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Friday 29 October, 2010

प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 30 Oct 2010 08:19 IST
Subject: प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

हम कल्पना नहीँ कर सकते हैँ कि प्रेम के बिना कैसा होगा जीवन?बेशक नामुमकिन.जैसे,मकड़ी खुद अपना जाल बुनती है.क्या वह उस जाल को छोँड़ सकती है?नहीँ.जिस तरह जाल के बगैर मकड़ी का होना नामुमकिन है,उसी तरह मानव जीवन भी प्रेम के बिना असंभव है.प्रेम के बिना उसका अस्तित्व नहीँ हो सकता.जैसे मकड़ी अपने थूक से अपना जाल बुनती है,वैसे ही हम प्रेम से अपनी दुनिया बुनते हैँ और फिर अपनी ही दुनिया
के बीच फंसे रहते हैँ.


कैसे जगाएं अंतस का प्रेम?


पूर्णता के तीन स्तर हैँ-मन,कर्म और वाणी की पूर्णता.यह पूर्णता प्रेम से ही सम्भव है.प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ही होता है. इस आत्मिक प्रेम को हम मन,कर्म और वाणी की पूर्णता से जागा सकते हैँ.मन से कुत्सित विचारोँ को त्याग देँ,जनहित के लिए सोँचे, अपने कर्म को महत्व देँ और वाणी को संयमित रखेँ,तो हम ध्यान का सहारा ले सकते हैँ. फिर प्रेम के आगे पीड़ा छोटी पड़ जाती है.


प्रेम मेँ पीड़ाएं छोटी:


प्रेम मेँ अपार शक्ति होती है.इस शक्ति को जिसने जान लिया ,वह पूर्णता को पा लेता है.प्रेम की संवेदना को जो ऊपर उठाने मेँ कामयाब हो जाता है,उसे भौतिक पीड़ाएं नहीँ सतातीँ .

Wednesday 27 October, 2010

नागेश पाण्डेय:बाल साहित्य जगत के नक्षत्र

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 28 Oct 2010 08:10 IST
Subject: नागेश पाण्डेय:बाल साहित्य जगत के नक्षत्र

शाहजहांपुर,बाल साहित्य जगत के नक्षत्र डा.नागेश पाण्डेय 'संजय'की नई पुस्तक अपलम चपलम का विमोचन उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर मेँ प्रख्यात उड़ीसा साहित्यकार डा.जगन्नाथ मोहंती ने किया.

रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ ओड़िया चिल्ड्रन्स लिटरेचर ,भद्रक द्वारा आयोजित तीन दिवसीय बाल साहित्य कार्यशाला मेँ उड़िया के सौ के लगभग साहित्यकारोँ मेँ नागेश हिन्दी बाल साहित्य के एक मात्र प्रतिनिधि थे.इस अवसर पर नागेश ने बच्चोँ के लिए विज्ञान लेखन विषय पर पत्र वाचन भी किया.उनकी बच्चोँ के लिए अब तक 19 पुस्तकेँ छप चुकी हैँ.डा.नागेश की इस नयी पुस्तक का मूल्य मात्र 5रुपये
है.उन्होँने बाल साहित्य पर शोध भी किया है.


नागेश जी से हमारी पहली मुलाकात सन1993ई 0के आखरी महीनोँ अक्टूबय दिसम्बर मेँ हुई थी,जिन दिनोँ मैँ एस एस कालेज,शाहजहांपुर से बी एड कर रहा था.


<www.akvashokbindu.blogspot.com>

Tuesday 26 October, 2010

THE HON. Mr.BARAK OBAMA !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 26 Oct 2010 20:28 IST
Subject: THE HON. Mr.BARAK OBAMA !

The Hon.Mr.Barak Obama!


You are coming to India.

We,all indians, Welcome you.We expect of you that you will advocate for permanant membership of India in United Nation . You will also make reaction and comment concerning ill-treatment with Osho during his emigration in America.


Along with this.....

We all human beings and men of letters should gather together to take immediate actions in support of good health,human rights,women rights and happy life on earth by rising beyond castism,racialism,sex and regionalism.In this contect,we happen to remember the statement of an young Buddhist saint named Aagyen Trinley Dorjey 'Karmapa Lama' , that by joining a great nation like America ,he would succeed in bringing peace in the world. We should always be ready with heart ,soul and money for,health and world - peace.For which ,we should forget our differences and narrow -mindedness and regionalism.India and whole world has great expectations from you.The terrorists believing in seperation neither remained silent,nor will ever be.So,we are expected to have control upon them in all ways.


The remaining part in the next letter.

well wishes !


In the awaiting of your letter....


Your s

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

Monday 25 October, 2010

करवा चौथ पर आज !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 26 Oct 2010 08:00 IST
Subject: करवा चौथ पर आज !

