किसकी नजर मेँ जिया जाए?जिसकी जैसी भावना ,उसकी नजर मेँ वैसी ही मेरी छवि.चाहेँ जिस रास्ते पर चलो , अँगुलियाँ उठाने वालोँ की कमी नहीँ.गीता मेँ स्व का अर्थ आत्मा या परमात्मा बताया गया है.शेष सब पर कहा गया है.यहाँ तक कि अपने शरीर तक को पराया या प्रकृति कहा गया.
चरित्र क्या है?समाज की नजर मेँ जीना या स्व की नजर मेँ जीना?हमेँ ग्रन्थोँ महापुरुषोँ की नजर मेँ जीना चाहिए या समाज की नजर मेँ जीना चाहिए?मैँ तो कहूँगा यश अपयश की क्या चिन्ता करना.कूपमण्डूक मतभेदी स्वार्थी की नजर मेँ क्या जीना.पहचानो सार्बभौमिक ज्ञान को .
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