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Friday 20 July, 2012

ब्लैक होल पर से रहस्य के पर्दे उठने जरुरी .

विज्ञान का ईश्वरीय कण प्रकृति की ही बात है जो कि शिव (कल्याण)कण के
अर्द्धनारीश्वर घटना (नाभिकीय विखण्डन) के बाद का है .


ब्लैकहोल के बाद अनन्त भगवान !

इस जगत मेँ जो भी ईश्वर हैँ वे इसी जगत के हैँ व बुद्धत्व को प्राप्ति के
पहले के हैँ . बुद्धत्व के बाद शून्य है .जिसके बाद फिर ब्लैक होल अवस्था
है .ब्लैक होल के बाद कहीँ अनन्त भगवान हैँ . जहाँ तक श्रीकृष्ण व
श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन जैसे ही पहुँच सकते हैँ .



सागर मेँ हम कुम्भ !

चेतना रुपी सागर मेँ हम व हमारा जगत कुम्भ के समान है जिसमेँ भी सागर
समाया है .कुम्भ टूट टूट कर विखर भी जाता है तो भी वह सागर लीन है .हमारा
शरीर व प्रकृति चेतना के बीच ही बनती बिगड़ती है .


ब्लैक होल की खोज !
<www.akvashokbindu.blogspot.com>
ईश्वरीय कण की खोज के बाद भी काफी कुछ बाकी है खोजना .ब्लैक होल पर से
रहस्य के पर्दे उठना जरुरी है .जो भी अभी खोजा जा चुका है वह व्हाईट का
है ,अभी तो व्हाईट का ही काफी कुछ खोजा जाना बाकी है . ब्लैक का खोजना तो
काफी दूर का मसला है .वैसे तो बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद हम अद्वैत मेँ
प्रवेश कर जाते हैँ लेकिन वह अद्वैत इस जगत मेँ अन्तर्मन के लिए ही है
.बुद्धत्व के बाद शून्य के बाबजूद भी द्वैत है ,व्हाईट व ब्लैक का .ब्लैक
का खोजना बाकी रह जाता है .

BY : ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'
<www.twitter.com/AKVASHOKBINDU>

Thursday 5 July, 2012

मुसलमान के मायने बड़े ?

हमारे पास इण्टर के दो छात्र उपस्थित थे ,एक मुस्लिम व दूसरा हिन्दू पण्डित था .जिनसे आध्यात्मिक चर्चा चल रही थी .हिन्दू छात्र बोला ,बड़े हिन्दू होते हैँ कि मुस्लिम ? मेरी नजर मेँ तो हिन्दू बड़े होते है ?मुस्लिम हंसते हुए बोला,हिन्दू तो जाटव वाल्मीकि भी होते हैँ .कहो कि ब्राह्मण बड़ा होता है ?


मैँ बोला , रोजमर्रे की जिन्दगी मेँ न जाने कितनोँ से सामना होता है .जो किसी भी जाति या किसी भी मजहब से हो सकता है .उनमेँ कौन बड़ा है ?जो भौतिक चकाचौंध मेँ है ,उसकी नजर मेँ 'बड़ा' की परिभाषा से,जो जातिवादी व मजहबी हैँ उनकी नजर मेँ 'बड़ा' की परिभाषा से मेरी परिभाषा मेँ अंतर है .

मेरी नजर मेँ बड़ा कौन है ? जो जातिवाद ,छुआछूत ,पक्षपात ,मनमानी ,कूपमण्डूकता ,आदि से हट कर सत्य ,ज्ञान ,कानून ,उदारता,आदि के आधार पर जीवन जीता है वह बड़ा है .आपने फूलोँ व फलोँ लदी डाली को देखा होगा ,वह झुकी होती है .बड़ा वह है जो उदार व नम्र है .

हिन्दू छात्र बोला ,हिन्दू व मुसलमानोँ मेँ कौन बड़ा है ?

मुस्लिम छात्र बोला ,तू ब्राह्मण जाति का होकर भी सरजी की बात नहीँ समझ पा रहा है ?सर जी ने अभी क्या बताया ?

