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Tuesday 3 March, 2020

मरना तो है ही, उसकी चिंता क्या करना? हजरत हुसैन /गुरु गोविंद सिंह/ओशो

ओ३म तत सत वाहे गुरु ! जय खालसा महागुरु!! कुछ तो राज है!!
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गुरु गोविंद सिंह में हमें ब्राह्मणत्व व क्षत्रियत्व दोनों के दर्शन होते हैं।वे सिख पन्थ के दशम गुरु थे।गुरु नानक से चला ये पन्थ सद्भावना, प्रेम, मानवता पर आधारित था।समय की मांग ने गुरुगोविंद सिंह में बदलाव किया । ये बदलाव समाज में अत्याचारों के खिलाफ साहस भरने के लिए आवश्यक था।उनका मिशन श्रीमद्भागवत गीता का ही मिशन था- ब्राह्मणत्व व क्षत्रियत्व के सह अस्तित्व को अंदर होने का।
हमने महसूस किया है, जब हम अंतर्मन से इस-"ओ३म तत सत वाहे गुरु!जय खालसा महागुरु !!" ;हम साहस से भर जाते हैं। कुछ तो राज है।हम कहते आये है, शब्दों के पीछे भी सूक्ष्म स्थिति छिपी होती है। गुरु गोविंद सिंह का जीवन समाज में व्याप्त हिंसा, अन्याय आदि के बीच एक प्रेरणा है।हमारी आत्मा हमे शेर बनाती है।हम उसे जगाएं तो....उनके द्वारा सिंह की उपाधि यों ही नहीं दी गयी।पंच प्यारे का प्रकरण याद है न?! जिसका कोई ऐसा लक्ष्य नहीं, जिसके लिए वह मर न सके तो वह का जीवन निरर्थक है। योग का पहला अंग है-यम, हमारा यम है-मृत्यु, त्याग, कुर्बानी।जिसके लिए हम विदेश की धरती पर हजरत हुसैन व ओशो को हमेशा याद करते रहेंगे।
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#अशोकबिन्दु

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