हमें खुशी होती है!!वर्तमान तन्त्र व नजरिया के रहते हम आप सुधरने वाले नहीं।माल्थस ने कहा था तुम्हारे सोच ,तुम्हारी जाति, मजहब आदि की नहीं चलेगी,कुदरत, आत्मा, परम् आत्मा का तन्त्र तुम्हारे तन्त्र, तुम्हारी सोच, तुम्हारी जातीय मजहबी सोंच को नेस्तनाबूत कर देगा।हमें खुशी है, हम तो कुदरत, आत्मा, परम् आत्मा का साथ चाहते है।भाड़ में जाये तुम्हारी जातीय मजहबी व्यवस्थाएं....
अब भी वक्त है, संभल लो!!
वक्त ऐसा आएगा जब मनुष्यता या तो हा हा कार कर रही होगी या वर्तमान व्यबस्था, सोंच, आस्था आदि को बदल रही होगी
। कुदरत में कुछ भी स्थिर नहीं है
परिवर्तन शील है।परिबर्तन शाश्वत नियम है।आप ने ये कैसे सोच लिया कि हमारी वर्तमान आस्थाएं, सोंच, व्यबस्था के स्तर से ऊपर अन्य स्तर नहीं?अनन्तता गतिशील है। हमारी आत्मा ही हमारी धुरी को हमसे पकड़वा सकती है।मानवता ही व्यबस्था बेहतर दे सकती है।हमें खुशी है कि हम जो चाहते हैं,वह सुनने को भी तैयार नहीं हो?कुरान की शुरुआती आयतें सुनाई नहीं दे रही है, गीता के सन्देश सुनाई नहीं दे रहे है,वेद ले संदेश सुनाई नहीं दे रहे है....पुरोहितबाद, सत्तावाद, जातिवाद, पूंजीवाद आदि की कब तक सुनोगे?वर्तमान नेताओं, पंडितों, मौलबियों आदि की कब तक सुनोगे?कुदरत के खेल के सामने जब सन्नाटा, कोहराम होगा तब हमें याद करना। श्मसान, कब्रिस्तान में तो जीवन की बडी बडी बातें हो जाती है। वहाँ बड़े बड़े फ्लॉसफ़र नजर आते हैं।लेकिन रोजमर्रे के लम्हों में..???एक आचार्य कहते थे मरने से पहले मर जाओ। कुदरत, आत्मा,परम् आत्मा के सामने अपने शून्य से हो जाओ। हनुमान का सूक्ष्म होना, उनका सूरज निगला.....आदि आपके लिए मजाक या अन्धविश्वास हो सकता है लेकिन उसको महसूस नहीं कर सकते।अपनी आत्मा व मानवता से दोस्ती कर लो रास्ता कुदरत हमे देती रहेगी। दुनिया को हम नही, मौलबी पंडित नहीं, नेता अफसर नहीं चला रहे... ये अनुभव किया है क्या???तो फिर इनके कारण भड़कते क्यों हो?आत्मा की क्यों नहीं सुनते?मानवता की क्यों नहीं सुनते?भीड़ का हिस्सा क्यों बनते हो?
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सामजिकता के दंश!!
www.ashokbindu.blogspot.com
अब भी वक्त है, संभल लो!!
वक्त ऐसा आएगा जब मनुष्यता या तो हा हा कार कर रही होगी या वर्तमान व्यबस्था, सोंच, आस्था आदि को बदल रही होगी
। कुदरत में कुछ भी स्थिर नहीं है
परिवर्तन शील है।परिबर्तन शाश्वत नियम है।आप ने ये कैसे सोच लिया कि हमारी वर्तमान आस्थाएं, सोंच, व्यबस्था के स्तर से ऊपर अन्य स्तर नहीं?अनन्तता गतिशील है। हमारी आत्मा ही हमारी धुरी को हमसे पकड़वा सकती है।मानवता ही व्यबस्था बेहतर दे सकती है।हमें खुशी है कि हम जो चाहते हैं,वह सुनने को भी तैयार नहीं हो?कुरान की शुरुआती आयतें सुनाई नहीं दे रही है, गीता के सन्देश सुनाई नहीं दे रहे है,वेद ले संदेश सुनाई नहीं दे रहे है....पुरोहितबाद, सत्तावाद, जातिवाद, पूंजीवाद आदि की कब तक सुनोगे?वर्तमान नेताओं, पंडितों, मौलबियों आदि की कब तक सुनोगे?कुदरत के खेल के सामने जब सन्नाटा, कोहराम होगा तब हमें याद करना। श्मसान, कब्रिस्तान में तो जीवन की बडी बडी बातें हो जाती है। वहाँ बड़े बड़े फ्लॉसफ़र नजर आते हैं।लेकिन रोजमर्रे के लम्हों में..???एक आचार्य कहते थे मरने से पहले मर जाओ। कुदरत, आत्मा,परम् आत्मा के सामने अपने शून्य से हो जाओ। हनुमान का सूक्ष्म होना, उनका सूरज निगला.....आदि आपके लिए मजाक या अन्धविश्वास हो सकता है लेकिन उसको महसूस नहीं कर सकते।अपनी आत्मा व मानवता से दोस्ती कर लो रास्ता कुदरत हमे देती रहेगी। दुनिया को हम नही, मौलबी पंडित नहीं, नेता अफसर नहीं चला रहे... ये अनुभव किया है क्या???तो फिर इनके कारण भड़कते क्यों हो?आत्मा की क्यों नहीं सुनते?मानवता की क्यों नहीं सुनते?भीड़ का हिस्सा क्यों बनते हो?
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