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Saturday 7 August, 2010

नक्सली कहानी :तन्हाई के कदम

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 06 Aug 2010 23:11 IST
Subject: नक्सली कहानी :तन्हाई के कदम

कमरे की एक दीवार पर ओशो की तश्वीर लगी हुई थी.

एक युवती की निगाहेँ जिस पर टिकी हुई थीँ.उसके दाहिने हाथ मेँ हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र था,जिसकी मुख्य हैडिँग थी-दस नक्सली एक पुलिस मुठभेड़ मेँ ढेर.साथ मेँ एक फोटो भी छपा था.वह फोटो अमित कन्नौजिया का था.


अमित कन्नौजिया का एक फ्रेम जड़ा फोटो यहाँ इस कमरे मेँ टेबल पर रखा था.युवती ने आगे बढ़कर टेबल से वह फ्रेम मड़ी फोटो उठा ली और सिसकने लगी.

इधर झारखण्ड के एक जंगली इलाके मेँ काफी तादाद मेँ नक्सली पुलिस चौकी पर आक्रमण करके अमित कन्नौजिया व उसके अन्य साथियोँ की लाशेँ उठा लाए थे और अब उनका अन्तिम संस्कार ससम्मान कर रहे थे.

08अगस्त 2014ई0 उत्तर भारत के सीतापुर शहर मेँ स्थित गेस्ट हाउस मेँ भारत परिषद द्वारा आयोजित सम्मेलन मेँ काफी संख्या मेँ लोग एकत्रित थे.वर्तमान मेँ जिसे प्रजातन्त्र सेनानी के प्रमुख इकरामुर्रहमान खां सम्बोधित कर रहे थे.दो युवतियोँ ने आपस मेँ खुसुरफुसुर की,"काल करते हैँ.काफी टाईम होगया.पूजा को अब तक तो आजाना चाहिए था."

"अमित!तुम तन्हा तो मैँ तन्हाई.हालाँकि तुम हालातोँ से त्रस्त हो नक्सली हो गये थे लेकिन इस उम्मीद के साथ मेँ जी तो रही थी कि तुम जिन्दा तो हो.तुम चले गये तो....."फिर युवती अमित कन्नौजिया की तश्वीर सीने सटा कर रोने लगी.


"कुप्रबन्धन, भ्रष्टाचार , मनमानी व अपनी अस्वस्थता को देखते हुए तुम अपने परिवार, समाज , सारे तन्त्र ,आदि के रहते तनाव के शिकार हो गये थे.अपने को तन्हा महसूस करने लगे थे.आप तो हम युवतियोँ के प्रति भी खिन्न रहने लगे थे;कमबख्त यह लड़कियाँ क्या चाहती हैँ?कोई काली कलूटी लूली लंगड़ी ही काश हमेँ पसन्द कर लेती?यही तो न! अमित,तुम वास्तव मेँ मूर्ख थे.मैँ तुम्हेँ कैसे बताती कि मैँ
तुम्हेँ चाहती हूँ.तुमने यह कैसे महसूस कर लिया कि कोई लड़की तुम्हेँ पसन्द नहीँ करती थी. तुमने किसी को मौका भी दिया क्या? "

मोबाइल पर किसी की काल आयी तो..

"हैलो"

" हाँ,हैलो! हाँ,मैँ पूजा ही बोल रही हूँ"-सीने पर से अमित की तश्वीर हटाते हुए युवती बोली.

"क्या गेस्ट हाउस नहीँ आना है?सम्मेलन शुरु हुए आधा घण्टे से ज्यादा हो गया है."

"सारी, मैँ नहीँ आ सकती. "

"अरे,पूजा!क्या बात?तुम तो रो रही हो?"


"आज का अखबार देखा है,अमित....."

15अगस्त 2 014 ई0 !

नक्सलियोँ का हस्तक्षेप पूरे देश मेँ बढ़ चुका था.नक्सलियोँ की ओर से जनता के नाम पर्चे पूरे देश मेँ जहाँ तहाँ बाँटे गये थे. जिन पर लिखा था कि-"आप क्या देश की वर्तमान व्यवस्थाओँ से सन्तुष्ट हैँ?यदि नहीँ तो क्या ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे रहने से काम चलेगा?उन लोगोँ से क्योँ डरते हो जो कानून के ठेकेदार बनते है लेकिन स्वयं अपने जीवन मेँ कानून का 25 प्रतिशत भी पालन नहीँ करते.देश के
अन्दर समस्याओँ का मूल कारण है-आदर्श व आचरण का एक दूसरे के विपरीत खड़े होना.आप कैसे श्री कृष्ण के भक्त हैँ?भूल गये कुरुशान(गीता ) का सन्देश?यदि श्री कृष्ण की शिक्षाओँ को अमल मेँ नहीँ ला सकते तो छोँड़ दो श्री कृष्ण की पूजा करना.गान्धीगिरी के खिलाफ मेँ भी कुछ नहीँ कहना चाहता हूँ लेकिन आप को देश की भावी पीढ़ी के लिए कोई स्पष्ट निर्णय लेना ही होगा. नहीँ तो आप ढोँगी पाखण्डी हैँ.उदास
निराश युवक युवतियाँ हमसे सम्पर्क करेँ.ऐसे नहीँ तो वैसे ,कैसे भी लेकिन जीवन जियो."


पूजा नक्सलियोँ के बीच खामोश खड़ी थीँ.

" पूजा! अमित मौत के वक्त भी तुम्हारा नाम ले रहा था."

पूजा की आँखोँ मेँ आँसू थे.

वह अपने ढाढस बँधाते हुए बोली-"मैँ तो आत्म हत्या का मन बनाये बैठी थी लेकिन अमित की डायरी ने मेरी आँखे खोल दी हैँ.मैँ दुनिया के हिसाब से नहीँ जी सकती न ही ध्यान भजन मेँ मन लगा सकती.हाँ,आत्महत्या कर सकती हूँ लेकिन ......"


"अमित के काम को आगे बढ़ाना ही होगा.हमेँ सर आलोक वम्मा के प्रत्येक कथन याद हैँ,मैँ नक्सल आन्दोलन के साथ हूँ लेकिन नक्सली हिँसक आन्दोलन के खिलाफ हूँ."

लेखक:अशोक कुमार वर्मा "बिन्दु"

आदर्श इण्टर कालेज

मीरानपुर कटरा, शाहाजहाँपुर (उप्र)

3 comments:

Anonymous said...

अशोक जी ,पहले तो आपके अपने तकनीकी ब्लाँग ईटिप्स कि पुरी टिम कि तरफ से ब्लाँग जगत मे आपका स्वागत है । लिखते रहिये संक्षिप्त सटिक और बेबाक ।

Anonymous said...

आप अपने ब्लाँग से WORD VERIFICATION हटा लेँ , सबसे पहले SETTING फिर COMMENT और WORD VERIFICATION लिखा होगा जिसे डिसेबल पर क्लिक करके SAVE कर देना है । यकिन जानीये वर्ड वेरिफीकेशन भरना बहुत हि समय खाना वाला काम है । इसी वजह से लोग टिप्पणी देने मे कतराते हैँ ।

किसी भी प्रकार कि तकनीकी सहायता के लिये ईटिप्स ब्लाग पर जरुर आयेँ
etips-blog.blogspot.com

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

बहुत ही मार्मिक कहानी है यह.
इसमें नक्सलवाद को जोड़कर आपने जो कहा है वह एक नवीन रूप है. पहले नक्सलवाद को लेकर ऐसी कोई भी कहानी नहीं पढ़ी थी. आपका यह प्रयास सराहनीय है.