार डा.जगन्नाथ मोहंती ने किया.

रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ ओड़िया चिल्ड्रन्स लिटरेचर ,भद्रक द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बाल साहित्य कार्यशाला मेँ उड़िया के सौ के लगभग साहित्यकारोँ मेँ नागेश हिन्दी बाल साहित्य के एक मात्र प्रतिनिधि थे.इस अवसर पर नागेश ने बच्चोँ के लिए विज्ञान लेखन विषय पर पत्र वाचन भी किया.उनकी बच्चोँ के लिए अब तक 19 पुस्तकेँ छप चुकी हैँ.डा.नागेश की इस नयी पुस्तक का मूल्य मात्र 5रुपये
है.उन्होँने बाल साहित्य पर शोध भी किया है.


नागेश जी से हमारी पहली मुलाकात सन1993ई 0के आखरी महीनोँ अक्टूबय दिसम्बर मेँ हुई थी,जिन दिनोँ मैँ एस एस कालेज,शाहजहांपुर से बी एड कर रहा था.


<www.akvashokbindu.blogspot.com>

Tuesday 26 October, 2010

THE HON. Mr.BARAK OBAMA !

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 26 Oct 2010 20:28 IST
Subject: THE HON. Mr.BARAK OBAMA !

The Hon.Mr.Barak Obama!


You are coming to India.

We,all indians, Welcome you.We expect of you that you will advocate for permanant membership of India in United Nation . You will also make reaction and comment concerning ill-treatment with Osho during his emigration in America.


Along with this.....

We all human beings and men of letters should gather together to take immediate actions in support of good health,human rights,women rights and happy life on earth by rising beyond castism,racialism,sex and regionalism.In this contect,we happen to remember the statement of an young Buddhist saint named Aagyen Trinley Dorjey 'Karmapa Lama' , that by joining a great nation like America ,he would succeed in bringing peace in the world. We should always be ready with heart ,soul and money for,health and world - peace.For which ,we should forget our differences and narrow -mindedness and regionalism.India and whole world has great expectations from you.The terrorists believing in seperation neither remained silent,nor will ever be.So,we are expected to have control upon them in all ways.


The remaining part in the next letter.

well wishes !


In the awaiting of your letter....


Your s

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

Monday 25 October, 2010

करवा चौथ पर आज !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 26 Oct 2010 08:00 IST
Subject: करवा चौथ पर आज !

करवाचौथ पर आज फिर वही चिन्तन.रक्षा बन्धन ,भैया दूज,करवाचौथ ,आदि पर्व क्या आज के नवीनतम ज्ञान के परिवेश मेँ क्या लिँग भेद का पर्याय नहीँ है ?साल भर हम चाहेँ इन्सानोँ के प्रति कैसा भी व्यवहार करेँ?धर्म क्या यही सीख देता है कि जीवन के कुछ दिवस ही सात्विक जीवन जिएं?यदि हाँ,तो हम ऐसे धर्म पर लात मारता हूँ.यह झूठा धर्म है.यह पर्व मनाने का मतलब है जिनसे हम अपने व्यवहारिक जीवन मेँ
अलग हो गये हैँ उसको कुछ दिवस याद कर लेना.जिसे इन्सान अपने जीवन से दूर किए हुए है,बस कुछ दिन याद कर रहा है और जो जीवन भर अपन आचरण मेँ लाने का प्रत्यन कर रहा है,उस पर कमेँटस कसते हैँ यहाँ उन्हेँ उपेक्षित कर देते हैँ.आज के अवसर मैँ उन्हेँ अपने जीवन से वहिष्कृत करता हूँ,उनके लिए मेरे दिल मेँ कोई जगह नहीँ है.


मैँ तो चार आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग ही धर्म पर चलने का श्रेष्ठ मार्ग मानता हूँ.
अब आप मुझे बौद्ध या जैन मत का कहेँगे.जैसा लोग कहते आये हैँ.आप लोग मतभेद मेँ ही जीते आये हैँ.ईमानदारी से धर्म मेँ कहाँ जिए हैँ.मेरा तो मानना है कि व्यक्ति चाहेँ किसी मत से हो ,वह यदि धर्म के प्रति ईमानदार है तो चारो आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग को उपेक्षित नहीँ कर सकता .


मधुरता व उदारता के बिना धर्म रिश्तेदारी ढोँग है.धर्म मेँ तो बदले का भाव भी नहीँ चलता.

Sunday 24 October, 2010

I HAVE TO ADDRESS MR. BARAK OBAMA.

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 24 Oct 2010 17:20 IST
Subject: I HAVE TO ADDRESS MR. BARAK OBAMA.

Welcome in India .


Hope that your presence as an American and in whole world. We all human beings and men of letters should gather together to take immediate actions in support of good health ,human rights,women rights and happy life on earth by rising beyond castism,racialism,sex and regionalism.IN this contect, we happend to remember the statement of an young Buddhist saint named Aagyen Trinley Dorjey ' Karmapa Lama ' ,that by joining a great nation like America,he would succeed in bringing peace in the world. We should always be ready with heart and soul for good life,health and world - peace.For which,we should forget our differences and narrow-mindedness and regionalism.


India and whole world has great expectations from you.The terrorists believing in seperation neither remained silent, nor will ever be.So,we are expected to have control upon them in all ways.


The remaining part in the next letter.


BY-ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

Saturday 23 October, 2010

नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 24 Oct 2010 10:10 IST
Subject: नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

बुधवार की दोपहर घर से धान की बाली तोड़ने गई बालिका का शव नग्नावस्था मेँ गन्ने के खेत से खून से लथपथ पाया गया.बालिका का रेप के बाद गला काट कर हत्या कर दी.शव मिलने की खबर से गांव मेँ सनसनी फैल गयी.घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गयी.शव को कब्जे मेँ लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.


मीरानपुर कटरा (शाहाजहांपुर) थाना क्षेत्र के ग्राम कबरा हुसैनपुर निवासी रामनिवास राठौर की पुत्री क्रान्ति गांव के प्राथमिक जूनियर हाईस्कूल मेँ कक्षा सात की छात्रा थी.बुधवार की दोपहर वह घर से धान के खेत से बाली तोड़ने गई थी.अचानक वह लापता हो गई जब देर शाम वह घर नहीँ पहुंची तो उसके परिजनोँ ने उसकी तलाश की लेकिन उसका कोई पता नहीँ चला.इस पर परिजनोँ ने दूसरे दिन थाने मेँ
मामले की गुमशुदी दर्ज कराई.


कल सुबह ग्रामीणोँ नेँ एकत्र हो कर आसपास के खेतोँ को खंगाला तो रामचन्द्र के गन्ने के खेत मेँ क्रान्ति का नग्नावस्था मेँ शव पड़ा था तथा उसका गला कटा हुआ था.उसके कपड़े तथा धान काटने वाली दराती खून से सनी हुई पड़ी थी.

न शान्ति न क्रान्ति !
है सिर्फ भ्रांति....सिर्फ कागजी पुतलोँ की राजनीति!रामायण के रावण पर अंगुली उठाते हैँ.आज के रामोँ की शरण मेँ खड़े रावणत्व को संरक्षण दे दे रावण के कागजी पुतलोँ के दफन के साथ मुस्कुराते हैँ.धन्य ,आज के पात्र!

सैनिक (सिपाई)आज भी हैँ,राजा(शासक)आज भी हैँ लेकिन....


