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Friday 22 October, 2010

वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 23 Oct 2010 08:27 IST
Subject: वैदिक दर्शन बनाम वर्तमान हिन्दू सोँच

हमारे विद्यालय स्टाप मेँ 'ब्राह्मण जाति' के अध्यापकोँ का वर्चस्व है.कभी कभार इन अध्यापकोँ के आवास पर भी जाना हो जाता है.हिन्दू समाज मेँ हर कोई जाति भावना से ग्रस्त नजर आता है ,ऐसे मेँ ब्राह्मण वर्ग क्योँ न इस भावना से ग्रस्त होँ ? इनके लिए जातिपात मानना अपने धर्म से गिरना है.शायद लोग धर्म का मतलब नहीँ समझते ?

एक ब्राह्मण परिवार मेँ -


बातचीत के दौरान परिवार का मुखिया कहता है कि

एक बालक के यहाँ से कल मट्ठा मिल सकता है लेकिन वह नाई है.


"मैँ बोल दिया तो क्या हुआ ?"


"हाँ आप तो जाति पात मानते नहीँ ."

मुझे स्मरण हो आया कि एक बार इनकी पत्नी ने कहा था कि नीच बिरादरी मेँ खानपान चला क्या कोई अपना धर्म खराब करेगा? मैँ आज उन्हीँ की ओर देखते हुए बोला "कुछ तो मानते हैँ कि जातिपात मानकर हम अपने धर्म को सुरक्षित किए हुए हैँ."


वे बोलीँ- " हमेँ इतने साल हो गये कोई मुसलमान यह नहीँ कह सकता कि हमारे यहाँ एक कप चाय भी पी हो. "


" मुझे तो अपने को हिन्दू कहते भी शर्म लगती है.हिन्दू शब्द तक, हिन्दू शब्द क्या आपकी संस्कृति का शब्द है ? मुझे तो अपने को आर्य कहते गौरब महसूस होता है."


" बात तो एक ही है."


" एक कैसे?वहां वर्ण व्यवस्था थी यहां जाति व्यवस्था है.वहां मूर्ति पूजा नहीँ थी ,यहां है.और भी बहुत कुछ है जो वहां आज की सोँच से हट कर था. "


"पहले क्या था ? हम क्या जानेँ?"


" जानना चाहिए . हमेँ यह भी जानना चाहिए कि धर्म क्या है?हम तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैँ कि व्यक्ति किसी भी जाति पन्थ का हो,धर्म उसका एक ही है."


"आज कल ऐसा कौन सोँचता है?"


"हमारे पास क्या बुद्धि विवेक नहीँ है ?क्या हमारे पास ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से सीख लेने की योग्यता नहीँ है ? समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए कि ग्रन्थोँ व महापुरुषोँ से ? "


एक बार इस विश्व पर आर्योँ का शासन था.महाभारत युद्ध के बाद आर्य सभ्यता का अन्त हो गया.इसके बाद फिर यहुदी,पारसी,जैन ,बौद्ध,ईसा,मुस्लिम,आदि पन्थ अस्तित्व मेँ आये लेकिन आज का हिन्दू......?! 'हिन्दू' शब्द से तो पुराने शब्द हैँ -'यहुदी','पारसी','ईसाई','मुस्लिम ',आदि शब्द.जिन कारणोँ से आर्य संस्कृति व भारत वर्ष विखरा,उन कारणोँ पर अब भी नहीँ सोँचा जा रहा.

एक दिन एक अन्य ब्राह्मण जाति के अध्यापक से सम्वाद हो गया. वह बोले- हाँ,यह सत्य है कि हर जाति के लोग ऊपर उठे हैँ लेकिन ब्राह्मण अपने स्वभाव,कर्म व व्यवहार से नीचे गिरा है. हर कोई कर्म व स्वभाव से ऊँचा नीचा होता है.किसी को अपने कर्म से नहीँ हटना चाहिए .जिसका जो कर्म है उसे वह कर्म करना चाहिए.(एक होटल की ओर संकेत कर ) इन्हीँ को लो ,यह गड़रिया जाति के हैँ लेकिन अपना काम छोँड़ होटल
खोले पड़े हैँ.


अब भी पढ़ लिखा ब्राह्मण तक जन्म आधारित जाति व्यवस्था से हट वर्ण व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीँ है.जब स्वयँ आर्यगण इस पर ईमानदारी न दिखा पाये और स्वयं के समाज को तीन वर्ण -ब्राह्मण,क्षत्रिय व वैश्य मेँ बाँट लिया और शेष को अर्थात अनार्योँ व मूल निवासियोँ को दस्यु कहकर पुकारा.पराजित किए हुए लोगोँ को दास माना.अपने वंश अर्थात जन के आधार पर सत्ताएं स्थापित कीँ
.जन के आधार पर ही जनपद स्थापित हुए.

जाति पात व छुआ छूत के लिए पिछड़े व दलित वर्ग के जो व्यक्ति ब्राह्मणोँ को दोष देते वे स्वयं जातिपात व छुआ छूत की भावना से ग्रस्त हैँ और जिन जातियोँ को अपनी जाति से नीचा मानते हैँ उनसे व्यवहार रखना पसन्द नहीँ करते.

आर्योँ व ब्राह्मण धर्म मेँ आयी कमियोँ के कारण विश्व मेँ अनेक मत व पन्थ पैदा हुए व दुनिया बंटी.

आडम्बरी कर्म काण्डोँ आदि के परिणाम स्वरूप जैन व बौद्ध मतोँ का उदय हुआ और जिन व्यवहारिक घटकोँ को आर्य व ब्राह्मण भूल गये उन्हेँ फिर जिन्दा किया गया.जन्म जाति व्यवस्था पर भी चोट की गयी.वर्तमान का हिन्दु समाज अब भी भटका हुआ है ,जो वास्तव मेँ आर्य समाज, शान्तिकुञ्ज,ओशो,आदि के साहित्य के माध्यम से जाग्रत किया जा सकता है. बात है विहिप,बजरंग दल,आर एस एस ,आदि की तो वे अभी अपने
कार्यकर्ताओँ को कुरीतियोँ,जाति व्यवस्था ,आदि के खिलाफ तैयार नहीँ कर पा रहे है.बस,हिन्दुओँ की अन्ध मानसिकता का चेक भुनाने का काम करते आये हैँ.यह कहते हैँ कि हिन्दू होने पर गर्व करो लेकिन कैसे?क्या ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,आदि ही हिन्दू हैँ अन्य नहीँ ?हिन्दुओँ के साथ दोहरा तेहरा व्यवहार क्योँ?कुछ लोग तो गैरहिन्दुओँ के संग बैठ तो खा पी सकते हैँ लेकिन सभी हिन्दुओँ के साथ
नहीँ.


धन्य ! वर्तमान हिन्दुओँ की सोँच...,

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