<www.vedquran.blogspot.com>
मैँ बोला ,हमेँ रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ जो हिन्दू मुसलमान मिलते हैँ ,मै उनकी बात नहीँ करना चाहूँगा .उनमेँ से निन्यानवे प्रतिशत विचलित हैँ ,अज्ञानी व मजहबी हैँ .मैँ यहाँ पर शब्दोँ की बात करना चाहता हूँ .निरन्तर अभ्यास से शब्दोँ के पीछे छिपे असली मर्म को जानने के बाद हमारे भाव व विचार परिवर्तित होकर हमारा नजरिया बदलते हैँ और फिर जब हमारा नजरिया बदलता है तो विचार बदलते हैँ .
<www.antaryahoo.blogspot.com>

व्यक्ति जो शरीर से दिखता है व उसका आधा व्यक्तित्व होता है .शेष आधा व्यक्तित्व उसका उसके अंदर उसके भावनाओँ ,विचारोँ ,नजरिया ,सोँचने के ढंग मेँ होता है .
<www.akvashokbindu.blogspot.com>

हम दूसरे को पहचानने के नाम पर बड़े दम्भ मेँ होते हैँ .देखा जाये तो हम अपने को ही नहीँ पहचानते .जातिवाद ,मजहबवाद ,शारीरिक व ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ ,आदि मेँ उलझ कर हम अपना सारा जीवन गँवा देते हैँ लेकिन अपने को नहीँ पहचान पाते .

<www.ashokbindu.blogspot.com>

हम पचास प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश होते हैँ अर्थात अर्द्धनारीश्वर अंश .अपने जीवन मेँ जो अशान्त व असंतुष्ट रह जाते है ,प्रकृति(शरीर ,परशरीर ,धन दौलत ,संसाधन ,आदि) पाकर भी अशान्त व असंतुष्ट रह जाते हैँ .ऐसा क्योँ ?क्योँकि ये अपने ब्रह्मांश के लिए कुछ भी नहीँ करते .यज्ञ ,धर्मस्थल ,मूर्तियाँ ,पुस्तकेँ ,तीर्थ यात्रा ,आदि सब प्रकृतिअंश ही हैँ ,अनित्य हैँ
.ब्रह्मांश के लिए हमेँ क्या करना होता है ? कुछ भी नहीँ करना होता है .सिर्फ आँख बंद करके बैठ कुछ क्रियाएँ करनी होती हैँ ,मन को शान्त व उदार रखना होता है .

<www.islaminhindi.blogspot.com>

हिन्दू के मायने मुसलमान के मायने से संकीर्ण है ,मुसलमान शब्द के मायने बड़े हैँ .मुसलमान शब्द के मायने ईमान व सत से जुड़े हैँ लेकिन हिन्दू शब्द के मायने एक क्षेत्र विशेष से जुड़े हैँ .आर्य होने के लिए हिन्दू होना आवश्यक नहीँ है.प्रत्येक आत्मा सत होती है या ईमान मेँ होती है इसलिए मेरा विचार है कि हर आत्मा मुसलमान होती है.मेरी नजर मेँ
आर्य या आत्मा का गुण हिन्दू नहीँ हो सकता .जैन ,बुद्ध ,यहूदी ,पारसी ,ईसाई ,मुसलमान ,आदि सम्भवत: आत्मा के गुण हो सकते हैँ ?या आर्य होने के लिए गुण हो सकते हैँ .

हिन्दू के मायने से मुसलमान के मायने बड़े हैँ सम्भवत: ?

Saturday 14 April, 2012

नक्सली कथा : अनुशासनहीनता

 नक्सली कथा : अनुशासनहीनता
उत्तर प्रदेश के जनपद सोनभद्र का एक गांव कुर्मेठानवीपुर जो
सुन्दरी शहर से बीस किलोमीटर , के प्राईमरी स्कूल मेँ एक शिक्षक थे -
दिव्यसुत जाटव . स्कूल के हेडमास्टर व अन्य अध्यापिकाओं का वह कोई सहयोग
नहीं करता था शिक्षण कार्य व अपने दायित्वों के निर्वाह सिवा . इस कारण
हेडमास्टर, अध्यापिकाएं व ग्रामप्रधान उस पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते
रहते थे. ग्रामप्रधान के विरोधी ग्रामीण उसके सहयोग के लिए तैयार रहते थे
लेकिन वह उनका सहयोग लेना पसंद नहीँ करता था सिवा कुछ तटस्थ व ईमानदार
ग्रामीणोँ के सिवा .

