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Wednesday 14 September, 2011

पाकिस्तान मेँ भी शुरु हुई अन्नागिरी

अन्ना आन्दोलन से अब लोग प्रेरणा लेने लगे हैँ.पाकिस्तान मेँ भी एक बुजुर्ग व्यवसायी ने सख्त कानून बनाने की मांग को लेकर सोमवार को आमरण अनशन शुरु कर दिया.राजधानी इस्लामाबाद के रहने वाले 68 वर्षीय रजा जहांगीर अख्तर ने बाजार मेँ ही अपने समर्थकों के साथ भ्रष्टाचार विरोधी अनशन शुरु कर दिया.वह पाकिस्तान मेँ भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए संसद से एक सख्त कानून पारित करने की मांग कर रहे हैँ.उन्होने पाकिस्तान को कल्याणकारी राज्य मेँ तब्दील करने का प्रावधान लाने की मांग करते हुए दक्षिण एशिया मेँ तेजी से बढ़ते सैन्यीकरण पर भी ध्यान आकर्षित करने की बात की.


मानवीय सभ्यता मेँ अहिंसा सबसे बड़ा शस्त्र है.दक्षिण एशिया के देशों की बुद्धिजीवी जनता को अन्ना आन्दोलन से प्रेरणा लेकर विभिन्न मुद्दों को लेकर आन्दोलित होना होगा.सत्तावादी व पूंजीवादी दक्षिण एशिया की जनता का भला करने से रहे.

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Monday 12 September, 2011

सपा का क्रान्तिरथ और समाजवाद व क्रान्ति!

प्राचीन काल से ही जागरण यात्राएं होती रही हैं.अपने,मानव व समाज के उद्धार के लिए प्रति पल जेहाद की आवश्यकता होती है.जिसके लिए प्रयत्न जारी रहना चाहिए लेकिन अब की यात्राएं सम्पूर्ण मानव व समाज के उत्थान को न लेकर वरन अपने गुट,जाति दल,आदि के लिए सिर्फ.लेकिन क्रान्ति .........क्रान्तिरथ......क्रान्ति का मतलब क्या है?क्रान्तिरथ का मतलब क्या है?सम्पूर्ण मानव जाति के लिए क्या क्रान्ति या क्रान्ति रथ....?या सिर्फ अपने या एक गुटविशेष के हित सत्ता भोग के लिए...?अच्छा है कि अखिलेश यादव क्रान्तिरथ ले कर निकल पड़े हैँ.वे 'समाज जोड़ो जाति तोड़ो' व 'सम्पूर्ण क्रान्ति' के लिए काश आन्दोलन करेँ.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>
Date: मंगलवार, 13 सितंबर, 2011 2:27:33 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: सपा का क्रान्तिरथ और समाजवाद व क्रान्ति!

दक्षिण पंथी व वाम पंथी विचार धारा का सह सम अस्तित्व का मैं पक्षधर रहा हूँ व लोहिया के विचारों से प्रभावित रहा हूँ. उप्र मेँ विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्य की बसपा सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनजागरण और सत्ता परिवर्तन के लिए सपा मुख्यालय से क्रान्तिरथ यात्रा पर निकल पड़े हैं.पार्टी सूत्रों के अनुसार 14सितम्बर1987को विपक्षी नेता मुलायम सिह ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ क्रान्ति रथ यात्रा निकाल कर प्रदेश मेँ कुशासन व भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था और वंचितों पिछड़ों तथा अल्पसंख्यकों मेँ विश्वास जगाया था.


यह सब क्योँ?सिर्फ सत्ता परिवर्तन या फिर व्यवस्था परिवर्तन?जनजाग्रति के लिए तो हर वक्त हलचल चाहिए न कि सिर्फ सत्ता परिवर्तन के तक सिर्फ.और जब अपना शासन आ जाए तो फिर विपक्ष मेँ रह कर जिन मुद्दों को लेकर विरोध किया जा रहा था,उनका हम समर्थक न बन जाएं.हमने तो यही देखा है कि सत्ता चाहे किसी की हो,ईमानदारी व हक के लिए किसी आम आदमी की नहीं सुनी जाती.विधायक मंत्री आदि सब धन,बाहु, जन,आदि के सामने समर्पण किये रहते हैँ.आम आदमी न्याय से दूर रहजाए

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Sunday 11 September, 2011

विकीलीक्स(wikileaks):विपक्षी बयान पर पागल जूलियन असांज?!

