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Saturday 12 February, 2011

वित्तविहीन मान्यताप्राप्त विद्यालयोँ के अध्यापकोँ की दशा दिशा

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 12 Feb 2011 19:59 IST
Subject: वित्तविहीन मान्यताप्राप्त विद्यालयोँ के अध्यापकोँ की दशा दिशा

उत्तर प्रदेश मेँ शिक्षा का अस्सी प्रतिशत से ऊपर का दायित्व वित्तविहीन मान्यताप्राप्त विद्यालय उठा रहे हैँ लेकिन इनसे सम्बन्धित अस्सी प्रतिशत अध्यापकोँ की दशा दिशा बड़ी चिन्तनीय है.यहाँ का अध्यापक प्रबन्धक ,प्रधानाचार्य व इनकी हाँ हँजूरी मेँ लगे पक्ष के सामने दबाव में बौना व हताश मजबूर हो कर रह जाता है.देखा जाए तो यह विद्यालय कुछ मुट्ठी भर लोगोँ की राजनीति, कूटनीति
,आदि का शिकार हो कर रह जाते हैँ.विभिन्न शिक्षक दल भी इन कुछ का ही चक्कर लगाते नजर आते हैँ.प्रजातन्त्र ,मानवाधिकार, कानून, आदि मूल्योँ व अभिव्यक्ति स्वतन्त्रता के सम्मान की नियति के अभाव मेँ असलियत दब कर रह जाती है.

कुछ वर्षोँ से सम्बन्धित अध्यापक भी अपने अधिकारोँ के लिए जागरुक हुए हैँ लेकिन इनका नेतृत्व करने वालोँ की नियति क्या ठीक है?वर्तमान मेँ सम्बन्धित अध्यापक जिस स्थिति मेँ हैँ उस स्थिति मेँ इनका नेतृत्व कितना न्याय के पक्ष मेँ खड़ा होता है ? यह अलग बात कि सरकार से हक माँगने को लेकर अध्यापकोँ को एक जुट करने की कोशिस की जा रही है लेकिन अध्यापक वर्तमान मेँ जिन समस्याओँ से जूझ
रहा है ,उन के रहते अध्यापक सरकार से हक मिल जाने बाबजूद जरुरी नहीँ कि सभी अध्यापकोँ की दशा दिशा सुधर सके.

वर्तमान मेँ वित्तविहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयोँ के अध्यापकोँ के द्वारा लखनऊ मेँ क्रमिक अनशन जारी है.शिक्षक दल के ओम प्रकाश शर्मा ,सुरेश कुमार त्रिपाठी ने कुछ दिन पूर्व कामरोको प्रस्ताव के तहत बुधवार को विधान परिषद की कार्यवाही स्थगित करने की माँग करते
हुए अंशकालिक शिक्षकों की नियुक्ति का मामला उठाया . शर्मा का कहना था कि वर्ष 1986मेँ इस तरह की अल्पकालिक व्यवस्था की गई थी लेकिन उसे समाप्त करने के लिए सम्बन्धित अधिनियम में आज तक संशोधन नहीं किया है.उन्होने कहा कि सम्बन्धित एक्ट के तहत सूबे मेँ बारह हजार से ज्यादा विद्यालयोँ को वित्तविहीन व्यवस्था मेँ मान्यता दी गई है.

इस पर माध्यमिक शिक्षा मन्त्री रंगनाथ मिश्रा ने कहा कि बारह हजार वित्तविहीन कालेजोँ के अंशकालीन शिक्षकों को अन्य अनुदानित कालेजों की भांति वेतन आदि देने के लिए दस हजार करोड़ रुपये चाहिए होँगे.ऐसे में उन्होने वित्तीय संशोधनोँ की कमी का हवाला देते हुए कहा कि अंशकालिक शिक्षकों को पूर्ण कालिक करना सम्भव नहीँ है.


मैं सोंचता हूँ यदि सरकार इन विद्यालयोँ के हक पर मोहर भी लगा दे तो भी क्या सभी अंशकालिक अध्यापकोँ का भला हो सकेगा ? इन बारह हजार विद्यालयोँ पर कैसी नियति के लोग हाबी हैँ?वे अभी तक समूची अंशकालिक अध्यापकोँ भीड़ प्रति दोहरा तेहरा व्यवहार नहीं करते आये हैँ क्या ?प्रजातान्त्रिक मूल्योँ से हट कर हाबी लोग दबंगता, मनमानी ,षड़यन्त्र ,हाँ हजूरी, चापलूसी ,नुक्ताचीनी,आदि मेँ
लगे रहते है.ये अपने स्वार्थ के पक्ष मेँ नियम बदलते बिगाड़ते रहते हैँ.शिक्षक दल भी इन्हीँ के चक्कर लगाते नजर आते हैँ.साधारण अध्यापकोँ की आवाज दबी की दबी रह जाती है. एप्रूबल व एड के दौरान प्रधानाचार्य ,प्रबन्धक,आदि की हाँ - हजूरी मेँ लगे व धन - बल से युक्त अध्यापक ही अबसर पाते है.


शेष फिर....

<www.ashokbindu.blogspot.com>

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