स्कूल मेँ विभिन्न कार्योँ के लिए आया धन जो ग्रामप्रधान के सहयोग
से हेडमास्टर व अध्यापिकाएं हजम कर जाती थीं,का कुछ हिस्सा दिव्यसुत जाटव
को भी देने की कोशिस की गयी थी जब वह यहां नियुक्त हुआ था .

डेढ़ साल बाद असंतुष्टि व असंतोष के बीच से निकल कर वह डायट
मेँ आ गया.बोर्ड परीक्षा के दौरान उसे टीम एक साथ परीक्षाकेन्द्रों के
निरीक्षण पर लगा दिया गया था .

* * *

उस दिन 19 नवम्बर 2017 !

मुरी शहर की मुख्य सड़केँ इन्दिरा गांधी से सम्बंधित पोस्टरों
एवं कांग्रेसी झण्डों से सजी थी .एक मकान की तीसरी मंजिल से एक युवक ललक
यादव खिड़की से पर्दा हटाकर नीचे सड़क पर गुजरती बच्चों की रैली देख रहा
था.उसकी प्रेमिका गौरी उसके समीप खड़ी थी.कुछ मिनट के लिए वह गौरी की
बाँहों मेँ था लेकिन मन एक षडयंत्र मेँ ...?! एक घण्टा बाद वह रिवाल्वर
लिए अपने भाई मर्म यादव के सामने था.

आखिर मर्म यादव के अत्याचारों से नगर को मुक्ति कौन दिलाता ?शासन
प्रशासन भी सुनने को तैयार न था कुरुशान (गीता) से धर्मयुद्ध की सीख
लिया ललक यादव कि धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीँ होता.ललक यादव अब जेल
मेँ था.उसे कुछ दिनोँ के लिए प्रशासनिक पूछताछ के लिए सुन्दरी शहर लाया
गया था .जहाँ एक दिन उसे प्रशासन को रोकना पड़ा .दिव्यसुत जाटव से उसकी
मुलाकात हुई .


मनमानी पर खड़ा तंत्र . जिसमेँ सहयोग न करना तंत्र के मुखियाओं ने
आजकल अनुशासनहीनता मान लिया है और इस अनुशासनहीनतंत्र के खिलाफ जो अपनी
अंगुली टेंढ़ी कर लेता है वह इन मुखियाओँ की नजर मेँ नक्सली हो जाता है या
अच्छा नहीँ रह जाता है .सत्य को मुँह पर कहने वाला परिवार ,समाज व
संस्थाओँ मेँ लोगोँ की नजर से उतर जाता है .


बोर्ड परीक्षा के दौरान दिव्यसुत जाटव अपनी टीम के साथ एक
परीक्षा केन्द्र - 'अमर बालेन्द्र विद्यावती इण्टर कालेज,मिर्जापुर
कल्याण,जिला सोनभद्र ' मेँ जीप से प्रवेश किया तो कालेज मेँ शान्ति छा
गयी .
जब जीप से दिव्यसुत जाटव नीचे उतरा तो लोगों ने चैन की साँस ली .


लेकिन क्योँ ....?
आज से पांच वर्ष पूर्व सन 2012 ई0 मेँ दिव्यसुत जाटव इसी कालेज मेँ
अध्यापक था.ये कालेज तथाकथित बनियोँ व ब्राह्मणोँ के निजी सोंच सोंच से
चल रहा था.जहां लोकतांत्रिक व संवैधानिक मूल्योँ से हटकर मनमानी,जातिवाद
,चापलूसी ,हाँहजूरी,टयूशन,अभिभावक प्रधानता,आदि का वर्चस्व था.उनकी
व्यवस्था मेँ सहयोगी न होने के कारण दिव्यसुत जाटव पर अनुशासनहीनता के
आरोप थे.एक वर्ष बोर्ड परीक्षा के ही दौरान एक दिन इसी कालेज मेँ वह
डयूटी कर रहा था .परीक्षाकक्ष मेँ उसके साथ एक अन्य अध्यापक डयूटी कर रहे
थे जो कुछ परीक्षार्थियोँ की नकल मेँ मदद कर रहे थे. दिव्यसुत जाटव ने
उन्हेँ अनेक बार टोंका लेकिन वे अपनी हरकत से बाज नहीँ आये.जब वे एक
बच्चे की कापी ही लिखने लगे तो दिव्यसुत जाटव को न रहा गया और वह कक्ष से
बाहर आ गया.