किसी की अभिव्यक्ति को अपने पक्ष या विपक्ष मेँ लेना खतरनाक है.वैचारिक जगत दो ही पक्ष हैं- सत्य व असत्य.

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>
Date: रविवार, 11 सितंबर, 2011 11:48:02 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: विकीलीक्स(wikileaks):विपक्षी बयान पर पागल जूलियन असांज?!

विकीलीक्स कब किसकी सच्चाई उगल दे,इसका कुछ पता नहीँ.नेता,मंत्री,शासक, प्रशासक,आदि सब इसके द्वारा अपनी सच्चाई जानने के बाद बौखला जाते है.सच्चाई को पचा पाने की दम बैसे भी कितनों को होती है?विकीलिक्स की ओर से आए दिन किए जा रहे खुलासा पर उत्तर प्रदेश की मायावती ने जमकर पलटवार किया है.मायावती ने जमकर पलटवार किया है.मायावती ने विकीलिक्स के तमाम खुलासों को बेबुनियाद और तथ्यहीन करार देते हुए इसके मालिक जूलियन असांज को पागल करार दिया.मायावती का कहना है कि विकीलीक्स का मालिक पागल हो गया है या फिर वह विरोधी पार्टियों के हाथों खेलकर उनकी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहा है.


फिल्मों मेँ एक सच्चाई होती है. नेता, अफसर, आदि सबके सब गुण्डों,माफियाओं,आदि के समर्थन मेँ खड़े पाये जाते है.सबके सब धर्म,कानून,आदि के विरोध मेँ खड़े मेँ पाये जाते हैँ .इतना नैतिक पतन हो गया है कि सच्चाई पर चलने वाले को पागल,सनकी,आदि कह कर समाज मेँ उसे उपेक्षित व अन्दर अन्दर उसके खिलाफ साजिशें रची जाती हैँ.सच्चाई के लिए जीने वाले को पहला विरोध अपने परिवार से ही झेलना पड़ता है.धन्य!शासन प्रशासन!अन्नाजय!

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Saturday 10 September, 2011

बरेली मण्डल मेँ सकलैन मियां के घायल होने के बाद सड़कों पर आक्रोश!

अन्ना आन्दोलन के बाद अब फिर बरेली मण्डल के कस्बोँ शहरों व जनपदों मेँ सड़कों पर भीड़ निकल पड़ी है.अब सड़क पर आक्रोश दिखाने का कारण उसके गुरु व समाजसेवी सकलैन मियां का घायल होना है.शुक्रवार की शाम उर्स मेँ बसपा विधायक की कार से बदायूं जिले में बरेली शहर प्रेमनगर स्थित शराफत मियां की दरगाह के सज्जादानशीं हजरत सकलैन मियां घायल हो गये थे.कुछ मुरीद धरने पर भी बैठ चुके हैँ.विदेशी मुरीद भी हेलीकाप्टर से आना प्रारम्भ हो चुके हैँ.इधर बदायूं मेँ लाखों मुरीदों के दबाव के चलते बसपा विधायक मुस्लिम खां समेत चार लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हो गया है.ककराला व अलापुर मेँ अब भी हजारों मुरीदों ने धरना व प्रदर्शन कर आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.इधर तथाकथित अपराधी बसपा विधायक मुस्लिम खां के चेहतोँ का कहना है कि सकलैन मियां पर क्या जानबूझ कर गाड़ी चढ़ायी गयी थी ?अन्जाने हुई घटना पर माफ करना क्या धर्म नहीं है?मो. साब ने तो अपने पर कूड़े फेंकने वाली औरत पर दया ही दिखायी थी..?इधर गैरमुस्लिम कट्टरपंथियों मेँ दूसरी ही प्रतिक्रिया है.मायावती सरकार के पक्षी या विपक्षी अलग अलग बयान दे रहे है.