आज के राम भक्तोँ की भीड़ मेँ भी आज के राम अयोध्या (अपने राज्य)के मदद से दूर हैँ .साथ हैँ आदिवासी और .....?!और सुग्रीब का राज्य....


सन2025ई0 की विजयादशमी ! रामलीला के मैदान मेँ रावण का पुतला जल रहा था.


"आप कागजी पुतलोँ को जला कर दुनिया को क्या मैसेज देना चाहते हो?आप से अच्छे हम हैँ जिन्दा रावणोँ को जला रहे थे.यदि हम गलत थे, केशव कन्नौजिया गलत था तो आप ही अपने को ठीक साबित हो कर दिखाओ.पुतलोँ को नहीँ रावणत्व को जला कर दिखाओ."


एक नक्सली नेता एक टीवी चैनल पर अपना इण्टरव्यु दे रहे थे.


"क्रान्ति हो या शान्ति दोनोँ को कुचलने वाले के साथ खड़े है श्वेतवसन अपराधी .हम पर अंगुलियाँ उठाने वाले इनको उजागर हो कर दिखायेँ.यह अच्छा है कि हमारे कारण सरकारेँ अपनी व्यवस्थाओँ मेँ कुछ तो परिवर्तन तो कर रही हैँ.लोग जब तक सभ्य नहीँ हो जाते तब तक कोरे सत्याग्रह से काम नहीँ चलने वाला.तब तक टेँढ़ी अँगुली से भी काम चलाना पड़ेगा ही. आप भी स्वयं कहते फिरते हो कि टेंढ़ी अँगुली से
घी नहीँ निकलता.जैसे 1947तक के स्वतन्त्र ता संग्रामोँ मेँ से भगत सिँह,चन्द्रशेखर,सुभाष,आदि के महत्व को निकाल नहीँ पाते ,धर्म शास्त्रोँ मेँ से हिँसा के महत्व को निकाल नहीँ पाते तो हमारी हिँसा के महत्व को क्योँ नगण्य कर देते हो? गीता अर्थात कुरुशान के गीता सन्देश को अपमान क्योँ नहीँ देते हो?सीमा पर की हिँसा का अपमान क्योँ नहीँ करते हो?हाँ,अपने साथियोँ कुछ निर्दोष हत्यायोँ पर
मुझे दुख है. लेकिन....हाँ,और गेँहू के साथ घुन पिसता है. गेँहू के घुन क्योँ बनते हो.तब तो निज स्वार्थ के सिवा कुछ भी दिखता नहीँ."


क्रान्ति प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ने के लिए पुलिस ने कुछ निर्दोष व्यक्तियोँ पर भी कार्यवाही कर दी थी. जिसका प्रमुख कारण दबंगोँ की कूटनीति थी.यह निर्दोष पीड़ित व्यक्ति अब नक्सलियोँ की शरण मेँ थे.


<www.slydoe163blogspot.com>


<www.kenant814blogspot.com>

Friday 22 October, 2010

वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 23 Oct 2010 08:27 IST
Subject: वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

हमारे विद्यालय स्टाप मेँ 'ब्राह्मण जाति' के अध्यापकोँ का वर्चस्व है.कभी कभार इन अध्यापकोँ के आवास पर भी जाना हो जाता है.हिन्दू समाज मेँ हर कोई जाति भावना से ग्रस्त नजर आता है ,ऐसे मेँ ब्राह्मण वर्ग क्योँ न इस भावना से ग्रस्त होँ ? इनके लिए जातिपात मानना अपने धर्म से गिरना है.शायद लोग धर्म का मतलब नहीँ समझते ?

एक ब्राह्मण परिवार मेँ -


बातचीत के दौरान परिवार का मुखिया कहता है कि

एक बालक के यहाँ से कल मट्ठा मिल सकता है लेकिन वह नाई है.


"मैँ बोल दिया तो क्या हुआ ?"


"हाँ आप तो जाति पात मानते नहीँ ."

मुझे स्मरण हो आया कि एक बार इनकी पत्नी ने कहा था कि नीच बिरादरी मेँ खानपान चला क्या कोई अपना धर्म खराब करेगा? मैँ आज उन्हीँ की ओर देखते हुए बोला "कुछ तो मानते हैँ कि जातिपात मानकर हम अपने धर्म को सुरक्षित किए हुए हैँ."


वे बोलीँ- " हमेँ इतने साल हो गये कोई मुसलमान यह नहीँ कह सकता कि हमारे यहाँ एक कप चाय भी पी हो. "


" मुझे तो अपने को हिन्दू कहते भी शर्म लगती है.हिन्दू शब्द तक, हिन्दू शब्द क्या आपकी संस्कृति का शब्द है ? मुझे तो अपने को आर्य कहते गौरब महसूस होता है."


" बात तो एक ही है."


" एक कैसे?वहां वर्ण व्यवस्था थी यहां जाति व्यवस्था है.वहां मूर्ति पूजा नहीँ थी ,यहां है.और भी बहुत कुछ है जो वहां आज की सोँच से हट कर था. "


"पहले क्या था ? हम क्या जानेँ?"


" जानना चाहिए . हमेँ यह भी जानना चाहिए कि धर्म क्या है?हम तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैँ कि व्यक्ति किसी भी जाति पन्थ का हो,धर्म उसका एक ही है."


"आज कल ऐसा कौन सोँचता है?"


"हमारे पास क्या बुद्धि विवेक नहीँ है ?क्या हमारे पास ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से सीख लेने की योग्यता नहीँ है ? समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए कि ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से ? "


एक बार इस विश्व पर आर्योँ का शासन था.महाभारत युद्ध के बाद आर्य सभ्यता का अन्त हो गया.इसके बाद फिर यहुदी,पारसी,जैन ,बौद्ध,ईसा,मुस्लिम,आदि पन्थ अस्तित्व मेँ आये लेकिन आज का हिन्दू......?! 'हिन्दू' शब्द से तो पुराने शब्द हैँ -'यहुदी','पारसी','ईसाई','मुस्लिम ',आदि शब्द.जिन कारणोँ से आर्य संस्कृति व भारत वर्ष विखरा,उन कारणोँ पर अब भी नहीँ सोँचा जा रहा.

एक दिन एक अन्य ब्राह्मण जाति के अध्यापक से सम्वाद हो गया. वह बोले- हाँ,यह सत्य है कि हर जाति के लोग ऊपर उठे हैँ लेकिन ब्राह्मण अपने स्वभाव,कर्म व व्यवहार से नीचे गिरा है. हर कोई कर्म व स्वभाव से ऊँचा नीचा होता है.किसी को अपने कर्म से नहीँ हटना चाहिए .जिसका जो कर्म है उसे वह कर्म करना चाहिए.(एक होटल की ओर संकेत कर ) इन्हीँ को लो ,यह गड़रिया जाति के हैँ लेकिन अपना काम छोँड़ होटल
खोले पड़े हैँ.


अब भी पढ़ लिखा ब्राह्मण तक जन्म आधारित जाति व्यवस्था से हट वर्ण व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीँ है.जब स्वयँ आर्यगण इस पर ईमानदारी न दिखा पाये और स्वयं के समाज को तीन वर्ण -ब्राह्मण,क्षत्रिय व वैश्य मेँ बाँट लिया और शेष को अर्थात अनार्योँ व मूल निवासियोँ को दस्यु कहकर पुकारा.पराजित किए हुए लोगोँ को दास माना.अपने वंश अर्थात जन के आधार पर सत्ताएं स्थापित कीँ
.जन के आधार पर ही जनपद स्थापित हुए.