"मैँ यहाँ डयूटी करने आया हूँ ,नकलचियोँ व नकलमाफियाओँ की हरकतोँ पर मौन
रहने नहीँ."

लेकिन दिव्यसुत जाटव की कोई मदद नहीं . हाँ , अगले दिनों उसे
परीक्षा डयूटी पर अवश्य नहीँ लगाया गया और अगले वर्ष बोर्डपरीक्षा के
दौरान अन्यत्र परीक्षाकेद्र पर रिलीव दिया गया जहाँ तो ओर भी हालत नाजुक
.पहले दिन डयूटी के बाद वह फिर आखिरी दिन पहुँचा .

"डयूटी ,कैसी डयूटी ?नकलचियों व नकलमाफियों की सेवा करना डयूटी ? "

दिव्यसुत जाटव जीप से निकलकर अपनी टीम के साथ आगे बढ़ गया.आगे बढ़कर
एक उस कमरे के सामने जा पहुँचा जिसके दरबाजे पर ताला लगा था.

"इसे खुलवाओ ."
कालेज मेँ काफी फोर्स आ पहुँची.
"चाबी कहीँ खोगयी है "

"झूठ मत बोलो ,हम जैसे अनुशासनहीन व्यक्ति बोलेँ तो ठीक है ."

सिपाहियोँ ने आकर ताला तोड़ दिया .कमरे के अंदर बैठे एक अध्यापक को
गिरफ्तार करवाते हुए "कापी और पेपर कहाँ है ? "
"झूठ मत बोलो ,असलियत लाखोँ लोगों तक पहुंच चुकी है .प्रत्येक कमरे
मेँ कैमरे फिट हैं ."

इसके बाद -
सभी कक्षनिरीक्षकों व केन्द्रव्यवस्थापक को गिरफ्तार कर लिया गया और
केन्द्र को निरस्त कर दिया गया.

दिव्यसुत जाटव बोला -"तुम्हारे तंत्र मेँ मैँ अनुशासनहीन था लेकिन
अब मैँ स्वयं अपना तंत्र खड़ा कर चुका हूँ और अपनी एक प्राइवेट जासूस
एजेंसी बना चुका हूँ "

































Thursday 8 March, 2012

08मार्च ,महिला दिवस : तो फिर क्योँ प्रतिवर्ष 5लाख बालिकाएं मार दी जाती हैँ

होली के अवसर पर मानवता के प्रेम,उदारता ,सेवा,विवेक,ज्ञान,आदि रंगों से सरावोर होते हुए आज महिला दिवस पर कुछ विचार
दे रहा हूँ . भारतीय नारीसमाज का यथार्थ भौतिक भोगवाद का शिकार हो चुका है. यहाँ वह धार्मिक उत्सवोँ ,धर्मस्थलोँ, आदि मेँ संख्या से पुरुषोँ की अपेक्षा ज्यादा नजर आती हैँ लेकिन उनके भी व्यवहारिक जीवन नजरिये मेँ धर्म, अध्यात्म व ज्ञान गायब होता है .

किसी ने भा+रत से अभिप्राय बताया है-प्रकाश मेँ रत.आइंस्टीन ने कहा है कि हमेँ हर वस्तु प्रकाशवान दिखाई देती है . हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश हैँ और पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ . ब्रह्मांश अलिंगी होता है,प्रकृतिअंश ही स्त्री या पुरुष है.


यदि ईश्वरीय प्रकाश कण -कण मेँ है तो हमारे प्रकृतिअंश अर्थात हमारे शरीर मेँ भी वह है .जो ब्रह्मांश ही है .जिसको जाने बिना हमारा धर्म या अध्यात्म पाखण्ड है .ये सब क्योँ ? आज महिला दिवस पर ऐसी बातेँ क्योँ ? ऐसा इसलिए क्योँकि हम अपने को जाने , अपने को जान लेने के बाद चाहेँ स्त्री हो या पुरुष हम सभी समस्याओँ से मुक्त हो जाएंगे . सिर्फ सशक्त कानून, सभी शास्त्रोँ के
ज्ञान,धर्मस्थलोँ के सम्मान, भौतिक संसाधन , आदि से मानव का कल्याण नहीँ होने वाला .

