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Friday, 29 October 2010

प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 30 Oct 2010 08:19 IST
Subject: प्रेम बिना सब सून: श्री श्री रविशंकर

हम कल्पना नहीँ कर सकते हैँ कि प्रेम के बिना कैसा होगा जीवन?बेशक नामुमकिन.जैसे,मकड़ी खुद अपना जाल बुनती है.क्या वह उस जाल को छोँड़ सकती है?नहीँ.जिस तरह जाल के बगैर मकड़ी का होना नामुमकिन है,उसी तरह मानव जीवन भी प्रेम के बिना असंभव है.प्रेम के बिना उसका अस्तित्व नहीँ हो सकता.जैसे मकड़ी अपने थूक से अपना जाल बुनती है,वैसे ही हम प्रेम से अपनी दुनिया बुनते हैँ और फिर अपनी ही दुनिया
के बीच फंसे रहते हैँ.


कैसे जगाएं अंतस का प्रेम?


पूर्णता के तीन स्तर हैँ-मन,कर्म और वाणी की पूर्णता.यह पूर्णता प्रेम से ही सम्भव है.प्रेम प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ही होता है. इस आत्मिक प्रेम को हम मन,कर्म और वाणी की पूर्णता से जागा सकते हैँ.मन से कुत्सित विचारोँ को त्याग देँ,जनहित के लिए सोँचे, अपने कर्म को महत्व देँ और वाणी को संयमित रखेँ,तो हम ध्यान का सहारा ले सकते हैँ. फिर प्रेम के आगे पीड़ा छोटी पड़ जाती है.


प्रेम मेँ पीड़ाएं छोटी:


प्रेम मेँ अपार शक्ति होती है.इस शक्ति को जिसने जान लिया ,वह पूर्णता को पा लेता है.प्रेम की संवेदना को जो ऊपर उठाने मेँ कामयाब हो जाता है,उसे भौतिक पीड़ाएं नहीँ सतातीँ .

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