दुनिया अभी जड़ तक नहीं पहुंच रही है। कानून पर कानून... बड़ा होता संविधान!!सोचो उन देशों की जहां संविधान के नाम पर सिर्फ आदेश हैं या कुछ लिखित पन्ने।किसी किसी देश में बहुत ही छोटा संविधान है। यदि हम ईमानदार हों व कानूनी व्यवस्था चाहते हों तो संविधान के रूप में दो चार पंक्तिया ही काफी हैं,जैसे-घर व समाज में शांति व्यवस्था बनी रहनी चाहिए, कोई किसी को कष्ट न दे।सत्य व न्याय स्वीकार हो।सब अपनी आवश्यकताओं के लिए किसी को व प्रकृति को कष्ट न दिए विकास कार्य कर सकते हैं....आदि आदि।
हम कहते रहे हैं-सभी समस्याओं की जड़ है हमारा नजरिया व आस्था व उस पर ही टिक जाना।ये सोच व विकास शीलता ,परिवर्तन का स्वीकार आदि का अभाव।आगे के बिंदुओं, स्तरों पर नजर का अभाव।अपने मन, समझ, चेतना को अग्रिम बिंदुओं की ओर यात्रा का विराम!!!!!
हम वास्तव में अपनी निजता, आत्मा, अपने अंदर की दिव्यता के प्रति ईमानदार नहीं रह गए हैं। लोग80-90 साल के है जाते हैं, पूजा पाठ, मन्त्र उच्चारण आदि के लिए भी इंद्रिया कार्य नहीं करती लेकिन किशोर अवस्था की सोंच, स्वप्न्न, इच्छाएं मन को डिस्टर्व करती रहती हैं।इसका कारण है,हमने सनातन विद्वानों की इस धारणा को तोड़ दिया 25 साल तक का जीवन ब्रह्मचर्य होता है।कोई मन्त्र बार बार जपते रहने से जरूरी नहीं कल्याण हो।।।
गौतम बुद्ध ने कहा है दुख का कारण इच्छाएं है। हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं,जो हमारी उन्नति में बाधक है..... !!!
रैदास जी ने कहा है-मन चंगा तो कठौती में गंगा...!!!मन चंगा कब होए???राम राम जपते रहो.... नजरिया ,विचार व आस्था आदि निम्न स्तर की बनाए रखो... हो गया काम??? न बाबा!!!
हम कहते रहे हैं-सभी समस्याओं की जड़ है हमारा नजरिया व आस्था व उस पर ही टिक जाना।ये सोच व विकास शीलता ,परिवर्तन का स्वीकार आदि का अभाव।आगे के बिंदुओं, स्तरों पर नजर का अभाव।अपने मन, समझ, चेतना को अग्रिम बिंदुओं की ओर यात्रा का विराम!!!!!
हम वास्तव में अपनी निजता, आत्मा, अपने अंदर की दिव्यता के प्रति ईमानदार नहीं रह गए हैं। लोग80-90 साल के है जाते हैं, पूजा पाठ, मन्त्र उच्चारण आदि के लिए भी इंद्रिया कार्य नहीं करती लेकिन किशोर अवस्था की सोंच, स्वप्न्न, इच्छाएं मन को डिस्टर्व करती रहती हैं।इसका कारण है,हमने सनातन विद्वानों की इस धारणा को तोड़ दिया 25 साल तक का जीवन ब्रह्मचर्य होता है।कोई मन्त्र बार बार जपते रहने से जरूरी नहीं कल्याण हो।।।
गौतम बुद्ध ने कहा है दुख का कारण इच्छाएं है। हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं,जो हमारी उन्नति में बाधक है..... !!!
रैदास जी ने कहा है-मन चंगा तो कठौती में गंगा...!!!मन चंगा कब होए???राम राम जपते रहो.... नजरिया ,विचार व आस्था आदि निम्न स्तर की बनाए रखो... हो गया काम??? न बाबा!!!
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