नारी हो या पुरुष उसे ज्ञानी,उदार,सेवक,अहंकार शून्य,साहसी,धैर्यवान,परोपकारी,चरित्रवान,आदि होना आवश्यक है.


नारी की समस्या क्या है ?नारी तो हर समस्या का समाधान है तो ऐसे मेँ फिर नारी की क्या समस्या?यदि समस्याएं हैँ तो इसके लिए नारी ही दोषी है.वह प्रथम शिक्षिका है माँ के रुप मेँ.


एक भारतीय महिला की एक झलक :


* * * * *

हमारी नजर मेँ एक अविवाहित महिला है .मेरे संज्ञान मेँ है कि जब वह शादी होकर अपने मायके से अपने ससुराल पहुँची तो उसे अपने ससुराल पक्ष से उपेक्षा व तिस्कार का ही सामना करना पड़ा लेकिन उसने धैर्य,शान्ति ,विवेक,उदारता, प्रेम,सम्वाद शैली,सेवा,चतुरई,आदि के सहयोग से काम लिया.जब उसके मायके वालोँ को मालूम चला कि उसकी ससुराल के लोग दुष्ट हैँ तो वे उग्र हो हस्तक्षेप करने के लिए
तैयार हो गये लेकिन उस महिला ने रोक लिया और कहा कि मैँ ही काफी हूँ .


" दो साल से तू उनकी दुष्टता बर्दाश्त कर रही है ." "भैया जी,मैँ बर्दाश्त नहीँ कर रही हुँ .मैँ........."


"पवन!खामोश क्योँ हो गयी तू .?"

"मैँ औरत जाति से हूँ ,मेरे सर जी मुझे मेरी निजता का रास्ता बता चुके है .मैँ जानती हूँ कि मेरे अन्दर क्या क्या है.मैँ औरत नहीँ यदि मैँ अपने ससुरालियोँ को न बदल न सकूँ ."

फिर ....?!


फिर पवन ने आगामी दो साल मेँ अपनी ससुरालियोँ के व्यवहार मेँ चेंजिंग कर दी.

अस्सी प्रतिशत से ऊपर दहेज प्रकरण झूठे .


* * * * * *

मानव सत्ता के दो भाग हैँ -पुरुष व स्त्री .दोनोँ का समअस्तित्व (श्रीअर्द्धनारीश्वरशक्ति) ही मानव सत्ता को जगत मेँ सम्मानित रख सकता है.पुरुषोँ की तरह स्त्रियोँ को भी स्वयं को जानना जरूरी है . स्त्री हो या पुरुष,हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश हैँ पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश .हम सिर्फ प्रकृतिअंश से ही स्त्री या पुरुष हैं.अपने को पहचाने से हमारी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी.

एक सर्वेक्षण के अनुसार दाम्पत्य जीवन को बनाने व बिगाड़ने का दायित्व स्त्री का ही है .मेरा मानना है कि अस्सी प्रतिशत से ज्यादा दहेज प्रकरण झूठे होते हैँ .

Thursday 2 February, 2012

नक्सली कहानी : मराठों बिच उत्तरी !

मुम्बई की एक सड़क के किनारे एक युवक ठेले से फल बेँच रहा था .मराठा दल के कुछ युवक तलवारेँ व डण्डा लेकर आ गये .वे मराठी भाषा मेँ चीखते व चिल्लाते जा रहे थे . जिसका हिन्दी मेँ मतलब था- मुम्बई मराठोँ की है .इन साले उत्तरीयोँ को कुचलोँ मारो ,जब तक मुम्बई छोँड़ कर भाग न जायेँ.


