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Sunday 30 May, 2010

 अन्तरिक्ष मेँ भारत !
भारत एक सनातन यात्रा का नाम है.पौराणिक कथाओँ से स्पष्ट है कि हम विश्व मेँ ही नहीँ अन्तरिक्ष मेँ भी उत्साहित तथा जागरूक रहे हैँ.अन्तरिक्ष विज्ञान से हमारा उतना पुराना नाता है जितना पुराना नाता हमारा हमारी देवसंस्कृति का इस धरती से.विभिन्न प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ मेँ मातृ देवि के प्रमाण मिले हैँ.एक लेखिका साधना सक्सेना का कुछ वर्ष पहले एक समाचार पत्र मेँ लेख प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.
अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?
मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.
पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.
ASHOK KUMAR VERMA'BIND'
A.B.V. INTER COLLEGE, KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.
 Subject: प्रेम से साक्षात्कार !
प्रत्येक लोक मेँ प्रेम की बात है.जो इस धरती पर प्रेम है वही ईश्वरीय जगत मेँ भगवत्ता है.आत्मा स्वयं भागवत है,ईश्वर है.बताते हैँ कि गुप्त काल से पहले भगवान का अर्थ था-मोक्ष को प्राप्त व्यक्ति अर्थात आत्मा के स्वभाव मेँ अर्थात साँसारिकता मेँ अभिनय मात्र रहते हुए अपनी निजता मेँ जीना या अपनी स्वतन्त्रता मेँ रहना.अरविन्द घोष ने ठीक ही कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति अपनी आत्मा मेँ नहीँ जीता.वह अपने मन मेँ जीता है जिसकी दिशा दशा इन्द्रियोँ ,शरीरोँ व सांसारिक वस्तुओँ की ओर होती है .किसी ने ठीक ही कहा है कि दो शरीरोँ मिलन या सांसारिक वस्तुओँ के भोग की लालसा काम है,जिसके प्रतिक्रिया मेँ किये जाने वाले कर्म चेष्टाएँ हैँ.प्रेम की सघनता आत्मीय है,जिसे प्राणी पा जाता है तो उसका अहंकार विदा हो जाता है और नम्रता आ जाती है.द्वेष खिन्नता आदि खत्म हो जाती हैँ.हमेँ ताज्जुब होता है ऐसी खबरेँ सुन कर कि असफल प्रेमी ने की आत्म हत्या,शबनम के एक तरफा प्रेमी ने की शबनम की हत्या,सन्ध्या उसकी न हो सकी तो किसी की भी न हो सकी,प्रेमी प्रेमिका ने एक साथ पटरी से कट कर दी जान,आदि.हमे तो यही लगता है कि अभी 99प्रतिशत लोग प्रेम की एबीसीडी तक नहीँ जानते.इन सब की कथाएँ 'प्रेम कथाएँ' नहीँ 'काम कथाएँ' थीँ.प्रेम आत्म हत्या नहीँ कराता,हिँसा नहीँ कराता,बदले की भावना नहीँ जगाता,उम्मीदेँ रखना नहीँ सिखाता,आदि.तुलसी दास आज के प्रेमियोँ जैसे होते तो उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती थी?किसी से प्रेम का मतलब यह नहीँ होता कि अपनी इच्छाओँ के अनुसार उसे डील करना या अपनी इच्छाएँ उस पर थोपना.प्रेम का मतलब है जिससे हमेँ प्रेम है वह जैसा भी है उसे वैसा ही स्वीकार करना.प्रेम मेँ जीने का मतलब अपनी इच्छाओँ मेँ जीना नहीँ है.आज किसी से प्रेम है कल किसी कारण उससे प्रेम खत्म हो जाए,वह प्रेम नहीँ.प्रेम किसी हालत मेँ खत्म नहीँ होता रूपान्तरित होता है.मैने अपने प्रेम से यही अनुभव किया है.प्रेम मेँ 'पाने'या 'खोने'से कोई मतलब नहीँ है;सेवा,त्याग व समर्पण से है.अपनी इच्छाओँ के लिए नहीँ उसकी इच्छाओँ के लिए जीना है.जिससे हमेँ प्रेम है,इसका मतलब यह नहीँ कि हम उसे पाना चाहेँ.यदि उसको न पाने से हम खिन्न उदास या अपराधी हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम प्रेमी नहीँ है.अरे! वह जैसे खुश वैसे हम खुश!वह हमेँ पसन्द नहीँ करती या करता तो क्या ?
हम किसी को चाहते चाहते खिन्न चिड़चिड़े आदि होने लगेँ तो इसका मतलब यही है कि हम जिसे चाह रहे हैँ उससे हमेँ प्रेम नहीँ है.अच्छा तो यही है कि हम सभी का सम्मान करेँ और जो हमेँ चाहेँ उनसे प्रेम करेँ.प्रेम मेँ तो हम तब है जब अहंकारशून्य होँ,नम्रता बिना हम प्रेमवान नहीँ.
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Monday 24 May, 2010

प्रेम से साक्षात्कार !

