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Friday 20 May, 2011

बुद्धपुर्णिमा : बुद्ध अनीश्वरवाद!



हमारे विद्यालय अध्यापक परिवार में से एक हैं-ब्रह्माधार मिश्रा. जिनके रिश्ते में एक वृद्ध मामा जी हैं,जो कि कभी कभार विद्यालय में आते रहते हैं .जब मेरा उनसे आमना सामना होता है तो फिर धार्मिक व आध्यात्मिक चर्चा होती है.जब परसों उनसे मुलाकात हुई तो वे बोले कि अध्यात्म में क्या चल रहा है?



"क्या चल रहा है? बस,मेडिटेशन."



"आपने यह सब कहां से पाया ?आपने किसी को अपना आराध्य या गुरु तो मनाया ही होगा?"



"ऐसा नहीं है.दर असल बचपन से ही मेरा बुजुर्गों के बीच बैठना ज्यादा हुआ."



"कोई आराध्य नहीं है तो फिर साधना कैसे होती है?कोई राम राम जपता है कोई....."



"मैं कुछ मेडिटेशन क्रियाएं करता हूँ.एक-जैसे गौतम बुद्ध करते थे कि बैठ गये आंख करके और श्वास प्रक्रिया पर ध्यान देने लगे.इस तरह अन्य में........."



"बुद्ध को तो लोग अनिश्वरवादी मानते हैँ."



"लेकिन मैं नहीं.दुनियां में जिन ईश्वरों की बात की गयी है वे सब इस संसार में व इस संसार के लिए ही हैं.इससे आगे भी कुछ है.....अन्धकार .....शून्य फिर,यहां भी एक ब्लैक होल है जिसमें सारी दुनिया समा जाती.जिसके पार भी कुछ है.इस अन्धकार इस शून्य व इसके पार की अनुभूति को अभी तक कोई शब्द नहीं दे पाया है.बुद्ध ने इसकी कोशिस की है."



खाली की बहस बाजी क्यों?जो दुनिया से चिपके हैं,माया मोह लोभ अहंकार आदि से निकलने का प्रयत्न भी नहीं करना चाहते.सांसारिक सुख चाहते है,उन से ईश्वर की बात?



बुद्ध को अनिश्वरवादी मानने वाले जरा अपना आत्मसाक्षात्कार करें.



बुद्ध का जीवन से ही बुद्ध व उनके प्रिय शिष्य आनन्द के कुछ सम्वाद से स्पष्ट होता है कि बुद्ध ने उस समाज में ईश्वर की चर्चा करना व्यर्थ समझा ,जहां लोगों के मन ईश्वर में नहीं रमें हैं वरन माया मोह लोभ भोग विलास में रमें है या फिर वे ईश्वर की शरण में जाते भी हैं तो ईश में रमने के लिए नहीं वरन सांसारिक सुख पाने के लिए.ऐसे समाज के प्रति सन्त कबीर तक को भी कहना पड़ा था -मैं दुनिया के लिए जो देने आया हूँ,वह कोई लेने नहीं आता.



भक्त संसारिक सुख की कामना रखता है क्या ? ईश् भक्ति सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए ?बुद्ध ने ईश्वर नहीं ईश्वरता की बात की. उनके दर्शन में ईश्वर जरुर नहीं है लेकिन ईश्वरता है.योग के आठ अंग हैँ,जिसके बिना साधारण जन ईश्वरता धार्मिकता व आत्म साक्षात्कार की ओर यात्रा तय नहीं कर सकता.संसार के देवी देवता व भगवानों के पार शून्य में क्या है?योगियों ने शरीर system को आठ भाग में बांटा है-reproductory,excretory,digestive, skeletal,circulatory,respiratory,nervous and endocrinal system .सहस्रार चक्र अर्थात लतीफा-ए-उम्मुद दिमाग के बाद शून्य की दशा आती हैं .संसार के देवी देवता व भगवान इससे पूर्व के syastem में हैं.ऐसे में बुद्ध की शून्य स्थिति में सांसारिक देवी देवताओं व भगवानों की बात कैसे?लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बुद्ध को अनिश्वरवादी मान लिया जाए?