मराठा दल के युवक हिन्दीभाषियोँ की दुकानोँ ,ठेलोँ ,आदि को उजाड़ने लगे व दुकानदारोँ से मारपीट करने लगे.जब वे कुछ मुस्लिम युवकोँ की दुकानोँ पर तोड़फोड़ व उजाड़ करने लगे व एक फल के ठेले वाले को ललकारा तो ठेले वाला युवक स्वयं अपना ठेला पलट कर सीना तान खड़ा हो गया और चीखा- मैं भारतीय मुसलमान हूँ भारतीय मुसलमान ,बोलो मेरा प्रदेश कौन सा है ? बोलो .मैँ कहाँ जाऊँ ?

इसके बाद आसपड़ोस से मुसलमान ठण्डे ,लाठी,आदि लेकर इकट्ठे होने लगे . मराठा दल वाले भाग खड़े हुए .



मराठा दल के द्वारा एक अधेड़ ब्यक्ति मारा जा चुका था.जो फुटपाथ पर एक स्थान पर चाय बना कर बेँचता था .उसका बेटा जो की नक्सलियोँ के लिए काम करने लगा था ,उसका नाम था दिव्य धोबी. दोनोँ पाँच साल पहले ही अपना गांव छोड़ कर मुम्बई आ गये थे . नासिक से पच्चीस किलोमीटर दूर एक गांव 'अहिरान कूर्म' गांव मेँ इनके साथ एक घटना घट गयी थी .
पांच वर्ष पूर्व 'अहिरान कूर्म' गांव मेँ दिव्य धोबी .....!?दिव्य धोबी
गांव से एक किलोमीटर दूर स्थित एक कालेज 'कूर्मांचल यदु इण्टर कालेज, कुरु बिहार ,अहिरान कूर्म ,नासिक' मेँ कक्षा बारह का छात्र था. जिसकी बड़ी बहिन दिव्या देवी इसी कालेज मेँ अध्यापिका थी .कालेज के प्रधानाचार्य थे -तिलक व जटाधारी नरदेव शास्त्री . दिव्या देवी के प्रति जिसकी नियति ठीक नहीं थी . नरदेव शास्त्री का एक भाई मराठा दल का नगर अध्यक्ष था,जिससे पूरा नगर उसकी दबंगयी व मनमानी
से परेशान था विशेष कर सीधे साधे व सज्जन.


दिव्या देवी पर काफी दबाव था .उसका वश चलता तो वह कालेज के गेट की ओर देखना तक पसंद नहीं करती लेकिन पारिवारिक आर्थिक तंगी ने अनेक समस्याएं पैदा कर रखी थीँ .अधेड़ पिता परचूनी की दूकान चला तो रहे थे लेकिन दुकान की आमदनी से चार लड़कियों व दो लड़कों को पालना व उनकी शिक्षा व स्वास्थय की व्यवस्था बनाए रखना बड़ा कठिन था और ऊपर से जवान दो लड़कियों के शादी हेतु धन की व्यवस्था करने की
चिन्ता.दिव्या की माँ रागिनी देवी रक्त कैँसर से पीड़ित थी ,जिसके इलाज का खर्चा . दिव्या देवी अपने चरित्र से नहीं फिसली लेकिन नरदेव शास्त्री की छेंड़खानी बढ़ गयी .आखिर अवसर पाकर वह व कालेज प्रबंधक कालिका देव कुणवी दिव्या देवी का रेप कर बैठे .जब अनेक प्रलोभन के बाबजूद वह शान्त न हुई तो ....?! दिव्या देवी की हत्या कर दी गयी.कालेज का एक अध्यापक जावेद अली पटेल जब वहाँ पहुंचा तो उसे
खामोश रहने के लिए कहा गया .

लेकिन ....?!

"मैं मुसलमान हूँ , मुसलमान .( जावेद अली पटेल ने अपने मोबाइल से किसी नम्बर पर कालिंग प्रारम्भ कर दी थी) मैँ काफिर नहीं हूँ जो सत से मुकर जाये.नरदेव शास्त्री तूने अपनी बेटी की उम्र की दिव्या से कुकर्म कर उसकी हत्या कर दी ? मेरे पास तेरे खिलाफ अनेक सबूत हैं .अब तू...."

