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Monday 8 August, 2011

नक्सली कथांश : कब खत्म नक्सल

हरिकृष्ण कायस्थ आगे बढ़ा लेकिन कोई भी सहयोग के साथ सच्चाई को रखने वाला नहीं मिला.कुछ मुस्लिम युवक ही सिर्फ सहयोग में थे.पूर्व विधायक यदुधन राज यादव ने सिर्फ इतना किया था कि कालेज कमेटी के सदस्यों से मिले थे लेकिन वह हरिकृष्ण कायस्थ व उनके सहयोगियों को सन्तुष्ट नहीं कर सके.ऐसा ही जिला कार्यालय पर शिक्षा अधिकारियों के द्वारा हुआ.सब के सब शिक्षा माफियाओं के समर्थन में खड़े.

केशव कन्नौजिया के पथ को क्या स्वीकार करना पड़ेगा?
क्या टेँढ़ी अंगुली से घी निकालना गलत है?इसके बिना चारा क्या?मेरे साथ यह अच्छाई है कि मैं मरने के लिए भी तैयार हूँ ऐसे में मैँ क्या नहीं कर सकता?ऐ श्वेतवसन अपराधियों में कितने मरने के लिए तैयार है?ऐसे में हम संघर्ष कर दुनिया को मैसैज तो दे ही सकते हैं.और फिर जब धर्मशास्त्र ही हिंसा से भरे हैं तो फिर मैं कुरुशान(गीता) के आधार पर क्यों नहीं आगे बढ़ सकता?गीता आज भी प्रासांगिक है. चन्द्रसेन क्या अपराधी था?यदि अपराधी था भी तो उसे अपराधी बनाने वालों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा गया?फिर एक ओर जेल में ही हत्याएं?
आखिर नक्सलवाद क्यों न पनपे?आदिकाल से अब तक कब खत्म हुआ नक्सलवाद.....?

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नक्सली कहानी : हिन्दू तो स्वार्थी

अब लोगों को शिकायत है कि हरिकृष्ण कायस्थ तो मुस्लिम लड़कों को लिए घूमता रहता है.ग्रामीण क्षेत्र मेँ एक कालेज - बुध इला इण्टर कालेज ,ग्राम नवीरामकुनबी.यह कालेज उप्र के शाहजहांपुर जिला के कटरी क्षेत्र में स्थित था.इस क्षेत्र मेँ बंदूक उठा उठा वे लोग आते रहे जो शोषण व अन्याय के शिकार होते रहे और शासन प्रशासन भी जिसकी मदद न कर सका.आखिर श्वेतवसन अपराधियों पर कब रोक लग सकी?यह कटरी क्षेत्र नकल माफियाओं के लिए काफी चर्चित रहा है.यदुधन राज यादव जब विधायक बने तो उन्होंने नकल माफियाओं पर नकेल कस दी और नकल न होने दी लेकिन वे दुवारा अभी तक विधायक नहीं हुए.अनेक कालेज के सर्बेसर्बा धड़क धीर सिंह यादव विधायक होने लगे.बुध इला इंटर कालेज के जूनियर कक्षाओं हेतु चार अध्यापकों की नियुक्ति थी.जिनमें से एक अध्यापक थे-हरिकृष्ण कायस्थ.जूनियर कक्षाओं हेतु जब एड आयी तो इन अध्यापकों को छोंड़ कर अन्य अध्यापकों को इस प्रक्रिया मेँ शामिल कर लिया गया.चारों अध्यापकों में बेचैनी हुई लेकिन आगे कौन बढ़ा?हरिकृष्ण कायस्थ अकेला ही चल दिया.हिन्दू तो कोई उसके सहयोग में न आया कुछ मुस्लिम युवक जरुर उसके सहयोग मेँ आ गये थे...

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नक्सली कहानी:शिक्षा जगत के दंश

युवक हरिकृष्ण कायस्थ सारी रात जागता रहा था.

