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Sunday 28 November, 2010

GANDHI SHAHEED DIWAS:सभ्यता की पहचान महात्मा गांधी

                                   हमने लोगोँ को कहते सुना है कि मजबूरी का  नाम महात्मा गांधी लेकिन महात्मा गांधी का
             दर्शन,धर्म व अध्यात्म की ओर जाने का महान पथ है.वे आधुनिक दुनिया के श्रेष्ठ जेहादी हैँ.वे     मजबूरी कैसे हो सकते
             हैँ ?महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि अन्यायको सहना कायरता है.क्या हम कायर नहीँ ?आज के बातावरण से हम सन्तुष्ट
             भी नहीँ हैँ और खामोश भी हैँ.ऐसे मेँ हम पशुओँ कीजिन्दगी से भी ज्यादा गिरे हैँ.


                                   महात्मा गांधी वास्तव मेँ सभ्यता कीपहचान हैँ.हम अभी उस स्तर पर नहीँ हैँ किउन्हेँ या अन्यमहापुरुष या            धर्म      को समझ सकेँ?अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए जवरदस्ती,दबंगता,हिँसा,दूसरे की इच्छाओँ कोकुचलना,आदि पर उतर आना
            हमारी सभ्यता नहीँ है.उन धर्म ग्रन्थोँ व महापुरूषोँ को मैँ पूर्ण धार्मिक नहीँ मानता जो हिँसा के लि प्रेरणा   देतेहैँ.                                




                                  हम  शरीरोँ   का  सम्मान करेँ  कोई बात नहीँ लेकिन उनमेँ विराजमान आत्मा व उसके उत्साह का तो सम्मान करेँ.हम किसी के उत्साह को मारने के दोषी न बनेँ.





                               उदारता,मधुरता,सद्भावना,त्याग,आदि का दबाव चित्त पर होना ही व्यक्ति की महानता है.चित्त परआक्रोश,बदले का भाव,
 खिन्नता,हिँसा,जबरदस्ती,दबंगता,आदिव्यक्ति के विकार हैँजो कि व्यक्ति केसभ्यता की पहचान नहीँहो सकती.भारतीयमहाद्वीप के व्यकतियोँ
 के आचरणोँ को देख लगताहै कि अभी असभ्यता बाकी है.मीडिया के माध्यम सेअनेक घटनाएँ नजर मेँआती है कि ईमानदार स्पष्ट   कर्मचारियोँ,सूचनाधिकारियोँ,आदि पर कैसे व्यक्ति हावीहो जाता है.यहाँ तक कि हिँसा पर भी उतर आता
 है. यहाँ की अपेक्षा  पश्चिम के देश कानूनी व्यवस्था के अनुसारज्यादा चलते हैं.यहाँके लोग तो यातायात के नियमोँ तक का पालन नहीँ
 कर पाते.






                              बात को बात से न मानने वाले कैसे सभ्य हो सकते ?शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहनेवालोँ के सामनेशान्तिपूर्ण ढंग सेजबाब न देने वाले क्याअसभ्य नहीँ?जिस इन्सानके लिए अनुशासन हितजबरदस्ती या दबंगता कासहारा लेना पड़े तो
 समझो वह अभी पशुता वआदिम संस्कृति मेँहै,संस्कारित नहीँ.






     

                             " भय बिन होय न प्रीति"




                               भय के कारण अनुशासन या संस्कार एक प्रकारसे ढोंग व पाखण्ड है.भय व प्रीति अलग अलगभावना है.जरा,अपने
 अन्दर भय व प्रीति से  साक्षात्कारकीजिए.मेरा अनुभव तोयही कहता है कि प्रीति मेँ भय और खत्म हो जाता है






                ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
              
                A.B.V.I.COLLEGE,
             
                MEERANPUR KATRA,


                SHAHAJAHANPUR,U.P.

Saturday 27 November, 2010

Michelle Obama:Giving Thanks and Giving Back

--- रवि, 28/11/10 को, Akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com> ने लिखा:

> द्वारा: Akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com>
> विषय: Giving Thanks and Giving Back
> To: akvashokbindu@yahoo.in
> दिनांक: रविवार, 28 नवंबर, 2010, 6:49 AM
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> Good afternoon,

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> Thanksgiving is a great opportunity to come together with
> family and friends to give thanks for all the blessings in
> our lives.  It's also an important time to be thankful
> for our men and women in uniform and their families who risk
> everything so that we can be safe and free.  And we must
> also remember those in our community who are in need of our
> help and support -- especially during these tough economic
> times.  