करवाचौथ पर आज फिर वही चिन्तन.रक्षा बन्धन ,भैया दूज,करवाचौथ ,आदि पर्व क्या आज के नवीनतम ज्ञान के परिवेश मेँ क्या लिँग भेद का पर्याय नहीँ है ?साल भर हम चाहेँ इन्सानोँ के प्रति कैसा भी व्यवहार करेँ?धर्म क्या यही सीख देता है कि जीवन के कुछ दिवस ही सात्विक जीवन जिएं?यदि हाँ,तो हम ऐसे धर्म पर लात मारता हूँ.यह झूठा धर्म है.यह पर्व मनाने का मतलब है जिनसे हम अपने व्यवहारिक जीवन मेँ
अलग हो गये हैँ उसको कुछ दिवस याद कर लेना.जिसे इन्सान अपने जीवन से दूर किए हुए है,बस कुछ दिन याद कर रहा है और जो जीवन भर अपन आचरण मेँ लाने का प्रत्यन कर रहा है,उस पर कमेँटस कसते हैँ यहाँ उन्हेँ उपेक्षित कर देते हैँ.आज के अवसर मैँ उन्हेँ अपने जीवन से वहिष्कृत करता हूँ,उनके लिए मेरे दिल मेँ कोई जगह नहीँ है.


मैँ तो चार आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग ही धर्म पर चलने का श्रेष्ठ मार्ग मानता हूँ.
अब आप मुझे बौद्ध या जैन मत का कहेँगे.जैसा लोग कहते आये हैँ.आप लोग मतभेद मेँ ही जीते आये हैँ.ईमानदारी से धर्म मेँ कहाँ जिए हैँ.मेरा तो मानना है कि व्यक्ति चाहेँ किसी मत से हो ,वह यदि धर्म के प्रति ईमानदार है तो चारो आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग को उपेक्षित नहीँ कर सकता .


मधुरता व उदारता के बिना धर्म रिश्तेदारी ढोँग है.धर्म मेँ तो बदले का भाव भी नहीँ चलता.

Sunday 24 October, 2010

I HAVE TO ADDRESS MR. BARAK OBAMA.

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 24 Oct 2010 17:20 IST
Subject: I HAVE TO ADDRESS MR. BARAK OBAMA.

Welcome in India .


Hope that your presence as an American and in whole world. We all human beings and men of letters should gather together to take immediate actions in support of good health ,human rights,women rights and happy life on earth by rising beyond castism,racialism,sex and regionalism.IN this contect, we happend to remember the statement of an young Buddhist saint named Aagyen Trinley Dorjey ' Karmapa Lama ' ,that by joining a great nation like America,he would succeed in bringing peace in the world. We should always be ready with heart and soul for good life,health and world - peace.For which,we should forget our differences and narrow-mindedness and regionalism.


India and whole world has great expectations from you.The terrorists believing in seperation neither remained silent, nor will ever be.So,we are expected to have control upon them in all ways.


The remaining part in the next letter.


BY-ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

Saturday 23 October, 2010

नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 24 Oct 2010 10:10 IST
Subject: नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

बुधवार की दोपहर घर से धान की बाली तोड़ने गई बालिका का शव नग्नावस्था मेँ गन्ने के खेत से खून से लथपथ पाया गया.बालिका का रेप के बाद गला काट कर हत्या कर दी.शव मिलने की खबर से गांव मेँ सनसनी फैल गयी.घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गयी.शव को कब्जे मेँ लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.


मीरानपुर कटरा (शाहाजहांपुर) थाना क्षेत्र के ग्राम कबरा हुसैनपुर निवासी रामनिवास राठौर की पुत्री क्रान्ति गांव के प्राथमिक जूनियर हाईस्कूल मेँ कक्षा सात की छात्रा थी.बुधवार की दोपहर वह घर से धान के खेत से बाली तोड़ने गई थी.अचानक वह लापता हो गई जब देर शाम वह घर नहीँ पहुंची तो उसके परिजनोँ ने उसकी तलाश की लेकिन उसका कोई पता नहीँ चला.इस पर परिजनोँ ने दूसरे दिन थाने मेँ
मामले की गुमशुदी दर्ज कराई.


कल सुबह ग्रामीणोँ नेँ एकत्र हो कर आसपास के खेतोँ को खंगाला तो रामचन्द्र के गन्ने के खेत मेँ क्रान्ति का नग्नावस्था मेँ शव पड़ा था तथा उसका गला कटा हुआ था.उसके कपड़े तथा धान काटने वाली दराती खून से सनी हुई पड़ी थी.

न शान्ति न क्रान्ति !
है सिर्फ भ्रांति....सिर्फ कागजी पुतलोँ की राजनीति!रामायण के रावण पर अंगुली उठाते हैँ.आज के रामोँ की शरण मेँ खड़े रावणत्व को संरक्षण दे दे रावण के कागजी पुतलोँ के दफन के साथ मुस्कुराते हैँ.धन्य ,आज के पात्र!

सैनिक (सिपाई)आज भी हैँ,राजा(शासक)आज भी हैँ लेकिन....


आज के राम भक्तोँ की भीड़ मेँ भी आज के राम अयोध्या (अपने राज्य)के मदद से दूर हैँ .साथ हैँ आदिवासी और .....?!और सुग्रीब का राज्य....


सन2025ई0 की विजयादशमी ! रामलीला के मैदान मेँ रावण का पुतला जल रहा था.