"किसी ने कहा है कि यदि मरने व मारने पर उतारु हो जाया जाये तो लक्ष्य पाया जा सकता है.समाज को एक मैसेज तो भेजा ही जा सकता है."

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <varunjoshi2010@gmail.com>
Date: बुधवार, 3 अगस्त, 2011 8:32:04 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <spntodaynews@gmail.com>
Date: शुक्रवार, 29 जुलाई, 2011 10:07:42 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <go@blogger.com>
Date: मंगलवार, 19 अक्‍तूबर, 2010 8:04:46 अपराह्न GMT+0530
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 19 Oct 2010 18:47 IST
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

<ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>

मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.


अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.

लेकिन-


वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.

मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.


फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.


"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."


जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.


सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.


लेकिन...


जिसकी लाठी उसकी भैस!...चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?


दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!


एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .


केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?


केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.


अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.


" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."



जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.


"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

नक्सली कहानी:शिक्षा जगत के दंश

युवक हरिकृष्ण कायस्थ सारी रात जागता रहा था.

"किसी ने कहा है कि यदि मरने व मारने पर उतारु हो जाया जाये तो लक्ष्य पाया जा सकता है.समाज को एक मैसेज तो भेजा ही जा सकता है."

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Date: बुधवार, 3 अगस्त, 2011 8:32:04 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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Subject: नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.


अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.

लेकिन-


वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.

मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.


फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.


"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."


जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.


सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.


लेकिन...


जिसकी लाठी उसकी भैस!...चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?


दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!


एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .


केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?


केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.


अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.


" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."



जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.


"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

Saturday 6 August, 2011

यति के साथ

आज से लगभग आठ करोड़ वर्ष पूर्व जब पृथुमहि पर वर्तमान मेँ उपस्थित हिमालय के स्थान पर सागर था.
सनडेक्सरन निवासी एक तीननेत्री अपने अण्डाकार यान से एक यति मानव के साथ पृथुमही की यात्रा पर था.
यह वह काल था जिसे जीवनशास्त्रियों,मानवशास्त्रियों,पुरातत्वविदों,आदि ने इस काल को अभिनूतन काल कहा है.

"आदम व हबबा के उत्त्पत्ति का स्थान हालांकि सउदी अरब या भूमध्यसागरीय प्रदेश था लेकिन ज्ञानी मानव का विस्तार का कारण तुम यति मानव होगे.सांतवें मनु के पूर्वज यति ही होंगे. "

यति खामोश थाय.

"आज यहाँ सागर है.भविष्य में यहां पर पर्वत होगा.इसका मूलस्थान ब्रहमदेश नाम से जाना जाएगा.जहाँ सूक्ष्म अनन्त शक्ति अंश विराजमान होकर मानव सभ्यता को पल्लवित व विकसित करने के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी.विभिन्न आत्माओं में बंट कर ब्रह्म यहीं बास करेगा.धरती के अन्य प्राणी स्थूल,भाव,सूक्ष्म,मनस भाग शरीर से मुक्त हो आत्मा मेँ प्रवेश कर यहीं से नियन्त्रित हों और धरती पर जन्म लेने वाली पूर्वजाग्रत आत्मा के मदद के लिए यहीं से सहायता को आत्माएं पहुंचेंगी.यति का शरीर धारण कर यहां आत्माएं स्थूल,भाव,सूक्ष्म व मनस मुक्त रहोगे "

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Friday 5 August, 2011

जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक

कांग्रेस के जनविरोधी लोकपाल के विरोध में रुकुम सिंह,विपिन गंगवार,रेहान बेग,अरुण कुमार,खुशीराम वर्मा ,राजेन्द्र प्रसाद ,सुजाता देवी शास्त्री, आदि ने अपने विचार रखे.कार्यक्रम का संचालन राजेन्द्र प्रसाद शर्मा व अध्यक्षता श्यामाचरन वर्मा ने की.