नारी शक्ति : मातृ शक्ति



सखि सम्प्रदाय में स्वयं को कृष्ण का सखि माना जाता हैं.कृष्ण क्या है? कृष्ण है वह शक्ति जिससे जगत व जगत के वे तत्व आकर्षित हैं जो कृष्ण के आकर्षण में बंधने के कारण ही सजीव कहलाते हैं व जिस के कारण ब्राह्मण्ड में सृजन या विध्वंस जारी रहता है.इस धरती पर मथुरा में जन्मा कृष्ण तो सिर्फ उस अनन्त शक्ति के अंश का सगुण के माध्यम से अपनी लीला का कारण है.वह अनन्त शक्ति ही हमसे लीला कराती है,जिसके हम एक कतरा हैं.हमारा दोष इतना है कि हम माया ,मोह ,लोभ, काम ,आदि में उस अनन्त शक्ति की लय रुपी बांसुरी के राग यानि कि लयता में लीन नहीं हो पाते.जोकि हमारे रोम रोम में भी बसी है.उस अनन्त शक्ति के अलावा चाहें वह हमारे अन्दर हो या अन्यत्र , सब प्रकृति है.प्रकृति स्त्री गुण है . वह साक्षात दुर्गा है.हमारा शरीर भी प्रकृति है . पुरुष की तरह स्त्री भी ' स्व ' से अन्जान है . ' स्व ' है ' आत्मा ' वह है ' परमात्मा ' , जो कि शिव है.स्त्री का शरीर हो या पुरुष का शरीर;प्रकृति है.दोनों तरह के शरीर में जो आत्मा है, वह अलैंगिक है.वही से अनन्त भगवान तक पहुंचा जा सकता है. सिर्फ स्त्री के स्थूल शरीर से आकर्षण का कारण 'काम' है.'काम' के अभाव में स्त्री के स्थूल शरीर से आकर्षण का कोई सांसारिक कारण नहीं रह जाता.ऐसे में फिर पत्नी को छोड़ बेटी ,मां ,बहिन ,चाची,बुआ,आदि की तरह हो जाती है स्त्री . ऐसे में पत्नी भी काम के अभाव में एक देवी के समान हो जाती है.कुछ ने तो पत्नी को भी वानप्रस्थ व सन्यास आश्रम में आकर मां का दर्जा दिया है .कामुक नर नारी ही नारी शक्ति को मातृशक्ति नहीं मान सकती.

What is India? : SALIL GEWALI



सलिल गेवाली द्वारा संकलित एवं प्रकाशित एक पुस्तक 'वाट इज इंडिया' सामने आयी है.जो कि औपनिवेशिक शासन के लूटपाट और विध्वंस और भारतीय श्रेष्ठता को नजरअंदाज किये जाने की सुविचारित साजिश के विरुद्ध युवा भारतीय मानस की एक सशक्त प्रतिक्रिया है.



खुसरो मेल, बरेली 8 मई 2011 समाचार पत्र के पृष्ठ आठ पर हिमांशु जोशी'भारत एक नई खोज'लेख में लिखते हैं-



"पश्चिमी देशों द्वारा अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए भारत को लगातार विरोधाभास से परिपूर्ण सपेरों और रहस्यों से परिपूर्ण देश के रुप में प्रचारित किया जाता रहा है.इस दुराग्रह के चलते प्राचीन भारतीय तर्कशास्त्रियों और वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सिद्धांतों के साक्ष्य सामान्यत: वैज्ञानिक साहित्य की श्रेणी में नहीं स्वीकार किये जाते जबकि गणित,तर्कशास्त्र,दर्शन और औषधि विज्ञान के भारतीय ग्रन्थों में वास्तविक संसार और आत्मा परमात्मा के मूल्यों का विषद तुलनात्मक विवेचन किया गया है.दुष्प्रचार की इस तपिश को विश्व में अपनी प्रतिभा का डंका बजाने वाले युवा अप्रवासी भारतीय ने अपेक्षाकृत ज्यादा शिद्दत से महसूस किया और शायद इसी तथ्य के मद्देनजर अमरीका में रह रही फेसबुक की एक मित्र प्रियंका शर्मा के सौजन्य से सलिल गेवाली द्वारा संकलित एवं प्रकाशित पुस्तक ' वाट इज इंडिया ' से रुबरु होने का अवसर मिला .यह पुस्तक अल्बर्ट आइंसटाइन ,मार्क ट्वेन,एनी बेसेन्ट और राल्फ एमरसन समेत दुनिया भर के अनेक मूर्धन्य मनीशियों के भारतीय प्रतिभा के प्रति अनुभवों को साक्ष्य बनाकर पश्चिमी देशों द्वारा सदियों से किये जा रहे दुर्भावना पूर्ण कुप्रचार को बिना बोले ही अकाट्य रुप से शोथरा साबित करने के साथ सहज ही भारतीयता पर गर्व का अहसास कराने वाली शीतल बहार की मानिंद है. .... पश्चिमी देशों के सुनियोजित दुष्प्रचार के बावजूद भारत ने एक रहस्यमयी सुंदरी की तरह हमेशा दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया.
"