"आप कागजी पुतलोँ को जला कर दुनिया को क्या मैसेज देना चाहते हो?आप से अच्छे हम हैँ जिन्दा रावणोँ को जला रहे थे.यदि हम गलत थे, केशव कन्नौजिया गलत था तो आप ही अपने को ठीक साबित हो कर दिखाओ.पुतलोँ को नहीँ रावणत्व को जला कर दिखाओ."


एक नक्सली नेता एक टीवी चैनल पर अपना इण्टरव्यु दे रहे थे.


"क्रान्ति हो या शान्ति दोनोँ को कुचलने वाले के साथ खड़े है श्वेतवसन अपराधी .हम पर अंगुलियाँ उठाने वाले इनको उजागर हो कर दिखायेँ.यह अच्छा है कि हमारे कारण सरकारेँ अपनी व्यवस्थाओँ मेँ कुछ तो परिवर्तन तो कर रही हैँ.लोग जब तक सभ्य नहीँ हो जाते तब तक कोरे सत्याग्रह से काम नहीँ चलने वाला.तब तक टेँढ़ी अँगुली से भी काम चलाना पड़ेगा ही. आप भी स्वयं कहते फिरते हो कि टेंढ़ी अँगुली से
घी नहीँ निकलता.जैसे 1947तक के स्वतन्त्र ता संग्रामोँ मेँ से भगत सिँह,चन्द्रशेखर,सुभाष,आदि के महत्व को निकाल नहीँ पाते ,धर्म शास्त्रोँ मेँ से हिँसा के महत्व को निकाल नहीँ पाते तो हमारी हिँसा के महत्व को क्योँ नगण्य कर देते हो? गीता अर्थात कुरुशान के गीता सन्देश को अपमान क्योँ नहीँ देते हो?सीमा पर की हिँसा का अपमान क्योँ नहीँ करते हो?हाँ,अपने साथियोँ कुछ निर्दोष हत्यायोँ पर
मुझे दुख है. लेकिन....हाँ,और गेँहू के साथ घुन पिसता है. गेँहू के घुन क्योँ बनते हो.तब तो निज स्वार्थ के सिवा कुछ भी दिखता नहीँ."


क्रान्ति प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ने के लिए पुलिस ने कुछ निर्दोष व्यक्तियोँ पर भी कार्यवाही कर दी थी. जिसका प्रमुख कारण दबंगोँ की कूटनीति थी.यह निर्दोष पीड़ित व्यक्ति अब नक्सलियोँ की शरण मेँ थे.


<www.slydoe163blogspot.com>


<www.kenant814blogspot.com>

Friday 22 October, 2010

वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 23 Oct 2010 08:27 IST
Subject: वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

हमारे विद्यालय स्टाप मेँ 'ब्राह्मण जाति' के अध्यापकोँ का वर्चस्व है.कभी कभार इन अध्यापकोँ के आवास पर भी जाना हो जाता है.हिन्दू समाज मेँ हर कोई जाति भावना से ग्रस्त नजर आता है ,ऐसे मेँ ब्राह्मण वर्ग क्योँ न इस भावना से ग्रस्त होँ ? इनके लिए जातिपात मानना अपने धर्म से गिरना है.शायद लोग धर्म का मतलब नहीँ समझते ?

एक ब्राह्मण परिवार मेँ -


बातचीत के दौरान परिवार का मुखिया कहता है कि

एक बालक के यहाँ से कल मट्ठा मिल सकता है लेकिन वह नाई है.


"मैँ बोल दिया तो क्या हुआ ?"


"हाँ आप तो जाति पात मानते नहीँ ."

मुझे स्मरण हो आया कि एक बार इनकी पत्नी ने कहा था कि नीच बिरादरी मेँ खानपान चला क्या कोई अपना धर्म खराब करेगा? मैँ आज उन्हीँ की ओर देखते हुए बोला "कुछ तो मानते हैँ कि जातिपात मानकर हम अपने धर्म को सुरक्षित किए हुए हैँ."


वे बोलीँ- " हमेँ इतने साल हो गये कोई मुसलमान यह नहीँ कह सकता कि हमारे यहाँ एक कप चाय भी पी हो. "


" मुझे तो अपने को हिन्दू कहते भी शर्म लगती है.हिन्दू शब्द तक, हिन्दू शब्द क्या आपकी संस्कृति का शब्द है ? मुझे तो अपने को आर्य कहते गौरब महसूस होता है."


" बात तो एक ही है."


" एक कैसे?वहां वर्ण व्यवस्था थी यहां जाति व्यवस्था है.वहां मूर्ति पूजा नहीँ थी ,यहां है.और भी बहुत कुछ है जो वहां आज की सोँच से हट कर था. "


"पहले क्या था ? हम क्या जानेँ?"


" जानना चाहिए . हमेँ यह भी जानना चाहिए कि धर्म क्या है?हम तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैँ कि व्यक्ति किसी भी जाति पन्थ का हो,धर्म उसका एक ही है."


"आज कल ऐसा कौन सोँचता है?"


