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Wednesday 20 April, 2011

विश्व को शान्ति की झलक !



संतों की कमी नहीं धरती पर!



जो पापों से कभी मुक्त न हो सकते,हम उनको पापों से मुक्त करा देंगे.


जिन जिन मेँ गुरु भक्ति न आई,उन उन में गुरु भक्ति करा देंगे..



--परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज नाम से चर्चित सन्त तुलसी दास का यह कहना है.



02 मार्च 2009 ई0 को मैं मथुरा स्थित जयगुरुदेव आश्रम में था.एक पुस्तक 'जड़ से चेतन की ओर' एक पृष्ठ 'भविष्यवाणी'पर यह पंक्तियां लिखीं थीँ.


मेरे पास खड़ा
एक अधेड़ बोला -देखो यह लिखा है.जड़ से भगवान का भजन नहीं होता.जब आत्मा पर से कर्मों का पर्दा हटेगा खोल उतरेगा तब सुरत से सच्चा भजन होगा......इस मनुष्य मन्दिर में जहां सुरत बैठी हुई है वहीं हरि द्वार है यानि हरि के पास जाने का दरवाजा वहीं है.अच्छे बुरे कर्म करके आपने उसे दरवाजे को बंद कर दिया है आत्मकर्म करो तो दरवाजा खुल जाएगा....सत्संग तो वो है कि सत असत का निरूपण किया जाता है.



कुछ दूरी पर मंच के सामने लोग मेडिटेशन में थे.एक ओर जयगुरुदेव की लगी तश्वीर पर लिखा था कि विश्व को शान्ति अब इन्हीं से मिलेगी.

अमेरिका की
महिला भविष्यवेत्ता फ्लोरेंसे ने दी फेल आफ सैन्सेशनल कल्चर नामक पुस्तक में लिखा है कि सन 2000 ई0 आते आते प्राकृतिक संतुलन भयावह रूप से बिगड़ेगा.लोगों में आक्रोश की प्रबल भावना होगी.लोगों की अतृप्त अभिलाषाएं और जोर पकड़ेंगी व आपसी कटुता बढ़ेगी.ऐसे एक वैचारिक क्रान्ति दुनिया को प्रभावित करेगी.तीसरे विश्व युद्ध की शंका के दौरान बागडोर आध्यात्मिक प्रवृत्तियां संभालेंगी.



ओशो ने कहा है कि विभिन्न समस्याओं की जड़ हमारा मन है.प्रकृति व संसार समस्या नहीं है वरन उसको सोचने का ढंग समस्या है.स्थूल घटनाओं में परिवर्तन से सबके मन नहीं बदल जाते.मन बदलेगा गुरु का सानिध्य.अपने के अन्दर का गुरु पहचानो.हर कोई के अन्दर एक महापुरुष है.बस उस पर पकड़ बनाना मुश्किल होता है.सिर्फ निज स्वार्थ के लिए जीने की परम्परा परिवार,समाज,देश व विश्व का कल्याण नहीं कर सकती.न ही उसे चरित्र से मानव कहा जा सकता जो सिर्फ अपने निज स्वार्थ के लिए जीवन जीता है.यह एक शोध का विषय है कि आपात स्थितियों में जो बचते हैं वे क्या अपने शारीरिक ऐन्द्रिक आभा से निकल कर स्व अर्थात आत्मा की आभा का एहसास पाते हैं?


अपने अन्दर के उस सन्त को पाने के बाद,सगुण नारी (प्रकृति) में अपने मन को रमाने के बजाय अपने अन्दर के निर्गुण नारी को पहचाने के बाद उसमें रमने के बाद अपने आत्मा पर आ ही महानता पर चलने का द्वार पा सकते है और विश्व शान्ति प्रति समर्पण की सहजता पा सकते है.



हमें कभी न कभी यह सत्य स्वीकार करना पड़ेगा ही कि हम सिर्फ हड्डी मास का पुतला नहीं हैं व हम इस धरती पर जब आते हैं तो अकेले नहीं आते हैं वरन हम एक नेटवर्क मेँ बंधे होते है.हमारी अशान्ति व असन्तुष्टि का कारण यही है कि हम अपने को नहीं पहचान पाते और अपने नेटवर्क से नहीं जुड़ पाते.
अनेक के साथ ऐसा होता है कि व्यक्ति आसान सुलभ व अवसर आधारित रास्ता चुन अपनी प्रतिभा,क्षमता,सामर्थ्य व शक्ति को दबा डालता है.जीवन मेँ त्याग,संयम,आदि से काम नहीं लेता.जोखिम उठाने का साहस नहीं रखता.इसका कारण अपने स्व से दूरियों का होना है.

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