पश्चिमी देशों मेँ भारतीय साख बढ़ाने में अप्रवासी भारतीयों का योगदान अग्रणी रहेगा.यहां हमें ओशो का कथन स्मरण हो आया कि भविष्य में भारतीय विचार धारा प्रवाहित होगी,लेकिन भारत से नहीं विदेश से.

देहदान से क्या हर्ज ?



दान का मानव जीवन मेँ बड़ा महत्व रहा है.दान अनेक तरह के हैं,उनमें से एक दान है-देहदान. देहदान के प्रति मुझमें जिज्ञासा रही है कि देहदान कौन कर सकता है?क्या अस्वस्थ व्यक्ति भी अपना शरीर दान कर सकता है?शरीरदान के लिए जिले में कहां सम्पर्क किया जाए?आदि आदि.बरेली मण्डल के एक जनपद बदायूं सात व्यक्ति अपना शरीरदान कर चुके हैं.जिसके परिचय ,जीवनी आदि से सम्बन्धित पुस्तक बदायूं के दानदाता एक सजग सिंहावलोकन जून मास में प्रकाशित की जाएगी.ऐसा एक समाचार पत्र से हमें संज्ञान हुआ.

विवाह संस्था के दंश !



आज के भौतिक भोगवाद में शादी तय होने व करने का परम्परागत तरीका इंन्सान या रुहानी मूल्यों के खिलाफ अपना मंच खड़ा करता जा रहा है.भौतिक चमक धमक ,सामाजिक मर्यादा,प्रदर्शन,खानदानी इज्जत,आदि के सामने त्याग ,संयम,धैर्य,समर्पण,आदि का भाव खत्म हो रहा है.अच्छे इन्सान की पहचान उसके कपड़े,गाड़ी,बंगला,सम्पत्ति,आमदनी,आदि के आधार पर होता है.इसके ही साथ साथ हम अपना एक काल्पनिक जगत भी रखते है.जिसके आधार पर हम रिश्ता तय करते वक्त सामने वाले का आंकलन नहीँ करते.हम सामने वाले के शरीर,भौतिक स्तर ,बातचीत,पद,दहेज लेन देन,शादी के खर्च,आदि के आधार पर रिश्ता तय कर लेते हैं,लेकिन हम नहीं जानते कि हमारे अन्दर एक काल्पनिक व मानसिक जगत भी है;वह जरुरी नहीं कि सामने वाले से भविष्य में मेल खाये.इसी कारण भविष्य में तनाव की स्थिति पैदा होती है.हम से तो अच्छे वैदिक कालीन जंगली व आज के आदिबासी हैं.हम तो बाहर और अन्दर अलग अलग मूल्य छिपाए होते है.शादी तय करते वक्त हम जिन मूल्यों के आधार पर शादी तय करते हैं,शादी के बाद तलाक व टकराव के आधार के मूल्य अन्य हो जाते हैं.यह दोहरे मूल्य क्यों?शादी तय होने के वक्त ही उन मूल्यों को महत्व देना क्यो नहीं जिन मूल्यों के कारण तलाक व टकराव की स्थिति हो जाती है.अनेक व्यक्तियों के द्वारा एक ही व्यवहार व कर्म करने के पीछे भी सबका नजरिया अलग अलग हो सकता है.इस लिए कुछ विशेषज्ञोँ ने शादी से पूर्व युवक युवतियों के बीच काउंसलिंग आवश्यक वतायी है,जिसमें एक दूसरे के नजरिये व जीवन लक्ष्य को समझा जा सके.सामञ्जस्य की भी स्थितियां होती हैं.जिससे सामञ्जस्य नहीं होने की सम्भावनाएं छिपी हैं,लेकिन हम उसको लेकर उम्मीदों की दुनिया सजोये रिश्ता तय कर बैठते हैं तो क्या होगा ? अभी जल्द नई दिल्ली से एक समाचार मीडिया में आया कि दिल्ली महिला आयोग के अनुसार इस महानगर में हर साल करीब एक लाख तीस हजार शादियां होती हैं और दस हजार तलाक होते हैं.एक अनुमान के मुताबिक पिछले पांच सालों में तलाक लेने वालों की संख्या दोगुनी हो गयी है.शादी के प्रति अब लोगों का मन उचटने लगा है.जीवन के लिए महत्वपूर्ण है लक्ष्य समूह(वे लोग जो हमारे विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले व सहयोग करने वाले हैं).वैदिक साहित्य में शादी का उद्देश्य धर्म माना गया है,जिससे कि हम माया ,मोह,लोभ,काम,क्रोध,आदि को प्रशिक्षित कर अपने मृत्यु के करीब शान्त मन में आ सकें लेकिन हम तो जीवन पर्यन्त माया ,मोह ,लोभ ,आदि में फंसे रहते हैं.शान्ति व सन्तुष्टि की लालसा रखते हुए भी शान्ति व सन्तुष्टि से दूर हो जाते हैं.ओशो ने कहा है कि जो संसार की वस्तुओं से सुख की कामना रखता है,वह मूर्ख है.एक मात्र दया,सेवा,अध्यात्म ,योग व आयुर्वेद /प्रकृति को स्वीकार करने से ही जीवन को सुखमय बना सकते हैं.