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Friday 9 September, 2011

9/11 बरसी और आतंकवाद!

इस समय मीडिया मेँ 9/11 बरसी के चर्चे हैं .आतंकवाद पर समाचार व लेख सामने आरहेहैं.आतंकवाद खिलाफ लड़ाई मेँ दृढ़इच्छा कमी है.देश व देश के बाहर कोई भी शासक आतंकवाद को खत्म करने को प्रथम व सर्वोच्च वरीयता देना नहीं चाहता.आतंकवादी सरगना लादेन की मृत्यु से पूर्व के तीस मिनट की अमेरीकी शैली पर कम से कम भारत को तो सीख लेनी ही चाहिए हालांकि अभी अमेरीका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में लोगो की निगाहेँ संदिग्ध है.देशनागरिकों के सम्मान व सुरक्षा को हरहालत मेँ संवैधानिक कोशिशें होती रहनी चाहिए.आफसोस की बात हैं अभी जल्द दिल्ली हाईकोर्ट के सामने हुए बम विस्फोट में पीड़ित परिजनों को कांग्रेस मंत्रियों,नेताओं के विरोध में आखिर नारेबाजी क्यों करनी पड़ी ?इन नेताओं को अपनी कार्यशैली व सोंच का अध्ययन कर बदलाव की आवश्यकता है.देश के चलाने वाले कायर नेताओं की संख्या बहुतायत मेँ हैं . जब क्षत्रियों का ही क्षत्रियत्व सोया हुआ है तो अन्य नागरिकों व नेताओं का क्या कहेँ?जो क्षत्रियत्व (जातिभेद से ऊपर उठकर परोपकार व समाज देश,आदि की निष्पक्ष सेवा भावना) आज समाज,देश के हित मेँ उठता भी है,उसे अलोकतान्त्रिक ढंग से कुचल दे.

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Monday 5 September, 2011

नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल

 नक्सली कहानी:लालगढ़ का लाल
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लालगढ़ के एक कालेज मेँ सैनिकों ने कल ही छात्रों पर लाठियां चलायीं थीँ जो कि सैनिकों से कालेज खाली करने की मांग कर रही थीँ.
कालीदेवी के सामने एक बालक आदिवासी वेशभूषा मेँ मेडिटेशन पर बैठा था.खून से लथपथ चार छात्राएं मंदिर मेँ आकर गिर पड़ीँ.वह बालक उठ बैठा.उसके आंखों मेँ आक्रोश चमक रहा था.अपना धनुष तरकश उठा कर वह मंदिर से बाहर आ गया.सैनिक आदिवासियों को खदेड़ रहे थे.एक विछिप्त वृद्धा बोली-"बेटा!यह नेता पुलिस मिलेट्री कोई हमारी नहीं है और फिर कब जीतेंगे हम उनकी शक्ति के सामने?"
