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Saturday 23 October, 2010

नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 24 Oct 2010 10:10 IST
Subject: नक्सली कहानी : न शान्ति न क्रान्ति !

बुधवार की दोपहर घर से धान की बाली तोड़ने गई बालिका का शव नग्नावस्था मेँ गन्ने के खेत से खून से लथपथ पाया गया.बालिका का रेप के बाद गला काट कर हत्या कर दी.शव मिलने की खबर से गांव मेँ सनसनी फैल गयी.घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गयी.शव को कब्जे मेँ लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.


मीरानपुर कटरा (शाहाजहांपुर) थाना क्षेत्र के ग्राम कबरा हुसैनपुर निवासी रामनिवास राठौर की पुत्री क्रान्ति गांव के प्राथमिक जूनियर हाईस्कूल मेँ कक्षा सात की छात्रा थी.बुधवार की दोपहर वह घर से धान के खेत से बाली तोड़ने गई थी.अचानक वह लापता हो गई जब देर शाम वह घर नहीँ पहुंची तो उसके परिजनोँ ने उसकी तलाश की लेकिन उसका कोई पता नहीँ चला.इस पर परिजनोँ ने दूसरे दिन थाने मेँ
मामले की गुमशुदी दर्ज कराई.


कल सुबह ग्रामीणोँ नेँ एकत्र हो कर आसपास के खेतोँ को खंगाला तो रामचन्द्र के गन्ने के खेत मेँ क्रान्ति का नग्नावस्था मेँ शव पड़ा था तथा उसका गला कटा हुआ था.उसके कपड़े तथा धान काटने वाली दराती खून से सनी हुई पड़ी थी.

न शान्ति न क्रान्ति !
है सिर्फ भ्रांति....सिर्फ कागजी पुतलोँ की राजनीति!रामायण के रावण पर अंगुली उठाते हैँ.आज के रामोँ की शरण मेँ खड़े रावणत्व को संरक्षण दे दे रावण के कागजी पुतलोँ के दफन के साथ मुस्कुराते हैँ.धन्य ,आज के पात्र!

सैनिक (सिपाई)आज भी हैँ,राजा(शासक)आज भी हैँ लेकिन....


आज के राम भक्तोँ की भीड़ मेँ भी आज के राम अयोध्या (अपने राज्य)के मदद से दूर हैँ .साथ हैँ आदिवासी और .....?!और सुग्रीब का राज्य....


सन2025ई0 की विजयादशमी ! रामलीला के मैदान मेँ रावण का पुतला जल रहा था.


"आप कागजी पुतलोँ को जला कर दुनिया को क्या मैसेज देना चाहते हो?आप से अच्छे हम हैँ जिन्दा रावणोँ को जला रहे थे.यदि हम गलत थे, केशव कन्नौजिया गलत था तो आप ही अपने को ठीक साबित हो कर दिखाओ.पुतलोँ को नहीँ रावणत्व को जला कर दिखाओ."


एक नक्सली नेता एक टीवी चैनल पर अपना इण्टरव्यु दे रहे थे.


"क्रान्ति हो या शान्ति दोनोँ को कुचलने वाले के साथ खड़े है श्वेतवसन अपराधी .हम पर अंगुलियाँ उठाने वाले इनको उजागर हो कर दिखायेँ.यह अच्छा है कि हमारे कारण सरकारेँ अपनी व्यवस्थाओँ मेँ कुछ तो परिवर्तन तो कर रही हैँ.लोग जब तक सभ्य नहीँ हो जाते तब तक कोरे सत्याग्रह से काम नहीँ चलने वाला.तब तक टेँढ़ी अँगुली से भी काम चलाना पड़ेगा ही. आप भी स्वयं कहते फिरते हो कि टेंढ़ी अँगुली से
घी नहीँ निकलता.जैसे 1947तक के स्वतन्त्र ता संग्रामोँ मेँ से भगत सिँह,चन्द्रशेखर,सुभाष,आदि के महत्व को निकाल नहीँ पाते ,धर्म शास्त्रोँ मेँ से हिँसा के महत्व को निकाल नहीँ पाते तो हमारी हिँसा के महत्व को क्योँ नगण्य कर देते हो? गीता अर्थात कुरुशान के गीता सन्देश को अपमान क्योँ नहीँ देते हो?सीमा पर की हिँसा का अपमान क्योँ नहीँ करते हो?हाँ,अपने साथियोँ कुछ निर्दोष हत्यायोँ पर
मुझे दुख है. लेकिन....हाँ,और गेँहू के साथ घुन पिसता है. गेँहू के घुन क्योँ बनते हो.तब तो निज स्वार्थ के सिवा कुछ भी दिखता नहीँ."


क्रान्ति प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ने के लिए पुलिस ने कुछ निर्दोष व्यक्तियोँ पर भी कार्यवाही कर दी थी. जिसका प्रमुख कारण दबंगोँ की कूटनीति थी.यह निर्दोष पीड़ित व्यक्ति अब नक्सलियोँ की शरण मेँ थे.


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