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Tuesday 25 February, 2020

भूत से वर्तमान की ओर!!स्थूल से सूक्ष्म की ओर.......

  हम यदि आंख बंद कर बैठे हैं,और आप चुपके से आकर हमारे पास बैठ जाएं और हमें अहसास न हो तो आप  हम ईश्वर को महसूस करने की ओर कैसे बढ़ेंगे? हम आप तो अभी अपने को ही महसूस नहीं करते हैं। हमने कहीं पर पढ़ा था कि 80 प्रतिशत से ऊपर व्यक्ति भूत योनि/नरक योनि की संभावनाओं में जीता है। हम आपके घर पर आते है, आप हमें आदर से बैठालते है,नाश्ता कराते है, सम्मान से बात करते हैं....आदि आदि। वहीं जब हम ये शरीर त्यागने के बाद  आप के पास आते हैं तो आप डरते है..... ये बात हमें समझ में न आती है। देखा गया है जब कोई मुर्दा में वापस जान आ जाती है तो कुछ लोग डर कर भागते हैं। ये सब क्या है??आप हम अभी जीवन की सम्पूर्णता(आल/अल/all/योग))/आदि) से जुड़े नहीं है।आप चाहें कितने भी अपनी जाति/मजहब पर गर्व करें?अभी आप धर्म/अध्यात्म/वर्तमान/जीवन/आदि में नहीं हैं।आप ईश्वर को महसूस करने की ओर नहीं हैं। हम मालिक के कृपा पात्र हैं,हमें किशोरावस्था से ही इसका अहसास होने लगा।शिक्षा की शरुआत सन्तों के बीच से शुरू हुई, मंदिरों में जाना शुरू किया तो शिक्षा के लिए न कि परम्पराओं को ढोने के लिए।ब्रह्मनाद ने हमें आंख बंद कर बैठने की परंपरा से सिर्फ जोड़ा न कि जातीय/मजहबी रीति रिवाजों, कांडों में। आंख बंद कर हमने कुछ महसूस करना शुरू किया जो हमारे शरीर व मन को आराम देता रहा।,अपने करीब किसी का होने का अहसास करता रहा।यहीं से हम बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुंभ कुंभ में सागर, अनेकता में एकता...... आदि को महसूस करना शुरू किया।और स्वत:वेदांग के आखिरी अंग ज्योतिष को भी महसूस करना शुरू किया।



          हम सब अभी अपनी निजता/आत्मियता/आत्मा की यात्रा ही शुरू नहीं कर पा रहे हैं। हम अभी अपने अहसास से ही काफी दूर हैं।इससे आगे के पायदान पर कैसे पहुंचेगे? हम लगभग नौ बजे जो साधना करते हैं, वह हमें भेद से अभेद की ओर ले जाती है। हम ने शिक्षा की शुरुआत मन्दिर से की,कुछ वर्षों बाद एक मढ़ी में, जो बाला जी की मढ़ी के नाम से जानी जाती थी।जहाँ अनेक सन्त स्थूल व सूक्ष्म(समाधि) से रहते थे... हमने सूक्ष्म यात्रा को अपने स्थूल में रहते ही महसूस करना शुरू किया। हम अपने तीन रूप में पूर्णता पाते हैं/स्थूल, सूक्ष्म व कारण। हम सब स्थूल जगत की बनाबटों,पूर्वाग्रहों ,छापों आदि में ही व्यस्त रहते हैं इससे आगे  की जीवन यात्रा के साक्षी नहीं हो पाते। मालिक की हम पर कृपा रही है।



           अनेक बार सुनने को मिला है कि जब इंसान की मृत्यु करीब आयी है तो उसे सूक्ष्म जगत की शक्तियां या लोग दिखाई देने लगे हैं।जिंदा उनके करीबियों को भी मरने वाले के सम्बंध में स्पष्ट अस्पष्ट सूक्ष्म जगत दिखाए देने लगता है। जो व्यक्ति हमें प्रिय नहीं होता या हमारी आदतों में नहीं होता वह भी के साथ हम रहना नहीं चाहते लेकिन धीरे धीरे उसके साथ रहने का वक्त आगे बढ़ता है वह हमारे जीवन का हिस्सा बन जाता है।ऐसे में हमारा वातावरण,व्यवस्था, उसमे रहने का समय,अभ्यास या परिस्थितियों को हमें उसके अति नजदीक ले आती हैं और हमारा सूक्ष्म जगत भी उससे प्रभावित हो जाता है।