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> In our family, we have a tradition:  Every year on the day
> before Thanksgiving, we take some time as a family to help
> out people in our community who are in need.  Today,
> we're handing out turkeys, stuffing, pumpkin pies and
> all the Thanksgiving fixings with our friends and family at
> Martha's Table, a local non-profit organization.

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>  

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> This Thanksgiving, I encourage all Americans to find a way
> to give back -- and maybe even start a family tradition of
> your own.  Whether you volunteer at a local soup kitchen,
> visit the elderly at a nursing home or reach out to a
> neighbor or friend who comes from a military family, there
> are plenty of ways to get involved in your community. 

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> If you're not sure how to get started, visit Serve.gov
> [http://www.serve.gov/] . 

>
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>
> [http://www.serve.gov/]

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> President Obama and I wish you and your family a very happy
> and safe Thanksgiving.

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> Sincerely,

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>
> Michelle Obama

>
> First Lady of the United States

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> [http://www.whitehouse.gov?utm_source=email87&utm_medium=footer&utm_campaign=service]
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> This email was sent to akvashokbindu@gmail.com.

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> Unsubscribe akvashokbindu@gmail.com
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> The White House • 1600 Pennsylvania Ave NW •
> Washington, DC 20500 • 202-456-1111

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Sunday 14 November, 2010

14 नवम्बर : बाल दिवस


" घर से मंदिर है बहुत दूर, चलो यूं कर लेँ

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए"
-मशहूर शायर निदा फाजली के ये शब्द अपने अन्दर जीवन की फिलासफी छिपाए हुए हैँ.वास्तव मेँ भगवान का रुप है बालक,ऐसा मैने एक साल से ढाई साल के बीच महसूस किया है.यह अवस्था एक स्वतन्त्र जीवन है.मनुष्य का अपना क्या है?कुछ भी तो नहीँ,वह परतन्त्र है अपनी सोँच के ढंग के कारण.मर्यादाओँ,रीति रिवाजोँ,भौतिक एन्द्रिक लालसाओँ ,कूपमण्डूकता,भ्रम,आदि मेँ जीवन की स्वतन्त्रता खो गयी है.वर्तमान
मेँ जीना ही जीवन है,बिना किसी दबाव के सहज भाव से वर्तमान मेँ जीना ही स्वतन्त्रता है.अरविन्द घोष ने कहा है कि 'आत्मा ही स्वतन्त्रता है .'शिशु अपनी आत्मा के करीब होता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे सांसारिकता मेँ प्रवेश करता जाता और अपनी आत्मा से दूर होता जाता है.इसलिए मैँ कहता रहा हूँ कि शिक्षा के जगत मेँ भारी क्रान्ति की आवश्यकता है.भौतिकवादियोँ व धन लोलुपुओँ का
शिक्षा जगत मेँ प्रवेश घातक है.

