https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1252440551810649&id=100011341492358
जड़ तक कोई जाना नहीं चाहता!!आरोप प्रत्यारोप से कोई शान्ति व विकास नहीं ला सकता!!सबकी भागीदारी भी जरूरी!!!
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85 प्रतिशत+अल्पसंख्यक=राजनैतिक दशा???किस ओर संकेत दे सकती है???देश का मतलब क्या है?उस देश के रहने वाले लोग, जीवजन्तु, वनस्पति, प्रतीक चिह्न, धरोहरों का सम्मान!!!विकास!!!संरक्षण!!सबकी भागीदारी!!!आचार्य चतुर सेन/वयम रक्षाम: की माने तो आदि काल से ही संघर्ष सत्ता भागीदारी, संसाधन वितरण, सबका सम्मान आदि को लेकर था।कार्ल मार्क्स की माने तो, दुनिया को बर्बाद करने वाला सत्तावाद, पूंजीवाद, पुरोहितवाद, जातिवाद/कुल वाद/जन वाद था।इतिहास उठा कर देखें ,जन का अर्थ क्या था?जनपद का मतलब क्या था??किसी क्षेत्र का अध्ययन करें!जातिवाद,सामन्तवाद,माफियागिरी ही हावी है।क्षेत्र में कुछ परिवार हाबी रहते हैं,फिर उनके रिश्तेदार, सम्पर्की, जाति के लोग।कुछ लोग कहते है,अब कहाँ है सामन्त बाद?हम कहते रहे हैं-अभी तो भरपूर मात्रा में है सामन्तवाद।चाणक्य ने कहा है-सामन्त का अर्थ है-पड़ोसी।वार्ड/गांव/शहर के दबंग, माफिया, जातिबल आदि किसी न किसी नेता के साथ खड़े होते है,क्षेत्र में कुछ परिवारों के चारो ओर राजनीति मंडराती है। व्यवस्था परिवर्तन/जाति व्यवस्था समाप्ति पर कौन बल देता है?सन2011से2025 तक का समय देश व दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।भविष्य उसके साथ खड़ा होगा, जो सबके साथ खड़ा होगा।ऐसे में आध्यत्मिक व मानवता ही सभी समस्याओं का हल कर सकती है।ये भी विचारणीय विषय है-किस राजनैतिक दल में नए प्रत्याशी स्थान पा रहे हैं और किस में पुराने ही ?कैसा व्यवस्था परिवर्तन??क्षेत्र में कुछ परिवारों तक राजनीति केंद्रित क्यों??
https://www.facebook.com/groups/1025404947641650/permalink/1400003973515077/
सबका साथ सबका विकास सबकी भागीदारी!!
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मानव समाज, सत्ता व तन्त्र गड़बड़झाला हो गया है,अराजक होगया है।शायद ऐसा वैदिक काल से ही था, इसलिए वेदों को कहना पड़ा-मनुष्य बनो फिर आर्य/देव मानव बनो।हमें तो ये लगता है-अभी मनुष्य पशु मानव ही है।सुबह से शाम तक, शाम से सुबह तक हम आप सब वह करते आते हैं जो वास्तव में नहीं करना चाहिए। हर स्तर पर हमें इससे मतलब नहीं है कि क्या होना चाहिए, होने से मतलब नहीं है।हम जी कर रहे हैं-ठीक है।हम अपनी व जगत की पूर्णता (योग/आल/अल/all/आदि) के आधार पर कुछ बहु नहीं देखते।इसलिए आदिकाल से ही दुनिया आतंकवाद, असुरत्व,मनमानी, चापलूसी, लोभ लालच आदि व इसके लिए जाति, मजहब,अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, देशी विदेशी आदि के नाम पर विश्व व समाज को अशान्ति, अविश्वास ,हिंसा आदि में धकेलते रहते हैं।
हम प्रकृति अंश ब्रह्म अंश, प्रकृति अभियान/नियम /सुप्रबन्धन के आधार पर नहीं करते। ब्राह्मंड व जगत में सब कुछ नियम से है,चन्द तारे, जन्तु वनस्पति आदि सब नियम से हैं,सिर्फ मनुष्य की छोड़ कर।
हमारा पूरा जीवन शिक्षा जगत में हो गया।जिनमे से 25 से वर्ष शिक्षण कार्य करते हो गए। हमने देखा है- अध्यापक, विद्यार्थी, अभिवावक, शिक्षा कमेटियों आदि के माध्यम से शिक्षा जगत, विद्यालय के तो सम्पर्क में है लेकिन मतलब अपनी सोंच से ही है।शैक्षिक मूल्यों से नहीं।उन्हें इससे मतलब नहीं क्या होना है?बस, जो हम चाहते हैं वह ठीक है।। कुर वाणी है-त्याग, नजरअंदाज करना वह जो हमेंव जगत को भविष्य में अराजक बनाने वाला है,दूसरे को कष्ट देने वाला है।
समाज, देश व विश्व में अनेक ऐसे हैं उन्हें सारी मनुष्यता, सारे विश्व से मतलब नहीं।सुर से सुरत्व से मतलब नहीं।वास्तव में धर्म व अध्यात्म से मतलब नहीं।ईश्वर से मतलब नहीं।सब,ढोंग!!!!जव सारी दुनिया सारे मनुष्य ईश्वर की देन है,तो भेद क्यों??सभी के अंदर ईश्वर की रोशनी मान कर सबका मन ही मन सम्मान नहीं। अहिंसा क्या है?यही अहिंसा है,मन मे किसी से भेद, द्वेष न रखना। हम जब तक इस दशा को प्राप्त नहीं हो जाते कि सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर तो ईश्वर के प्रेमी कैसे??
https://www.facebook.com/groups/1025404947641650/permalink/1396428563872618/
अशोक कुमार वर्मा' 'बिंदु'
www.ashokbindu.blogspot.com
जड़ तक कोई जाना नहीं चाहता!!आरोप प्रत्यारोप से कोई शान्ति व विकास नहीं ला सकता!!सबकी भागीदारी भी जरूरी!!!
