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Sunday 8 March, 2020

08मार्च महिला दिवस:: नारी वाद नहीं वरन सम सहअस्तित्व /सम सह सम्मान/आत्म निर्भरता का सम अवसर

                नारी के सम्मान में अब उत्तराधिकार नियम पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। जो दम्पत्ति दो या एक सिर्फ बेटी ही रखते हैं, उनके लिए स्पेशल सरकारी सुविधाएं की व्यवस्था आबश्यक है।

                  नारी सशक्तिकरण का मतलब क्या  है?  नारी क्या है?  नारी सिर्फ स्थूल शरीर है स्थूल जगत में.?पुरुष क्या है?स्थूल में पुरुष स्थूल शरीर है?अर्थात प्रकृति  में ही नर मादा हैं.अध्यात्म में आत्मा/परमात्मा पुरुष  है  व  प्रकृति स्त्री है.यहां पर श्री अर्धनारीश्वर अवधारणा के पीछे छिपे दर्शन  को समझना आवश्यक है.दोनों  के बीच समअस्तित्व आबश्यक है..जब बात सम अस्तित्व की हो जहां पर, वहां नारी सशक्तिकरण या पुरुष सशक्तिकरण  से क्या मतलब है ?दोनों का सशक्ति करण आवश्यक है अर्थात दोनों  के बीच समसम्मान व समस्तित्व आबश्यक है. लेकिन आज  के भौतिक भोग वादी सोंच में ये असम्भव है. दोनों का परस्पर अंहकार वादी होना व दोनों  के बीच तू तू में में होना विकार वान  है.

नारी सशक्ति करण  के गुण

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नारी सशक्तिकरण का मतलब नारीवाद  नहीं है.वरन् नारी को आत्मनिर्भर बना पुरुष  के बराबर में ला खड़ा करना है.पुरुष  के बराबर  ला खड़ा  करने  का मतलब है-- आत्मनिर्भर  हो कर समाज के विकास  में सहभागिता न कि पुरुष के साथ टकराव खड़ा करना
या  पुरुष के समक्ष समस्या खड़ी करना.स्त्री पुरुष के  बीच करीबी भ्र्म की दीवार टूटना.लैंगिक असमानता का विरोध.परस्पर मित्रभाव/सम्मान को बढ़ावा.इस बात का ज्ञान होना कि नर मादा तो हम सिर्फ प्रकृति में हैं.ब्रह्म जगत में हम सब आत्मा  है.हमारा स्थूल शरीर तो सिर्फ प्रकृति है.प्रकृति तो स्त्री ही है. नारी सशक्तिकरण ने उस समाज को सोचनें  को विवश कर दिया है जो सोचता था कि स्त्री तो दमन/दण्ड/दवाव/मनमानी/आदि के लिए है.
 नारी सिर्फ अपने स्थूल व सूक्ष्म(भूत/प्रेत) शरीर से ही नारी है.अपने भाव व मनस शरीर से वह पुरुष  ही है.जब उसे उसके भाव व मनस स्तर का पुरुष इस जगत में नहीं मिलता तो वह अपनी सम्पूर्णता को  नहीं पाती.या फिर वह तटस्थ हो आत्मा को पा जाये.जहां आत्मा अलिंगी  होती  है.

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स्तर | प्राकृतिक  | साधना
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स्थूल|काम  |   ब्रह्मचर्य
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भाव  |भय    | अभय
         |घृणा  | प्रेम
         |क्रोध  | करुणा
         |हिंसा  | मैत्री
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सूक्ष्म  |सन्देह  | श्रद्धा
          | बिचार| विवेक
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मनस |कल्पना|सङ्कल्प
         |स्वप्न   |अतीन्द्रिय
         |           | दर्शन
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 हमारे अंदर भी नगेटिव पजटिव अर्थात स्त्री पुरुष अर्थात प्रकृति ब्रह्म होता है.अतः योग से हम आंतरिक सम्भोग  की दशा  भी  पा सकते है.
 नारी अपने अस्तित्व को पहचाने.अपने को पहचाने. उसकी भोग वादी नीतियां उसका सम्मान नहीं बड़ा सकतीं.वह सिर्फ हड्डी मांस का बना शरीर नहीं है.ऐसे में सिर्फ हड्डी मांस के बने शरीर की आवश्यकताओं  के  लिए  जीने से उसे सम्पूर्णता प्राप्त नही हो सकती.

 नारी सशक्तिकरण के दोष
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आज के आधुनिक भौतिक भोगवाद में नारी का सशक्तिकरण कुल/संस्था/समाज में अनेक विकार ला रहा है.विभिन्न शोध कह  रहे हैं कि 90 प्रतिशत से ज्यादा दहेज एक्ट केस फर्जी होते हैं.वे निरर्थक एक्ट का दुरूपयोग हौते  हैं.आज अनेक परिवारों के अध्ययन से समाजशास्त्रियों  को ज्ञात हो रहा है कि परिवारों के विखरने / वुजुर्गो के उपेक्षा का कारण स्त्री ही है. आज स्वयम नारी ही अपने  को भूल रही है कि हम कौन हैं?हम सिर्फ हड्डी मांस का बना शरीर नहीं है?नारी व पुरुष क्या है?उसे सिर्फ स्थूल निगाह से देखना अपूर्णता है.पूर्णता बिन सन्तुष्टि कैसे? नर नारी प्रकृति में ही हैं.अपने को प्रकृति से परे  भी जानना अति आबश्यक है.जो कि शाश्वत/अनन्त/अमोघ  है..जो क्षयवान/क्षणिकहै उससे असीम/सदैव भर का आनन्द कैसे?हमारा नजरिया ही हमारे हालातों  के लिए दोषी  होता है.दरअसल हम अपने से ही दूर होते जा रहे हैं.हमारी आत्मा अलिंगी  है.हमारा शरीर स्त्री क्यों है?