जय प्रकाश भारती कहते हैँ - " प्रकृति अपना जीर्ण भाव छोँड़ कर बालक के रुप मेँ पुन: पुन:नवीन होती है. काल के जरा जीर्ण और जड़ बाड़े से मुक्ति पाने का रहस्यमय प्रयोग बालक ही है.उसके माध्यम से नित नूतन अमृत झरना झर रहा है.बालक के भीतर अनन्त सम्भावनाओँ के बीज हैँ.विश्व मेँ ऐसा कुछ भी नहीँ है,जो बीज रुप मेँ बालक के भीतर न हो.समाज मेँ बदलाव की शुरुआत बालक से ही हो सकती है.मानव विकास और
प्रगति की गीता पहला अध्याय शिशु और बालक के बिना नहीँ लिखा जा सकता."
दुनिया का श्रेष्ठतम कार्य व कर्त्तव्य अध्यापक का है.अध्यापक समाज व बालक के बीच का आदर्श द्वार है.अध्यापक समाज का मस्तिष्क है.जैसा अध्यापक होगा वैसा समाज का भविष्य होगा.ओशो कहते हैँ -"शिक्षा मेँ क्रान्ति आवश्यक है." लेकिन कैसे?कुछ वर्षोँ से शिक्षा जगत व बालकोँ के साथ जो होना शुरु हुआ है,वह सब उचित ही नहीँ है.जिसके लिए हर हालत मेँ दोषी अध्यापक ही है.वह ही ज्ञान के प्रति
ईमानदार नहीँ रह गया है.उसकी भी सोँच आम आदमी से भी गिरी हुई हो सकती है.
बाल प्रेमियोँ व शिक्षकोँ को ओशो की 'शिक्षा मेँ प्रयोग' ,'शिक्षा मेँ क्रांति ',आदि व पी. के. आर्य की पुस्तक 'बच्चोँ की प्रतिभा कैसे निखारे' पुस्तकेँ व बाल मनोविज्ञान सम्बन्धी पुस्तकोँ का अध्ययन करना चाहिए तथा कोरे निज स्वार्थ मेँ ही न जी कर परिवार व समाज के प्रति समर्पण के प्रदर्शन के साथ जीना चाहिए.आज का अध्यापक अब भी यह मानने को तैयार है -"भय बिन होय न प्रीति " . मेरा
मानसिक अनुभव यह कहता है कि भय व प्रीति का अपना अपना पृथक पृथक अस्तित्व है.जहाँ भय है वहाँ प्रीति नहीँ व जहाँ प्रीति है वहाँ भय नहीँ.अनुशासन के नाम पर बालकोँ मानसिक व शारीरिक दण्ड व कष्ट देना अमानवीय है.वैदिक दर्शन मेँ हर समस्या निदान है ,इसका भी.प्रवेश प्रक्रिया अति सशक्त होना आवश्यक है .शिक्षण संस्थाओँ मेँ छात्रोँ की भीड़ व आर्थिक आय की लालसा ने शिँक्षा का स्तर गिराया है.
आज डायबिटिज दिवस भी है.मैँ कहना चाहूंगा कि बच्चे भी बहुतायत मेँ डायबिटीज का शिकार हैँ और 70 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे अस्वस्थ हैँ.क्या माता पिता बनने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए?अपने शरीर को स्वस्थ रखने व सन्तुलित आहार देने मेँ असमर्थ हैँ ,ऐसे मेँ ऊपर से .....गर्भाधान संस्कार का ही स्वरुप बदल गया है.भैतिक भोगवाद का प्रभाव माता पिता के माध्यम से भी बच्चोँ पर पड़ रहा है. आज के
ही दिन सन 1889ई0मेँ जवाहर लाल नेहरु का जन्म हुआ था. जिन्होने अपना जन्मदिन बाल दिवस के रूप मेँ मनाना निश्चित किया.

नेहरू का मूल्यांकन करते हुए माइकल ब्रेचर ने लिखा है "नेहरु एक मनुष्य के रुप मेँ और राजनीतिज्ञ के रुप मेँ महापुरूष है.यदि महानता घटनाओँ के दिशा निर्देशन से मापी जाती है,अथवा लहरोँ के सिरोँ से ऊपर उठने मेँ है जनता के मार्ग दर्शन मेँ है और प्रगति के लिए उत्प्रेरक बनने मेँ है तो निश्चित ही नेहरु उस महानता के अधिकारी हैँ"
लेकिन....
कश्मीर मुद्दे पर अब भी नेहरु की आलोचना सुनने को मिल जाती है.

<http://www.slydoe163.blogspot.com/>

Saturday 13 November, 2010

माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ.प्र. : सेवा या राजनीति....?!

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 13 Nov 2010 19:14 IST
Subject: माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ.प्र. : सेवा या राजनीति....?!

दिन बुधवार,नवम्बर2010ई0 को स्नातक निर्वाचन खण्ड का चुनाव था.मैँ अपना वोट माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र के अधिकृत प्रत्याशी संजय कुमार मिश्र को देकर 11.00AM को तिलहर पहुँच गया.'मर्म युग'मासिक पत्रिका के सम्पादक ओम प्रकाश गुप्ता के साथ तिलहर के अन्दर अनेक व्यक्तियोँ से मिलने पहुँचा.इस क्षेत्र मेँ कुछ वित्तविहीन शिक्षकोँ के लिए आज का दिन क्रान्ति दिवस से कम न था.एक
ओर योग गुरु स्वामी रामदेव से मुलाकात व दूसरी ओर स्नातक निर्वाचन खण्ड का चुनाव ! अभी तक हम सभी इस चुनाव मेँ भाजपा प्रत्याशी नेपाल सिँह को वोट देते आये थे. आज यह पहला अवसर था जब हम अपने ग्रुप अर्थात वित्तविहीन शिँक्षकोँ मेँ से एक शिक्षक को अपना वोट दे रहे थे.अभी तक हम,माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षकोँ के हित की बात करने वाला कौन था ? अब हमारे सामने अपनी बात कहने के लिए एक मंच है-"
माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र . "


लेकिन......