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85 प्रतिशत+अल्पसंख्यक=राजनैतिक दशा???किस ओर संकेत दे सकती है???देश का मतलब क्या है?उस देश के रहने वाले लोग, जीवजन्तु, वनस्पति, प्रतीक चिह्न, धरोहरों का सम्मान!!!विकास!!!संरक्षण!!सबकी भागीदारी!!!आचार्य चतुर सेन/वयम रक्षाम: की माने तो आदि काल से ही संघर्ष सत्ता भागीदारी, संसाधन वितरण, सबका सम्मान आदि को लेकर था।कार्ल मार्क्स की माने तो, दुनिया को बर्बाद करने वाला सत्तावाद, पूंजीवाद, पुरोहितवाद, जातिवाद/कुल वाद/जन वाद था।इतिहास उठा कर देखें ,जन का अर्थ क्या था?जनपद का मतलब क्या था??किसी क्षेत्र का अध्ययन करें!जातिवाद,सामन्तवाद,माफियागिरी ही हावी है।क्षेत्र में कुछ परिवार हाबी रहते हैं,फिर उनके रिश्तेदार, सम्पर्की, जाति के लोग।कुछ लोग कहते है,अब कहाँ है सामन्त बाद?हम कहते रहे हैं-अभी तो भरपूर मात्रा में है सामन्तवाद।चाणक्य ने कहा है-सामन्त का अर्थ है-पड़ोसी।वार्ड/गांव/शहर के दबंग, माफिया, जातिबल आदि किसी न किसी नेता के साथ खड़े होते है,क्षेत्र में कुछ परिवारों के चारो ओर राजनीति मंडराती है। व्यवस्था परिवर्तन/जाति व्यवस्था समाप्ति पर कौन बल देता है?सन2011से2025 तक का समय देश व दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।भविष्य उसके साथ खड़ा होगा, जो सबके साथ खड़ा होगा।ऐसे में आध्यत्मिक व मानवता ही सभी समस्याओं का हल कर सकती है।ये भी विचारणीय विषय है-किस राजनैतिक दल में नए प्रत्याशी स्थान पा रहे हैं और किस में पुराने ही ?कैसा व्यवस्था परिवर्तन??क्षेत्र में कुछ परिवारों तक राजनीति केंद्रित क्यों??
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सबका साथ सबका विकास सबकी भागीदारी!!
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मानव समाज, सत्ता व तन्त्र गड़बड़झाला हो गया है,अराजक होगया है।शायद ऐसा वैदिक काल से ही था, इसलिए वेदों को कहना पड़ा-मनुष्य बनो फिर आर्य/देव मानव बनो।हमें तो ये लगता है-अभी मनुष्य पशु मानव ही है।सुबह से शाम तक, शाम से सुबह तक हम आप सब वह करते आते हैं जो वास्तव में नहीं करना चाहिए। हर स्तर पर हमें इससे मतलब नहीं है कि क्या होना चाहिए, होने से मतलब नहीं है।हम जी कर रहे हैं-ठीक है।हम अपनी व जगत की पूर्णता (योग/आल/अल/all/आदि) के आधार पर कुछ बहु नहीं देखते।इसलिए आदिकाल से ही दुनिया आतंकवाद, असुरत्व,मनमानी, चापलूसी, लोभ लालच आदि व इसके लिए जाति, मजहब,अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, देशी विदेशी आदि के नाम पर विश्व व समाज को अशान्ति, अविश्वास ,हिंसा आदि में धकेलते रहते हैं।
हम प्रकृति अंश ब्रह्म अंश, प्रकृति अभियान/नियम /सुप्रबन्धन के आधार पर नहीं करते। ब्राह्मंड व जगत में सब कुछ नियम से है,चन्द तारे, जन्तु वनस्पति आदि सब नियम से हैं,सिर्फ मनुष्य की छोड़ कर।
हमारा पूरा जीवन शिक्षा जगत में हो गया।जिनमे से 25 से वर्ष शिक्षण कार्य करते हो गए। हमने देखा है- अध्यापक, विद्यार्थी, अभिवावक, शिक्षा कमेटियों आदि के माध्यम से शिक्षा जगत, विद्यालय के तो सम्पर्क में है लेकिन मतलब अपनी सोंच से ही है।शैक्षिक मूल्यों से नहीं।उन्हें इससे मतलब नहीं क्या होना है?बस, जो हम चाहते हैं वह ठीक है।। कुर वाणी है-त्याग, नजरअंदाज करना वह जो हमेंव जगत को भविष्य में अराजक बनाने वाला है,दूसरे को कष्ट देने वाला है।
समाज, देश व विश्व में अनेक ऐसे हैं उन्हें सारी मनुष्यता, सारे विश्व से मतलब नहीं।सुर से सुरत्व से मतलब नहीं।वास्तव में धर्म व अध्यात्म से मतलब नहीं।ईश्वर से मतलब नहीं।सब,ढोंग!!!!जव सारी दुनिया सारे मनुष्य ईश्वर की देन है,तो भेद क्यों??सभी के अंदर ईश्वर की रोशनी मान कर सबका मन ही मन सम्मान नहीं। अहिंसा क्या है?यही अहिंसा है,मन मे किसी से भेद, द्वेष न रखना। हम जब तक इस दशा को प्राप्त नहीं हो जाते कि सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर तो ईश्वर के प्रेमी कैसे??
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