"हमारे पास क्या बुद्धि विवेक नहीँ है ?क्या हमारे पास ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से सीख लेने की योग्यता नहीँ है ? समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए कि ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से ? "


एक बार इस विश्व पर आर्योँ का शासन था.महाभारत युद्ध के बाद आर्य सभ्यता का अन्त हो गया.इसके बाद फिर यहुदी,पारसी,जैन ,बौद्ध,ईसा,मुस्लिम,आदि पन्थ अस्तित्व मेँ आये लेकिन आज का हिन्दू......?! 'हिन्दू' शब्द से तो पुराने शब्द हैँ -'यहुदी','पारसी','ईसाई','मुस्लिम ',आदि शब्द.जिन कारणोँ से आर्य संस्कृति व भारत वर्ष विखरा,उन कारणोँ पर अब भी नहीँ सोँचा जा रहा.

एक दिन एक अन्य ब्राह्मण जाति के अध्यापक से सम्वाद हो गया. वह बोले- हाँ,यह सत्य है कि हर जाति के लोग ऊपर उठे हैँ लेकिन ब्राह्मण अपने स्वभाव,कर्म व व्यवहार से नीचे गिरा है. हर कोई कर्म व स्वभाव से ऊँचा नीचा होता है.किसी को अपने कर्म से नहीँ हटना चाहिए .जिसका जो कर्म है उसे वह कर्म करना चाहिए.(एक होटल की ओर संकेत कर ) इन्हीँ को लो ,यह गड़रिया जाति के हैँ लेकिन अपना काम छोँड़ होटल
खोले पड़े हैँ.


अब भी पढ़ लिखा ब्राह्मण तक जन्म आधारित जाति व्यवस्था से हट वर्ण व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीँ है.जब स्वयँ आर्यगण इस पर ईमानदारी न दिखा पाये और स्वयं के समाज को तीन वर्ण -ब्राह्मण,क्षत्रिय व वैश्य मेँ बाँट लिया और शेष को अर्थात अनार्योँ व मूल निवासियोँ को दस्यु कहकर पुकारा.पराजित किए हुए लोगोँ को दास माना.अपने वंश अर्थात जन के आधार पर सत्ताएं स्थापित कीँ
.जन के आधार पर ही जनपद स्थापित हुए.

जाति पात व छुआ छूत के लिए पिछड़े व दलित वर्ग के जो व्यक्ति ब्राह्मणोँ को दोष देते वे स्वयं जातिपात व छुआ छूत की भावना से ग्रस्त हैँ और जिन जातियोँ को अपनी जाति से नीचा मानते हैँ उनसे व्यवहार रखना पसन्द नहीँ करते.

आर्योँ व ब्राह्मण धर्म मेँ आयी कमियोँ के कारण विश्व मेँ अनेक मत व पन्थ पैदा हुए व दुनिया बंटी.

आडम्बरी कर्म काण्डोँ आदि के परिणाम स्वरूप जैन व बौद्ध मतोँ का उदय हुआ और जिन व्यवहारिक घटकोँ को आर्य व ब्राह्मण भूल गये उन्हेँ फिर जिन्दा किया गया.जन्म जाति व्यवस्था पर भी चोट की गयी.वर्तमान का हिन्दु समाज अब भी भटका हुआ है ,जो वास्तव मेँ आर्य समाज, शान्तिकुञ्ज,ओशो,आदि के साहित्य के माध्यम से जाग्रत किया जा सकता है. बात है विहिप,बजरंग दल,आर एस एस ,आदि की तो वे अभी अपने
कार्यकर्ताओँ को कुरीतियोँ,जाति व्यवस्था ,आदि के खिलाफ तैयार नहीँ कर पा रहे है.बस,हिन्दुओँ की अन्ध मानसिकता का चेक भुनाने का काम करते आये हैँ.यह कहते हैँ कि हिन्दू होने पर गर्व करो लेकिन कैसे?क्या ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,आदि ही हिन्दू हैँ अन्य नहीँ ?हिन्दुओँ के साथ दोहरा तेहरा व्यवहार क्योँ?कुछ लोग तो गैरहिन्दुओँ के संग बैठ तो खा पी सकते हैँ लेकिन सभी हिन्दुओँ के साथ
नहीँ.


धन्य ! वर्तमान हिन्दुओँ की सोँच...,

Thursday 21 October, 2010

21.10.2010:आजाद हिन्द फौज का 67वां स्थापना दिवस


विभिन्न जनपदोँ मेँ भारतीय सुभाष सेना ने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज का 67वां स्थापना दिवस समारोह का आयोजन किया गया.भारतीय सुभाष सेना के पीलीभीत जिलाध्यक्ष कन्हई लाल प्रजापति की अध्यक्षता मेँ समारोह का आयोजन नरायनपुर सिरसा चौराहा पूरनपुर मेँ सम्पन्न हुआ.समारोह का संचालन जिलाध्यक्ष राकेश कुमार सुभाष ने किया . सेना के वरिष्ठ प्रान्तीय महासचिव
प्रवक्ता श्री पातीराम वर्मा सुभाष ने अपने सम्बोधन मेँ कहा कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द फौज की स्थापना 21अक्टूबर1943ई0को सिँगापुर मेँ की थी.भारतीय सुभाष सेना पीलीभीत जिलाध्यक्ष कन्हई लाल प्रजापति सुभाष ने कहा कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस आज भी जीवित हैँ.पूर्ण रुप स्वस्थ हैँ और निकट भविष्य कुछ ही दिनोँ के बाद उनका भारत मेँ खुलेआम प्रकटीकरण होगा.महान सन्त
सम्राट सुभाष जी का कहना है कि तृतीय विश्व युद्ध सुनिश्चित है और वह सुभाष पर निर्भर करता है . यदि भारत की जनता सुभाष का साथ देती है तो युद्ध टल सकता है.