"दादा की याद है?कह कर क्या गये थे?हम शासन प्रशासन के सामने जीत नहीं सकते तो क्या,हम वहाँ जा कर एकता का प्रदर्शन तो कर सकते हैँ."
फिर वह बालक अपना धनुष तरकश संभालते हुए आगे बढ़ गया.
इधर मैं बीसलपुर से शाहजहांपुर ट्रेन से जा रहा था.निगोही स्टेशन पर कुछ मुस्लिम युवक एक सिपाही के साथ ट्रेन में आ चढ़े.वे गांधी की आलोचना कर रहे थे.मुझे बिना बोले रहा न गया.मैं बोल दिया-"....चाहेँ व्यक्ति किसी मत या पन्थ का हो यदि वह वास्तव मेँ धार्मिक व आध्यात्मिक है तो वह करुणा ज्ञान अन्वेषण मानवकल्याण अहंकारशून्यता आदि से जुड़ जाता है.मोहम्मद साब को आप मानते हैं मैं भी
मानता हूँ.जब वह उन पर कूड़ा डालने वाली औरत बीमार पड़ जाती है तो वे उसका हालचाल लेने पहुंच जाते हैं.यदि मोहम्मद साब की जगह हम होते तो ....?!जरा अपने से तुलना कीजिए,गांधी को छोंड़ों आप लोग अभी मोहम्मद साब तक को नहीं समझ पाये हैं.दरासल हम आप सब इन महापुरुषों के हैं ही नहीँ. आप सब अभी जिस स्तर पर जा कर बात कर रहे थे वह स्तर व्यक्तिगत स्वार्थों मतभेदों कूपमंडूकताओं उन्माद तनाव आदि से
भरा होता न कि दया करुणा समर्पण त्याग से.गलत तो गलत है चाहेँ ...."सिपाही बोला-"वरुण गांधी को ही लो मैं नहीं कहता कि वरुण गांधी भड़काऊ भाषण के कारण दोषी नहीं हैँ?इसके लिए पहले से ही उपस्थित परिस्थितियाँ या कारण भी दोषी हैः उसकी बात शासन प्रशासन क्यों नहीं करता?कारणों को सजा क्यों नहीं?सिर्फ वरुण गांधी दोषी क्यों?" मैं बोला-"लालगढ़ मेँ जो हो रहा है क्या हो रहा है?वैसा ही कि कोई
सरकारी महकमों शासन प्रशासन आदि की मनमानी अन्याय शोषण से परेशान होकर झूंझला जाये और ऊपर से शासन प्रशासन भी उस पर हावी हो जाये न कि उसके लिए न्याय व सहानुभूति का वातावरण बनायें और वास्तविक दोषियों को सजा देँ."

