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Thursday 5 July, 2012

मुसलमान के मायने बड़े ?

हमारे पास इण्टर के दो छात्र उपस्थित थे ,एक मुस्लिम व दूसरा हिन्दू पण्डित था .जिनसे आध्यात्मिक चर्चा चल रही थी .हिन्दू छात्र बोला ,बड़े हिन्दू होते हैँ कि मुस्लिम ? मेरी नजर मेँ तो हिन्दू बड़े होते है ?मुस्लिम हंसते हुए बोला,हिन्दू तो जाटव वाल्मीकि भी होते हैँ .कहो कि ब्राह्मण बड़ा होता है ?


मैँ बोला , रोजमर्रे की जिन्दगी मेँ न जाने कितनोँ से सामना होता है .जो किसी भी जाति या किसी भी मजहब से हो सकता है .उनमेँ कौन बड़ा है ?जो भौतिक चकाचौंध मेँ है ,उसकी नजर मेँ 'बड़ा' की परिभाषा से,जो जातिवादी व मजहबी हैँ उनकी नजर मेँ 'बड़ा' की परिभाषा से मेरी परिभाषा मेँ अंतर है .

मेरी नजर मेँ बड़ा कौन है ? जो जातिवाद ,छुआछूत ,पक्षपात ,मनमानी ,कूपमण्डूकता ,आदि से हट कर सत्य ,ज्ञान ,कानून ,उदारता,आदि के आधार पर जीवन जीता है वह बड़ा है .आपने फूलोँ व फलोँ लदी डाली को देखा होगा ,वह झुकी होती है .बड़ा वह है जो उदार व नम्र है .

हिन्दू छात्र बोला ,हिन्दू व मुसलमानोँ मेँ कौन बड़ा है ?

मुस्लिम छात्र बोला ,तू ब्राह्मण जाति का होकर भी सरजी की बात नहीँ समझ पा रहा है ?सर जी ने अभी क्या बताया ?

<www.vedquran.blogspot.com>
मैँ बोला ,हमेँ रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ जो हिन्दू मुसलमान मिलते हैँ ,मै उनकी बात नहीँ करना चाहूँगा .उनमेँ से निन्यानवे प्रतिशत विचलित हैँ ,अज्ञानी व मजहबी हैँ .मैँ यहाँ पर शब्दोँ की बात करना चाहता हूँ .निरन्तर अभ्यास से शब्दोँ के पीछे छिपे असली मर्म को जानने के बाद हमारे भाव व विचार परिवर्तित होकर हमारा नजरिया बदलते हैँ और फिर जब हमारा नजरिया बदलता है तो विचार बदलते हैँ .
<www.antaryahoo.blogspot.com>

व्यक्ति जो शरीर से दिखता है व उसका आधा व्यक्तित्व होता है .शेष आधा व्यक्तित्व उसका उसके अंदर उसके भावनाओँ ,विचारोँ ,नजरिया ,सोँचने के ढंग मेँ होता है .
<www.akvashokbindu.blogspot.com>

हम दूसरे को पहचानने के नाम पर बड़े दम्भ मेँ होते हैँ .देखा जाये तो हम अपने को ही नहीँ पहचानते .जातिवाद ,मजहबवाद ,शारीरिक व ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ ,आदि मेँ उलझ कर हम अपना सारा जीवन गँवा देते हैँ लेकिन अपने को नहीँ पहचान पाते .

<www.ashokbindu.blogspot.com>

हम पचास प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश होते हैँ अर्थात अर्द्धनारीश्वर अंश .अपने जीवन मेँ जो अशान्त व असंतुष्ट रह जाते है ,प्रकृति(शरीर ,परशरीर ,धन दौलत ,संसाधन ,आदि) पाकर भी अशान्त व असंतुष्ट रह जाते हैँ .ऐसा क्योँ ?क्योँकि ये अपने ब्रह्मांश के लिए कुछ भी नहीँ करते .यज्ञ ,धर्मस्थल ,मूर्तियाँ ,पुस्तकेँ ,तीर्थ यात्रा ,आदि सब प्रकृतिअंश ही हैँ ,अनित्य हैँ
.ब्रह्मांश के लिए हमेँ क्या करना होता है ? कुछ भी नहीँ करना होता है .सिर्फ आँख बंद करके बैठ कुछ क्रियाएँ करनी होती हैँ ,मन को शान्त व उदार रखना होता है .

<www.islaminhindi.blogspot.com>

हिन्दू के मायने मुसलमान के मायने से संकीर्ण है ,मुसलमान शब्द के मायने बड़े हैँ .मुसलमान शब्द के मायने ईमान व सत से जुड़े हैँ लेकिन हिन्दू शब्द के मायने एक क्षेत्र विशेष से जुड़े हैँ .आर्य होने के लिए हिन्दू होना आवश्यक नहीँ है.प्रत्येक आत्मा सत होती है या ईमान मेँ होती है इसलिए मेरा विचार है कि हर आत्मा मुसलमान होती है.मेरी नजर मेँ
आर्य या आत्मा का गुण हिन्दू नहीँ हो सकता .जैन ,बुद्ध ,यहूदी ,पारसी ,ईसाई ,मुसलमान ,आदि सम्भवत: आत्मा के गुण हो सकते हैँ ?या आर्य होने के लिए गुण हो सकते हैँ .

हिन्दू के मायने से मुसलमान के मायने बड़े हैँ सम्भवत: ?

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