इस उपलक्ष्य पर हमने भी मीरानपुर कटरा स्थित आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जिसमेँ मैँने बताया कि जिस तथाकथित विमान दुर्घटना मेँ उनकी मृत्यु बतायी जाती है,वह फर्जी सिद्ध हो चुकी है.जांच हेतु जब मुखर्जी आयोग रुस गया तो उसे फोन पर धमकियां भी मिलीँ.भारत के एक गृह सचिव का कहना है कि नेता जी सम्बन्धी दस्तावेज सार्वजनिक करने का मतलब है एक
देश को नाराज करना.सबसे बड़ी बात यह है कि विदेश मन्त्रालय, गृह मन्त्रालय व अन्य कार्यालयोँ से सम्बन्धित दस्तावेज गायब क्योँ कर दिये गये?इस मामले मेँ कांग्रेस का चरित्र संदिग्ध नहीँ लगता क्या ?

Wednesday 20 October, 2010

नक्सली कहानी : शिक्षक या कि नक्सली ?

केशव कन्नौजिया अब शिक्षण कार्य से निकल कर नक्सली आन्दोलन से जुड़ गया.

अपना पक्ष साबित करने के लिए वैसे नहीँ तो अब ऐसे.

और फिर जिन के कारण यहाँ तक वे ही कहते फिरते कि भय बिन होय न प्रीति.......घी टेँड़ी अँगुली से ही निकलता है.जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही अच्छा कार्य कर सकते हैँ तो हिँसा व भय ही ठीक.

" लातोँ के भूत बातोँ से नहीँ मानते."

केशव कन्नौजिया देखा कि शासन प्रशासन व समाज से कोई भी हमारे पक्ष मेँ खड़ा नजर नहीँ आ रहा है .कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के तन्त्र मेँ उल्टे दलदल मेँ फँसता जा रहा हूँ.वह नक्सलियोँ के साथ आ गया. विचार तो मुस्लिम मत स्वीकार करने का भी आया था लेकिन....

अब सन 2025 ई0 की विजयदशमी ! आर एस एस के स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण !

इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने उन नियुक्तियोँ को अवैध घोषित कर दिया जो सन 1996ई0 मेँ जूनियर क्लासेज के एड के दौरान कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात (फरीदपुर) मेँ जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त अध्यापकोँ को नियुक्ति न देने के बजाय माध्यमिक स्तर के अध्यापकोँ की नियुक्तियाँ कर दी गयीँ थीँ.अदलात ने केशव कन्नौजिया व उसके साथियोँ पर लगे सभी आरोपोँ से मुक्त कर दिया.

विजयादशमी के दौरान भव्य शस्त्र पूजन समारोह के दौरान आत्मसमर्पण कर दिया.

"क्या करूँ गांधी के देश मेँ अब भय व हिँसा मेँ ही सिर्फ बेहतर काम करने वालोँ की कमी नहीँ हैँ . सन 1996ई0 से पहले मैँ क्या था,यह किसी से छिपा नहीँ है लेकिन फिर मुझे नक्सलियोँ के शरण मेँ जाना पड़ा.मेरी हिँसा निर्दोषोँ के खिलाफ नहीँ थी.अन्याय व शोषण के खिलाफ थी. "

केशव कन्नौजिया के आँखोँ मेँ आँसू आ गये.

पुन :

" जिनके खिलाफ मैँ कोर्ट गया था और फिर नक्सली हुआ वे सब प्रति वर्ष गांधी की जयन्ती मनाते आये थे और अब भी मना रहे हैँ लेकिन अपने व्यवहारिक जीवन मेँ .....वे कम से कम मानसिक हिँसा तो करते आये हैँ.ऐसे लोग कहीँ न कहीँ अपराध की जड़ोँ को सीँचते आये है.मैँ तब भी गांधीवादी था अब भी गांधीवादी हूँ. बीच मेँ....?!बीच के इण्टरवेल मेँ मजबूरन कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचारी तन्त्र मेँ......?! सोरी ! "
इन पन्द्रह वर्षोँ मेँ अदालतेँ भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन के खिलाफ अपने विचार व्यक्त कर चुकी थीँ लेकिन नेताशाही व नौकरशाही अब भी ठीकाने पर नहीँ आयी थी.कुछ कर्मचारियोँ व अन्य पर अदालतोँ मेँ दोष साबित हो गये थे व कुछ को फाँसी की सजा सुनाई गयी थी.दूसरी ओर मुसलमानोँ को अल्पसंख्यक का दर्जा बनाये रखने के खिलाफ देश मेँ वातावरण रहा था लेकिन नेताशाही व सत्तावाद अवरोध खड़े किये
थे.

ऐसे मेँ नक्सली...