इधर-उस धनुर्धारी बालक के चेहरे पर अब भी आक्रोश स्पष्ट था.वह कह रहा था कि मेरे सरजी कहते हैं कि यदि सिर्फ उपदेश व भाषण ही सिर्फ महत्वपूर्ण होते तो न जाने कब की यह धरती स्वर्ग बन चुकी होती?यह धरती कर्मभूमि है कर्मभूमि.शब्दों के जाल...."जंगल के बीच कुटिया मेँ उस बालक व अधेड़ सन्यासी के अतिरिक्त कुर्ताधारी एक नेता भी उपस्थित था.
अधेड़ सन्यासी बोला-"सेक्यूलर फोर्स के आन्दोलन में आपके सर जी भी तो शामिल थे?क्या मिला उस आन्दोलन से?""तो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने या यहाँ कुटिया में जाप करते रहने से क्या होगा?मैं भी जानता हूँ कि अन्तिम निदान धर्म व अध्यात्म ही है.ऋषियों मुनियों नबियों के दर्शन मेँ हर समस्या का निदान है,यह मैं भी जानता हूँ.""बेटा!"-युवा नेता बोला."हाँ." "धैर्य से काम लो . दो की लड़ाई में तीसरा लाभ
उठाता रहा है.हम आदिवासियों के आन्दोलन का नक्सलीकरण हो रहा है.""हमेँ समर्थन चाहिए ही .अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता .हमें भी समूह चाहिए .नेताओं अफसरों कर्मचारियों से विश्वास उठ ही चुका है .कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,व्यक्तिगत स्वार्थ,भौतिक भोगवाद,सांस्कृतिक आक्रमण,तुष्टिकरण नीति,आदि,के बीच हम किससे उम्मीद रखेँ?" "बेटा,तुम जिस रास्ते पर हो वह रास्ता देश को गृहयुद्ध की ओर ले जाने
वाला है." "हूँ!और नेता अफसर कर्मचारी विधायक एमपी आदि सब जो कर रहे हैँ वह देश को जिस रास्ते पर ले...... ."बेटा,समझता हूँ तुम्हारा दर्द!तुम तो होशियार हो.भावावेश में आ कर कोई कदम नहीं उठाना चाहिए." बालक सिर उठा श्रीकृष्ण की तश्वीर को देख कर गहरी गहरी साँस लेने लगा .
"होशियार तो आप नेतागण हो? जोचोर,अपराधियों,बदमाशों, साम्प्रदायिकों,जातिवादियों, पूंजीपतियों,माफियाओं,आदि के समर्थन में खड़े पाये जाते हैँ?...और आप लोगों का सेक्यूलरवाद?हिन्दुओं के पक्ष में जा कोई जो करे वह साम्प्रदायिक है और जो गैरहिन्दुओं के पक्ष मेँ जा कर हो क्यों न भविष्य मेँ वह देश के लिए घातक हो,साम्प्रदायिक नहीं है?विदेशियों को देश में आश्रय देने वालों पर अंगुली
उठाते हो और जो देश के अन्दर देश व संवैधानिक धरोहरें हैं,उनके खिलाफ खड़े है जो उनको वोटों के स्वार्थ में आगे बढ़ने का अवसर दे रहे हो?मस्जिदों,आदि के नीचे दबे पुरातात्विक सच को आप नेताओं को सच कहने की हिम्मत नहीं है?नेता जी सुभाष चन्द्र वोस व शास्त्री की मृत्यु सम्बन्धी,नेहरु बेटन सम्बन्धों सम्बन्धी,अमेरीका मेँ ओशो को थेलियम देने सम्बंधी,आदि पर आप नेता कोई प्रश्न उठाने की
हिम्मत नहीं रखते?आप नेताओं ने क्या कभी सोंचा कि भावी इतिहास में क्या हमारी गिनती देशभक्तों व नायकों मेँ होगी? "पुन:-"जय श्रीकृष्ण!धर्म के पथ पर कोई अपना नहीं होता.मैं आप लोगों की नहीं सुनने वाला. मेरे पास भी बुद्धि व विवेक है.मुझे आप लोगों से नहीं,महापुरुषों व ग्रंथों से सीख लेनी है.मेरे सरजी भी कहते थे कि समाज क्या चाहता है- यह मत देखो?यह देखो महापुरुषों व ग्रंथों मेँ क्या
है?जय कुरुआन जय कुरुशान! "कुटिया मेँ एक ओर एक कलैंडर में सूर्य,दूज चन्द्रमा व तारा का चित्र बना था और लिखा था-ओ3म आमीन!जिस पर निगाह डालते हुए बालक कुटिया से बाहर आ गया.एक ओर से कुछ सशस्त्र युवतियों के बीच से एक बालिका दौड़ती हुई बालक के पास आयी-"लाल महतो,तेरे वो विचार क्या मर गये?तू तो बड़ा हो कर अफसर बनना चाहता था लेकिन बागी बन बैठा.""बर्दाश्त करते करते बहुत हो गया.बचपन
सेहीघर,स्कूल,फिर समाज मेँ लोगों कीमनमानी,कुप्रबंधन,भ्रष्टाचार,आदि को सहता रहा लेकिन अब नहीं.रोज मर मर कर जीने से अच्छा है,एक बार मर ना.."
@अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'