----Forwarded Message---- From: akvashokbindu@yahoo.in To: akvashokbindu@yahoo.in Sent: Mon, 24 May 2010 16:32 IST Subject: प्रेम से साक्षात्कार !

प्रत्येक लोक मेँ प्रेम की बात है.जो इस धरती पर प्रेम है वही ईश्वरीय जगत मेँ भगवत्ता है.आत्मा स्वयं भागवत है,ईश्वर है.बताते हैँ कि गुप्त काल से पहले भगवान का अर्थ था-मोक्ष को प्राप्त व्यक्ति अर्थात आत्मा के स्वभाव मेँ अर्थात साँसारिकता मेँ अभिनय मात्र रहते हुए अपनी निजता मेँ जीना या अपनी स्वतन्त्रता मेँ रहना.अरविन्द घोष ने ठीक ही कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति अपनी आत्मा मेँ नहीँ जीता.वह अपने मन मेँ जीता है जिसकी दिशा दशा इन्द्रियोँ ,शरीरोँ व सांसारिक वस्तुओँ की ओर होती है .किसी ने ठीक ही कहा है कि दो शरीरोँ मिलन या सांसारिक वस्तुओँ के भोग की लालसा काम है,जिसके प्रतिक्रिया मेँ किये जाने वाले कर्म चेष्टाएँ हैँ.प्रेम की सघनता आत्मीय है,जिसे प्राणी पा जाता है तो उसका अहंकार विदा हो जाता है और नम्रता आ जाती है.द्वेष खिन्नता आदि खत्म हो जाती हैँ.हमेँ ताज्जुब होता है ऐसी खबरेँ सुन कर कि असफल प्रेमी ने की आत्म हत्या,शबनम के एक तरफा प्रेमी ने की शबनम की हत्या,सन्ध्या उसकी न हो सकी तो किसी की भी न हो सकी,प्रेमी प्रेमिका ने एक साथ पटरी से कट कर दी जान,आदि.हमे तो यही लगता है कि अभी 99प्रतिशत लोग प्रेम की एबीसीडी तक नहीँ जानते.इन सब की कथाएँ 'प्रेम कथाएँ' नहीँ 'काम कथाएँ' थीँ.प्रेम आत्म हत्या नहीँ कराता,हिँसा नहीँ कराता,बदले की भावना नहीँ जगाता,उम्मीदेँ रखना नहीँ सिखाता,आदि.तुलसी दास आज के प्रेमियोँ जैसे होते तो उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती थी?किसी से प्रेम का मतलब यह नहीँ होता कि अपनी इच्छाओँ के अनुसार उसे डील करना या अपनी इच्छाएँ उस पर थोपना.प्रेम का मतलब है जिससे हमेँ प्रेम है वह जैसा भी है उसे वैसा ही स्वीकार करना.प्रेम मेँ जीने का मतलब अपनी इच्छाओँ मेँ जीना नहीँ है.आज किसी से प्रेम है कल किसी कारण उससे प्रेम खत्म हो जाए,वह प्रेम नहीँ.प्रेम किसी हालत मेँ खत्म नहीँ होता रूपान्तरित होता है.मैने अपने प्रेम से यही अनुभव किया है.प्रेम मेँ 'पाने'या 'खोने'से कोई मतलब नहीँ है;सेवा,त्याग व समर्पण से है.अपनी इच्छाओँ के लिए नहीँ उसकी इच्छाओँ के लिए जीना है.जिससे हमेँ प्रेम है,इसका मतलब यह नहीँ कि हम उसे पाना चाहेँ.यदि उसको न पाने से हम खिन्न उदास या अपराधी हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम प्रेमी नहीँ है.अरे! वह जैसे खुश वैसे हम खुश!वह हमेँ पसन्द नहीँ करती या करता तो क्या ?