नक्सली सम्बन्धित नेताओँ कर्मचारियोँ का और उन लोगोँ का मर्डर कर रहे थे जिन्हेँ अदालत ने फाँसी की सजा सुनायी थी लेकिन राजनीति के चलते उन्हेँ फांसी नहीँ दी गयी थी.

केशव कन्नौजिया अब भी नक्सली आन्दोलन के अहिँसक रुप के समर्थन मेँ खड़ा था.

कुछ दस्तावेज गायब होने के मामले मेँ कुछ कांग्रेसियोँ पर भी नक्सलियोँ की निगाहेँ थीँ .जैसे
- नहेरु व गवर्नर लार्ड माउण्टवेँटन के बीच सम्बन्ध, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु,संजय गांधी की मृत्यु,दीन दयाल उपाध्याय की मृत्यु. भिण्डरावाले
-लिट्टे-बोडो आन्दोलन को प्रोत्साहन,आदि सम्बन्धी दस्तावेज....

इधर हिन्दु समाज पर कट्टर मुसलमानोँ का दबाव बढ़ता जा रहा था.जिससे बचने के लिए हिन्दू सिक्खोँ की शरण मेँ जा रहा था.दिल्ली पर नक्सली सत्ता की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही थीँ.

Tuesday 19 October, 2010

नक्सली कहानी:विद्यालयी दंश

मनोज का एक मित्र था -केशव कन्नोजिया.

अभी एक दो वर्षोँ से ' माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा ,उ प्र ' के माध्यम से कुछ
अध्यापक,प्रधानाचार्य,आदि अपनी राजनीति करते नजर आ रहे थे.प्रदेश मेँ विप के स्नातक व शिक्षक क्षेत्रोँ का लिए चुनाव का वातावरण था.जिस हेतु 10नवम्बर 2010ई0 को मतदान होना तय था. वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के साथ अंशकालीन शब्द जोड़ने वाले एक उम्मीदवार जो कि पहले सदस्य रह चुके थे,के खिलाफ थे वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक . जो कि
'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उप्र ' की ओर से उम्मीदवार संजय मिश्रा का समर्थन कर रहे थे.
लेकिन-

वित्तविहीन विद्यालयोँ के अध्यापक,व्यक्तिगत स्वार्थ,निज स्वभाव, जाति वर्ग, प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की मनमानी,आदि के कारण अनेक गुट मेँ बँटे हुए थे.इन विद्यालयोँ मेँ अधिपत्य रहा है -प्रधानाचार्य व प्रबन्धक कमेटी की हाँ हजरी करने वाले व दबंग लोगोँ का.'सर जी' का कोई गुट न था.बस,उनका गुट था-अभिव्यक्ति.अब अभिव्यक्ति चाहेँ किसी पक्ष मेँ जाये या विपक्ष मेँ या अपने ही
विपक्ष मेँ चली जाये;इससे मतलब न था.
मनोज दो साल पहले कन्हैयालाल इण्टर कालेज ,यदुवंशी कुर्मयात मेँ लिपिक पद पर कार्यरत था.जो कि फरीदपुर से मात्र 18 किलोमीटर पर था.मनोज को कुछ कारणोँ से प्रबन्ध कमेटी ने सेवा मुक्त कर दिया जो कि अब अदालत की शरण मेँ था.

फरीदपुर के रामलीला मैदान मेँ संजय मिश्रा के पक्ष मेँ हो रही एक सभा मेँ मनोज जा पहुँचा.

"अच्छा है कि आप सब वित्तविहीन विद्यालयी के अध्यापकोँ के भविष्य प्रति चिन्तित हैँ लेकिन यह चिन्ता कैसी?विद्यालय स्तर पर इन अध्यापकोँ के साथ जो अन्याय व शोषण होता है,उसके खिलाफ आप क्या कर सकते हैँ?आप स्वयं उन लोगोँ को साथ लेकर चल रहे हैँ जो कि विद्यालय मेँ ही निष्पक्ष न्याय सत्य अन्वेषण आदि के आधार पर नहीँ चलना चाहते हैँ.मैँ ....."

जब लोग हिँसा व भय मेँ रह कर ही बेहतर काम कर सकते हैँ तो हिँसा व भय क्या गलत है?गांधीवाद तो सभ्यता समाज मेँ चल सकता है.तुम लोग ही कहते हो कि भय बिन होय न प्रीति.लेकिन केशव कन्नौजिया को नक्सली बनाने के लिए कौन उत्तरदायी है?कानून,समाज,संस्था,आदि के ठेकेदार सुनते नहीँ.खुद यही कहते फिरते हैँ कि सीधी अँगुली से घी नहीँ निकलता तो फिर टेँड़ी अँगुली कर ली केशव ने तो क्या गलत
किया?सत्य को सत्य कहो,ऐसे नहीँ तो वैसे.

सन 1996ई0के जुलाई की बात है. यूपी सरकार के द्वारा अनेक जूनियर हाईस्कूल को एड दी गयी थी.केशव कन्नौजिया जिस विद्यालय मेँ अध्यापन कार्य कर रहा था , उस विद्यालय के जूनियर क्लासेज भी इस एड मेँ फँस रहे थे.जूनियर क्लासेज की नियुक्ति चार अध्यापकोँ की थी,जिनमेँ से एक केशव कन्नौजिया भी.
शेष 18 अध्यापक माध्यमिक मेँ थे.कानूनन उपरोक्त चार अध्यापक जो कि जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त थे,एड के अन्तर्गत थे.