Monday 2 May, 2011

इंटरनेट के अभिव्यक्ति पर नियन्त्रण का विरोध!



हम सब इंटरनेट पर किसी न किसी तरह से वैचारिक क्रान्ति में लगे हुए हैँ.आओ हम सब इंटनेट पर नियन्त्रणों पर एक बहस छेंड़े,जो कि हम लोगो के लिए अति आवश्यक है.


बालेन्दु शर्मा दधीचि का कहना है-
"इंटरनेट पर विचारों और सूचनाओं के मुक्त आदान प्रदान से आम तौर पर चीन और ईरान जैसी सरकारों को समस्या रही है जो वेबसाइटों,ब्लागों,सर्च इंजनों और सोशियल नेटवर्किंग साइटों तक पर अंकुश लगाने के नए नए उपाय करती रहती हैं लेकिन इधर भारत सरकार ने अपने सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत कुछ कड़े नियम जारी कर हलचल मचा दी है.इन नियमों में इस्तेमाल की गई शब्दावली कुछ ऐसी है कि जरुरत पड़ने पर कोई भी सरकार आनलाइन माध्यमों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए उनकी अलग अलग ढंग से व्याख्या कर सकती है. सरकार द्वारा तय किए गए मानदंड इतने व्यापक और शब्दावली इतनी ढीली ढाली है कि उसके दायरे मे तो ज्यादातर आनलाइन सामग्री आ जा एगी .ऐसी सामग्री के लिए भी इंटरनेट मध्यमोँ को दंडित किया जा सकता है जो किसी अन्य देश के लिए अपमानबनक हो.ऐसे प्रावधानों को पूरी तरह स्पष्ट बनाए बिना लागू करना उनके दुरुपयोग का पिटारा खोल सकता है.इंटरनेट कंपनियां और इंटरनेट उपभोक्ता इनसे खासे विचलित हैँ.आपको याद होगा छह साल पहले बाजी डाट काम (अब ईबे.को.इन)के सीईओ अवनीश बजाब को सिर्फ इस बात के लिए जेल जाना पड़ा था कि किसी यूजर ने उनकी वेबसाइट पर बिक्री के लिए अश्लील सीडी डाल दी थी.नए आईटी नियमों के तहत इस्तेमाल किए गए मानहानिकारक,अश्लील,घृणास्पद,संकीर्णपूर्ण,परेशान करने वाला ओर विदेश के लिए अपमानजनक जैसे मापदंडोँ का क्या मतलब है? घृणास्पद कितना, किस मायने में ,किसके लिए,किस किस्म की,आदि ढेरों पहलू हैं जिन्हें पूरी तरह साफ किए जाने की जरुरत है.अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही मुहिम के समर्थन में किसी वेबसाइट पर कोई आक्रामक लेख लिखा जाता है तो वह इनमें से अनेक श्रेणियों के तहत दंड का पात्र हो जाएगा.विकीलीक्स के सारे रहस्योद्घाटन इस कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आएंगे.अगर कोई ब्लागर आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के समर्थन से व्यथित होकर या फिर सद्दाम हुसैन के विरूद्ध अमेरीकी कार्रवाई से व्यथित हो कर कोई आक्रामक लेख लिखता है तो उसे आप किस श्रेणी में मानेंगे?जाहिर है,इसकी व्याख्या आसानी से नकारात्मक रुप मे की जा सकती है.इसी तरह,अश्लीलता के क्या मायने है?हो सकता है किसी एक संस्कृति मे रहने वाले व्यक्ति के लिए जो अश्लील हो वह दूसरों के लिए न हो.बात फिर इंटरप्रिटेशन पर आ टिकती है. "