जाति पात व छुआ छूत के लिए पिछड़े व दलित वर्ग के जो व्यक्ति ब्राह्मणोँ को दोष देते वे स्वयं जातिपात व छुआ छूत की भावना से ग्रस्त हैँ और जिन जातियोँ को अपनी जाति से नीचा मानते हैँ उनसे व्यवहार रखना पसन्द नहीँ करते.

आर्योँ व ब्राह्मण धर्म मेँ आयी कमियोँ के कारण विश्व मेँ अनेक मत व पन्थ पैदा हुए व दुनिया बंटी.

आडम्बरी कर्म काण्डोँ आदि के परिणाम स्वरूप जैन व बौद्ध मतोँ का उदय हुआ और जिन व्यवहारिक घटकोँ को आर्य व ब्राह्मण भूल गये उन्हेँ फिर जिन्दा किया गया.जन्म जाति व्यवस्था पर भी चोट की गयी.वर्तमान का हिन्दु समाज अब भी भटका हुआ है ,जो वास्तव मेँ आर्य समाज, शान्तिकुञ्ज,ओशो,आदि के साहित्य के माध्यम से जाग्रत किया जा सकता है. बात है विहिप,बजरंग दल,आर एस एस ,आदि की तो वे अभी अपने
कार्यकर्ताओँ को कुरीतियोँ,जाति व्यवस्था ,आदि के खिलाफ तैयार नहीँ कर पा रहे है.बस,हिन्दुओँ की अन्ध मानसिकता का चेक भुनाने का काम करते आये हैँ.यह कहते हैँ कि हिन्दू होने पर गर्व करो लेकिन कैसे?क्या ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,आदि ही हिन्दू हैँ अन्य नहीँ ?हिन्दुओँ के साथ दोहरा तेहरा व्यवहार क्योँ?कुछ लोग तो गैरहिन्दुओँ के संग बैठ तो खा पी सकते हैँ लेकिन सभी हिन्दुओँ के साथ
नहीँ.


धन्य ! वर्तमान हिन्दुओँ की सोँच...,

Thursday 21 October, 2010

21.10.2010:आजाद हिन्द फौज का 67वां स्थापना दिवस


विभिन्न जनपदोँ मेँ भारतीय सुभाष सेना ने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज का 67वां स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया.भारतीय सुभाष सेना के पीलीभीत जिलाध्यक्ष कन्हई लाल प्रजापति की अध्यक्षता मेँ समारोह का आयोजन नरायनपुर सिरसा चौराहा पूरनपुर मेँ सम्पन्न हुआ.समारोह का संचालन जिलाध्यक्ष राकेश कुमार सुभाष ने किया . सेना के वरिष्ठ प्रान्तीय महासचिव
प्रवक्ता श्री पातीराम वर्मा सुभाष ने अपने सम्बोधन मेँ कहा कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द फौज की स्थापना 21अक्टूबर1943ई0को सिँगापुर मेँ की थी.भारतीय सुभाष सेना पीलीभीत जिलाध्यक्ष कन्हई लाल प्रजापति सुभाष ने कहा कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस आज भी जीवित हैँ.पूर्ण रुप स्वस्थ हैँ और निकट भविष्य कुछ ही दिनोँ के बाद उनका भारत मेँ खुलेआम प्रकटीकरण होगा.महान सन्त
सम्राट सुभाष जी का कहना है कि तृतीय विश्व युद्ध सुनिश्चित है और वह सुभाष पर निर्भर करता है . यदि भारत की जनता सुभाष का साथ देती है तो युद्ध टल सकता है.

इस उपलक्ष्य पर हमने भी मीरानपुर कटरा स्थित आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जिसमेँ मैँने बताया कि जिस तथाकथित विमान दुर्घटना मेँ उनकी मृत्यु बतायी जाती है,वह फर्जी सिद्ध हो चुकी है.जांच हेतु जब मुखर्जी आयोग रुस गया तो उसे फोन पर धमकियां भी मिलीँ.भारत के एक गृह सचिव का कहना है कि नेता जी सम्बन्धी दस्तावेज सार्वजनिक करने का मतलब है एक
देश को नाराज करना.सबसे बड़ी बात यह है कि विदेश मन्त्रालय, गृह मन्त्रालय व अन्य कार्यालयोँ से सम्बन्धित दस्तावेज गायब क्योँ कर दिये गये?इस मामले मेँ कांग्रेस का चरित्र संदिग्ध नहीँ लगता क्या ?

Wednesday 20 October, 2010

नक्सली कहानी : शिक्षक या कि नक्सली ?

केशव कन्नौजिया अब शिक्षण कार्य से निकल कर नक्सली आन्दोलन से जुड़ गया.

अपना पक्ष साबित करने के लिए वैसे नहीँ तो अब ऐसे.

और फिर जिन के कारण यहाँ तक वे ही कहते फिरते कि भय बिन होय न प्रीति.......घी टेँड़ी अँगुली से ही निकलता है.जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही अच्छा कार्य कर सकते हैँ तो हिँसा व भय ही ठीक.

" लातोँ के भूत बातोँ से नहीँ मानते."

केशव कन्नौजिया देखा कि शासन प्रशासन व समाज से कोई भी हमारे पक्ष मेँ खड़ा नजर नहीँ आ रहा है .कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के तन्त्र मेँ उल्टे दलदल मेँ फँसता जा रहा हूँ.वह नक्सलियोँ के साथ आ गया. विचार तो मुस्लिम मत स्वीकार करने का भी आया था लेकिन....

अब सन 2025 ई0 की विजयदशमी ! आर एस एस के स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण !

इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने उन नियुक्तियोँ को अवैध घोषित कर दिया जो सन 1996ई0 मेँ जूनियर क्लासेज के एड के दौरान कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात (फरीदपुर) मेँ जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त अध्यापकोँ को नियुक्ति न देने के बजाय माध्यमिक स्तर के अध्यापकोँ की नियुक्तियाँ कर दी गयीँ थीँ.अदलात ने केशव कन्नौजिया व उसके साथियोँ पर लगे सभी आरोपोँ से मुक्त कर दिया.

विजयादशमी के दौरान भव्य शस्त्र पूजन समारोह के दौरान आत्मसमर्पण कर दिया.

"क्या करूँ गांधी के देश मेँ अब भय व हिँसा मेँ ही सिर्फ बेहतर काम करने वालोँ की कमी नहीँ हैँ . सन 1996ई0 से पहले मैँ क्या था,यह किसी से छिपा नहीँ है लेकिन फिर मुझे नक्सलियोँ के शरण मेँ जाना पड़ा.मेरी हिँसा निर्दोषोँ के खिलाफ नहीँ थी.अन्याय व शोषण के खिलाफ थी. "

केशव कन्नौजिया के आँखोँ मेँ आँसू आ गये.