   जन्म व मृत्यु के वक्त को मानव जीवन मे काफी महत्व दिया गया है। ये दोनों वक्त हमभी सूक्ष्म जगत से जुड़ने या सूक्ष्म कगत की सहानुभूति पा सकते हैं।सूक्ष्म जगत का स्तर इस वक्त करीब होता है।अतः ऐसा श्मशान व कब्रस्तान में भी देखा गया है। साधारण व्यक्ति भी इन स्थानों पर दार्शनिक व आध्यात्मिक हो जाता है।हम अपनी मृत्यु अर्थात अपने इस शरीर की मृत्यु से पूर्व भी सूक्ष्म जगत में प्रवेश कर सकते है।  इसलिए किसी ने कहा कि किसी व्यक्ति  लिए उसके स्थूल शरीर की मृत्यु के बाद कुछ भी किया तो क्या किया?उसके जिंदा रहते उसके सम्मान ,कल्याण,शांति,सन्तुष्टि के लिए क्या किया?व्यक्ति का सम्मान इसके जिंदा रहते होजाना चाहिए।

  हमारी व्यवस्थाएं, हमारी कृत्रिमताएँ कैसी होनी चाहिए?एक दिन हम हम जलालाबाद रोड पर फिलनगर की ओर से पैदल चले आ रहे थे।हमारे लिए कंकरीटईंट सर बने धर्मस्थल महत्वपूर्ण नहीं हैं।हम वहाँ वहां जाने किस प्रयत्न करते हैं-जहाँ हमें सूक्ष्म स्तर की शक्तियों का अहसास होता है। हां, हम फिलनगर की ओर से आ रहे थे।श्री बलवन्तसिंह  इंटर कालेज के सामने एक मोटरसाइकिल पर एक व्यक्ति अपनी पत्नी व अपने दो साल के बेटा के साथ बैठा था।जब हम आगे निकल गए और उसने हमसे नमस्ते की ।हम आगे निकल आये। कुछ दिनों बाद हमे पता चला कि वे वहां पर क्यों रुके थे?

   "गुरुजी को आगे निकल जाने दो फिर हम चलते हैं।"-इसका मतलब समझते हो।हम जब विद्यार्थी थे,स्कूल आते जाते वक्त व अन्य किसी वक्त हमारे2 कोई टीचर मिल जाते थे।तब हमारा विचार होता था कि इन्हें आगे निकल जाने दो। ये सब क्या है?हमें तय करना होगा, हम कुछ या किसी के पीछे तो चलें या साथ साथ चलें। वह मोटर साइकिल सबार जब भी अकेले मिल जाता तो हमें बैठा कर आगे हमारी मंजिल पर वह पहुंचा देता। जब फैमिली के साथ तो ऐसा। जैसा हमारा स्तर बैसा हमारा सोंच। दुनिया  की नजर में वह मुसलमान है लेकिन भेद क्यों? ये हमारी नाक, हाथपैर, सिर आंख.... इसका मांस न हिन्दू है न मुसलमान, इसकी कोई जाति नहीं कोई मजहब नहीं।हमारे पास दिल है हमारे पास दिमाग है,हमारी भावनाएं है,हमारे विचार हैं-उनकी न जाति न मजहब ।

  आत्मा सनातन है,हमारा धर्म आत्मा ही है।चलो, तुम्हारी बात मान लेते है। तुम भी धर्म,ईश्वर आदि की आड़ में कुछ तो कर रहे हो।लेकिन जो कर रहे हो ,जिस स्तर जिस बिंदु पर कर रहे हो-उससे आगे भी चेतना व अपने अस्तित्व के बिंदु व स्तर हैं।जीवन विकसित नहीं है, विकास शील है।।।निरन्तरता को स्वीकारो।।।अपने से जुडो।अपने को अनुभव करो।आओ, कुछ देर हमारे साथ आंख बंद कर बैठो।।

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