हम किसी को चाहते चाहते खिन्न चिड़चिड़े आदि होने लगेँ तो इसका मतलब यही है कि हम जिसे चाह रहे हैँ उससे हमेँ प्रेम नहीँ है.अच्छा तो यही है कि हम सभी का सम्मान करेँ और जो हमेँ चाहेँ उनसे प्रेम करेँ.प्रेम मेँ तो हम तब है जब अहंकारशून्य होँ,नम्रता बिना हम प्रेमवान नहीँ.

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Sunday 16 May, 2010

क्या है चरित्र?

किसकी नजर मेँ जिया जाए?जिसकी जैसी भावना ,उसकी नजर मेँ वैसी ही मेरी छवि.चाहेँ जिस रास्ते पर चलो , अँगुलियाँ उठाने वालोँ की कमी नहीँ.गीता मेँ स्व का अर्थ आत्मा या परमात्मा बताया गया है.शेष सब पर कहा गया है.यहाँ तक कि अपने शरीर तक को पराया या प्रकृति कहा गया.

चरित्र क्या है?समाज की नजर मेँ जीना या स्व की नजर मेँ जीना?हमेँ ग्रन्थोँ महापुरुषोँ की नजर मेँ जीना चाहिए या समाज की नजर मेँ जीना चाहिए?मैँ तो कहूँगा यश अपयश की क्या चिन्ता करना.कूपमण्डूक मतभेदी स्वार्थी की नजर मेँ क्या जीना.पहचानो सार्बभौमिक ज्ञान को .

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Thursday 13 May, 2010

DUKH AUR BHAGYHINTA.

BUDDH NE KAHA HAI-dukh ka karan TRASHNA hai.SUKH AUR DUKH MUN KA KHEL HAI.BHAGYHINATA JEEVAN KO DEKHANE KA NAJARIYA HAI.KISI KO AADHA GILAS KHALI DIKHAYI DETA HAI AUR KISI KO AADHA GILASH BHARA .

NARAKO PAR ADALAT KI NA...

Abhi kuchh din pahle sarvoch nyalay ne NARKO PARIKSHAN ,AADI jaisi janchon ko nakar diya,esa nirny vastav me kya nyayvadi kaha ja skata hai?niji svatantrata ka himayti hone ka matalb yah nhi ki vyavsthayen davngata,svarth,dhanbal,kubndhan,brashtachar,aadi ke bli chadh jaye?bhram,shanka,afvah,aadi ke chalte vyakti ka jeevan hi badal jata hai.samaj dabngata ke samane sir jhuka leta hai aur sidho ke samane dabngayi dikhata hai.gabah bhi dabang ke paksh me jyada khadhe hote hain.pees parti ke pramukh ka kahana uchit hai ki niyukti me NARKO PARIKSHAN anivary kiya jana chahiye.ADALAT KA VARTAMAN NIRNY BHAVISHY KE LIYE UCHIT NHI HAI.

#TWITTER PAR SACHIN#

twitter par sachin tendulakar ke mahaj ek din me70000 par pahuchi prashnashakon ki sankhaya. BHAYI!HAME TAJJUB HAI? Hame es par bhi vichar karna chahiye ki BHID KISAKE PICHE HOTI HAI?APANE JEEVAN ME ESKA ANUBHAV LO.ESA MASIH ,MOHAMMD SAHAB, SAYIN,OSHO,AADI JAB JINDA THE TO UNKE PICHE KITANI BHID THI?LEKIN AB?

#VAH BHI MURKH HOTA HAI....#

BUDDH ne kaha hai-dukh ka karan trashna hai.MOKSH tabhi mil sakata hai jb duniya se MOH BHNG ho jaye aur duniya me kartavw nate jiya jaye. main es par charcha kar raha tha ki DEVDATT PAtHAK BOLE-batchit se kya hota hai,jab koyi apana marta hai to malum chalata hai.tab har koyi rota hai jo marne vale ka khash hota hai. jo nhi rota hai vah MURKH hota hai.

BHAYI! maine anubhav kiya hai-PAGAL VAH BHI HOTA HAI JO LAKIR KA FAKIR HOTA HAI.devdatt pathak BHRAHAMAN ho kar bhi kya ADHYATM ka gyan rakhate hain?LASHON PAR NHI RONE VALON KO VE PAGAL KAHTE HAI.TAB TO UNHE APANE GHAR ME GEETA PUSTAK AUR SHRI KRISHAN KI TASVIRO KO NHI LAGANA CHAHIYE.