पुन :

" जिनके खिलाफ मैँ कोर्ट गया था और फिर नक्सली हुआ वे सब प्रति वर्ष गांधी की जयन्ती मनाते आये थे और अब भी मना रहे हैँ लेकिन अपने व्यवहारिक जीवन मेँ .....वे कम से कम मानसिक हिँसा तो करते आये हैँ.ऐसे लोग कहीँ न कहीँ अपराध की जड़ोँ को सीँचते आये है.मैँ तब भी गांधीवादी था अब भी गांधीवादी हूँ. बीच मेँ....?!बीच के इण्टरवेल मेँ मजबूरन कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचारी तन्त्र मेँ......?! सोरी ! "
इन पन्द्रह वर्षोँ मेँ अदालतेँ भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन के खिलाफ अपने विचार व्यक्त कर चुकी थीँ लेकिन नेताशाही व नौकरशाही अब भी ठीकाने पर नहीँ आयी थी.कुछ कर्मचारियोँ व अन्य पर अदालतोँ मेँ दोष साबित हो गये थे व कुछ को फाँसी की सजा सुनाई गयी थी.दूसरी ओर मुसलमानोँ को अल्पसंख्यक का दर्जा बनाये रखने के खिलाफ देश मेँ वातावरण रहा था लेकिन नेताशाही व सत्तावाद अवरोध खड़े किये
थे.

ऐसे मेँ नक्सली...

नक्सली सम्बन्धित नेताओँ कर्मचारियोँ का और उन लोगोँ का मर्डर कर रहे थे जिन्हेँ अदालत ने फाँसी की सजा सुनायी थी लेकिन राजनीति के चलते उन्हेँ फांसी नहीँ दी गयी थी.

केशव कन्नौजिया अब भी नक्सली आन्दोलन के अहिँसक रुप के समर्थन मेँ खड़ा था.

कुछ दस्तावेज गायब होने के मामले मेँ कुछ कांग्रेसियोँ पर भी नक्सलियोँ की निगाहेँ थीँ .जैसे
- नहेरु व गवर्नर लार्ड माउण्टवेँटन के बीच सम्बन्ध, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु,संजय गांधी की मृत्यु,दीन दयाल उपाध्याय की मृत्यु. भिण्डरावाले
-लिट्टे-बोडो आन्दोलन को प्रोत्साहन,आदि सम्बन्धी दस्तावेज....

इधर हिन्दु समाज पर कट्टर मुसलमानोँ का दबाव बढ़ता जा रहा था.जिससे बचने के लिए हिन्दू सिक्खोँ की शरण मेँ जा रहा था.दिल्ली पर नक्सली सत्ता की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही थीँ.

Tuesday 19 October, 2010

नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.

अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.
लेकिन-

वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.
मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.

फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.

"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."

जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.

सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.

लेकिन...

जिसकी लाठी उसकी भैस!....चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?

दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!

एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .

केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?

केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.

अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.

" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."


जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.

"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

BHARATIY KAMAJORION PAR SALTANAT.

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@gmail.com
Cc: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 19 Oct 2010 09:03 IST
Subject:

Saturday 16 October, 2010

कथा:आसमाँ के प्यार मेँ


राघवेन्द्र जीत यादव की एक गर्ल फ्रेण्ड थी-आसमाँ मन्सूरी.हालांकि उसके ख्वाबोँ की रानी थी 'शिक्षा' नाम की युवती लेकिन........?!
किसी से प्रेम होना अलग बात है.अपने कर्मक्षेत्र मेँ होने के कारण स्त्रियोँ पुरुषोँ से व्यवहार व आचरण रखना एवं अपनी पर्सनल लाइफ मेँ किसी के साथ जीवन जीना अलग बात है.ऐसे मेँ प्रेम ...?प्रेम एक एहसास व मन की स्थिति बन कर रह जाता है.
सनातन इण्टर कालेज से निकलने के बाद राघ वेन्द्र जीत यादव के मासिक आय मेँ कमी आ गयी थी.हालांकि मीरानपुर कटरा के ही एक अन्य कालेज मेँ वह शिक्षण कार्य करने लगा था.मनमानी,नियमहीनता,हाँहजूरी, व्यक्तिगत स्वार्थ,आदि की विद्यालय स्टाप मेँ वर्चस्वता के कारण उसे सनातन इण्टर कालेज मेँ दोषात्मक निशाना बनाया गया था.कुछ लोग यहाँ तक चाहते थे कि राघवेन्द्र जीत यादव मीरानपुर कटरा
ही छोँड़ कर चला जाए.

लेकिन....?!
"क्योँ?क्योँ छोँड़ कर जाओगे कटरा?"

"आसमाँ, तुमसे किसने कह दिया मैँ कटरा छोँड़ कर जाऊँगा?जब मेरा दिल दिमाग कहेगा,तब मैँ जाऊँगा."

"राघव! मुझे कुछ रातोँ से नीँद नहीँ आती. तुमने कैसा हाल बना रखा है अपना?"
"ठीक तो हूँ.बस,बाहर से ऊर्जा प्राप्त नहीँ कर पा रहा हूँ लेकिन मैँ महसूस कर रहा हूँ आन्तरिक ऊर्जा जाग्रत होते.और फिर तुमको देख कर तो और ऊर्जा बढ़ जाती है ,उत्साहित हो जाता हूँ."

"तब भी.....शरीर का भी ध्यान रखना जरुरी है .खाओगे पियोगे नहीँ तो शरीर कैसे चलेगा?"

" कौन कहता है खाता पिता नहीँ हूँ."

"अच्छा,दूर से बात करो. मैने कहा न,मुझे छोड़ो."

" दिल से कह रही हो."

तब आसमाँ मु स्कुरा दी.

राघवेन्द्र जीत यादव ने आसमाँ को अपनी बाहोँ मेँ ले रखा था.होँठोँ को होँठोँ ने स्पर्श किया....

"अच्छा,अब छोँड़ो.प्रेम को प्रेम ही रहने दो."

"आसमाँ,नहीँ तो.....?!"

"नहीँ तो मजहब व जाति आड़े आ जायेगी.जानते हो,फिर साम्प्रदायिकता की आग मेँ कटरा भी झुलस सकता है."
".....और हम,हम तड़फते रहेँ बस.."
" तड़फेँ दुश्मन . मुसलमान बन जाओ न. मेरे लिए तुम क्या करोगे?दिल मेँ तो अब भी 'शिक्षा'है. मुझे तो सिर्फ पत्नी बनाने का ख्वाब देखते हो तुम. दिल तो 'शिक्षा 'को दे रखा है न."

ऐसे मेँ राघवेन्द्र जीत यादव !

सात दिन अन्तर्द्वन्द!

यह द्वन्द पहले भी आये थे लेकिन तब सिर्फ मतान्तरण का विचार आया था,अब मतान्तरण करना था. हिन्दू समाज मेँ किसने अभी तक हम पर प्रेम का इजहार किया था?क्या प्रेम को सम्मान नहीँ देना चाहिए?
हूँ!
मन ही मन राघवेन्द्र जीत यादव-

