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Thursday 21 April, 2011

कान भरने वालों की ही सुनते रहोगे क्या?

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 21 Apr 2011 08:28 IST
Subject: कान भरने वालों की ही सुनते रहोगे क्या?

हमारा नजरिया कितना गिर चुका है.तथ्यों का संश्लेशण किए बिना तीसरे व्यक्तियो की सुन सिर्फ व्यवहार कर बैठना मूर्खता है.अनेक परिवार व रिश्ते इसलिए टूटते देखे गये है कि आपस में एक दूसरे की न सुनकर निदानात्मक चर्चा न कर भड़क उठना व आपस में अपनी समस्या निपटाने की क्षमता का अभाव तीसरे व्यक्ति के चक्कर मे पड़ जाते है.हमे परिवार व समाज मे ऐसे व्यक्ति मिल जाते है जो कि अपनी धुन मे
जीकर आपस मे नुक्ताचीनी व एकदूसरे पर दोष मड़ते रहते है लेकिन समस्याओं का हल करने की योग्यता नहीं रखते .इसका मुख्य कारण इनके मन में नम्रता व विवेक का मिट जाना है.यह तटस्थ होकर पक्ष व विपक्ष दोनों पर चिन्तन नहीं कर पाते,या तो यह सामने वाले के पक्ष मे होते है या विपक्ष में लेकिन निष्पक्ष हो सत्य तक जाने का प्रयत्न नहीं करते. हाँ कान के कच्चे होने के कारण तीसरे की सुन आचरण अवश्य
कर सकते है,वास्तव में देखा जाए तो यह स्वार्थ या स्वार्थी तत्वों के चंगुल में फंस कर रह जाते हैं .यह दंश ही होते हैं न्यायवादी व मानवीय व्यवस्था मेँ .यह लोग दूसरे के जीवन मे हस्तक्षेप तो कर सकते हैं लेकिन सहयोग नहीं.समाज व देश की छोड़ो अब तो कुछ परिवारों मे यह देखने को मिल रहा है और परिजन ही कभी कभी दुश्मन नजर आने लगते है क्योकि वे कारणो व दूसरे को जानने की कोशिस न करके बस जीवन
को निराशा मे ढकेलना जानते है.बदले की भावना में इंसानियत का गला घोटते है.

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