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Monday 2 May, 2011

इंटरनेट के अभिव्यक्ति पर नियन्त्रण का विरोध!



हम सब इंटरनेट पर किसी न किसी तरह से वैचारिक क्रान्ति में लगे हुए हैँ.आओ हम सब इंटनेट पर नियन्त्रणों पर एक बहस छेंड़े,जो कि हम लोगो के लिए अति आवश्यक है.


बालेन्दु शर्मा दधीचि का कहना है-
"इंटरनेट पर विचारों और सूचनाओं के मुक्त आदान प्रदान से आम तौर पर चीन और ईरान जैसी सरकारों को समस्या रही है जो वेबसाइटों,ब्लागों,सर्च इंजनों और सोशियल नेटवर्किंग साइटों तक पर अंकुश लगाने के नए नए उपाय करती रहती हैं लेकिन इधर भारत सरकार ने अपने सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत कुछ कड़े नियम जारी कर हलचल मचा दी है.इन नियमों में इस्तेमाल की गई शब्दावली कुछ ऐसी है कि जरुरत पड़ने पर कोई भी सरकार आनलाइन माध्यमों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए उनकी अलग अलग ढंग से व्याख्या कर सकती है. सरकार द्वारा तय किए गए मानदंड इतने व्यापक और शब्दावली इतनी ढीली ढाली है कि उसके दायरे मे तो ज्यादातर आनलाइन सामग्री आ जा एगी .ऐसी सामग्री के लिए भी इंटरनेट मध्यमोँ को दंडित किया जा सकता है जो किसी अन्य देश के लिए अपमानबनक हो.ऐसे प्रावधानों को पूरी तरह स्पष्ट बनाए बिना लागू करना उनके दुरुपयोग का पिटारा खोल सकता है.इंटरनेट कंपनियां और इंटरनेट उपभोक्ता इनसे खासे विचलित हैँ.आपको याद होगा छह साल पहले बाजी डाट काम (अब ईबे.को.इन)के सीईओ अवनीश बजाब को सिर्फ इस बात के लिए जेल जाना पड़ा था कि किसी यूजर ने उनकी वेबसाइट पर बिक्री के लिए अश्लील सीडी डाल दी थी.नए आईटी नियमों के तहत इस्तेमाल किए गए मानहानिकारक,अश्लील,घृणास्पद,संकीर्णपूर्ण,परेशान करने वाला ओर विदेश के लिए अपमानजनक जैसे मापदंडोँ का क्या मतलब है? घृणास्पद कितना, किस मायने में ,किसके लिए,किस किस्म की,आदि ढेरों पहलू हैं जिन्हें पूरी तरह साफ किए जाने की जरुरत है.अगर भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही मुहिम के समर्थन में किसी वेबसाइट पर कोई आक्रामक लेख लिखा जाता है तो वह इनमें से अनेक श्रेणियों के तहत दंड का पात्र हो जाएगा.विकीलीक्स के सारे रहस्योद्घाटन इस कानून के तहत अपराध की श्रेणी में आएंगे.अगर कोई ब्लागर आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान के समर्थन से व्यथित होकर या फिर सद्दाम हुसैन के विरूद्ध अमेरीकी कार्रवाई से व्यथित हो कर कोई आक्रामक लेख लिखता है तो उसे आप किस श्रेणी में मानेंगे?जाहिर है,इसकी व्याख्या आसानी से नकारात्मक रुप मे की जा सकती है.इसी तरह,अश्लीलता के क्या मायने है?हो सकता है किसी एक संस्कृति मे रहने वाले व्यक्ति के लिए जो अश्लील हो वह दूसरों के लिए न हो.बात फिर इंटरप्रिटेशन पर आ टिकती है. "



ओशो ने सुकरात के ही देश में कहा था-सुकरात को सत्ता ने मारा था,पब्लिक ने नहीं.आखिर ब्यूरेक्रेसी कब तक अभिव्यक्ति के खिलाफ बनी रहेगी?


जागो!इस पर बहस छेंड़ो.


आप सब सुने,यह आईटी नियम हम सब के खिलाफ है. वैचारिक क्रान्ति के खिलाफ है.

फिर कहता हूँ कि जागो!

हम लोगो को भी एक मंच बनाना होगा और इण्टरनेट से बाहर निकल कर धरती पर वर्ष मे एक बार एक सेमीनार व पुरस्कारों का सिलसिला प्रारम्भ करना होगा.

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