" लोग कह तो देते हैँ मतान्तरण करने की क्या जरूरत ? क्या अपने मत मेँ भावनाओँ का शेयर करने वालोँ का अकाल पड़ गया ? हाँ, मेरे लिए अकाल ही पड़ गया. आवश्यकताएं पूरी नहीँ होतीँ ,यह आपकी कमी है.मेरी कमी..?! और क्या.मेहनत करो रुपया कमाओ.हूँ! भावनाओँ के शेयर के लिए क्या रुपया चाहिए? दोस्ती के लिए क्या रुपया चाहिए?प्रेम के लिए क्या रुपया चाहिए?मुस्लिम समाज मेँ तन्हा क्योँ नहीँ?उस समाज से
आसमाँ प्राप्त है,कुछ मित्र प्राप्त हैँ.हूँ,तो हिन्दू समाज से क्योँ नही?उत्साह होता है न ,तो मेहनत करने का रुपया कमाने का रास्ता बनता जाता है.आसमाँ मेरे करीब है ,जीवन के हर मोड़ पर मेरे करीब है.ख्वाबोँ मेँ भी और वास्तव मेँ भी.शिक्षा .....और शिक्षा .....क्या कहूँ उसको लेकर.....वह हमेँ मिलने को रही.तुम्हारे हिन्दू समाज से कौन मेरे करीब है?हूँ,करीबी के लिए पहले रुपया चाहिए,मेहनत
चाहिए.मैँ तो कामचोर हूँ मक्कार हूँ?लेकिन क्योँ हूँ? तुम क्या जानो तन्हाई क्या होती है?.....अब जब आसमाँ मेरे साथ है,मेहनत भी मेरे साथ है रुपया भी मेरे साथ है.बस,इन्तजार कीजिए.तुम और तुम्हार हिन्दू समाज ...?!मेरे लिए एक लड़की भी न उपलब्ध करा पाया,जो मेरा उत्साह बन कर मेरे जीवन मेँ आये.अब मुस्लिम समाज से आसमाँ मुझे मिली है,वह मेरा उत्साह बन कर आयी है न कि यह देखने के लिए कि मैँ आलसी
हूँ,मैँ रुपया कम कमाता हूँ.उसने मुझे स्वीकारा है सिर्फ मुझे.मुझमेँ कमियाँ ढूंढने के लिए नहीँ,मुझ पर कमेन्टस के लिए नहीँ.प्रेम भी यही कहता है कि व्यक्ति जैसा है,उसे वैसा ही स्वीकारो.प्रेम मेँ तो वह ऊर्जा है कि इन्सान देवता बन जाए."
-यह सोँचते सोँचते राघवेन्द्र जीत यादव के आंखोँ मेँ आँसू आ गये.
आठवेँ दिन-

राघवेन्द्र जीत यादव ने मुस्लिम मत स्वीकार कर लिया ,तो क्या गलत किया ? मत व धर्म मेँ फर्क होता है.
आसमाँ से निकाह के बाद,
दस साल बाद अर्थात अब सन 2025ई0की 25 सितम्बर!

राघवेन्द्र जीत यादव अब राजनीति व साहित्य क्षेत्र मेँ मण्डल स्तर की एक प्रमुख हस्ती बन चुका था.लकड़ी ,फर्नीचर व होटल के व्यवसाय के माध्यम से करोँड़ोँ पा चुका था.

Monday 30 August, 2010

उग्रवाद के खिलाफ त्याग भावना

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 27 Aug 2010 04:04 IST
Subject: उग्रवाद के खिलाफ त्याग भावना

मानव व्यवहारोँ का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि मानव अब भी मानसिक रूप से गुलाम है अर्थात द्वेषभावना,स्व शारीरिक-ऐन्द्रिक हित के लिए ही सिर्फ जातिवाद,साम्प्रदायिकता,क्षेत्रवाद,आदि का इस्तेमाल कर समाज की विविधता के अपमान मेँ हिंसा पर तक उतर आता है.यहाँ तक कि कुछ सत्तावादी इसका प्रयोग सत्ता प्राप्ति के लिए भी करते हैँ.सर्बजनहिताय उदारता अति आवश्यक है न कि स्व
शारीरिक व ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ के लिए दूसरोँ को कष्ट देना.धर्म तो उदारता सिखाता है,जो धर्म के नाम पर हिँसा का सहारा लेते हैँ वे कदापि धार्मिक नहीँ हो सकते .इस धरती पर धर्म के नाम पर जितना अत्याचार हुआ है,शायद उतना अन्य के नाम पर नहीँ.ऐसे मेँ समाज या भीड़ के धर्म को मैँ धर्म नहीँ कह सकता.


प्राचीन काल से ही कश्मीर हिँसा का शिकार रहा है.मध्यकाल मेँ औरंगजेब काल मेँ शासकीय कर्मचारियोँ द्वारा अत्याचार की घटनाएँ होती रहीँ. अत्याचारोँ से प्रभावित कश्मीरी पण्डित गुरु तेगबहादुर सिँह के पास अपनी फरियाद ले कर आते रहे थे. एक दिन गुरु तेगबहादुर सिँह ने कश्मीरी पण्डितोँ की सभा बुलाई.जिसमेँ उन्होँने कहा कि त्याग व समर्पण के बिना कुछ भी सम्भव नहीँ.तब बालक
गोविन्द बोल बैठा -" पिता जी,"इसके लिए आप से ज्यादा अच्छी शुरुआत कौन कर सकता है." गुरु तेगबहादुर सिँह की आँखे खुल गयीँ.

मिशन या लक्ष्य के पक्ष या विपक्ष मेँ जाने बात बाद की है, अपने मिशन या लक्ष्य के प्रति कैसा होना चाहिए?इसकी सीख हमेँ गुरु गोविन्द सिँह सेँ लेनी चाहिए.जिनका जीवन कुरुशान (गीता) की कसौटी पर खरा उतरता है.समाज के सुप्रबन्धन के लिए त्याग व समर्पण आवश्यक है.

कश्मीर मेँ कश्मीरी पण्डितोँ के बाद अब अलगाववादी कश्मीरी सिक्खोँ पर अत्याचार करने मेँ लगे हैँ.दूसरी ओर देश के अन्दर कुप्रबन्धन , भ्रष्टाचार,आतंकवाद,नक्सलवाद,क्षेत्रवाद,जातिवाद,
साम्प्रदायिकता,
आदि ; इससे कैसे निपटा जा सकता है ?इसके लिए भी हमेँ कुरुशान(गीता) ,गुरू गोविन्द सिंह,आदि से सीख ले सकते हैँ.


अफसोस की बात कि अपनी धुन मेँ जीते जीते हम अपने परिवार को विखराव की स्थिति तक जब ले जा सकते हैँ,त्याग व समर्पण का पाठ नहीँ सीख सकते .घर से बाहर निकल कर सामूहिकता मेँ जीने धर्म के लिए त्याग,समर्पण,कानून,आदि की भावना मेँ जीना ऐसे मेँ काफी दूर की बात हो जाती है.ऐसे मेँ तीसरा फायदा उठाएगा ही.राजपूत काल से अब तक होता क्या आया है?यही तो होता आया है. जम्बूद्वीप (एशिया) से वर्तमान
भारत तक और फिर अब भी अलगाववाद ,उग्रवाद, क्षेत्रवाद से प्रभावित इस देश की वर्तमान स्थिति तक आने कारण मात्र क्या है?हमारे पूर्वज कितने भी योग्य रहे होँ लेकिन.....?हमारे मन आपस के लिए ही द्वेष भावना,मत भेद,आदि मेँ जीते आये हैँ.यहां तो कीँचड़ ही कीँचड़ है. हाँ ,यह जरूर है कि कीँचड़ मेँ कमल खिलते आये हैँ.भारत का अर्थ है-प्रकाश मेँ रत,धन्य!धन्य आध्यात्मिक देश!धन्य यहाँ धर्मिक लोग!धन्य
कृष्ण के अनुआयी!धन्य अपने को हिन्दू कहने वाले!कुरुशान (गीता) के संदेशोँ को नजर अन्दाज करने वाले.इनकी अपेक्षा तो आतंकवादी,अलगाववादी,आदि अप्रत्यक्ष रुप से कुरूशान(गीता) को आचरण मेँ उतार रहे हैँ और अपने लक्ष्य के लिए त्याग व समर्पण कर रहे हैँ.हम इससे भी सीख नहीँ ले सकते कि अफगानिस्तान मेँ अलगाववादियोँ से लड़ रहे सैनिकोँ को गीता का पाठ सिखाया जा रहा है,एक अमेरीकी
विश्वविद्यालय मेँ गीता का अध्ययन अनिवार्य कर दिया जाता है.


जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर हम यदि कुरुशान(गीता ) से यह सीख नहीँ ले सकते तो काहे को कृष्ण भक्ति....!?तब तो सच्चे भक्तोँ(दीवानोँ) को सनकी, पागल,आदि कह कर उपेक्षित करते हो.धन्य....!?तुम्हारी धार्मिकता तो सिर्फ धर्मस्थलोँ की राजनीति,जाति पात , साम्प्रदायिकता,छुआ छूत,आदि के आलावा और क्या सिखा सकती है?बस ,धर्म के नाम पर एक दो मिनट दे दिए फिर चौबीस घण्टे....खो जाता है धर्म.तब वे मूर्ख लगते
है जो कहते है कि सुबह से शाम तक हम जो सोँचते करते हैँ,वही हमारा धर्म है.


JAI HO ....OM...AAMEEN!

अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु'


आदर्श इण्टर कालेज


मीरानपुर कटरा


शाहजहाँपुर उप्र

Saturday 7 August, 2010

नक्सली कहानी :तन्हाई के कदम

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 06 Aug 2010 23:11 IST
Subject: नक्सली कहानी :तन्हाई के कदम

कमरे की एक दीवार पर ओशो की तश्वीर लगी हुई थी.

एक युवती की निगाहेँ जिस पर टिकी हुई थीँ.उसके दाहिने हाथ मेँ हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र था,जिसकी मुख्य हैडिँग थी-दस नक्सली एक पुलिस मुठभेड़ मेँ ढेर.साथ मेँ एक फोटो भी छपा था.वह फोटो अमित कन्नौजिया का था.


अमित कन्नौजिया का एक फ्रेम जड़ा फोटो यहाँ इस कमरे मेँ टेबल पर रखा था.युवती ने आगे बढ़कर टेबल से वह फ्रेम मड़ी फोटो उठा ली और सिसकने लगी.

इधर झारखण्ड के एक जंगली इलाके मेँ काफी तादाद मेँ नक्सली पुलिस चौकी पर आक्रमण करके अमित कन्नौजिया व उसके अन्य साथियोँ की लाशेँ उठा लाए थे और अब उनका अन्तिम संस्कार ससम्मान कर रहे थे.

08अगस्त 2014ई0 उत्तर भारत के सीतापुर शहर मेँ स्थित गेस्ट हाउस मेँ भारत परिषद द्वारा आयोजित सम्मेलन मेँ काफी संख्या मेँ लोग एकत्रित थे.वर्तमान मेँ जिसे प्रजातन्त्र सेनानी के प्रमुख इकरामुर्रहमान खां सम्बोधित कर रहे थे.दो युवतियोँ ने आपस मेँ खुसुरफुसुर की,"काल करते हैँ.काफी टाईम होगया.पूजा को अब तक तो आजाना चाहिए था."

"अमित!तुम तन्हा तो मैँ तन्हाई.हालाँकि तुम हालातोँ से त्रस्त हो नक्सली हो गये थे लेकिन इस उम्मीद के साथ मेँ जी तो रही थी कि तुम जिन्दा तो हो.तुम चले गये तो....."फिर युवती अमित कन्नौजिया की तश्वीर सीने सटा कर रोने लगी.


"कुप्रबन्धन, भ्रष्टाचार , मनमानी व अपनी अस्वस्थता को देखते हुए तुम अपने परिवार, समाज , सारे तन्त्र ,आदि के रहते तनाव के शिकार हो गये थे.अपने को तन्हा महसूस करने लगे थे.आप तो हम युवतियोँ के प्रति भी खिन्न रहने लगे थे;कमबख्त यह लड़कियाँ क्या चाहती हैँ?कोई काली कलूटी लूली लंगड़ी ही काश हमेँ पसन्द कर लेती?यही तो न! अमित,तुम वास्तव मेँ मूर्ख थे.मैँ तुम्हेँ कैसे बताती कि मैँ
तुम्हेँ चाहती हूँ.तुमने यह कैसे महसूस कर लिया कि कोई लड़की तुम्हेँ पसन्द नहीँ करती थी. तुमने किसी को मौका भी दिया क्या? "

मोबाइल पर किसी की काल आयी तो..

"हैलो"

" हाँ,हैलो! हाँ,मैँ पूजा ही बोल रही हूँ"-सीने पर से अमित की तश्वीर हटाते हुए युवती बोली.

"क्या गेस्ट हाउस नहीँ आना है?सम्मेलन शुरु हुए आधा घण्टे से ज्यादा हो गया है."

"सारी, मैँ नहीँ आ सकती. "

"अरे,पूजा!क्या बात?तुम तो रो रही हो?"


"आज का अखबार देखा है,अमित....."

15अगस्त 2 014 ई0 !

नक्सलियोँ का हस्तक्षेप पूरे देश मेँ बढ़ चुका था.नक्सलियोँ की ओर से जनता के नाम पर्चे पूरे देश मेँ जहाँ तहाँ बाँटे गये थे. जिन पर लिखा था कि-"आप क्या देश की वर्तमान व्यवस्थाओँ से सन्तुष्ट हैँ?यदि नहीँ तो क्या ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे रहने से काम चलेगा?उन लोगोँ से क्योँ डरते हो जो कानून के ठेकेदार बनते है लेकिन स्वयं अपने जीवन मेँ कानून का 25 प्रतिशत भी पालन नहीँ करते.देश के
अन्दर समस्याओँ का मूल कारण है-आदर्श व आचरण का एक दूसरे के विपरीत खड़े होना.आप कैसे श्री कृष्ण के भक्त हैँ?भूल गये कुरुशान(गीता ) का सन्देश?यदि श्री कृष्ण की शिक्षाओँ को अमल मेँ नहीँ ला सकते तो छोँड़ दो श्री कृष्ण की पूजा करना.गान्धीगिरी के खिलाफ मेँ भी कुछ नहीँ कहना चाहता हूँ लेकिन आप को देश की भावी पीढ़ी के लिए कोई स्पष्ट निर्णय लेना ही होगा. नहीँ तो आप ढोँगी पाखण्डी हैँ.उदास
निराश युवक युवतियाँ हमसे सम्पर्क करेँ.ऐसे नहीँ तो वैसे ,कैसे भी लेकिन जीवन जियो."


पूजा नक्सलियोँ के बीच खामोश खड़ी थीँ.

" पूजा! अमित मौत के वक्त भी तुम्हारा नाम ले रहा था."

पूजा की आँखोँ मेँ आँसू थे.

वह अपने ढाढस बँधाते हुए बोली-"मैँ तो आत्म हत्या का मन बनाये बैठी थी लेकिन अमित की डायरी ने मेरी आँखे खोल दी हैँ.मैँ दुनिया के हिसाब से नहीँ जी सकती न ही ध्यान भजन मेँ मन लगा सकती.हाँ,आत्महत्या कर सकती हूँ लेकिन ......"


"अमित के काम को आगे बढ़ाना ही होगा.हमेँ सर आलोक वम्मा के प्रत्येक कथन याद हैँ,मैँ नक्सल आन्दोलन के साथ हूँ लेकिन नक्सली हिँसक आन्दोलन के खिलाफ हूँ."