Friday 2 September, 2011

नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

हरिकृष्ण कायस्थ केशव कन्नौजिया के साथ एक पेँड़ पर बैठा मचान पर बातचीत कर रहा.ये जहां थे वह जंगली इलाका था.कुछ शस्त्रधारी युवक युवतियां इधर उधर गस्त कर रहे थे.

एक झोपड़ी के अन्दर एक किशोरी कुछ युवतियों के साथ बैठी थी.जिससे एक युवती बोली-"....तो तुम ही फरजाना हो.वर्मा से लेकर बांग्ला देश तक और बांग्ला देश से यहां तक तुम्हारे साथ जो जो हुआ उससे ज्ञात हो गया होगा कि ये समाज कैसा है?हम लोगों की मानों तो हम नक्सलियों के साथ आ जाओ."

"समाज चाहे कितना भी बुरा हो जाए लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समाज मेँ अच्छे लोग रह ही नहीं गये."

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: go@blooger.com
Sent: Thu, 01 Sep 2011 19:56 PDT
Subject: नक्सली कहानी:असन्तोष की आंधी!

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी मीडिया के सामने बोल रहे थे कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.अहिंसा से बढ़कर कोई अन्य शस्त्र नहीं है.


जंगल के बीच कुछ झोपड़ियां पड़ी हुई थीँ.जिनमेँ से एक झोपड़ी मेँ कुछ सशस्त्रधारी युवक युवतियां लेपटाप पर समाचार देख रहे थे.जहां केशव कन्नौजिया भी उपस्थित था.


इधर मैं मीरानपुर कटरा मेँ कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा भावी अहिंसक नक्सली आन्दोलन की संभावनाओं पर बातचीत कर रहा था.इन दिनों अन्ना आन्दोलन महानगरों व कस्बों से निकल कर गांवों मेँ भी पहुँच चुका था.मैं लगभग पन्द्रह वर्ष से अन्ना हजारे नाम से परिचित ही नहीं वरन प्रभावित था.

फरबरी सन 2011ई से टीम अन्ना की नई दिल्ली मेँ सक्रियता ने हमें उत्साहित कर दिया.मेरे अन्दर बैठी भावी क्रान्ति की रणनीति,जिन पर मैने स्वलिखित उपन्यासों मेँ भी जिक्र किया है;टीम अन्ना के माध्यम से पूर्ण होने की उम्मीद करने लगा था.मैं भी एक अच्छे हेतु के लिए ही दुनिया मेँ आया था.बचपन से ही मैं आम आदमी की भीड़ से अलग थलग हो महापुरुषों, बुद्दिजीवियोँ,आदि की पंक्ति में खड़े होनेको
लालायित होने लगा था लेकिन अपने को इसके लिए तैयार न कर सका.मेरी प्राईमरी एजुकेशन एक सन्त(बीसलपुर मेँ बड़े स्थल के सामने सड़क पर कुमार फर्नीचर के सामने गली मेँ मन्दिर के समीप) के द्वारा
व श्री हरिपाल सिंह,ठाकुर पूरनलाल गंगवार व टीकाराम गंगवार के द्वारा प्रारम्भ हुई.मेरे साथ सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन बस अपनी अन्तरात्मा की आवाज के आधार पर चलने के लिए संकल्प का अभाव था.अब अन्ना आन्दोलन हमेँ उद्वेलित कर रहा था.आखिर व्यवस्थाओं व हालातों से असन्तुष्ट व्यक्ति आन्दोलनों से प्रभावित क्यों न हो?मेरे अन्तर्जगत में खामोश पड़े आन्दोलन के एक हिस्से का अवतार था यह
अन्ना आन्दोलन,असन्तोष की आंधी.


मैं कृष्णकान्त के कमरे पर बैठा इण्टरनेट पर प्रकाशित स्वरचित नक्सली कहानी 'न शान्ति न क्रान्ति' को पढ़वा रहा था.

केशव कन्नौजिया असन्तोष को झेलते झेलते नक्सली हो चुका था.वह झोपड़ी के अन्दर बैठा जब मोदी के इस कथन को सुना कि आतंकवादियों व नक्सलियों को अन्ना आन्दोलन से सीख लेनी चाहिए.

"केशव....."-एक युवती बोली.


केशव कन्नौजिया के आंखे नम हो चुकी थीँ.वह उठ कर झोपड़ी से बाहर आ गया.


"बीजेपी नक्सलियों के विरोध मेँ रहेगी ही.मुसलमानों को आतंकवाद का विरोध करना चाहिए.मुसलमान वोट जब ज्यादा होगा तो वे चाहेँ जो करवा लेँ .मुस्लिम जेहादी पाक,कश्मीर, हिमाचल,यूपी,बिहार,बांग्लादेश,आदि को मिला कर मुगलस्तान का सपना देखते है.यदि अपनी इस ऊर्जा को अखण्ड भारत व सार्क संघ की संभावनाओं की ओर मोड़ दिया जाए तो ...."

"अरमान!तुम तो 'सर जी' की भाषा बोलने लगे हो.देखो केशव आ रहा है."