   आज स्त्री ही स्त्रैण गुणों से दूर  होती  जा रही है.स्त्रैण गुण क्या है?स्त्री को मातृ शक्ति  क्यों कहा गया है? प्रकृति को स्त्रीया अपने स्थूल शरीर  को भी स्त्री क्यों कहा गया है?सांसारिक/कृत्रिम बस्तुओं  को पूजने  से पहले/कन्या पूजन से पहले इन सवालों  को। जानना आवश्यक  है?

आदिकाल से अब तक जगत को  जो नारी सम्माननीय रही हैं, उनके जीवन दर्शन  को जानना जरूरी  है. बिचारों को अपना नजरिया बनाना आबश्यक  है.आज तुम बात बात पर धमकिया दिखती फिरती हो. जरा महान नारियों की ओर तो देखो. रुपयों के लिए नाचने गाने वालियों / अंग प्रदर्शन करने वालियों की नकल करना बन्द करो.किरण बेदी/कल्पना चावला/आदि से प्रेरणा लो.उनका नजरिया/विचार दर्शन जानो,उसे अपना नजरिया बनाओ.अपनी प्रतिभा सें किसी प्रकार  का समझौता  न करो.चरित्र क्या है ?इसको जानो.समाज की नजर में नहीं,महान नारियों  की नजर  में जियो,लिंग भेद की मानसिकता त्यागो.
नारी को भी पुरुषों  की भांति आत्मनिर्भर  होना चाहिए.हाँ,ये सत्य ऐसे में उसे आधा संघर्ष नारी होने  के नाते करना होगा. लेकिन ये सत्य  है कि कानून/मानवता का साथ लेकर यदि ईमानदारी से संघर्ष करे तो वह अवश्य सफल  होगी.सशक्त नारी भी आज कुल व समाज  में  समस्या नजर आ रहीं है.कुल में जहां वह शादी के बाद जाती है,वहां वह पूरे कुल की उम्मीदों से बन्धी होती है,कुल की भी कुछ मर्यादाएं  होती हैं.क्यों न वह घर  में कितनी भी रुपया लाती  हो लेकिन बुजुर्ग सास ससुर,नन्द आदि  की  उम्मीदें  भी होती  हैं. सबकुछ रुपया ही नहीं होता.शादी करने का मतलब "मैं" खत्म हो जाना चाहिए. मैं--तू में हम जीवन के आनन्द से दूर  होते  जाते  हैं.तू तू में में में पर उतर  आते है.हमें  जो उपलब्ध होता ह,उसको। ही हम सहजता  में नही नही जी पाते.हमारे सनातन विद्वानों ने तो शादी का उद्देश्य "धर्म" बताया है  न कि "काम".हम सुख दुःख के पाट के बीच पिसते रहते है.आनन्द को नहीं पाना चाहते.आनन्द कैसे मिलता है?इसका ज्ञान ही नहीं?
 एक घटना के हम साक्षात् सबूत हैं.बरेली से एक युवती की शादी बीसलपुर में हो जाती है.ओशो ने कहा है,ठीक कहा है - आज कल "शादी करना" अबैध है.हालांकि शादी एक आवश्यकता है.हाँ,तो वह शादी हो कर अपने ससुराल आ गयी. उसका मन तो बरेली में ही लगा था.बेचारे उसके पति ने उसके सारे ख्बाब पूरे करने की कोशिस करता रहा.वह इसी बात पर अड़ी रही कि  क्यों न बरेली शिफ्ट  हो जॉए?लेकिन शादी का मतलब ये तो नहीं?या तो पहले ही ये तय हो.पति अपने बुजुर्ग माता पिता को छोंड़ बरेली में कैसे शिफ्ट हो जाये?शादी का मतलब "मैं" में जीना नहीं, "हमसब" में जीना है.जैसे तैसे उसने डेढ़ वर्ष काट और फिर जब बरेली गयी बापस नहीं आयी,ऊपर से दहेज एक्ट लगवा दिया.वह अपने यार के साथ स्वछन्द हो जीवन काट रही है.इस तरह का एक केस और एक युवती शादी से पहले ही एक युवक से दिल लगा बैठी,सब जानकारी होने के बाद भी उसके माता पिता ने दूसरी जगह शादी कर दी.वह एक दो बार अपने ससुराल गयी ,फिर मायके में ही रहने लगी.मायके वालों के दवाब पर वह आत्महत्या कर बैठी,ऐसे में बेचारे ससुराल बालों का क्या दोष?ससुराल वालों पर दहेज़ एक्ट थोप दिया गया.,...... इसी तरह हम अन्य सशक्त नारियों को देख रहे है , जो अपने मायके/ससुराल को छोड़ कर तीसरी जगह पर नौकरी के वास्ते रह रहीं है.वे संस्था/आसपड़ोस में क्या गुल खिलाती है?कुछ कहा नहीं जा सकता?

 नारी सशक्तिकरण  व  मानवता
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नारी सशक्तिकरण का मतलब मानवता व लैंगिक समानता को पल्लवित विकसित करना है.नारी को आत्मनिर्भर बनाना है न कि पुरुष समाज / समाज/संस्थाओं में बिकार पैदा करना है.मानवता के लिए हर वाद निरर्थक  है.समसम्मान आवश्यक है.सम अस्तित्व आबश्यक है.क़ानूनी व्यबस्था/मानवता/अध्यात्म आबश्यक  है.निरा कोरा भौतिक भोग वाद विकार पैदा करने वाला है.सन्तुलन ही  जीवन है.

ashok kumar verma "bindu"

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