लेकिन...

जिसकी लाठी उसकी भैस!....चित्त भी अपनी पट्ट भी अपनी,वर्चश्व अपना तो फिर क्या?

दो वर्ष पहले अर्थात सन 1994ई0 मेँ जब अध्यापकोँ का ग्रेड निर्धारित किया गया था तो भी नियति गलत,जूनियर क्लासेज के लिए नियुक्त चारोँ अध्यापकोँ को सीटी ग्रेड के बजाय एलटी ग्रेट मेँ रखा जा सकता था लेकिन कैसे , अपनी मनमानी?और अब जब जूनियर के लिए एड तो...?!

एड मेँ शामिल होने के लिए माध्यमिक से निकल जूनियर स्तर पर आ टिकने के लिए इप्रुब्ल करवा बैठे और जूनियर स्तर पर की नियुक्तियोँ को ताक पर रख दिया गया .

केशव कन्नौजिया इस पर तनाव मेँ आ गया कि हम सभी जूनियर की नियुक्ति पर काम करने वालोँ का क्या होगा ? जो जिस स्तर का है ,उसे उसी स्तर रहना चाहिए.ऊपर की कभी एड आयी तो क्या हम लोग ऊपर एड हो सकेँगे ? होँगे भी तो किस कण्डीशन पर ?

केशव कन्नौजिया अन्य जूनियर स्तर के लिए नियुक्त अध्यापकोँ के साथ हाई कोर्ट पहुँच गया.

अब उसे अनेक तरह की धमकियां मिलने लगी.

" मैँ शान्ति सुकून से अपने हक के लिए कानूनीतौर पर अपनी लड़ाई लड़ रहा हूँ,आपकी इन धमकियोँ से क्या सिद्व होता है?ईमानदारी से आप अब कानूनी लड़ाई जीत कर दिखाओ."


जब केस केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ के पक्ष मेँ जाते दिखा तो विपक्षी मरने मारने पर उतर आये.

"आप लोग कर भी क्या सकते हैँ ? भाई, आप लोग सवर्ण वर्ग से हैँ, यह कुछ ब्राह्मण वर्ग से हैँ. हम कहाँ ठहरे शूद्र.भाई,आप लोग अपने सवर्णत्व का ही तो प्रदर्शन करेँगे?और आप ब्राह्मणत्व का? शूद्रता का प्रदर्शन तो हम ही कर सकते हैँ?"

झूठे गवाहोँ के आधार पर केशव कन्नौजिया व उनके साथियोँ को क्षेत्र मेँ हुए मर्डर ,लूट,अपहरण,बलात्कार,आदि के केस मेँ फँसा दिया था.

BHARATIY KAMAJORION PAR SALTANAT.

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Sent: Tue, 19 Oct 2010 09:03 IST
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Saturday 16 October, 2010

कथा:आसमाँ के प्यार मेँ


राघवेन्द्र जीत यादव की एक गर्ल फ्रेण्ड थी-आसमाँ मन्सूरी.हालांकि उसके ख्वाबोँ की रानी थी 'शिक्षा' नाम की युवती लेकिन........?!
किसी से प्रेम होना अलग बात है.अपने कर्मक्षेत्र मेँ होने के कारण स्त्रियोँ पुरुषोँ से व्यवहार व आचरण रखना एवं अपनी पर्सनल लाइफ मेँ किसी के साथ जीवन जीना अलग बात है.ऐसे मेँ प्रेम ...?प्रेम एक एहसास व मन की स्थिति बन कर रह जाता है.
सनातन इण्टर कालेज से निकलने के बाद राघ वेन्द्र जीत यादव के मासिक आय मेँ कमी आ गयी थी.हालांकि मीरानपुर कटरा के ही एक अन्य कालेज मेँ वह शिक्षण कार्य करने लगा था.मनमानी,नियमहीनता,हाँहजूरी, व्यक्तिगत स्वार्थ,आदि की विद्यालय स्टाप मेँ वर्चस्वता के कारण उसे सनातन इण्टर कालेज मेँ दोषात्मक निशाना बनाया गया था.कुछ लोग यहाँ तक चाहते थे कि राघवेन्द्र जीत यादव मीरानपुर कटरा
ही छोँड़ कर चला जाए.

लेकिन....?!
"क्योँ?क्योँ छोँड़ कर जाओगे कटरा?"

"आसमाँ, तुमसे किसने कह दिया मैँ कटरा छोँड़ कर जाऊँगा?जब मेरा दिल दिमाग कहेगा,तब मैँ जाऊँगा."

"राघव! मुझे कुछ रातोँ से नीँद नहीँ आती. तुमने कैसा हाल बना रखा है अपना?"
"ठीक तो हूँ.बस,बाहर से ऊर्जा प्राप्त नहीँ कर पा रहा हूँ लेकिन मैँ महसूस कर रहा हूँ आन्तरिक ऊर्जा जाग्रत होते.और फिर तुमको देख कर तो और ऊर्जा बढ़ जाती है ,उत्साहित हो जाता हूँ."

