हमें कोई साधना / उपासना आदि करना है तो उसके लिए धर्मस्थल जरूरी नही है। समाज हमें किस जाति/मजहब का मानता है ये महत्वपूर्ण नहीं है।शांति, धैर्य,त्याग, समर्पण, शरणागति,सेवा आदि महत्वपूर्ण है।गुरु,आत्मा, मार्गदर्शक आदि महत्वपूर्ण है।हमें अनेक स्थानों पर गुरुद्वारों पर नाज है।जब हम समाज से त्याज्य एक मुस्लिम गर्भवती महिला को एक गुरुद्वारा में रहते हुए, जीवन यापन करते हुए व नमाज अदा करते हुए देखते हैं। जब हम दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती अपने बीमार परिजन के साथ उपस्थित मुस्लिम परिवार को नजदीक के एक गुरुद्वार में नमाज,भोजन आवास की व्यवस्था प्राप्त करते देखते हैं।
जरूरी नहीं की अपने देवी देवताओं की उपासना हेतु लाखों रुपए व्यय किए जाएं।महत्वपूर्ण है जिन प्राणियों में आत्मा का निवास है ,उसके लिए सुप्रबन्धन खड़ा करना,उनको सेवा देना है ।
जरूरी नहीं की अपने देवी देवताओं की उपासना हेतु लाखों रुपए व्यय किए जाएं।महत्वपूर्ण है जिन प्राणियों में आत्मा का निवास है ,उसके लिए सुप्रबन्धन खड़ा करना,उनको सेवा देना है ।
No comments:
Post a Comment