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Thursday 10 February, 2011

माँ ने कहा था : अरविन्द जी की पुस्तक


Sent: Mon, 07 Feb 2011 20:17 IST
Subject:  माँ ने कहा था : अरविन्द जी की पुस्तक
इस धरती पर सबसे बड़ी साधना है नारी शक्ति को मातृशक्ति मानकर भोग की भावना से अपने को मुक्त रखते हुए प्रकृति-सहचर्य के साथ प्रेम ,मानवता, सेवा, योग, ज्ञान ,आदि मेँ जीना. 'काम'रुपी राक्षस खत्म नहीँ होता वरन माँ के शरणागत हो रुपान्तरित किया जा सकता है.माँ या प्रकृति धर्म हेतु संसाधन है. उससे जीवन है. ईश्वरीयतत्व को सृष्टि के लिए उभयलिँगी अर्थात अर्द्धनारीश्वर होना होता है और
माँ या प्रकृति को जन्म दे सृष्टि का प्रारम्भ करना पड़ता है.स्थूल तत्वोँ अग्नि ,आकाश पृथ्वी, जल ,वायु से शरीर निर्मित होता है.जो शरीर स्थूल व सूक्ष्म दृष्टि से ही सिर्फ स्त्री या पुरुष भेद मेँ होता है.भाव व मनस शरीर से स्थूल स्त्री पुरुष व स्थूल पुरुष स्त्री होता है.स्त्रैण शक्ति के उदय बिना पूर्णता नहीँ,अद्वेत नहीँ.

खैर!

अब अरविन्द जी की पुस्तक'माँ ने कहा था ' पर कुछ बात.
अरविन्द जी को मैँ ब्लागिँग के माध्यम से परिचित हुआ.उनका ब्लाग है-

<www.krantidut.blogspot.com>

और ई मेल है
<arvindsecr@gmail.com>

'अपनी बात' मेँ एक स्थान पर अरविन्द जी लिखते हैँ

" जहाँ एक ओर माँ के ममतामयी निर्मल नयन नीर की एक बूँद पूरी मधुशाला को चुनौती देती है.वहीं दूसरी ओर अन्तहीन माँ का आँचल कवच बन कर सारे जग की रक्षा करती है."
क्रान्ति दूत....?व्यवस्थाओँ के खातिर सुप्रबन्धन की खातिर यदि हम ईमानदार हो जाएँ तो हम सहज ही क्रान्ति दूत से लगने लगते हैँ.
स्त्रैण गुणोँ- मानवता ,सेवा,प्रेम,नम्रता,सहनशीलता,आदि को समर्पित हुए बिना हम अपना व दुनिया का भला नहीँ सोँच सकते.
हालाँकि रिश्ते स्थूल हैँ लेकिन प्रबन्धन के लिए अति आवश्यक हैँ.रिश्तोँ मेँ से 'माँ' ऐसा रिश्ता है जो सभी रिश्ते पर भारी पड़ता है. अपनी भारतीय संस्कृति तो गृहस्थाश्रम को छोड़ प्रत्येक आश्रम मेँ स्त्री को 'माँ' की तरह सम्मान देने की बात करती है.यहाँ तक कि वानप्रस्थ व सन्यास आश्रम मेँ अपनी पत्नी तक को 'माँ' की तरह सम्मान देने की बात करती है.क्या कहा ? पत्नी को भी 'माँ'की भाँति
सम्मान.....?! झूठे भारतीय संस्कृति प्रमियोँ का क्या कहना ?समझना चाहिए कि भारतीय संस्कृति मेँ'काम' सिर्फ सन्तान करने के लिए ही बताया गया है.
<www.akvashokbindu.blogspot.com>

2 comments:

arvind said...

kai baar koshish kiya lekin comment post ahi ho saka....aabhar ...bahut badhiya post daalaa hai.

arvind said...

aapne sahi likha hai ki व्यवस्थाओँ के खातिर सुप्रबन्धन की खातिर यदि हम ईमानदार हो जाएँ तो हम सहज ही क्रान्ति दूत से लगने लगते हैँ.
...main to kahataa hun ham sabke bheetar ek krantidut baitha hai jarurat hai imaandaari se pahchaanane ki.