"तब भी.....शरीर का भी ध्यान रखना जरुरी है .खाओगे पियोगे नहीँ तो शरीर कैसे चलेगा?"

" कौन कहता है खाता पिता नहीँ हूँ."

"अच्छा,दूर से बात करो. मैने कहा न,मुझे छोड़ो."

" दिल से कह रही हो."

तब आसमाँ मु स्कुरा दी.

राघवेन्द्र जीत यादव ने आसमाँ को अपनी बाहोँ मेँ ले रखा था.होँठोँ को होँठोँ ने स्पर्श किया....

"अच्छा,अब छोँड़ो.प्रेम को प्रेम ही रहने दो."

"आसमाँ,नहीँ तो.....?!"

"नहीँ तो मजहब व जाति आड़े आ जायेगी.जानते हो,फिर साम्प्रदायिकता की आग मेँ कटरा भी झुलस सकता है."
".....और हम,हम तड़फते रहेँ बस.."
" तड़फेँ दुश्मन . मुसलमान बन जाओ न. मेरे लिए तुम क्या करोगे?दिल मेँ तो अब भी 'शिक्षा'है. मुझे तो सिर्फ पत्नी बनाने का ख्वाब देखते हो तुम. दिल तो 'शिक्षा 'को दे रखा है न."

ऐसे मेँ राघवेन्द्र जीत यादव !

सात दिन अन्तर्द्वन्द!

यह द्वन्द पहले भी आये थे लेकिन तब सिर्फ मतान्तरण का विचार आया था,अब मतान्तरण करना था. हिन्दू समाज मेँ किसने अभी तक हम पर प्रेम का इजहार किया था?क्या प्रेम को सम्मान नहीँ देना चाहिए?
हूँ!
मन ही मन राघवेन्द्र जीत यादव-

" लोग कह तो देते हैँ मतान्तरण करने की क्या जरूरत ? क्या अपने मत मेँ भावनाओँ का शेयर करने वालोँ का अकाल पड़ गया ? हाँ, मेरे लिए अकाल ही पड़ गया. आवश्यकताएं पूरी नहीँ होतीँ ,यह आपकी कमी है.मेरी कमी..?! और क्या.मेहनत करो रुपया कमाओ.हूँ! भावनाओँ के शेयर के लिए क्या रुपया चाहिए? दोस्ती के लिए क्या रुपया चाहिए?प्रेम के लिए क्या रुपया चाहिए?मुस्लिम समाज मेँ तन्हा क्योँ नहीँ?उस समाज से
आसमाँ प्राप्त है,कुछ मित्र प्राप्त हैँ.हूँ,तो हिन्दू समाज से क्योँ नही?उत्साह होता है न ,तो मेहनत करने का रुपया कमाने का रास्ता बनता जाता है.आसमाँ मेरे करीब है ,जीवन के हर मोड़ पर मेरे करीब है.ख्वाबोँ मेँ भी और वास्तव मेँ भी.शिक्षा .....और शिक्षा .....क्या कहूँ उसको लेकर.....वह हमेँ मिलने को रही.तुम्हारे हिन्दू समाज से कौन मेरे करीब है?हूँ,करीबी के लिए पहले रुपया चाहिए,मेहनत
चाहिए.मैँ तो कामचोर हूँ मक्कार हूँ?लेकिन क्योँ हूँ? तुम क्या जानो तन्हाई क्या होती है?.....अब जब आसमाँ मेरे साथ है,मेहनत भी मेरे साथ है रुपया भी मेरे साथ है.बस,इन्तजार कीजिए.तुम और तुम्हार हिन्दू समाज ...?!मेरे लिए एक लड़की भी न उपलब्ध करा पाया,जो मेरा उत्साह बन कर मेरे जीवन मेँ आये.अब मुस्लिम समाज से आसमाँ मुझे मिली है,वह मेरा उत्साह बन कर आयी है न कि यह देखने के लिए कि मैँ आलसी
हूँ,मैँ रुपया कम कमाता हूँ.उसने मुझे स्वीकारा है सिर्फ मुझे.मुझमेँ कमियाँ ढूंढने के लिए नहीँ,मुझ पर कमेन्टस के लिए नहीँ.प्रेम भी यही कहता है कि व्यक्ति जैसा है,उसे वैसा ही स्वीकारो.प्रेम मेँ तो वह ऊर्जा है कि इन्सान देवता बन जाए."
-यह सोँचते सोँचते राघवेन्द्र जीत यादव के आंखोँ मेँ आँसू आ गये.
आठवेँ दिन-

राघवेन्द्र जीत यादव ने मुस्लिम मत स्वीकार कर लिया ,तो क्या गलत किया ? मत व धर्म मेँ फर्क होता है.
आसमाँ से निकाह के बाद,
दस साल बाद अर्थात अब सन 2025ई0की 25 सितम्बर!

राघवेन्द्र जीत यादव अब राजनीति व साहित्य क्षेत्र मेँ मण्डल स्तर की एक प्रमुख हस्ती बन चुका था.लकड़ी ,फर्नीचर व होटल के व्यवसाय के माध्यम से करोँड़ोँ पा चुका था.