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Saturday 15 February, 2020

चलो ठीक है इस बहाने कुछ तो अहसास है-शांति व मौन के सम्मान का!!अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'

चलो ठीक है किसी बहाने शांति व मौन की ओर तो बढ़ रहे हो!!
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इसका मतलब है आप जानते हो,कुछ तो है जिसके लिए शांति व मौन भी चाहिए। वैसे आप भूलते ही जा रहे हो कि जीवन।में शांति व मौन भी चाहिए। आप भूल गए वह परम्परा, जब लोग मौन व्रत रहा करते थे। ये शन्ति व मौन ही हमें अपनी दिव्यता अपने ब्रह्म तत्व से जोड़ता है,इस लिए विद्यार्थी जीवन को ,25-28 वर्ष तक के जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा गया था। जो तैयारी था हमारे गृहस्थ जीवन का। 25-28 वर्ष तक या जीवन का शुरुआती चौथयाई भाग वह भाग है,जिसमें हम अपनी ऊर्जा या चेतना के उत्साहित, उमंगित, अन्नतित ऊर्जा,विकासशील  स्तर पर होते हैं।जिसको हम ब्रह्मचर्य या आचार्य होने के साथ ही जी सकते हैं।जिसके लिए एक प्रकार का गुरुत्वीय वातावरण चाहिए होता है।जिसके लिए हमारे आश्रम व गुरुद्वारा हुआ करते थे।इस लिए हम धर्म स्थल सिर्फ आश्रम व गुरुद्वारा को ही माना करते थे।जहां हम उस समूह में रहने, समूह व्यवस्था, तंत्रात्मक व्यवस्था का अनुशासन सीखते थे, नियमितता सीखते थे ,दिनचर्या सीखते थे जो प्रकृति, अपने हाड़ मास शरीर, अन्य हाड़ मास शरीरों, जीव जंतुओं, वनस्पतियों आदि के संग बिताते हैं। तब हम सीखते थे हम कैसे आगामी जीवन के पड़ाव ग्रहस्थजीवन या वानप्रस्थ जीवन को उस अहसास के साथ जिएं जो हमारा निजत्व है,आत्मा है,स्व है,सर्व व्याप्त चेतना व  सम्वेदना है।जैसे लहर व सागर का सम्बंध, किरण व सूरज का सम्बंध..... वैसे ही हमारा व आत्मा का,आत्मा व परम् आत्मा का सम्वन्ध...... अनन्त यात्रा का पथिक.... सनातन यात्रा का पथिक.....!!
आज हमें उस बेहतरी से गिरावट के कारण कैमरों की नजर में रह कर अनुशासन रहने की व्यबस्था को सीखना पड़ रहा है।हम भूल गए कि हर वक्त एक दृष्टि हम पर व जगत पर होती है। हम भूल गए अपना चरित्र उस दृष्टि में गढ़ना।।

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