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Wednesday 19 August, 2020

कहानी: नशे की छांव/कहानीकार अशोक कुमार वर्मा 'बिंदु'

 

     रमन छ: वर्ष का एक बालक,जो कक्षा दो मेँ पढ़ता था.विद्यालय से आकर वह
अपना वस्ता अल्मारी मेँ रख हाथ पैर धोकर अपनी मां के पास पहुंच गया और
बोला-"मम्मी,खाना परस दो."

रमन ने भोजन खाना ही शुरु किया कि अपने पिता को एक कमरे से बाहर निकलते
देख वह बोला-"पापा,सर फीस जमा करने को कहते थे."


  "ऐ रम्मन्ना!" - लड़खड़ाते हुए रमन का पिता चीखा.


  उसका पिता नशे में था. वह आया और भोजन की थाली पर ठोकर मार दी.रमन को
उठा कर चारपायी पर पटक दिया .

    "पढ़ना लिखना कुछ भी नहीं.फीस फीस फीस....!"



       "अपना नशा अपने पास रखा करो . "  - रमन की मां बोली.


          "ये,तू क्या पिटेगी?"


           "आ........आ........!" -रमन का गला बंद हो गया . उसकी माँ
तुरन्त गिलास मेँ पानी ले रमन के पास पहुँची और रमन का गला व सीना सहलाते
हुए पानी पिलाने लगी . कुछ समय बाद रमन ने राहत की साँस ली .



    *            *           *


 रात्रि के बारह बज रहे थे.


रमन का पिता कालोनी के लड़कों व युवकों के साथ जुआँ खेल रहा था.



और रमन.....!?



रमन चारपायी पर खड़ा हो खिड़की से बाहर झांक रहा था.बाहर बरामडे मेँ उसका
पिता अन्य लड़कों व युवकोँ के साथ जुआं खेल रहा था.



 वह सोंचने लगा-विद्यालय मेँ प्रर्थना बाद जब पहला पीरियड लगा तो
क्लासटीचर रजिस्टर लेकर क्लास मेँ आते आते ही रमन को देख कर बोले-"रमन,तू
फिर आ गया आज.तुझे कितनी बार कहा कि फीस लेकर आना या फिर मम्मी या पापा
को साथ लेकर आना ."



     रमन झुंझला कर चीख पड़ा-

"कहता तो हूँ रोज घर पर.मैं क्या करुँ?निकाल दो मुझे क्लास से.रोज रोज फीस फीस."



फिर रमन रोने लगा.


और ऊपर से रमन के पास जाकर क्लासटीचर ने उसके गाल पर एक तमाचा मार दिया.


  "मार लो,मार लो,और मार लो."


      रमन को लेकर क्लासटीचर प्रिन्सिपल आफिस पहुँच गया.जहां मैं बैठा
प्रिन्सिपल से बात कर रहा था.मैं प्रकरण को जानता था.मन ही मन वौखलाहट से
भर गया,इन नन्हेँ मुन्ने बच्चों को कितना कष्ट होता है?इनकी कोमलता का
एहसास किसे है?


  "रमन,यहां आओ." - मैने रमन का हाथ खींच कर उसे अपने पास खड़ा कर लिया.


   "मैने कितनी बार समझाया है- रमन? परेशान न हुआ करो."



     "मैं क्या करुँ?"


      "आपको कुछ भी करने की जरुरत नहीं है?"


    मैने प्रिन्सिपल की ओर देख कर कहा-"आपसे मैं कह चुका हूँ . अभिभावकों
के व्यवहारों की सजा बच्चों को देना ठीक नहीं."क्लासटीचर से प्रिन्सिपल
बोले-"आपने इसके घर पर जाकर सम्पर्क किया?"


  "नहीं!क्या करुं जाकर वहाँ ?इसके पिता जी.... ."


   "मार तो डालेंगे नहीँ.यही बात है तो दो तीन अन्य अध्यापकों को लेकर
जाओ . अच्छा रमन, आप क्लास में जाओ."


  रमन क्लास मेँ आ गया.


      *          *          *



      " हा.......हा.........! "-सब ठहाके लगा रहे थे.रमन का पिता लोगों
के साथ नशे में होते हुए भी शराब पिए जा रहा था.


    कि -


रमन के पिता ने जब अपने होंठों पर अंगुली रख दी तो सब चुप हो गये.अब रमन
का पिता कमरे के अन्दर से आ रही रमन की आवाज को सुनने
लगा-"पापा-पापा-फीस!"


    रमन के पिता ने उठ कर खिड़की से झांका , रमन सो रहा था.


    "साला,स्वपन में भी फीस फीस रटता है."


   फिर वह कमरे की ओर चल दिया.



    "पापा,फीस.बच्चे भी मजाक बनाते हैं."


       अन्दर जा कर रमन के पिता ने रमन को झकझोर दिया और-
"साला!सपने में भी फीस....फीस... ."


रमन की मां चीख पड़ी-

"जाओ यहाँ से.खुद सोते नहीं औरों को भी नहीं सोने देते ."


रमन का पिता खामोश हो कमरे से बाहर निकल गया.


कहानीकार:अशोक कुमार वर्मा 'बिंदु'