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Sunday 1 May, 2011

गर जड़ें जिंदा बचीं : संगीता सक्सेना



ओशो ने कहा है कि अधिकतर मनुष्य उखड़े हुए पौधे की भांति हो चुका है,जिसे भौतिक संसाधनों के माध्यम से बचाने की कोशिस की जा रही है.अपनी जड़ जमीन से अलग हुआ पौधा कितना अपने शाश्वत जीवन की सहजता में जी सकता है? समाजवादी चिन्तक लोहिया ने मरते वक्त कहा था कि लगता है समाज अपनी आत्मा खो चुका है.देखा जाए तो व्यक्ति वास्तव में अपने धर्म व आत्मा से दूर जा चुका है.व्यक्ति जिसे धर्म मान रहा है ,वह धर्म है ही नहीं.


खैर....!



' गर जड़ें जिंदा बचीं ' !



बीसलपुर(पीलीभीत) उप्र की निवासी हैँ डा संगीता सक्सेना ,जो काव्य प्रतिभा की धनी हैं.' गर जड़ें जिंदा बचीं ' उनके द्वारा रचित एक श्रेष्ठ पुस्तक है .



जयपुर मेँ 'अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान' के तत्वावधान में गुरु अर्जुन देव जयंती का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमे बीसलपुर(पीलीभीत)उप्र की डा संगीता सक्सेना की पुस्तक'गर जड़ें जिंदा बचीं ' का विमोचन व समीक्षा प्रस्तुत की गई.समारोह के मुख्य अतिथि गुरुचरण सिँह गिल राष्ट्रीय अध्यक्ष सिक्ख संगत रहे.



बीसलपुर (पीलीभीत)उप्र की प्रबुद्ध जनता को नाज है.साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी के बाद अब डा संगीता सक्सेना ने बीसलपुर(पीलीभीत)उप्र का नाम दुनिया के प्रबुद्ध वर्ग के बीच ससम्मान पहुंचाया है.इस विषय पर बीसलपुर(पीलीभीत ) उप्र के ही युवा विचारक विमल वर्मा ने बताया कि डा संगीता सक्सेना से बीसलपुर (पीलीभीत)उप्र के प्रबुद्ध वर्ग की नाक ऊंची हुई है.

जयपुर मे हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर आर सी शर्मा व संचालन भवानी निकेतन कालेज जयपुर के संस्कृत विभाग की अध्यक्ष डा वेला मलिक ने किया.इस कार्यक्रम में परिषद के प्रदेशाध्यक्ष डा मथुरेश नंदन कुलश्रेष्ठ भी उपस्थित थे.



(प्रस्तुति:सुजाता देवी शास्त्री)

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