लेखक:अशोक कुमार वर्मा "बिन्दु"

आदर्श इण्टर कालेज

मीरानपुर कटरा, शाहाजहाँपुर (उप्र)

Thursday 5 August, 2010

JAI SHIVANI

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Wed, 04 Aug 2010 14:26 IST
Subject: JAI SHIVANI

आदिशक्ति माँ को कौन भूल सकता है?पहले उसे मातृशक्ति कहा गया फिर दुर्गोँ की उत्पत्ति के साथ माँ दुर्गा.विभिन्न परिस्थिति मेँ विभिन्न नाम.एक नाम -शिवानी.


नर से बढ़ कर नारी...

लेकिन कौन सी नारी?

नारी यानि कि स्त्रैण चित्त वाली!

स्त्रैण गुण क्या? अर्थात स्त्रैणता क्या?


स्त्रैणता यानि कि सेवा,प्रेम,मानवता, नम्रता,क्षमा,आदि गुण से युक्त.

ऐसे मेँ वास्तव मेँ जहाँ नारी का सम्मान है वहाँ स्वर्ग है.


अध्यात्म मेँ नारी शक्ति को मातृशक्ति के नाम से जाना जाता है.

पुरुषार्थ के चार स्तम्भ हैँ-,धर्म ,अर्थ ,काम,मोक्ष.जो नारी व्यक्ति ,परिवार,समाज,आदि को धर्म व मोक्ष की ओर ले जाए तथा मानवसत्ता पुत्र भाव से देखे?


यह क्या बकबास लिखते हो ?

आज स्वयं नारी भी क्या स्वीकार करने के लिए तैयार है?


खैर....


जय शिवानी!

Sunday 30 May, 2010

 अन्तरिक्ष मेँ भारत !
भारत एक सनातन यात्रा का नाम है.पौराणिक कथाओँ से स्पष्ट है कि हम विश्व मेँ ही नहीँ अन्तरिक्ष मेँ भी उत्साहित तथा जागरूक रहे हैँ.अन्तरिक्ष विज्ञान से हमारा उतना पुराना नाता है जितना पुराना नाता हमारा हमारी देवसंस्कृति का इस धरती से.विभिन्न प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ मेँ मातृ देवि के प्रमाण मिले हैँ.एक लेखिका साधना सक्सेना का कुछ वर्ष पहले एक समाचार पत्र मेँ लेख प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.
अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?
मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.
पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.
ASHOK KUMAR VERMA'BIND'
A.B.V. INTER COLLEGE, KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.
 Subject: प्रेम से साक्षात्कार !
प्रत्येक लोक मेँ प्रेम की बात है.जो इस धरती पर प्रेम है वही ईश्वरीय जगत मेँ भगवत्ता है.आत्मा स्वयं भागवत है,ईश्वर है.बताते हैँ कि गुप्त काल से पहले भगवान का अर्थ था-मोक्ष को प्राप्त व्यक्ति अर्थात आत्मा के स्वभाव मेँ अर्थात साँसारिकता मेँ अभिनय मात्र रहते हुए अपनी निजता मेँ जीना या अपनी स्वतन्त्रता मेँ रहना.अरविन्द घोष ने ठीक ही कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति अपनी आत्मा मेँ नहीँ जीता.वह अपने मन मेँ जीता है जिसकी दिशा दशा इन्द्रियोँ ,शरीरोँ व सांसारिक वस्तुओँ की ओर होती है .किसी ने ठीक ही कहा है कि दो शरीरोँ मिलन या सांसारिक वस्तुओँ के भोग की लालसा काम है,जिसके प्रतिक्रिया मेँ किये जाने वाले कर्म चेष्टाएँ हैँ.प्रेम की सघनता आत्मीय है,जिसे प्राणी पा जाता है तो उसका अहंकार विदा हो जाता है और नम्रता आ जाती है.द्वेष खिन्नता आदि खत्म हो जाती हैँ.हमेँ ताज्जुब होता है ऐसी खबरेँ सुन कर कि असफल प्रेमी ने की आत्म हत्या,शबनम के एक तरफा प्रेमी ने की शबनम की हत्या,सन्ध्या उसकी न हो सकी तो किसी की भी न हो सकी,प्रेमी प्रेमिका ने एक साथ पटरी से कट कर दी जान,आदि.हमे तो यही लगता है कि अभी 99प्रतिशत लोग प्रेम की एबीसीडी तक नहीँ जानते.इन सब की कथाएँ 'प्रेम कथाएँ' नहीँ 'काम कथाएँ' थीँ.प्रेम आत्म हत्या नहीँ कराता,हिँसा नहीँ कराता,बदले की भावना नहीँ जगाता,उम्मीदेँ रखना नहीँ सिखाता,आदि.तुलसी दास आज के प्रेमियोँ जैसे होते तो उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती थी?किसी से प्रेम का मतलब यह नहीँ होता कि अपनी इच्छाओँ के अनुसार उसे डील करना या अपनी इच्छाएँ उस पर थोपना.प्रेम का मतलब है जिससे हमेँ प्रेम है वह जैसा भी है उसे वैसा ही स्वीकार करना.प्रेम मेँ जीने का मतलब अपनी इच्छाओँ मेँ जीना नहीँ है.आज किसी से प्रेम है कल किसी कारण उससे प्रेम खत्म हो जाए,वह प्रेम नहीँ.प्रेम किसी हालत मेँ खत्म नहीँ होता रूपान्तरित होता है.मैने अपने प्रेम से यही अनुभव किया है.प्रेम मेँ 'पाने'या 'खोने'से कोई मतलब नहीँ है;सेवा,त्याग व समर्पण से है.अपनी इच्छाओँ के लिए नहीँ उसकी इच्छाओँ के लिए जीना है.जिससे हमेँ प्रेम है,इसका मतलब यह नहीँ कि हम उसे पाना चाहेँ.यदि उसको न पाने से हम खिन्न उदास या अपराधी हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम प्रेमी नहीँ है.अरे! वह जैसे खुश वैसे हम खुश!वह हमेँ पसन्द नहीँ करती या करता तो क्या ?
हम किसी को चाहते चाहते खिन्न चिड़चिड़े आदि होने लगेँ तो इसका मतलब यही है कि हम जिसे चाह रहे हैँ उससे हमेँ प्रेम नहीँ है.अच्छा तो यही है कि हम सभी का सम्मान करेँ और जो हमेँ चाहेँ उनसे प्रेम करेँ.प्रेम मेँ तो हम तब है जब अहंकारशून्य होँ,नम्रता बिना हम प्रेमवान नहीँ.
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Monday 24 May, 2010

प्रेम से साक्षात्कार !

----Forwarded Message---- From: akvashokbindu@yahoo.in To: akvashokbindu@yahoo.in Sent: Mon, 24 May 2010 16:32 IST Subject: प्रेम से साक्षात्कार !