तब दोनों युवक खामोश हो गये.

* * *

आज 31 अगस्त सन 2011ई0!


सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेताया कि दस साल रुक जाईए लोग आपको सबक सिखायेंगे.तीन दिन पहले आप इसके गवाह रहे हैँ.आगे आन्दोलन व विरोध प्रदर्शन इससे भी बड़ा होगा.


गोधरा कांड के बाद गुजरात कांड में दोनों वर्ग के कट्टरपंथियों को मौत के घाट से उतारने वाला व असफल 'सेक्यूलर फोर्स'आन्दोलन को चलाने वालों की टीम मेँ शामिल विदुर राज गोडसे के बाद अब सफेद होने लगे थे.


"शायद हम लोग गलत रास्ते पर ही थे?सबसे बड़ा शस्त्र है- अहिंसा."

अरमान की उम्र लगभग सोलह वर्ष की तो रही ही होगी .गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में हुए गुजरात कांड
के दौरान शिवानी के साथ रांची में आ जाना पड़ा . जहां वह अहिंसक नक्सली आन्दोलन के हितैषी आलोक वम्मा के सहयोग से रह कर पढ़ाई कर रहा था . हालांकि सन 2008 ई0 से लापता थे.एक न्यूज चैनल का तो कहना था कि नक्सलियों ने उसकी हत्या करवा दी थी.

रांची मेँ एक मीटिंग मेँ विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य,चरित्र वम्मा,आदि सहित कुछ नक्सली नेता उपस्थित थे.ये नक्सली नेता नक्सली आन्दोलन को अहिंसक बनाने से सहमत नहीं थे.


विश्वा(युवती),विदुरराज गोडसे,बिन्दुराज चाणक्य,बिन्दुसार कौटिल्य, चरित्र वम्मा यह कहते हुए मीटिंग कक्ष से बाहर हो गये कि आप लोग अपने आन्दोलन को अहिंसक नहीं बना सकते तो कोई बात न लेकिन वक्त तुमको खामोश कर देगा.


एक नक्सली बोला-"हम आपके विचारों का सम्मान करते हैं लेकिन......"

"लेकिन - वेकिन क्या....अपने मन का अध्ययन करो,आप सब कुण्ठित होचुके हो.आप लोगों का मन आक्रोश से भर...."चरित्र वम्मा बोला.

एक नक्सली बोला-"सारी!".


दूसरा नक्सली बोला-"आप लोग नक्सली आन्दोलन के समर्थक हैं,अहिंसक ही सही.नहीं तो.....".


"आप लोग ईमानदारी से तर्क करें तो अन्ना के अहिंसक आन्दोलन के समर्थन में अवश्य हिंसा का त्याग कर देंगे."
-बिन्दुराज कौटिल्य बोला.

"आप लोगों ने क्या हिंसा नहीं की?"-एक नक्सली बोला.

"अब की बात करो."

इधर जंगल मेँ एक पेँड़ के मचान पर केशव कन्नौजिया हरिकृष्ण कायस्थ के साथ बैठा बातचीत कर रहा था.

"मुरी में कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ता देव पाल यादव व उसके तेरह वर्षीय पुत्र मर्म यादव के खिलाफ जनता की कार्यवाही तेज होती जा रही है."


जाहद के साथ बांग्ला देश से आयी फरजाना विभिन्न परिस्थितियों से गुजरने के बाद किशोरा वस्था मेँ वह मुरी शहर आ पहुंची.जहाँ वह मर्म यादव के बाबा राजेन्द्र यादव के सम्पर्क मेँ आ गयी थी.राजेन्द्र यादव उसे अपने मकान पर ले आये जहां वह घरेलू कामों को निपटाने लगी.
उसका पढाई मेँ ललक यादव सहयोग करने लगा जो कि मर्म यादव का भाई था.


मर्म यादव अपनी उम्र के लड़कों से दूने तन का था .जो लड़कियों के नियति ठीक नहीं रखता था.फरजाना प्रति भी नेक दिल न था.