* * * * *


दिव्य धोबी को जावेद अली के माबाईल से कालिँग से स्थिति का संज्ञान हो गया था.जावेद अली दिव्या देवी की हत्या के आरोप मेँ जेल मेँ था जहाँ जेल प्रशासन के अनुसार उसने आत्महत्या की थी लेकिन दिव्य धोबी के साथ साथ हिन्दीभाषी व मुस्लिम जनता इसे हत्या मान रही थी.मीडिया के पास भी असलियत पहुँच चुकी थी.जेल के अन्दर बंद नक्सली जावेद अली पटेल के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गये थे. नरदेव
शास्त्री का भाई -रविकान्त ,जो कि मराठा दल से था - हिन्दू मुस्लिम रंग दे साम्प्रदायिक दंगे करवाने की योजना बना बैठा.ऐसे मेँ साम्प्रदायिक दंगों के बीच दिव्य धोबी के साथ कुछ चंद लोग रह गये जो स्वयं उसके व जावेद अली पटेल के परिवार से थे.आखिर मेँ फिर नक्सली नेता दिव्य धोबी की मदद करने को सामने आये और कुछ मुसलमानोँ के सहयोग से कालेज के प्रधानाचार्य व प्रबंधक की भी हत्या कर दी
गयी ,जिस पर साम्प्रदायिक दंगो की चादर चढ़ गयी.

पाँच साल बाद अब मुम्बई !

मराठा दल के युवक दिव्य धोबी के पिता की हत्या कर चुके थे. रविकान्त वर्तमान मेँ विधायक था.जिसके आवास को हिन्दी भाषियों व मुसलमानोँ ने घेर रखा था.दो दिन बाद जिन पर लाठी चार्ज कर दी गयी.दिव्य धोबी ने अपने नक्सली साथियों के

पूना के एक होटल को घेर लिया जहाँ रविकान्त एक कमरे मेँ युवतियोँ से अपने शरीर मेँ मालिश करवा रहा था.चंद मिनट बाद जिसकी हत्या कर दी गयी .

Wednesday 4 January, 2012

नक्सली कहानी : ठाकुर बनाम क्षत्रिय

झारखण्ड का एक गांव -कुरमाढेर नवीराम.नक्सलियों के खिलाफ शासन ने अपना वज्र आपरेशन तेज कर रखा था .इस गांव मेँ लगभग एक दर्जन भर नक्सली आकर छिप गये थे.जिन्हें गांव के दबंग ठाकुर जयेन्द्र सिंह ने अपने यहां आश्रय दे रखा था.गांव मेँ ही एक युवक रहता था -हरेन्द्र वाल्मीकि.जिसके पास मकान नाम से कुछ छप्पर पड़े थे तथा एक कमरा मिट्टी का बना रखा था ,जिसकी दीवारेँ व छत मिट्टी की बनी थी.घर
उसकी पत्नी व एक तीन वर्षीय लड़की थी.वह अपना जीवन अपनी ही जगह मेँ खड़े पीपल वृक्ष के नीचे पड़ी झोपड़ी मेँ एक साधक के रुप मेँ बिताता था .जहां वाल्मीकि समाज के नर नारी पूजा पाठ करने आते रहते थे.


जब हरेन्द्र वाल्मीकि को पता चला कि ठाकुर जयेन्द्र सिँह ने अपने यहां नक्सली छिपा रखे हैँ तो -

"भाई ये आज के ठाकुर हैँ .कायर तो विल्कुल नहीँ हैँ.इनका उद्धेश्य है जीवन मेँ धर्म व सच्चाई के सामने सीना तान कर चलना.ये अधर्म व झूठ के सामने विल्कुल नहीँ झुकते,ठाकुर हैँ न ?मैने जब आज के व ऋग्वैदिक कालीन क्षत्रियोँ मेँ अंतर व्यक्त करते हुए जब भी समाज मेँ ताल ठोँक कर अपने को क्षत्रिय कहा है तो साला कौन इनमेँ व वामनोँ से मेरे समर्थन मेँ आया ? हाँ ,ये जन हमारे विरोध मेँ अपना
झण्डा व डण्डा लिए जरुर खड़े मिले हैँ . "


आज से पांच वर्ष पूर्व की घटना है .हरेन्द्र वाल्मीकि का एक भाई था -शीतेन्द्र वाल्मीकि . वह अपनी आंखों के सामने एक गरीब व दलित बालिका पर अत्याचार होते कैसे देख सकता था ?कुछ दबंग ठाकुर लड़कोँ ने उस बालिका के साथ दुष्कर्म किया ही था,अब उसकी चांद गंजी व चेहरा काला कर उसे एक गधे पर बैठा कर गांव भर मेँ घुमा रहे थे और उसकी गंजे सिर पर जूते चप्पल मार रहे थे.शीतेन्द्र वाल्मीकि को न रहा
गया और दबंगोँ का विरोध कर बैठा.वह बालिका तो भाग कर गांव से बाहर आ गयी थी लेकिन दबंगों ने शीतेन्द्र वाल्मीकि की हत्या कर दी थी.