प्रत्येक लोक मेँ प्रेम की बात है.जो इस धरती पर प्रेम है वही ईश्वरीय जगत मेँ भगवत्ता है.आत्मा स्वयं भागवत है,ईश्वर है.बताते हैँ कि गुप्त काल से पहले भगवान का अर्थ था-मोक्ष को प्राप्त व्यक्ति अर्थात आत्मा के स्वभाव मेँ अर्थात साँसारिकता मेँ अभिनय मात्र रहते हुए अपनी निजता मेँ जीना या अपनी स्वतन्त्रता मेँ रहना.अरविन्द घोष ने ठीक ही कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति अपनी आत्मा मेँ नहीँ जीता.वह अपने मन मेँ जीता है जिसकी दिशा दशा इन्द्रियोँ ,शरीरोँ व सांसारिक वस्तुओँ की ओर होती है .किसी ने ठीक ही कहा है कि दो शरीरोँ मिलन या सांसारिक वस्तुओँ के भोग की लालसा काम है,जिसके प्रतिक्रिया मेँ किये जाने वाले कर्म चेष्टाएँ हैँ.प्रेम की सघनता आत्मीय है,जिसे प्राणी पा जाता है तो उसका अहंकार विदा हो जाता है और नम्रता आ जाती है.द्वेष खिन्नता आदि खत्म हो जाती हैँ.हमेँ ताज्जुब होता है ऐसी खबरेँ सुन कर कि असफल प्रेमी ने की आत्म हत्या,शबनम के एक तरफा प्रेमी ने की शबनम की हत्या,सन्ध्या उसकी न हो सकी तो किसी की भी न हो सकी,प्रेमी प्रेमिका ने एक साथ पटरी से कट कर दी जान,आदि.हमे तो यही लगता है कि अभी 99प्रतिशत लोग प्रेम की एबीसीडी तक नहीँ जानते.इन सब की कथाएँ 'प्रेम कथाएँ' नहीँ 'काम कथाएँ' थीँ.प्रेम आत्म हत्या नहीँ कराता,हिँसा नहीँ कराता,बदले की भावना नहीँ जगाता,उम्मीदेँ रखना नहीँ सिखाता,आदि.तुलसी दास आज के प्रेमियोँ जैसे होते तो उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती थी?किसी से प्रेम का मतलब यह नहीँ होता कि अपनी इच्छाओँ के अनुसार उसे डील करना या अपनी इच्छाएँ उस पर थोपना.प्रेम का मतलब है जिससे हमेँ प्रेम है वह जैसा भी है उसे वैसा ही स्वीकार करना.प्रेम मेँ जीने का मतलब अपनी इच्छाओँ मेँ जीना नहीँ है.आज किसी से प्रेम है कल किसी कारण उससे प्रेम खत्म हो जाए,वह प्रेम नहीँ.प्रेम किसी हालत मेँ खत्म नहीँ होता रूपान्तरित होता है.मैने अपने प्रेम से यही अनुभव किया है.प्रेम मेँ 'पाने'या 'खोने'से कोई मतलब नहीँ है;सेवा,त्याग व समर्पण से है.अपनी इच्छाओँ के लिए नहीँ उसकी इच्छाओँ के लिए जीना है.जिससे हमेँ प्रेम है,इसका मतलब यह नहीँ कि हम उसे पाना चाहेँ.यदि उसको न पाने से हम खिन्न उदास या अपराधी हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम प्रेमी नहीँ है.अरे! वह जैसे खुश वैसे हम खुश!वह हमेँ पसन्द नहीँ करती या करता तो क्या ?

हम किसी को चाहते चाहते खिन्न चिड़चिड़े आदि होने लगेँ तो इसका मतलब यही है कि हम जिसे चाह रहे हैँ उससे हमेँ प्रेम नहीँ है.अच्छा तो यही है कि हम सभी का सम्मान करेँ और जो हमेँ चाहेँ उनसे प्रेम करेँ.प्रेम मेँ तो हम तब है जब अहंकारशून्य होँ,नम्रता बिना हम प्रेमवान नहीँ.

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Sunday 16 May, 2010

क्या है चरित्र?

किसकी नजर मेँ जिया जाए?जिसकी जैसी भावना ,उसकी नजर मेँ वैसी ही मेरी छवि.चाहेँ जिस रास्ते पर चलो , अँगुलियाँ उठाने वालोँ की कमी नहीँ.गीता मेँ स्व का अर्थ आत्मा या परमात्मा बताया गया है.शेष सब पर कहा गया है.यहाँ तक कि अपने शरीर तक को पराया या प्रकृति कहा गया.

चरित्र क्या है?समाज की नजर मेँ जीना या स्व की नजर मेँ जीना?हमेँ ग्रन्थोँ महापुरुषोँ की नजर मेँ जीना चाहिए या समाज की नजर मेँ जीना चाहिए?मैँ तो कहूँगा यश अपयश की क्या चिन्ता करना.कूपमण्डूक मतभेदी स्वार्थी की नजर मेँ क्या जीना.पहचानो सार्बभौमिक ज्ञान को .

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Thursday 13 May, 2010

DUKH AUR BHAGYHINTA.

BUDDH NE KAHA HAI-dukh ka karan TRASHNA hai.SUKH AUR DUKH MUN KA KHEL HAI.BHAGYHINATA JEEVAN KO DEKHANE KA NAJARIYA HAI.KISI KO AADHA GILAS KHALI DIKHAYI DETA HAI AUR KISI KO AADHA GILASH BHARA .

NARAKO PAR ADALAT KI NA...

Abhi kuchh din pahle sarvoch nyalay ne NARKO PARIKSHAN ,AADI jaisi janchon ko nakar diya,esa nirny vastav me kya nyayvadi kaha ja skata hai?niji svatantrata ka himayti hone ka matalb yah nhi ki vyavsthayen davngata,svarth,dhanbal,kubndhan,brashtachar,aadi ke bli chadh jaye?bhram,shanka,afvah,aadi ke chalte vyakti ka jeevan hi badal jata hai.samaj dabngata ke samane sir jhuka leta hai aur sidho ke samane dabngayi dikhata hai.gabah bhi dabang ke paksh me jyada khadhe hote hain.pees parti ke pramukh ka kahana uchit hai ki niyukti me NARKO PARIKSHAN anivary kiya jana chahiye.ADALAT KA VARTAMAN NIRNY BHAVISHY KE LIYE UCHIT NHI HAI.

#TWITTER PAR SACHIN#

twitter par sachin tendulakar ke mahaj ek din me70000 par pahuchi prashnashakon ki sankhaya. BHAYI!HAME TAJJUB HAI? Hame es par bhi vichar karna chahiye ki BHID KISAKE PICHE HOTI HAI?APANE JEEVAN ME ESKA ANUBHAV LO.ESA MASIH ,MOHAMMD SAHAB, SAYIN,OSHO,AADI JAB JINDA THE TO UNKE PICHE KITANI BHID THI?LEKIN AB?

#VAH BHI MURKH HOTA HAI....#

BUDDH ne kaha hai-dukh ka karan trashna hai.MOKSH tabhi mil sakata hai jb duniya se MOH BHNG ho jaye aur duniya me kartavw nate jiya jaye. main es par charcha kar raha tha ki DEVDATT PAtHAK BOLE-batchit se kya hota hai,jab koyi apana marta hai to malum chalata hai.tab har koyi rota hai jo marne vale ka khash hota hai. jo nhi rota hai vah MURKH hota hai.

BHAYI! maine anubhav kiya hai-PAGAL VAH BHI HOTA HAI JO LAKIR KA FAKIR HOTA HAI.devdatt pathak BHRAHAMAN ho kar bhi kya ADHYATM ka gyan rakhate hain?LASHON PAR NHI RONE VALON KO VE PAGAL KAHTE HAI.TAB TO UNHE APANE GHAR ME GEETA PUSTAK AUR SHRI KRISHAN KI TASVIRO KO NHI LAGANA CHAHIYE.