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Friday 20 May, 2011

नारी शक्ति : मातृ शक्ति



सखि सम्प्रदाय में स्वयं को कृष्ण का सखि माना जाता हैं.कृष्ण क्या है? कृष्ण है वह शक्ति जिससे जगत व जगत के वे तत्व आकर्षित हैं जो कृष्ण के आकर्षण में बंधने के कारण ही सजीव कहलाते हैं व जिस के कारण ब्राह्मण्ड में सृजन या विध्वंस जारी रहता है.इस धरती पर मथुरा में जन्मा कृष्ण तो सिर्फ उस अनन्त शक्ति के अंश का सगुण के माध्यम से अपनी लीला का कारण है.वह अनन्त शक्ति ही हमसे लीला कराती है,जिसके हम एक कतरा हैं.हमारा दोष इतना है कि हम माया ,मोह ,लोभ, काम ,आदि में उस अनन्त शक्ति की लय रुपी बांसुरी के राग यानि कि लयता में लीन नहीं हो पाते.जोकि हमारे रोम रोम में भी बसी है.उस अनन्त शक्ति के अलावा चाहें वह हमारे अन्दर हो या अन्यत्र , सब प्रकृति है.प्रकृति स्त्री गुण है . वह साक्षात दुर्गा है.हमारा शरीर भी प्रकृति है . पुरुष की तरह स्त्री भी ' स्व ' से अन्जान है . ' स्व ' है ' आत्मा ' वह है ' परमात्मा ' , जो कि शिव है.स्त्री का शरीर हो या पुरुष का शरीर;प्रकृति है.दोनों तरह के शरीर में जो आत्मा है, वह अलैंगिक है.वही से अनन्त भगवान तक पहुंचा जा सकता है. सिर्फ स्त्री के स्थूल शरीर से आकर्षण का कारण 'काम' है.'काम' के अभाव में स्त्री के स्थूल शरीर से आकर्षण का कोई सांसारिक कारण नहीं रह जाता.ऐसे में फिर पत्नी को छोड़ बेटी ,मां ,बहिन ,चाची,बुआ,आदि की तरह हो जाती है स्त्री . ऐसे में पत्नी भी काम के अभाव में एक देवी के समान हो जाती है.कुछ ने तो पत्नी को भी वानप्रस्थ व सन्यास आश्रम में आकर मां का दर्जा दिया है .कामुक नर नारी ही नारी शक्ति को मातृशक्ति नहीं मान सकती.

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