पीलीभीत ,बरेली,बण्डा,मीरानपुर कटरा , तिलहर , आदि क्षेत्र मेँ अनेक वित्तविहीन शिक्षकोँ व सम्बन्धित सम्बन्धियोँ से बातचीत कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अभी तो माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र के पदाधिकारियोँ प्रति ही लोग सन्तुष्ट नहीँ हैँ. " दाऊ के घर रहना है तो दाऊ की सहना " - वाली कहावत है.बेरोजगारी की मार! इन वित्तविहीन कालेजोँ मेँ हम मजबूरन पढ़ा रहे हैँ.अभी
हमको तो तीन चार साल ही पढ़ाते हुए हैँ,लोगोँ ने अपनी जिन्दगी बिता दी,उन्हेँ तक विश्वास नहीँ कि कब क्या हो जाए ? विद्यालय पर हावी कुछ व्यक्ति कुछ भी कर सकते हैँ.जिसमेँ यह'माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा क्या कर सकती है ? ' कुछ दिन पूर्व पंचायत के चुनाव थे.इन्हीँ कुछ व्यक्तियोँ मेँ से कुछ चुनाव मेँ उम्मीदवार थे,उनकी क्या नीति है अपने स्कूलोँ के प्रति ? विद्यालय को एड की
प्रक्रिया के दौरान किनको किनको चयनित किया जाता है?जिसकी प्रतिक्रिया पंचायत चुनाव मेँ तक देखने को मिल रही थी.अब फिर इस चुनाव मेँ....!?
एक का कहना था कि अरे भाई , हम तो दूध मेँ मक्खी के समान हैँ.हम स्वयं चाहते हैँ कि माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा उ प्र की जी जान से मदद करेँ लेकिन कैसे? किस आधार पर?

एक शिक्षक का कहना था कि हमेँ तो यहाँ सभी वित्तविहीन शिक्षकोँ के हक की लड़ाई नहीँ लगती,मात्र राजनीति लगती है.
हर वित्तविहीन शिक्षक के हक की बात करना चाहते हैँ क्या यह लोग ?

" स्वयं आप के उम्मीदवार क्या हैँ?खुले आम अपने कालेज मेँ गाली देते फिरते हैँ.बस,वे राजनीति करते फिरते हैँ.यदि दम है आप की महासभा मेँ तो बोर्ड परीक्षा का बहिष्कार क्योँ नहीँ करते?पूरी की पूरी यूपी सरकार हिल जाए.भला सिर्फ उन्हीँ का होना है ,जो इसके पदाधिकारी हैँ या जो इनकी हाँ हजूरी करते हैँ. एड के मौके पर अनेक वित्तविहीन शिक्षक दूध मेँ से मक्खी की तरह निकाल दिए जाएंगे.देख
तो रहे हो पड़ोस मेँ....स्वयं न्याय कर नहीँ सकते,सरकार से उम्मीदेँ रखते हो.यदि न्याय की बात है तो विद्यालय कमेटी व उन प्रधानाचार्योँ पर आप क्या दबाव डलवाएँगे जो एड की प्रकिया मेँ वास्तव मेँ हकदार को शामिल करेँ. "-एक वित्तविहीन शिक्षक के एक सम्बन्धी का कहना था.

एक वित्तपोषित शिक्षक कहते हैँ कि पुराने किले को ध्वस्त करना ऐसे आसन नहीँ है.


<www.slydoe163.blogspot.com>

Friday 12 November, 2010

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' के नाम बराक ओबामा का पत्र!

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 12 Nov 2010 17:19 IST
Subject: अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' के नाम बराक ओबामा का पत्र!

 

Good morning,


Each fall, Americans take time to honor the brave men and women in uniform who put themselves in harm's way to protect our nation and the ideals on which it was founded.  


Today, I met with service members in Yongsan Garrison in South Korea, and I told them that honoring their service isn't just about the memorial services we attend on Veterans Day or Memorial Day -- it's about how we treat our Veterans every day of the year. 
 