ओशो ने सुकरात के ही देश में कहा था-सुकरात को सत्ता ने मारा था,पब्लिक ने नहीं.आखिर ब्यूरेक्रेसी कब तक अभिव्यक्ति के खिलाफ बनी रहेगी?


जागो!इस पर बहस छेंड़ो.


आप सब सुने,यह आईटी नियम हम सब के खिलाफ है. वैचारिक क्रान्ति के खिलाफ है.

फिर कहता हूँ कि जागो!

हम लोगो को भी एक मंच बनाना होगा और इण्टरनेट से बाहर निकल कर धरती पर वर्ष मे एक बार एक सेमीनार व पुरस्कारों का सिलसिला प्रारम्भ करना होगा.

Sunday 1 May, 2011

गर जड़ें जिंदा बचीं : संगीता सक्सेना



ओशो ने कहा है कि अधिकतर मनुष्य उखड़े हुए पौधे की भांति हो चुका है,जिसे भौतिक संसाधनों के माध्यम से बचाने की कोशिस की जा रही है.अपनी जड़ जमीन से अलग हुआ पौधा कितना अपने शाश्वत जीवन की सहजता में जी सकता है? समाजवादी चिन्तक लोहिया ने मरते वक्त कहा था कि लगता है समाज अपनी आत्मा खो चुका है.देखा जाए तो व्यक्ति वास्तव में अपने धर्म व आत्मा से दूर जा चुका है.व्यक्ति जिसे धर्म मान रहा है ,वह धर्म है ही नहीं.


खैर....!



' गर जड़ें जिंदा बचीं ' !



बीसलपुर(पीलीभीत) उप्र की निवासी हैँ डा संगीता सक्सेना ,जो काव्य प्रतिभा की धनी हैं.' गर जड़ें जिंदा बचीं ' उनके द्वारा रचित एक श्रेष्ठ पुस्तक है .



जयपुर मेँ 'अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान' के तत्वावधान में गुरु अर्जुन देव जयंती का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमे बीसलपुर(पीलीभीत)उप्र की डा संगीता सक्सेना की पुस्तक'गर जड़ें जिंदा बचीं ' का विमोचन व समीक्षा प्रस्तुत की गई.समारोह के मुख्य अतिथि गुरुचरण सिँह गिल राष्ट्रीय अध्यक्ष सिक्ख संगत रहे.



बीसलपुर (पीलीभीत)उप्र की प्रबुद्ध जनता को नाज है.साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी के बाद अब डा संगीता सक्सेना ने बीसलपुर(पीलीभीत)उप्र का नाम दुनिया के प्रबुद्ध वर्ग के बीच ससम्मान पहुंचाया है.इस विषय पर बीसलपुर(पीलीभीत ) उप्र के ही युवा विचारक विमल वर्मा ने बताया कि डा संगीता सक्सेना से बीसलपुर (पीलीभीत)उप्र के प्रबुद्ध वर्ग की नाक ऊंची हुई है.

जयपुर मे हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर आर सी शर्मा व संचालन भवानी निकेतन कालेज जयपुर के संस्कृत विभाग की अध्यक्ष डा वेला मलिक ने किया.इस कार्यक्रम में परिषद के प्रदेशाध्यक्ष डा मथुरेश नंदन कुलश्रेष्ठ भी उपस्थित थे.



(प्रस्तुति:सुजाता देवी शास्त्री)