अब हरेन्द्र वाल्मीकि ,हरेन्द्र वाल्मीकि ठाकुर जयेन्द्र सिँह की बैठक के सामने जा पहुँचा .ठाकुरोँ के बीच एक मात्र क्षत्रिय साहस के खड़ा प्रतिकार कर रहा था.


वह बोलता -वह क्षत्रिय नहीँ जो समाज व मानवता की रक्षा के लिए साहस के साथ न खड़ा हो सके .आप लोग ठाकुर होकर भी अपने हित के लिए अपराधियोँ को गले लगाते रहे हो व अन्य को कष्ट देते रहे हो .नक्सलियोँ को आश्रय क्योँ ?


* * *
हरेन्द्र वाल्मीकि ने अनेक अधिकारियोँ को स्थिति से अवगत करा दिया था .सैन्य टुकड़ियां गांव आ पहुँची थीँ.गांव के दबंग ठाकुरोँ से बच भागी वह बालिका अब जवान हो चुकी थी जो अब एक न्यूज चैनल मेँ रिपोर्टर बन गांव मेँ आयी हुई थी.वह अर्थात स्तम्भी जाटव हरेन्द्र वाल्मीकि व कुछ नेताओँ के साथ गांव मेँ घूम घूम लोगोँ को समझा रही थी कि तुम लोग अपने अन्दर क्षत्रियत्व को जगाओ,क्योँ न
तुम किसी जाति से हो.शूद्रता अर्थात तम से भला नहीँ होने वाला. उसका जीवन निरर्थक है जिसके जीवन मेँ ऐसा कोई लक्ष्य नहीँ जिसके लिए वह मर सके .ज्ञान ,साहस व संसाधन के बिना हमारा जीवन क्या जीवन?अपने नजरिये व आचरण को महापुरुषोँ के दर्शन के आधार पर रखना चाहिए न कि भेड़ की चाल या फिर सिर्फ अपनी ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ के आधार पर.सिर्फ महापुरुषों को ताख मेँ रख अगरवत्ती,फूल,आदि चढ़ाने व
अपना सिर झुकाने से काम न चलने वाला.इससे तो तुम्हारी स्वयं की शक्ति कमजोर पड़ी है व 'स्व' पर भरोसा कम 'पर' पे ज्यादा हुआ है .कायरता का जीवन जीना क्योँ ? या अज्ञानता वश अपनी ही धुन मेँ जीना क्योँ ?


* * *


ग्रामीणोँ के सहयोग से सैन्य कार्यवाही मेँ नक्सली व नक्सलियोँ और अपराधियों को सहयोग देने वाले ठाकुर जयेन्द्र सिंह की हत्या कर दी गयी.जिसके विरोध मेँ देश की ठाकुर जाति सड़क पर उतर पड़ी और जाटवोँ व वाल्मीकियोँ से उनका संघर्ष आरम्भ हो गया.हरेन्द्र वाल्मीकि को मीडिया के सामने कहना पड़ा - बड़े होने का मतलब माया ,मोह ,लोभ,काम या अहंकार मेँ आकर अपनी मनमानी करना नहीँ है.हमेँ
धैर्य,साहस व अपने विवेक को बनाये रखना है .हमेँ द्वेषभावना मेँ आकर कोई कदम नहीँ उठाना है .हम तो द्रोह अर्थात अधर्म की खिलाफत के पक्षधर रहे हैँ . स्तम्भी जाटव के नक्सली होने के सवाल पर हरेन्द्र वाल्मीकि ने कहा कि स्तम्भी जाटव ' नक्सली वैचारिक टैंक ' की सदस्य बनी है जो नक्सली हिँसा के खिलाफ है .