[http://www.whitehouse.gov/blog/2010/11/11/president-obama-americas-veterans-we-remember?utm_source=email84&utm_medium=image&utm_campaign=veterans]


Our men and women in uniform and their families have sacrificed so much, and all Americans owe them a debt of gratitude for their service.  It is our moral obligation to care for our service members, Veterans and military families as they have cared for us. 


As Commander in Chief, this is a commitment I take very seriously.  That's why my Administration is building a 21st-century Department of Veterans Affairs (VA) to ensure that our Veterans have every opportunity to live happy, productive and healthy lives once they step out of uniform:


* Through the Post-9/11 GI Bill, we are helping nearly 400,000 Veterans and family members pursue higher education.
* We have dramatically increased funding for Veterans health care across the board and are directing unprecedented resources to treat the wounds of today's wars -- traumatic brain injury and post-traumatic stress disorder.
* The VA is working to streamline the claims process by creating a single electronic record that our troops and Veterans can keep for life and hiring thousands of claims processors to finally break the back of the backlog of claims.
* Today, there are 18 percent fewer homeless Veterans on our streets than there were when I took office, and we won't rest until all our Veterans have a place to call home.


I encourage all Americans to take time to thank the Veterans, service members and military families in your lives and recognize their extraordinary service to our country.


To all of our men and women in uniform, our Veterans and our military families: We honor your service, we are grateful for your sacrifice, and we will not let you down.


Sincerely,


President Barack Obama


P.S. You can learn more about how you can support our Veterans, military families and active duty service members here:
 
http://www.serve.gov/vets.asp [http://www.serve.gov/vets.asp]


 

 


 
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Monday 1 November, 2010

31अक्टूबर : सरदार पटेल जयन्ती

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 31 Oct 2010 16:47 IST
Subject: 31अक्टूबर : सरदार पटेल जयन्ती

आज देश के अनेक स्थानोँ पर सांस्कृतिक कार्यक्रमोँ का आयोजन किया गया.आज के ही दिन सन1889ई0को सीतापुर नगर क्षेत्र स्थित तामसेन गंज स्थित मुरली निवास मेँ आचार्य नरेन्द्र देव का जन्म हुआ था.आज के ही दिन 18752 ई0 को सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था.आज के ही दिन सन1984ई0मेँ इन्द्रिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकोँ ने हत्या कर दी.

मैँ बच्चोँ को बताता रहता हूँ कि समाज ,देश व विश्व किनका जन्मदिवस या पुण्य दिवस मनाता है?हमारे दादा- परदादाओँ को दुनिया क्योँ नहीँ याद करती?हमेँ भी क्या दुनिया याद करेगी?हम जिस रास्ते पर हैँ,वह रास्ता क्या ऐसा है कि दुनिया हमेँ याद करेगी ? चलोँ कोई बात नहीँ,दुनिया हमेँ याद करे या न करे लेकिन क्या हम अपने लिए भी जीते हैँ?क्या मनुष्य अपने जीवन मेँ सन्तुष्ट भी हैँ.आप के जीने का
आधार भी क्या है?आर्ट आफ लिविंग क्या है ?जैसे तैसे डिग्रियां इकट्ठी कर लीँ,आय के उपक्रम मेँ लग गये ,फिर शादी और बच्चे...! 90 प्रतिशत डिग्री होल्डर भी कहाँ पर ठहरते हैँ? मन,वचन व कर्म से एक न होने के कारण व्यक्ति पूर्ण कब ?


बारदोली आन्दोलन मेँ जान डालने वाले व देश को अनेक विभाजनोँ से बचाने वाले सरदार पटेल एक कुशल प्रशासक थे.साम्प्रदायिकता की आग को देखते हुए उन्हेँ मजबूरी वश देश का विभाजन स्वीकार करना पड़ा .उन्होँने कहा था कि यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार न करती तो एक पाकिस्तान के स्थान पर कई पाकिस्तान बनते.दूसरी और सत्तावादियोँ के बीच व देश के साम्प्रदायिक वातावरण मेँ गांधी अकेले पड़
गये थे.गांधी के रोल को देख लार्ड माउण्टबेटेन को कहना पड़ा-"वप मैन वाउण्डरी फोर्स ."


<www.akvashokbindu@blogspot.com>