हमारे विद्यालय अध्यापक परिवार में से एक हैं-ब्रह्माधार मिश्रा. जिनके रिश्ते में एक वृद्ध मामा जी हैं,जो कि कभी कभार विद्यालय में आते रहते हैं .जब मेरा उनसे आमना सामना होता है तो फिर धार्मिक व आध्यात्मिक चर्चा होती है.जब परसों उनसे मुलाकात हुई तो वे बोले कि अध्यात्म में क्या चल रहा है?
"क्या चल रहा है? बस,मेडिटेशन."
"आपने यह सब कहां से पाया ?आपने किसी को अपना आराध्य या गुरु तो मनाया ही होगा?"
"ऐसा नहीं है.दर असल बचपन से ही मेरा बुजुर्गों के बीच बैठना ज्यादा हुआ."
"कोई आराध्य नहीं है तो फिर साधना कैसे होती है?कोई राम राम जपता है कोई....."
"मैं कुछ मेडिटेशन क्रियाएं करता हूँ.एक-जैसे गौतम बुद्ध करते थे कि बैठ गये आंख करके और श्वास प्रक्रिया पर ध्यान देने लगे.इस तरह अन्य में........."
"बुद्ध को तो लोग अनिश्वरवादी मानते हैँ."
"लेकिन मैं नहीं.दुनियां में जिन ईश्वरों की बात की गयी है वे सब इस संसार में व इस संसार के लिए ही हैं.इससे आगे भी कुछ है.....अन्धकार .....शून्य फिर,यहां भी एक ब्लैक होल है जिसमें सारी दुनिया समा जाती.जिसके पार भी कुछ है.इस अन्धकार इस शून्य व इसके पार की अनुभूति को अभी तक कोई शब्द नहीं दे पाया है.बुद्ध ने इसकी कोशिस की है."
खाली की बहस बाजी क्यों?जो दुनिया से चिपके हैं,माया मोह लोभ अहंकार आदि से निकलने का प्रयत्न भी नहीं करना चाहते.सांसारिक सुख चाहते है,उन से ईश्वर की बात?
बुद्ध को अनिश्वरवादी मानने वाले जरा अपना आत्मसाक्षात्कार करें.
बुद्ध का जीवन से ही बुद्ध व उनके प्रिय शिष्य आनन्द के कुछ सम्वाद से स्पष्ट होता है कि बुद्ध ने उस समाज में ईश्वर की चर्चा करना व्यर्थ समझा ,जहां लोगों के मन ईश्वर में नहीं रमें हैं वरन माया मोह लोभ भोग विलास में रमें है या फिर वे ईश्वर की शरण में जाते भी हैं तो ईश में रमने के लिए नहीं वरन सांसारिक सुख पाने के लिए.ऐसे समाज के प्रति सन्त कबीर तक को भी कहना पड़ा था -मैं दुनिया के लिए जो देने आया हूँ,वह कोई लेने नहीं आता.
भक्त संसारिक सुख की कामना रखता है क्या ? ईश् भक्ति सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए ?बुद्ध ने ईश्वर नहीं ईश्वरता की बात की. उनके दर्शन में ईश्वर जरुर नहीं है लेकिन ईश्वरता है.योग के आठ अंग हैँ,जिसके बिना साधारण जन ईश्वरता धार्मिकता व आत्म साक्षात्कार की ओर यात्रा तय नहीं कर सकता.संसार के देवी देवता व भगवानों के पार शून्य में क्या है?योगियों ने शरीर system को आठ भाग में बांटा है-reproductory,excretory,digestive, skeletal,circulatory,respiratory,nervous and endocrinal system .सहस्रार चक्र अर्थात लतीफा-ए-उम्मुद दिमाग के बाद शून्य की दशा आती हैं .संसार के देवी देवता व भगवान इससे पूर्व के syastem में हैं.ऐसे में बुद्ध की शून्य स्थिति में सांसारिक देवी देवताओं व भगवानों की बात कैसे?लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बुद्ध को अनिश्वरवादी मान लिया जाए?