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From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: <akvashokbindu@yahoo.in>,<freelance@oneindia.co.in>
Date: शुक्रवार, 5 अगस्त, 2011 9:19:43 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "firozhindustan2010@gmail.com" <firozhindustan2010@gmail.com>,"shbkhartimes@gmail.com" <shbkhartimes@gmail.com>,"aajbareilly@gmail.com" <aajbareilly@gmail.com>,"speakoutedit@timesgrup.com" <speakoutedit@timesgrup.com>,"mudda@jagran.com" <mudda@jagran.com>
Date: शुक्रवार, 5 अगस्त, 2011 9:16:36 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: जन उपेक्षाओं के बिना लोकपाल निरर्थक लेखक : अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

(मीरानपुर कटरा)प्रजातन्त्र मेँ प्रजा का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप आवश्यक है और उसे विश्वास मेँ लिए बिना सरकारों के कार्य प्रजा का गला घोटने वाले हैँ.लोकपाल विधेयक पर जनता के अरमानों का गला घोट कर केन्द्र सरकार ने अपने प्रजातन्त्र विरोधी चरित्र को उजागर किया है.

केन्द्र सरकार द्वारा पेश किए गये लोकपाल विधेयक का विरोध करते हुए मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'ने बताया कि जनहित व देशहित से बढ़ कर कोई हित नहीं हो सकता.कांग्रेस के लोकपाल विधेयक ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस आम आदमी से हट कर कुछ मुट्ठी भर लोगों का हित चाहती है.जो सन 1947ई0 तक अंग्रेजों की हाँहजूरी करते रहे ,वे व उनके वंशज क्या कांग्रेस में बिल्कुल नहीं हैँ? सन 1947ई0 से लार्ड माउण्टबेटन की कृपा से कांग्रेस के चरित्र की उल्टी गिनती प्रारम्भ हो चुकी थी व गांधी कांग्रेस को भंग करना चाहते थे वो तो यहां की जनता कूपमंडूक है जो कि वह कांग्रेस की असलियत को जानना ही नहीं चाहती या जान कर भी निजस्वार्थ में कांग्रेस को वोट देती आयी है....अब "जिसका अन्ना को समर्थन नहीं उसको वोट नहीं" पर चलना होगा.

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Monday 1 August, 2011

कांवरियों कहां है - धर्म?

हम बचपन से धार्मिक होने की कोशिस कर रहे हैं लेकिन अभी तक धार्मिक हो नहीं पाये है . हमेँ तजुब्ब होता है धार्मिकों की पूरी की पूरी भीड़ देख कर,इतने लोग धार्मिक?लेकिन तब भी देश मेँ भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन?इन दिनों कांवरियों की अच्छी खासी भीड़ सड़कों पर नजर आ जाती है.हमेँ ताज्जुब है कि ये कांवरिये धार्मिक हैं?हमेँ कोई भी धार्मिक नजर नहीं आया है . जरुर मेरी दृष्टि मेँ खोट है?ऐसा हो नहीं सकता कि एक भी धार्मिक न हो?

"धृति क्षमादमास्तेयमशौचममिन्द्रिय निग्रह

धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम. "


न जाने क्यों हम अभी तक महापुरुषों व ग्रन्थों से सीख लेते रहे लेकिन अभी तक धार्मिक नहीं हो पाये.और ये चलते फिरते धार्मिक किसी महापुरुष व किसी ग्रन्थ पर शोध दृष्टि नहीं रखते,जिसे सहयोग की जरुरत हो उसे सहयोग नहीं दे सकते,निर्जीव के लिए सजीव का अस्तित्व ही समाप्त कर देते हैं.... ऐसा हम नहीं कर सकते . तो हम काहे को धार्मिक?मै धर्मस्थलों इन पंथों से हट निर्गुण पंथ पर !
शेष फिर .......


अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

विविध कला प्रकोष्ठ

आदर्श बाल विद्यालय इ. कालेज,

मी. पु. कटरा,

शाहजहाँपुर, उ.प्र.

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