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Tuesday 8 February, 2011

बसंत पञ्चमी :बासन्ती पर्व

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 05 Feb 2011 21:50 IST
Subject: बसंत पञ्चमी :बासन्ती पर्व

"मेरा रंग दे बसन्ती चोला " इसे गाने वाले अब भी मिल सकते हैँ लेकिन बासंती रंग मेँ अपने अन्तरंग व रोम -रोम को कौन रंग देना चाहता है? कलर थेरेपी के विशेषज्ञ जानते होँगे कि बासन्ती रंग का क्या महत्व होता है ?

बासन्ती क्रान्ति मेँ रमना आवश्यक है.क्योँ ऐसा क्योँ ?ऋग्वैदिक काल के बाद धर्म की मसाल लेकर चलने वाले ही भटक गये. भगवान की अवधारणा ही बदल गयी. सिन्धु के इस पार तब तीन क्रन्तियां हुईँ-जैन क्रान्ति,बौद्ध क्रान्ति और वेदान्त क्रान्ति ;सिन्धु के उस पार यहूदी ,पारसी,आदि .आदिगुरु शंकराचार्य आये,उन्होँने कहा आत्मा परमात्मा एक ही है.


भगवान की अवधारणा पर हिन्दू अब भी विचलित है. भगवत्ता पर बासन्तीत्व पर हिन्दू समाज अब भी अन्ध मेँ है.जनवरी ,2011:अखण्ड ज्योति पत्रिका मेँ पृष्ठ 53पर ठीक ही लिखा है -

" हिन्दू धर्म मेँ भगवान के जिसने धुर्रे बिखेरे दिए हैँ,उसका नाम है-वेदान्त.वेदान्त क्या है? 'अयमात्मा ब्रह्म'; 'प्रज्ञानं ब्रह्म'; ' चिदानंदो3हम्';'सच्चिदानंदो3हम्' ;' अहं ब्रह्मास्मि'; ' तत्त्वमसि' ; तात्पर्य यह कि आदमी का जो परिष्कृत स्वरुप है,आदमी का जो विशेष स्वरुप है,वही भगवान है."



मेरा मानना है कि जो मोक्ष को प्राप्त है वही भगवान है. श्री अर्ध्दनारीश्वर शक्तिपीठ ,नाथ नगरी,बरेली(उप्र)058102301175 के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रताप सिँह (भैया जी) का भी कहना है


" जब हर आत्मा परमात्मा के बास होने की बात कही जाती है तो परमात्मा अलग कहां से आयेगा."युग क्रान्ति का यह स्वपन कैसे साकार हो ?

शिवनेत्र अर्थात दोनोँ आंखोँ के बीच जा कर जब तक हमारा ध्यान टिक नहीँ जाता तब तक हम बासन्तीत्व का आनन्द नहीँ उठा सकते,जहाँ पर सत शेष रह जाता है.काम, क्रौध, मद ,लोभ से ऊपर उठ कर जब तक हमारी ऊर्जा सक्रिय नहीँ होती तब तक हम आनन्द को प्राप्त नहीँ हो सकते.ऐसे मेँ प्रकृति व नारी शक्ति को माँ के रूप मेँ दर्जा देकर ही हम भगवत्ता को प्राप्त हो सकते है.माँ का एक रुप है सरस्वती जो कि
ज्ञान का मानवीकरण है.नर हो या नारी यदि वह माँ मय है .बस,उसको प्रकाश मेँ लाना है. युगगीता के अनुसार वैश्या : अर्थात दुर्बल मन व शूद्रा:अर्थात दुर्बल बुद्धि वाले भी क्रमश: घोर रजोगुणी ( स्त्रियाँ वैश्य )व घोर तमोगुणी (शूद्र चांडाल योनि ) भगवत्ता को प्राप्त हो सकती है यदि अन्तर्मुखी हो कर अपने अन्दर बैठे परमात्मा की ओर ध्यान केन्द्रित किया जाए.

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

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